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अब 30 फीसदी ज्यादा पड़ रहा है सूखा: यूएन रिपोर्ट

४ दिसम्बर २०२४

सूखे की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं. एक रिपोर्ट के मुताबिक इस कारण हर साल 307 अरब डॉलर का नुकसान हो रहा है और आने वाली पीढ़ियों का भविष्य खतरे में है.

ब्राजील में दूर से पानी लाते लोग
दुनिया की कई जगह भयंकर सूखे से पीड़ित हैंतस्वीर: Edmar Barros/AP/picture alliance

दुनियाभर में बढ़ते सूखे और जमीन के खराब होते हालात पर चर्चा के लिए इस महीने सऊदी अरब के रेगिस्तानी शहर रियाद में दुनियाभर के नेता जुट रहे हैं. यह सम्मेलन संयुक्त राष्ट्र के भूमि और सूखा निपटान सम्मेलन (यूएनएनसीसीडी कॉप16) के तहत हो रहा है.

संयुक्त राष्ट्र महासचिव अंटोनियो गुटेरेश ने इसे "चांद पर जाने जैसा क्षण" बताया है. उनका कहना है कि इस सम्मेलन में भूमि और सूखा प्रतिरोधी उपायों पर तेजी से काम करने की जरूरत है. रिपोर्ट्स के मुताबिक, इस समस्या से निपटने के लिए खरबों डॉलर की जरूरत होगी.

हर साल 307 अरब डॉलर का नुकसान

मंगलवार को जारी नई रिपोर्ट के अनुसार, सूखे की वजह से हर साल वैश्विक अर्थव्यवस्था को 307 अरब डॉलर का नुकसान होता है. यह अनुमान पहले की तुलना में काफी ज्यादा है क्योंकि पिछली गणनाओं में सिर्फ कृषि पर ध्यान दिया गया था. नई रिपोर्ट में स्वास्थ्य और ऊर्जा क्षेत्रों पर पड़ने वाले प्रभाव को भी जोड़ा गया है.

संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट बताती है कि 40 फीसदी वैश्विक भूमि खराब हो चुकी है. 2000 से अब तक सूखे की घटनाएं 29 फीसदी बढ़ गई हैं. इसका मुख्य कारण जलवायु परिवर्तन और अस्थिर भूमि प्रबंधन है. इससे कृषि, जल सुरक्षा और 1.8 अरब लोगों की आजीविका खतरे में है.

सूखा कैसे करता है जीवन पर असर

वैज्ञानिकों का कहना है कि सूखा जल और वायु की गुणवत्ता को खराब करता है. यह धूल भरी आंधियों और सांस की बीमारियों को बढ़ाता है. बिजली ग्रिड बाधित करता है और नदियां सूखने से खाद्य आपूर्ति पर असर डालता है. जलवायु परिवर्तन के कारण बेरोजगारों की बड़ी फौज खड़ी हो रही है.

यूएनसीसीडी के कार्यकारी सचिव इब्राहिम थियाव ने कहा कि यह सम्मेलन भूमि और सूखा प्रतिरोधी उपायों को बढ़ावा देगा. इससे खाद्य और ऊर्जा सुरक्षा, मानव विकास और शांति को बढ़ावा मिलेगा.

रियाद सम्मेलन में "रियाद ग्लोबल ड्रॉउट रेसिलियंस पार्टनरशिप" लॉन्च की गई. यह साझेदारी 80 सबसे कमजोर देशों को सूखे से निपटने के लिए सार्वजनिक और निजी वित्त को फंडिंग करेगी. सऊदी अरब, इस्लामिक डेवलपमेंट बैंक और ओपेक फंड ने 2.15 अरब डॉलर की शुरुआती राशि देने की घोषणा की है.

प्रकृति-आधारित समाधान

रिपोर्ट के मुताबिक, प्रकृति-आधारित उपाय, जैसे पेड़ लगाना, पशुओं की चराई को प्रबंधित करना और शहरी क्षेत्रों में हरित स्थान बनाना, सूखा से लड़ने के किफायती तरीके हैं.

रिपोर्ट में बताया गया है कि प्राकृतिक संसाधनों में निवेश से हर एक डॉलर पर 1.40 से 27 डॉलर तक का लाभ मिलता है. इसमें मिट्टी की गुणवत्ता सुधारने और पानी रोकने की क्षमता बढ़ाने जैसे उपाय शामिल हैं.

स्पेन और भारत जैसे देशों ने इन उपायों को अपनाया है और सकारात्मक नतीजे देखे हैं. स्पेन में किसानों ने जैविक खाद का उपयोग किया और बाढ़ रोकने के लिए वेटलैंड्स बनाए.

एक संयुक्त राष्ट्र अध्ययन के अनुसार, भूमि का क्षरण पृथ्वी की क्षमता को कमजोर कर रहा है. इसे ठीक न करने पर आने वाली पीढ़ियों को गंभीर समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है. पिछले तीन वर्षों में 30 से अधिक देशों ने सूखा आपातकाल घोषित किया, जिनमें भारत, चीन, अमेरिका और दक्षिण अफ्रीका शामिल हैं. सबसे ज्यादा बारिश वाली जगह मेघालय में भी पानी का संकट गहरा रहा है.

क्या है आगे की राह?

भारत क्लाइमेट कोलैबोरेटिव की सीईओ श्लोका नाथ का कहना है कि भारत की आधी आबादी कृषि पर निर्भर है. महाराष्ट्र जैसे राज्य, जहां सूखे की घटनाएं आम हैं, वहां किसान तत्काल मदद चाहते हैं.

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सम्मेलन में 11 दिसंबर को "फाइनेंस डे" के रूप में मनाया जाएगा. इस दिन सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों के प्रतिनिधि भूमि और सूखा निपटान के लिए फंडिंग पर चर्चा करेंगे.

यूएनसीसीडी रिपोर्ट के सह-लेखक कावेह मदानी ने कहा, "प्रकृति में निवेश करना सामाजिक और आर्थिक दृष्टि से फायदेमंद है. इससे रोजगार बढ़ता है, खाद्य और मानव सुरक्षा सुनिश्चित होती है और संघर्षों का खतरा कम होता है." उनका कहना है कि सबूत दिखाते हैं कि यह निवेश लंबे समय में लाभकारी है.

वीके/एए (थमसन रॉयटर्स फाउंडेशन )

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