एक अध्ययन में कहा गया है कि 2019 में भारत और उप-सहारा अफ्रीका में पैदा हुए लाखों नवजात शिशुओं में से ज्यादातर की मृत्यु प्रदूषण के कारण हुई. खाना पकाने वाले ईंधन से निकले धुएं को अधिकतर मौत का कारण बताया गया है.
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एक नए शोध में कहा गया है कि 2019 में करीब 4,76,000 नवजात शिशुओं की मौत वायु प्रदूषण के दुष्प्रभाव के कारण हुई. ग्लोबल एयर स्टडी के मुताबिक दो तिहाई मौत का कारण खाना पकाने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले खराब गुणवत्ता वाले ईंधन के जलाने से हुई. शोध के मुताबिक करीब 2,36,000 शिशुओं की मौत उप-सहारा क्षेत्र में वायु प्रदूषण के कारणों से हुई और 1,16,000 से अधिक शिशुओं की मौत भारत में हुई. शोध कहता है कि पाकिस्तान में वायु प्रदूषण के कारण 50,000 नवजात शिशुओं की मौत हुई.
जीवन भर नकारात्मक प्रभाव
शोध के मुताबिक जब मां वायु प्रदूषण के उच्च स्तर के संपर्क में आती है तो इसका असर ऐसे शिशुओं पर पड़ता है जिनका वजन पैदा होने के समय में कम था या फिर वे अपरिपक्व शिशु के तौर पर पैदा हुए थे. इससे न केवल जीवन के पहले महीने में शिशुओं के मरने का खतरा बढ़ सकता है, बल्कि अगर वे जीवित रह जाते हैं तो पूरे जीवन भर वायु प्रदूषण का नकारात्मक असर पड़ता है.
हालांकि शोध में पाया गया कि 64 फीसदी मौतें घरेलू वायु प्रदूषण के कारण हुईं. खास तौर पर दक्षिण एशिया में आस-पास के प्रदूषण ने भी एक प्रमुख भूमिका निभाई. 50 फीसदी नवजात शिशुओं की मृत्यु घर के बाहर के वायु प्रदूषण के संपर्क में आने से जुड़ी थी.
शोध के मुताबिक वायु प्रदूषण के कारण 2019 में विश्वभर में 67 लाख लोगों की मौत हुई. उच्च रक्तचाप, तंबाकू का सेवन और खराब आहार के बाद समय से पहले मौत का चौथा प्रमुख कारण वायु प्रदूषण है. स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर स्टडी के लेखकों का कहना है कि इंसान की सेहत पर पड़ने वाले नकारात्मक प्रभाव के बावजूद दुनिया के कई हिस्सों में वायु प्रदूषण को कम करने के लिए बहुत कम या ना के बराबर प्रगति हुई है. इस शोध के मुताबिक भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश और नेपाल समेत दक्षिण एशियाई देश साल 2019 में पीएम 2.5 के उच्चतम स्तर के मामले में शीर्ष 10 में रहे हैं.
लेखकों का कहना है कि समय के साथ वायु प्रदूषण के संपर्क में आने से न केवल स्थायी स्वास्थ्य की स्थिति पैदा हो सकती है, बल्कि मौजूदा महामारी के बीच लोगों को कोविड-19 के प्रति अधिक संवेदनशील बना सकता है.
इससे पहले एक अलग शोध में बताया गया था कि यूरोप में आठ में से एक मौत का कारण वायु प्रदूषण है. यूरोपीय संघ के 27 देशों और ब्रिटेन को मिला कर 2012 के आंकड़े देखने पर पता चला कि 6,30,000 मौतें किसी ना किसी तरह से पर्यावरण से जुड़ी थी. खास कर बुजुर्गों और बच्चों की सेहत पर प्रदूषण का बड़ा असर देखा गया और इसे कैंसर और हृदय रोगों के लिए जिम्मेदार बताया गया था.
दांतों को सुबह शाम ब्रश करना सिर्फ सांस की बदबू को रोकने के लिए ही जरूरी नहीं है, बल्कि अगर आप ठीक से अपने दांतों को ब्रश करते हैं, तो आप कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी से भी बच सकते हैं.
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दूध के दांत
बचपन से ही बच्चों को दांतों की सफाई के प्रति जागरूक किया जाना जरूरी है. खास तौर पर रात को और सुबह ब्रश करना. चॉकलेट, मीठा या आइसक्रीम खाने के बाद मुंह अच्छे से साफ होना जरूरी है. बचपन में की गई दांतों की देखभाल जिंदगी भर काम आती है.
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सफाई जरूरी
अच्छे दांतों के लिए सबसे जरूरी है सफाई. ब्रश इस्तेमाल करते हुए ध्यान रखें कि उसका सिरा छोटा होना चाहिए. इससे ब्रश बिलकुल पीछे तक जा सकता है और हर दांत की सफाई कर सकता है. और ब्रश के एक तिहाई हिस्से पर ही पेस्ट लगाएं.
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सही तरीका
ब्रश पर खूब सारा पेस्ट लगा कर सिर्फ आगे पीछे ब्रश चलाने से कुछ नहीं होता. अच्छी सफाई के लिए ब्रश हर दांत पर कम से कम तीन बार घूमना चाहिए. ऊपर के मसूढ़े के लिए मसूढ़े पर दबाव देते हुए नीचे ब्रश लाना और नीचे के मसूढ़े के लिए ऊपर. इससे प्लाक हट जाता है और दांत खराब होने से बचते हैं.
दांतों के बीच भी
पायरिया से बचने के लिए दातों के बीच की सफाई भी जरूरी है. इसे धागे से या फिर खास छोटे ब्रश से किया जा सकता है. समय समय पर दांतों का चेक अप भी जरूरी है. मसूढ़े में सूजन या दांत पीले पड़ने की स्थिति में डॉक्टर को दिखाना ही चाहिए.
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पायरिया
भारत के कई हिस्सों में पायरिया एक आम समस्या है. मसूढ़ों से खून आना, दांत पीले पड़ना, प्लाक का जमना, मसूढ़ों का ढीला होना इसकी शुरुआत है. शुरुआती दौर में ही इलाज और दांतों की अच्छे से सफाई ही इससे बचा सकती है.
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प्लाक से कैंसर
गंदे दांत और दांतों पर जमा प्लाक कई बीमारियों का कारण हो सकता है. 2012 में ब्रिटेन के बीएमजे मेडिकल जर्नल में छपे शोध पत्र के मुताबिक प्लाक के बैक्टीरिया के कारण कैंसर और जल्दी मौत हो सकती है. लंबी उम्र के लिए साफ सुथरे दांत होने बहुत जरूरी हैं.
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बच्चों को सिखाएं
स्कूल में बच्चों को दांत की सफाई के बारे में जानकारी दी जानी बहुत जरूरी है. लेकिन शिक्षकों को भी इसके बारे में जागरुक करना चाहिए ताकि वे बच्चों के दांतों पर नजर रख सकें. जहां माता पिता के दांत खराब होते हैं, वहां बच्चों के दांतों का खास ध्यान रखना जरूरी है.
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मोतियों जैसे दांत
बचपन में अंगूठा चूसने के कारण या किसी और कारण कई बार बच्चों के दांत आगे आ जाते हैं. इसे ठीक करने के लिए दांतों में तार लगा दी जाती है. ये थोड़ा दर्दनाक तो होता है, लेकिन एक खूबसूरत मुस्कराहट मिल जाती है.
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लालच अच्छा नहीं
मिठाई के दीवाने बच्चे ही नहीं, बड़े भी होते हैं. दिन में ज्यादा से ज्यादा तीन बार ही मीठा खाएं और इन्हें खाने के बाद मुंह अच्छे से धो लें या फिर च्युइंग गम चबाएं. इस से दांत भी स्वस्थ रहेंगे और सांसें तरोताजा.