अमेरिका ने निकारागुआ के राष्ट्रपति डानिएल ओर्तेगा और अन्य अधिकारियों पर अपने यहां आने पर प्रतिबंध लगा दिया है. हाल ही में हुए चुनावों में धांधली के आरोपों के चलते यह कार्रवाई की गई है.
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अमेरिका ने निकारागुआ के राष्ट्रपति डानिएल ओर्तेगा पर यात्रा प्रतिबंध लगा दिया है. साथ में उनकी पत्नी, उपराष्ट्रपति रोजारियो मुरिलो और अन्य सरकारी अधिकारियों व मंत्रियों को भी अमेरिका आने की मनाही होगी.
निकारागुआ में 7 नवंबर को राष्ट्रपति चुनाव हुए थे. अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने इन चुनावों को फर्जीवाड़ा बताते हुए उनकी आलोचना की है. चुनावों से पहले ही विपक्ष के 40 सदस्यों को गिरफ्तार कर लिया गया. इनमें सात ऐसे थे जो चुनाव लड़ने वाले थे. इस तरह ओर्तेगा के चौथी बार लगातार राष्ट्रपति बनने का रास्ता साफ हो गया है.
अमेरिकी प्रतिबंध का अर्थ
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने ओर्तेगा और उनके मंत्रियों पर प्रतिबंध के जिस आदेश पर दस्तखत किए हैं, उसमें कहा गया है, "ओर्तेगा सरकार की दमनकारी और शोषक कार्यवाइयों और इन्हें समर्थन देने वाले लोगों को चलते अमेरिका को यह कदम उठाना पड़ा है.”
जानेंः अफ्रीकी देशों में बार-बार हो रहा है तख्तापलट
अफ्रीकी देशों में बार-बार क्यों हो रहा तख्तापलट
अफ्रीकी देशों में सैन्य तख्तापलट की घटनाएं बढ़ रही हैं. इसी साल सूडान में दो बार तख्तापलट की कोशिश हुई, एक बार वह विफल हो गया लेकिन दूसरी बार जनरल आब्देल-फतह बुरहान इसमें कामयाब हुए.
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सूडान
सूडान ने इस साल दो ऐसी घटनाओं का अनुभव किया है, एक सितंबर में जो विफल रही और सबसे नया जिसमें जनरल आब्देल-फतह बुरहान ने सरकार और सेना व नागरिक प्रतिनिधियों को मिलाकर बनाई गई संप्रभु परिषद को भंग कर दिया. 25 अक्टूबर 2021 को सूडान में सेना ने तख्तापलट कर देश में आपातकाल लागू कर दिया.
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गिनी
5 सितंबर 2021 को पश्चिची अफ्रीकी देश गिनी में विद्रोही सैनिकों ने तख्तापलट करने के बाद राष्ट्रपति अल्फा कोंडे को हिरासत में ले लिया और संविधान को अवैध घोषित कर दिया.
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माली
मई 2021 में सेना ने विद्रोह करते हुए चुनी हुई सरकार को उखाड़ दिया और सत्ता खुद संभाल ली. एक साल के भीतर ही माली में सेना ने दो बार सरकार के कामकाज में दखल देने की कोशिश की.
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चाड
इदरीस डेबी इस साल अप्रैल में सरकार विरोधी उग्रवादियों से लड़ते हुए मारे गए थे जिसके बाद उनके बेटे महामत इदरीस डेबी देश के अंतरिम राष्ट्रपति बने. डेबी की मौत के बाद फैसला लिया गया था कि महामत के नेतृत्व में बनी एक सैन्य परिषद अगले 18 महीनों तक शासन करेगी.
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जिम्बाब्वे
अफ्रीकी देशों में तख्तापलट पिछले एक दशक से जारी है. साल 2017 में सेना ने सत्ता अपने हाथ में ले ली और रॉबर्ट मुगाबे को गिरफ्तार कर लिया.
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बुरकीना फासो
पश्चिमी अफ्रीका में बुरकीना फासो ने सबसे सफल तख्तापलट का झेला जिसमें सात सफल अधिग्रहण और केवल एक असफल तख्तापलट हुआ है.
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मध्य अफ्रीकी गणराज्य
खनिज संपन्न मध्य अफ्रीकी गणराज्य में 2013 में तख्तापलट हुआ था. सेलाका विद्रोहियों ने तत्कालीन राष्ट्रपति फ्रेंकोइस बोजोजी को पद से हटा दिया था.
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तख्तापलट से बढ़ी चिंता
सितंबर में यूएन महासचिव अंटोनियो गुटेरेश ने चिंता व्यक्त की कि "सैन्य तख्तापलट वापस आ गए हैं." उन्होंने सैन्य हस्तक्षेपों के जवाब में अंतरराष्ट्रीय समुदाय के बीच एकता की कमी को जिम्मेदार ठहराया था.
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यह प्रतिबंध चुने हुए सभी नेताओं पर लागू होगा. इनमें सुरक्षा बल, जज, मेयर और अन्य अधिकारी भी शामिल हैं. आदेश कहता है, "राजनीतिक कैदियों को पुलिस और जेल अधिकारियों द्वारा दी जा रहीं शारीरिक और मानसिक यातनाएं असहनीय हैं और उन्हें बर्दाश्त नहीं किया जा सकता.”
वैसे, यह पहली बार नहीं है जब अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने ओर्तेगा पर कड़े प्रतिबंध लगाए हैं. पहले भी उन पर प्रतिबंध लगते रहे हैं लेकिन उनका कोई खास असर नहीं हुआ. इसलिए विश्लेषकों को संदेह है कि नये प्रतिबंध उनके व्यवहार में कुछ बदलाव ला पाएंगे.
सोमवार को ही अमेरिका ने निकारागुआ सरकार पर आर्थिक प्रतिबंध लगाए थे. कनाडा और युनाइटेड किंग्डम ने भी ओर्तेगा सरकार पर प्रतिबंधों का ऐलान कर दिया है.
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कौन हैं डानिएल ओर्तेगा?
1930 के दशक से निकारागुआ निरंकुश सोमोसा कबीले के नियंत्रण में था. सैंडिनिस्ता नेशनल लिबरेशन फ्रंट का नेतृत्व करने वाले डानिएल ओर्तेगा 1979 में तानाशाह अनस्तासियो सोमोसा को उखाड़ फेंकने में सफल रहे. ओर्तेगा ने तब पांच सदस्यीय परिषद के हिस्से के तौर पर निकारागुआ का नेतृत्व किया. उन्होंने 1985 से 1990 तक देश के लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित राष्ट्रपति के तौर पर काम किया.
भविष्य में ये 10 बदलाव चाहते हैं युवा
वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम ने 187 देशों के लगभग 20 हजार युवाओं से पूछा कि वे भविष्य में क्या चाहते हैं. जानिए वे 10 चीजें जो युवा बदलना चाहते हैं.
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समझदारी भरा उपभोक्तावाद
सर्वे में शामिल ज्यादातर युवाओं ने कहा कि पर्यावरण को नुकसान न पहुंचाने वाले उपभोग को फायदेमंद बनाया जाए. कंपनियों की जिम्मेदारी तय की जाए और बड़े कॉरपोरेट जगत में बदलाव के लिए निवेशकों को जनता के साथ मिलकर काम करना चाहिए. भविष्य में खाने के उत्पादन और कुदरत को बचाने के लिए सभी को फौरन कदम उठाने चाहिए.
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डिजिटल पहुंच
88.9 फीसदी युवाओं ने कहा कि इंटरनेट की पहुंच को एक मूलभूत अधिकार बना देना चाहिए. लगभग 26 फीसदी मानते हैं कि उनका देश अगले दस साल में भी सभी को इंटरनेट देने की स्थिति में नहीं है. युवाओं की मांग है कि इंटरनेट ब्लैकआउट करने वालों के खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए.
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मिथ्या सूचनाओं की रोकथाम
सर्वे में शामिल 38.4 प्रतिशत लोगों ने फेक न्यूज यानी फर्जी खबरों के प्रसार को सोशल मीडिया का सबसे बड़ा नुकसान बताया. 19.5 प्रतिशत युवा निजता का हनन और 11.4 फीसदी हेट स्पीच को सबसे बड़ा नुकसान मानते हैं. युवा चाहते हैं कि टेक कंपनियों को ज्यादा पारदर्शी होना चाहिए और सरकारों को ऐसी नीतियां लानी चाहिए जिनसे खतरनाक सामग्री से लोगों को बचाया जा सके.
तस्वीर: Facebook
भविष्य का लोकतंत्र
युवा चाहते हैं कि मानवतावादी दानी लोग युवा और प्रगतिशील आवाजों को सरकारों में लाने के लिए उनका साथ दें. मीडिया की मोनोपॉली के खिलाफ कानून बनें और राजनीति ज्यादा समावेशी हो.
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सामाजिक सुरक्षा और समावेशी नौकरियां
सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक असमानता से लड़ने के लिए पांच करोड़ डॉलर से अधिक की संपत्ति पर ग्लोबल टैक्स लगना चाहिए. अपने कर्मचारियों को अधिक स्किल सिखाने वाली कंपनियों को टैक्स का लाभ मिलना चाहिए. यूनिवर्सिटी की बेहद महंगी फीस कम होनी चाहिए और सिलेबस आज के जॉब मॉर्किट के हिसाब से होना चाहिए.
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ग्लोबल वॉर्मिंग
सरकारों को उन समुदायों पर निवेश करना होगा जिन्हें ग्लोबल वॉर्मिंग से खतरा ज्यादा है. ऐसी कंपनियों को धन न दिया जाए जो नए जीवाश्म ईंधन खोज रहे हैं. कंपनियों को ग्लोबल वॉर्मिंग रोकने के लिए कदम उठाने होंगे. 70 प्रतिशत से ज्यादा युवा मानते हैं कि वे ऐसे नेता को वोट देंगे जो ग्लोबल वॉर्मिंग को मुद्दा मानता है और उसके लिए कदम उठाएगा.
युवाओं ने इच्छा जताई है कि सरकारें हरेक को मानिसक स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराएं. इन समस्याओं के बारे में जागरूकता के लिए निवेश हो और यूनिवर्सिटी के सिलेबस का हिस्सा बनाया जाए.
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लोगों की सुरक्षा
कानून के दायरे में कुछ लोगों को मिलने वाला गलत लाभ खत्म किया जाना चाहिए. बंदूकों पर प्रतिबंध होना चाहिए और ऐसी हिंसा के खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए. घरेलू और यौन हिंसा के बारे में कदम उठाए जाने की जरूरत है. और न्याय व्यवस्था को इस तरह काम करना चाहिए कि कमजोर तबकों को सुरक्षा मिले.
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अगली पीढ़ी का पूंजीवाद
सरकारों को टेक कंपनियों के लिए नीतियां बनानी चाहिए जो लोगों के हित में हों. यूनिवर्सिटी में ईएसजी यानी एनवायर्नमेंट, सोशल ऐंड कॉरपोरेट गवर्नेंस को सिलेबस का हिस्सा बनाना चाहिए. कंपनियों में टेक-एथिक्स जरूरी होने चाहिए.
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स्वास्थ्य सेवाएं
ज्यादातर युवा मानते हैं कि कोविड-19 वैक्सीन, टेस्ट और इलाज सबके लिए उपलब्ध होने चाहिए. सरकार को स्वास्थ्यकर्मियों और उनके परिजनों को प्राथमिकताएं देनी चाहिए. स्वास्थ्य सेवाओं का डिजिटाजेशन होना चाहिए.
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इसके बाद, कई सालों तक विपक्ष में रहने और उदारवादी एफएसएलएन सदस्यों द्वारा चलाए गए सैंडिनिस्ता रेनोवेशन मूवमेंट (एमआरएस) के बाद, ओर्तेगा को फिर से 2006 में राष्ट्रपति चुना गया. हालांकि, अंतरराष्ट्रीय पर्यवेक्षक इस चुनाव को लेकर कई सवाल उठाते हैं. सत्ता में वापस आने के बाद, ओर्तेगा ने अपने लाभ के लिए देश की राजनीतिक व्यवस्था में बदलाव शुरू कर दिया.
इसके दो साल बाद, कोस्टा रिका के तत्कालीन उपराष्ट्रपति केविन कैसास-जमोरा ने चेतावनी देते हुए लिखा था, "निकारागुआ के ओर्तेगा को मुगाबे (दूसरा जिम्बाब्वे तानाशाह) न बनने दें." कैसास-जमोरा के शब्द भविष्यवाणी साबित हुए. 2011 में, ओर्तेगा ने तीसरे कार्यकाल के लिए चुनाव लड़ा और अंततः जीतकर संविधान का उल्लंघन किया. अब वह चौथी बार राष्ट्राध्यक्ष बनने जा रहे हैं.