नाइजर के सैन्य शासन को मान्यता देने से ईयू का इंकार
२९ जुलाई २०२३नाइजर में सत्ता पर कब्जा जमाने वाले सैन्य शासन के साथ वित्तीय और सुरक्षा सहयोग रोकने का ऐलान शनिवार को यूरोपियन यूनियन के एक वरिष्ठ कूटनीतिज्ञ ने किया. बुधवार को राष्ट्रपति मोहम्मद बाजौम को कब्जे में लेने और सैन्य शासन की घोषणा के बाद कुछ वक्त तक असमंजस बना रहा कि आखिर सत्ता किसके हाथ में है. शुक्रवार को जनरल अब्दुर्रहमाने चियानी को राज्यप्रमुख के तौर पर पेश किया गया.
पश्चिम अफ्रीकी देश नाइजर में तख्ता पलट
ईयू समेत अमेरिका और दूसरे देशों ने भी राष्ट्रपति बाजौम को तुरंत छोड़ने और देश में लोकतंत्र की पुनः स्थापना की अपील की है. ईयू के विदेश नीति प्रमुख जोसेप बोरेल ने एक बयान में कहा, बजटीय सहायता तुरंत रोकने के साथ-साथ सुरक्षा से जुड़े सभी क्षेत्रों में हर तरह का सहयोग अनिश्चितकाल के लिए निलंबित रहेगा. नाइजर को पश्चिमी देशों से बहुत ज्यादा मदद मिलती है और वह सब-सहारा क्षेत्र से गैरकानूनी प्रवासियों को रोकने में यूरोपियन यूनियन का एक अहम साझेदार है. ईयू के कुछ सैनिक भी नाइजर में सैन्य प्रशिक्षण देने के लिए तैनात हैं. 2021-2024 के बीच ईयू ने इस देश में प्रशासन, शिक्षा और सतत विकास के लिए अपने बजट से 55.4 करोड़ डॉलर आवंटित कर रखे हैं.
साहेल पट्टी की अंतिम उम्मीद
साहेल इलाके में नाइजर ने लोकतंत्र की तरफ कदम बढ़ा कर उम्मीद जगाई थी. खासकर 2020 में पड़ोसी देश माली, बुरकिना फासो और चाड में सैनिकों के कब्जे के बाद यह और भी अहम था लेकिन अब हालात नाजुक हैं. बुधवार के कब्जे के बाद सहारा मरुस्थल के दक्षिणी इलाके के चारों देश में सैन्य शासक कुर्सी पर हैं. इसे देखते हुए पश्चिमी देश हरकत में आ गए हैं. नाइजर की सुरक्षा सेनाओं की मदद की जा रही है ताकि अल कायदा और इस्लामिक स्टेट जैसे इस्लामिक गुटों की सिर उठाने से रोका जा सके.
इस क्षेत्र में जिहादी ताकतों को रोकने के लिए, नाइजर पश्चिमी देशों की आखिरी उम्मीद जैसा था. माली और बुरकिना फासो में सैन्य शासन बहुत तेजी से रूस की तरफ झुकता चला गया. इस प्रक्रिया में यह देश फ्रांस से दूर होते चले गए. अमेरिका का कहना है कि उसने 2012 से नाइजर में सुरक्षा बढ़ाने के लिए 500 अरब डॉलर खर्च कर दिए हैं. इस देश में अमेरिका की मजबूत सैन्य उपस्थिति है जहां उसने हथियारों से लैस ड्रोन की तैनाती भी कर रखी है.
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सैन्य सहयोगी
सुरक्षा के मसले पर असंतोष ने माली और बुरकीना फासो में हालात सैन्य शासन तक पहुंचा दिए है. हालांकि राजनीतिक हिंसा और संकट पर नजर रखने वाली संस्था आर्म्ड कॉन्फ्लिक्ट लोकेशन एंड इवेंट डाटा प्रोजेक्ट (एसीएलईडी) का कहना है कि इन देशों में मिलिट्री जुंटा आने के बाद से हिंसा और बढ़ी है. नाइजर इस मामले में अपने नागरिकों को बेहतर सुरक्षा दे सका है लेकिन चरमपंथी हमले और लूटपाट होती ही रहती हैं.
पश्चिमी अफ्रीका में फ्रांस ने लगभग एक दशक से घुसपैठ-निरोधी टुकड़ियां लगा रखी हैं लेकिन अब वह नाइजर में अपनी सैन्य ताकत झोंक रहा है. देश में लगभग 1,500 फ्रांसीसी टुकड़ियां हैं जिनके पास ड्रोन और लड़ाकू जहाज हैं. इनका मकसद उस वक्त नाइजर सेना की मदद करना है जब पड़ोसी देशों माली और बुरकिना फासो की सीमाओं के पास किसी तरह की हरकत का पता चले. यूरोपियन यूनियन ने दिसंबर में तय किया था कि नाइजर में तीन साल के लिए एक सैन्य प्रशिक्षण मिशन लगाया जाएगा जिसमें जर्मनी की सेना हिस्सा लेगी. नाइजर में इटली के भी 300 सैनिक हैं.
लोकतंत्र को झटका
पश्चिमी अफ्रीकी आर्थिक गुट ईकोवास ने माना है कि नाइजर में बदले हालात, लोकतंत्र के लिए बहुत बड़ा झटका है. माली, गिनी, बुरकिना फासो में सेना का कब्जा और गिनी बिसाउ में कब्जे की कोशिश के बाद ईकोवास नेताओं ने इस बात पर जोर दिया था कि इस इलाके में अब लोकतंत्र पर इस तरह का हमला बर्दाश्त नहीं किया जाएगा जिसने इस पट्टी को कू बेल्ट के नाम से मशहूर कर दिया है.
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नाइजर इस इरादे की और क्षेत्रीय नेताओं की क्षमता की परीक्षा है कि वह किस तरह सैनिकों को तख्ता पलटने से रोकते हैं और उन्हें इस बात के लिए तैयार करते हैं कि वह देश में लोकंतत्र की वापसी होने दें. गिनी बिसाउ में इसी महीने हुई ईकोवास की एक बैठक में नेताओं ने इस बात पर दुख जताया कि संवैधानिक व्यवस्था लौटाने के प्रयासों में लगे मध्यस्थों के साथ माली और बुर्किना फासो का सैन्य शासन सहयोग नहीं कर रहा है. अब नाइजर में यह प्रयास एक नए सिरे से करना होगा.
एसबी/एनआर(रॉयटर्स)