मंगोलिया के एक संस्थान की दराजों में रखी कुछ हड्डियों ने वैज्ञानिकों को टिरैनोसॉरस रेक्स के पूर्वज से मिलाया है. ये हड्डियां कम से कम 50 साल से वहां रखी थीं.
टी-रेक्स के पूर्वज के हड्डियों की पहचान हुई तस्वीर: Julius Csotonyi/University of Calgary/AFP
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नेचर जर्नल में छपी रिसर्च रिपोर्ट के मुताबिक विशालकाय टिरैनोसॉरस रेक्स या टी रेक्स का यह पतला दुबला पूर्वज करीब चार मीटर लंबा और इसका वजन करीब 750 किलो था. रिसर्च रिपोर्ट की सह लेखिका डाराला जेलेनित्स्की कनाडा के कैलगरी यूनिवर्सिटी से जुड़ी हैं. उनका कहना है, "इसका आकार किसी बहुत बड़े घोड़े जितना बड़ा है."
यह जीवाश्म दक्षिण पूर्वी मंगोलिया में 1970 के दशक के शुरुआती सालों में खुदाई के दौरान मिला था. हालांकि उस समय इसकी पहचान एक अलग टिरैनोसॉरस एलेक्ट्रोसॉरस के रूप में हुई थी.
टी-रेक्स मांसाहारी डायनासोर हैं जिनका करीब 20 लाख साल तक धरती पर दबदबा रहा हैतस्वीर: Becker & Bredel/picture alliance
मंगोलियाई संस्थान की दराज में रखा जीवाश्म
लगभग आधी शताब्दी तक यह जीवाश्म मंगोलियन एकेडमी ऑफ साइंसेज के इंस्टिट्यूट ऑफ पैलिएंटोलॉजी की दराजों में रखा रहा. जेलेनित्स्की ने बताया कि पीएचडी छात्र जेयर्ड वोरिस जब मंगोलिया के दौरे पर गए और उन दराजों में देखना शुरू किया तो उन्हें लगा कि कुछ गलत है. बाद में पता चला कि अच्छी तरह से रखा गया यह जीवाश्म एक बिल्कुल नई प्रजाति का है. इसमें दो जीवों के कंकाल का कुछ हिस्सा है.जेलेनित्स्की का कहना है, "यह बहुत संभव है कि दूसरे म्यूजियमों में भी जो इस तरह कि खोज में मिली चीजें रखी गई हैं उनकी सही पहचान नहीं हुई हो."
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वैज्ञानिकों ने नई प्रजाति का नाम खानखुलु मंगोलियएंसिस रखा है. मोटे तौर पर इसका मतलब है ड्रैगन प्रिंस ऑफ मंगोलिया क्योंकि यह "किंग" टी-रेक्स की तुलना में छोटा है. टी-रेक्स इस परिवार का आखिरी वंशज था. यह उत्तरी अमेरिका का सबसे शानदार शिकारी जीव था जो 6.6 करोड़ साल पहले तक मौजूद था. उसी समय एक माउंट एवरेस्ट से बड़ा धूमकेतू मेक्सिको की खाड़ी में गिरा. इसके नतीजे में पृथ्वी पर मौजूद तीन चौथाई जीवन नष्ट हो गया. इनमें वो डायनासोर भी खत्म हो गए जो चिड़ियों के रूप में विकसित नहीं हो सके.
डायनासोरों के वो वंशज, जो आपके छत की मुंडेर पर बैठते हैं
करीब 6.6 करोड़ साल पहले आसमानी कहर बनकर आए ऐस्टेरॉइड ने डायनासोरों को मिटा तो दिया, लेकिन उनकी समूची हस्ती खत्म नहीं हुई. उनके वंशज आज भी हमारे बीच रहते हैं.
तस्वीर: Sadak Souici/ZUMA/picture alliance
बचे रहे गए डायनासोर!
रिसर्चर मानते हैं कि 6.6 करोड़ साल पहले एक रोज सुदूर अंतरिक्ष से आया एक ऐस्टेरॉइड पृथ्वी पर गिरा. उसकी धमक से पैदा हुए असर ने पृथ्वी से सबसे विशालकाय जीव डायनासोरों का खात्मा कर दिया. मगर उस हादसे के बाद भी डायनासोरों का एक नामलेवा बचा रह गया. उनके वंशज आज भी हमारी इसी दुनिया में रहते हैं. कुछ चटक रंग वाले, बहुत सुंदर, बला के मेहनती, कई मंजे हुए कारीगर, तो कई बेहतरीन गायक-संगीतकार हैं.
तस्वीर: Peter Schneider/KEYSTONE/picture alliance
गौरैया, कबूतर... सारे पक्षियों का पूर्वज
डायनासोर के खानदान का एक सदस्य था, ट्रायनोसॉरस रेक्स. अमेरिकन म्यूजियम ऑफ नेचुरल हिस्ट्री के मुताबिक, यह लंबाई में करीब 40 फीट और ऊंचाई में 12 फीट था. वजन, पांच से सात हजार किलो तक. यह पृथ्वी पर अब तक के सबसे खूंखार शिकारियों में एक माना जाता है. अब सोचिए, यह ट्रायनोसॉरस रेक्स उन डायनासोरों में हैं, जो नन्ही सी गौरैया के पूर्वज हैं. पेलियनटॉलजिस्ट की मानें, तो पक्षी अपने आप में एक डायनासोर हैं.
तस्वीर: R. Sturm/blickwinkel/picture alliance
थेरोपॉड डायनासोर
अधिकतर मांसभक्षी डायनासोर, थेरोपॉड समूह के थे. पक्षी भी इसी समूह से ताल्लुक रखते हैं. दिलचस्प यह है कि उड़ने वाले पक्षी, जिन थेरोपॉड्स के वंशज हैं वो उड़ते नहीं थे. मतलब, आप कह सकते हैं कि पक्षी दरअसल उड़ने वाले डायनासोर हैं. इस निष्कर्ष पर पहुंचने में दक्षिणी जर्मनी में हुई एक खोज बड़ी अहम साबित हुई.
तस्वीर: R. Sturm/p blickwinkel/icture alliance
अब तक ज्ञात सबसे प्राचीन पक्षी
जर्मनी के बवेरिया प्रांत में एक लाइमस्टोन संरचना है. जॉलेनहोफेन नाम के एक गांव के नजदीक होने के कारण इसे 'जॉलेनहोफेन लाइमस्टोन' कहते हैं. 1861 में यहां एक अनूठा जीवाश्म मिला, जिसे नाम दिया गया: ऑर्कियॉप्टरिक्स लीथोग्रैफिका. इसकी संरचना दो समूहों का मिश्रण थी: छिपकली और पक्षी. यह खोज प्राचीन डायनासोरों और आधुनिक पक्षियों के रिश्ते को समझने में एक बड़ा मोड़ मानी जाती है.
मुमकिन है, पक्षियों का इससे भी प्राचीन कोई स्वरूप हो. कुछ ऐसा, जिससे विकसित होते हुए ऑर्कियॉप्टरिक्स लीथोग्रैफिका बना हो. हालांकि, इसका जीवाश्म के रूप में अब तक कोई सबूत नहीं मिला. बहरहाल, जिस लाइमस्टोन में ऑर्कियॉप्टरिक्स का जीवाश्म मिला, उसमें उसके पंखों की आकृति भी दर्ज रह गई थी. ये पंख वैसे ही हैं, जैसे आज के पक्षियों में होते हैं.
तस्वीर: TONY KARUMBA/AFP
कैसे विकसित हुए आधुनिक पक्षी
डायनासोरों ने पृथ्वी पर बहुत ही लंबे समय तक राज किया. 14 करोड़ साल से ज्यादा वक्त तक उनकी बाहशाहत कायम रही. फिर सुदूर अंतरिक्ष के ऐस्टेरॉइड बेल्ट से आए एक विशालकाय ऐस्टेरॉइड का पृथ्वी से टकराना उनके अंत की वजह बना. डायनासोर विलुप्त हो गए, लेकिन पूरी तरह नहीं. थेरोपॉड परिवार के उनके पक्षीनुमा सदस्य बचे रहे. आप आज के पक्षियों को देखें, तो वो बाकी जीवों से कई बातों में अलग हैं.
तस्वीर: Wissen Media Verlag/dpa/picture alliance
करोड़ों सालों तक विकसित होते रहे
इनके प्राचीन पूर्वज तो और भी अलग दिखते थे. उनकी रूपरेखा डायनासोर से ज्यादा मेल खाती थी. पक्षियों के उस प्राचीन स्वरूप और आधुनिक पक्षियों में जो बदलाव दिखता है, वो करोड़ों साल तक हुए विकासक्रम का हासिल है. नेचुरल हिस्ट्री म्यूजियम के मुताबिक, ऐस्टेरॉइड के टकराने के बाद अगले 6.6 करोड़ सालों में प्राचीन पक्षियों का वो स्वरूप कई तरीकों से विकसित होता रहा.
तस्वीर: Andrey Atuchin and the Denver Museum of Nature and Science/REUTERS
विकास के लंबे सालों में कई खासियतें हासिल कीं
इन्होंने कई खासियतें विकसित कीं, जो उन्होंने बाकी जीवों से अलग बनाती हैं. मसलन, उनके शरीर पर उगे पर. शरीर के दोनों ओर उगे डैनों का जोड़ा, जो उन्हें उड़ने की ताकत देता है. चमगादड़ को छोड़ दें, तो रीढ़ वाले जीवों में एकमात्र पक्षी ही हैं जो रफ्तार के साथ हुए उड़ान भर सकते हैं. कुछ और खासियतें हैं, जो हमें नंगी आंखों से नहीं दिखती. कुछ और खासियतें हैं, जो हमें नंगी आंखों से नहीं दिखती.
तस्वीर: Mary Altaffer/AP Photo/picture alliance
कमाल के कामयाब जीव
खासियत जैसे कि सिर के अनुपात में बड़ा मस्तिष्क. खोखली हड्डियों वाला हल्का कंकाल, जो उड़ने में उनकी मदद करता है. जीव इतिहास में देखिए, तो पक्षी सबसे सफल जीवों में हैं. उन्होंने क्रैटेशियस पीरियड के अंत में हुए मास एक्सटिंशन को भी चकमा दे दिया. आज पक्षियों की 11,000 से ज्यादा प्रजातियां हैं. अलग-अलग रंग, आकार, आदतों वाले ये पक्षी आर्कटिक से लेकर अंटार्कटिक तक, दुनिया के हर महादेश में पाए जाते हैं.
तस्वीर: Helge Schulz/Zoonar/picture alliance
प्रवासी पक्षी: मुश्किलों से पार पाकर बने रहने की एक प्रेरणा
ये रेगिस्तान से लेकर वर्षावन, कई कुदरती परिवेशों में जीते हैं. कितनी अद्भुत बात है कि प्रवासी पक्षियों ने मौसम के हिसाब से अलग-अलग घर बनाए. गर्मियों के लिए एक जगह को चुना और सर्दियों के लिए पीढ़ी-दर-पीढ़ी सैकड़ों किलोमीटर दूर कहीं कतार बांधकर पहुंचते रहे. यह क्या है? मुश्किलों से पार पाकर जीना, बदलते हालात के मुताबिक ढलना, अपनी प्रजाति को बचाए रखने की अकूत इच्छाशक्ति, यानी इवॉल्यूशन का सार!
तस्वीर: Menahem Kahana/AFP
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एशिया से अमेरिका फिर वापस एशिया
इससे करीब 2 करोड़ साल पहले खानखुलु या इस परिवार से जुड़े दूसरे सदस्यों के बारे में माना जाता है कि वे एशिया से अमेरिका की ओर गए थे. उन्होंने उस जमीन को रास्ता बनाया था जो साइबेरिया को अलास्का से जोड़ता है. इसके नतीजे में टिरैनोसॉरस पूरे उत्तरी अमेरिका में फैले और विकसित हुए. टिरैनोसॉरस मांसाहारी डायनासोर की उस प्रजाति के समूह में आते हैं जिन्हें थेरोपॉड्स कहा जाता है.
इनमें से एक प्रजाति के बारे में माना जाता है कि वह वापस एशिया आया और वहां टिरैनोसॉरस के दो उपसमूह विकसित हुए. इनमें से एक बहुत छोटा था और उसका वजन एक टन से कम था. उसके लंबे थूथन की वजह से उसे पिनोचियो रेक्स भी कहा गया. दूसरा उपसमूह विशाल था और इसमें टार्बोसॉरस जैसे विशाल जीव थे जिनका आकार टी-रेक्स से थोड़ा सा ही छोटा था. इसके बाद एक विशालकाय डायनासोर फिर एशिया छोड़ कर उत्तरी अमेरिका गया. जिसने टी-रेक्स को बढ़ाया. इन टी-रेक्स का लगभग 20 लाख वर्षों तक उत्तरी अमेरिका में दबदबा था उसके बाद धूमकेतू की टक्कर हुई और विशालकाय जीव इतिहास बन गए.