पहली बार मलेरिया की एक वैक्सीन ने दिए उत्साहजनक नतीजे
२६ अप्रैल २०२१
मलेरिया हर साल दुनियभर में हजारों बच्चों की जान लेता है. अफ्रीका में एक मलेरिया वैक्सीन पर परीक्षण जारी है, जो शुरुआती चरण में है लेकिन इसके नतीजे उत्साहजनक हैं.
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बुरकीना फासो में हो रहे मलेरिया वैक्सीन के इस परीक्षण के नतीजों ने वैज्ञानिक समुदाय को उत्साहित कर दिया है. परीक्षण के नतीजे द लांसेट जर्नल के प्रि-प्रिंट्स में छपे हैं और पीयर रिव्यू यानी साथियों की समीक्षा का इंतजार कर रहे हैं. इन नतीजों में बताया गया है कि 12 महीनों के दौरान R21/मैट्रिक्स-M वैक्सीन की सफलता दर 77% रही है. विश्व स्वास्थ्य संगठन 75 प्रतिशत को वैक्सीन की न्यूनतम सफलता दर मानता है. यह पहली मलेरिया वैक्सीन है जो न्यूनतम सफलता दर को पार करने में कामयाब रही है.
कैसे हुई ट्रायल?
परीक्षण में 5 से 17 महीने तक के 450 बच्चे शामिल थे. प्रतिभागियों को तीन समूहों में बांटा गया था. पहले दो समूहों को R21/मैट्रिक्स-M वैक्सीन की कम या ज्यादा मात्रा दी गई जबकि तीसरे समूह को रेबीज की वैक्सीन दी गई. जिस समूह को कम मात्रा में मैट्रिक्स-एम दी गई थी, उसकी सफलता दर 71 प्रतिशत रही और कोई गंभीर दुष्प्रभाव भी नजर नहीं आए.
शोधकर्ता अब बड़े समूहों पर परीक्षण की तैयारी कर रहे हैं जिसमें चार अफ्रीकी देशों के 5-36 महीने के 48,00 बच्चे शामिल होंगे. केंब्रिज इंस्टीट्यूट फॉर मेडिकल रिसर्च के निदेशक और मलेरिया पर शोध करने वाले जूलियन रायनर कहते हैं कि इस ट्रायल के नतीजे उत्साहित करने वाले हैं. उन्होंने कहा, "यह एक शुरुआती ट्रायल थी. इस ट्रायल के आंकड़े उत्साहजनक हैं लेकिन बच्चों की मात्रा कम थी. पर इससे दूसरी जगहों पर बड़ी ट्रायल का रास्ता खुल जाता है.”
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कितना खतरनाक है मलेरिया?
मलेरिया एक जानलेवा बीमारी है जो मच्छरों के काटने से होती है. मादा ऐनाफेलीज मच्छरों के डंक से ये पैरासाइट इंसानी शरीर में पहुंचते हैं. पांच ऐसे पैरासाइट हैं जो इंसानों में मलेरिया पैदा करते हैं. इनमें से दो– पी फैल्सिपैरम और पी वाइवैक्स सबसे खतरनाक हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक अनुमान के मुताबिक 2019 में विश्व में मलेरिया के 22.9 करोड़ मामले दर्ज हुए. इनमें से 94 फीसदी मामले अफ्रीका से थे. वहीं सबसे ज्यादा मौतें भी हुईं. दुनिया में मलेरिया से होने वाली कुल मौतों के 67 फीसदी पांच साल से कम उम्र के बच्चे होते हैं.
हालांकि जो लोग मलेरिया-प्रभावित इलाकों में रहते हैं उनके अंदर इस पैरासाइट से लड़ने की कुदरती क्षमता यानी इम्युनिटी पैदा हो जाती है. लेकिन जूलियन रायनर ने डॉयचे वेले को बताया कि यह इम्युनिटी पूरा बचाव नहीं करती. वह कहते हैं, "ऐसा नहीं है कि फिर आपको कभी मलेरिया होगा ही नहीं. हां, आपको वैसे खतरनाक लक्षण नहीं होंगे और नतीजा भी घातक नहीं होगा. इसलिए ज्यादातर खतरनाक मामले बच्चों में होते हैं क्योंकि बड़ों में इम्यूनिटी होती है.”
अब तक एक ही वैक्सीन RTS,S ने मलेरिया के खिलाफ कुछ प्रभावशाली नतीजे दिए हैं. अफ्रीका में 5 से 17 महीने के ऐसे बच्चे जिन्हें RTS,S की चार खुराक मिलीं, उनमें 39% प्रतिशत चार साल के दौरान मलेरिया से बचे रहे.
मलेरिया: मौत के लिए एक ही डंक काफी
एक अनुमान के मुताबिक हर साल दुनिया में 10 लाख लोगों की मौत मलेरिया के कारण होती है. कंपकपी के साथ तेज बुखार मलेरिया के संकेत हैं. इस बीमारी के कारण बच्चों की मौत की संभावना सबसे अधिक होती है.
तस्वीर: AP
मच्छर से मलेरिया
अफ्रीका का सबसे खतरनाक जीव सिर्फ 6 मिलीमीटर लंबा है. इसे मादा एनोफेलीज मच्छर के नाम से जाना जाता है. यह संक्रामक रोग मलेरिया के लिए जिम्मेदार है. एक अनुमान के मुताबिक हर साल दुनिया में 10 लाख लोगों की मौत मलेरिया के कारण होती है. कंपकपी के साथ तेज बुखार मलेरिया के संकेत हैं. इस बीमारी के कारण बच्चों की मौत की संभावना सबसे अधिक होती है.
मलेरिया पीड़ित को अगर मच्छर काट ले तो वह मलेरिया के विषाणु को औरों तक फैला देता है. शोधकर्ताओं ने इस मच्छर में विषाणु को प्रोटीन से चिह्नित किया है जो हरे रंग में चमकता है. लार ग्रंथि में जाने से पहले मच्छर की आंत में पैरासाइट प्रजनन करता है.
मलेरिया पैरासाइट का जैविक नाम प्लाज्मोडियम है. बीमारी की शोध के लिए वैज्ञानिकों ने एनोफेलीज मच्छरों को संक्रमित किया और उसके बाद पैरासाइट को लार ग्रंथि से अलग किया. इसमें पैरासाइट का संक्रामक रूप जमा है. इस तस्वीर में दाहिनी तरफ मच्छर है और बीच में है हटाई गई लार ग्रंथि.
तस्वीर: Cenix BioScience GmbH
विषाणु चक्र
मलेरिया पैरासाइट घुमावदार होते हैं, वो एक दायरे में घुमते हैं. यहां शोधकर्ताओं ने उन्हें तरल पदार्थ के साथ शीशे के टुकड़े पर रखा. पैरासाइट को यहां पीले रंग से चिह्नित किया गया है. और जिस पथ पर घूमते हैं उसे नीले रंग से पहचाना जा सकता है. वो तेजी से चलते हैं. एक पूरा चक्कर लगाने के लिए सिर्फ 30 सेकेंड लेते हैं. बाधा पहुंचने पर वे अपने घुमावदार पथ से हट जाते हैं. सीधी रेखा पर भी चल सकते हैं.
इंसान के शरीर में दाखिल होने के बाद विषाणु मनुष्य के लीवर में कुछ दिनों के लिए ठहर जाता है. इस दौरान मरीज को पता नहीं चलता. प्लाज्मोडियम मरीज की लाल रक्त कणिकाओं को तेजी से प्रभावित करता है, और लीवर में इस परजीवी की संख्या तेजी से बढ़ती चली जाती है. लीवर में यह मेरोजोइटस का रूप लेता है, जिसके बाद रक्त कोशिकाओं पर हमला शुरू हो जाता है और इंसान बीमार महसूस करने लगता है.
तस्वीर: AP
शरीर में बढ़ता पैरासाइट
रक्त कोशिका में दाखिल होने के बाद पैरासाइट एक से तीन दिन के भीतर बढ़ने लगता है. इसके बाद वे लाल रक्त कणिका या लीवर कोशिका में प्रवेश कर जाता है. यहां परजीवी का विखंडन होता है. परजीवियों की संख्या बढ़ने पर कोशिका फट जाती है. नतीजतन इंसान को ठंड के साथ बुखार आने लगता है. माइक्रोस्कोप में इसे आसानी के साथ देखा जा सकता है. बैंगनी रंग का यह रोगाणु अलग नजर आ रहा है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/Klett GmbH
मच्छरदानी में मौत
शोधकर्ताओं ने एक ऐसी मच्छरदानी बनाई है जिसमें जाल में कीटनाशक लगे हुए हैं. मच्छरदानी के संपर्क में आते ही मच्छर मर जाते हैं.
तस्वीर: Edlena Barros
दवा का छिड़काव
जब मलेरिया का प्रकोप हद से ज्यादा बढ़ जाता है तो उसके लिए दूसरे उपाए किए जाते हैं. मुंबई की इस तस्वीर में मच्छरों को मारने के लिए दवाओं का छिड़काव किया जा रहा है. डीडीटी कीटनाशक का इस्तेमाल प्रभावशाली होता है. हालांकि यह स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए खतरनाक होता है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
रैपिड टेस्ट
खून की एक बूंद से किया गया रैपिड टेस्ट मिनटों में बता सकता है कि मरीज को मलेरिया है या नहीं. यहां डॉक्टर विदआउट बॉर्डर की एक कार्यकर्ता, अफ्रीकी देश माली में लड़के पर रैपिड टेस्ट कर रही हैं. इस लड़के में मलेरिया की पुष्टि हुई. उपचार के दो दिन बाद वह स्वस्थ हो गया. हालांकि रैपिड टेस्ट हमेशा भरोसेमंद नहीं होते.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
दवा बेअसर
दवाइयों की मदद से रक्त में मौजूद विषाणु को खत्म या फिर बढ़ने से रोका जा सकता है. हालांकि दवाओं का असर पैरासाइट पर कम होता जा रहा है. लंबे समय से इस्तेमाल की जा रही मलेरिया की दवा क्लोरोक्वीन अब कुछ इलाकों में प्रभावशाली नहीं है. नई दवाओं की खोज मलेरिया की प्रतिरोधक क्षमता की समस्या से निपटने का एक रास्ता है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
कब आएगा टीका
मलेरिया के लिए अब तक कोई टीका नहीं है. शोधकर्ता टीका बनाने की कोशिश में जुटे हुए हैं. रिपोर्टों के मुताबिक इस मामले में सफलता जल्द मिल सकती है.