फातिमा अली 14 साल की थी जब नाइजीरिया के आतंकवादी संगठन बोको हराम ने उसे अगवा कर लिया था. आत्मघाती हमलावर बनाकर उसे मिशन पर भी भेजा गया. लेकिन आज वह जिंदा है. पढ़िए फातिमा की कहानी.
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अब फातिमा 17 साल की हो गयी है. लेकिन अपनी इस छोटी सी जिंदगी में वह काफी कुछ देख चुकी है. सिर पर स्कार्फ बांधे हुए फातिमा बताती है, "मुझे तो असल में मर जाना चाहिए था."
तीन साल पहले की बात है. हथियारबंद बोको हराम के आतंकवादियों ने नाइजीरिया के बोर्नो राज्य के बामा कस्बे में हमला किया. वह फातिमा के घर में घुस गये जहां वह अपने माता-पिता और बहन-भाइयों के साथ रहती थी.
वह बताती है, "मैं दरवाजे के पीछे छिप रही थी, लेकिन उन्होंने मुझे ढूंढ लिया. उन्होंने मुझे पकड़ा और घर से बाहर ले गये." फातिमा ने बिलखते हुए छोड़ देने की फरियाद की लेकिन चरमपंथियों का दिल नहीं पसीजा. फातिमा को पीटा गया. उसके साथ कई और महिलाएं और बच्चे भी थे जिन्हें कई गाड़ियों में भर कर सामबिसा के जंगलों में आतंकवादी शिविर में ले जाया गया. वहां उन्हें पश्चिमी तौर तरीके छोड़ने को कहा गया.
आतंकियों के एक कमांडर ने घोषणा की कि लड़कियों और महिलाओं को पति दिये जाएंगे. लेकिन फातिमा का कहना है कि उसने आतंकवादियों के सामने झुकने से इनकार कर दिया था. वह बताती है, "मैंने कहा, मेरी सगाई हो चुकी है. मेरी शादी की तारीख पहले ही तय हो चुकी है." फातिमा की जिद को देखते हुए कमांडर ने उसे अन्य अगवा की गयी लड़कियों और महिला से अलग कर दिया.
सबसे घातक आतंकवादी संगठन
आतंकवाद दुनिया भर में हजारों जानें ले रहा है. आतंकी संगठनों में एक दूसरे से आगे निकलने की होड़ सी लगी हुई है. एक नजर सबसे खूनी आतंकवादी संगठनों पर.
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1. बोको हराम
जी हां, इस्लामिक स्टेन नहीं, बोको हराम. यह दुनिया का सबसे घातक आतंकी संगठन है. अबु बकर शेकाऊ के इस संगठन ने अकेले 2014 में ही 6,644 लोगों की जान ली. 1,742 लोग घायल हुए. सैकड़ों लड़कियों को अगवा किया.
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2. इस्लामिक स्टेट
इस्लामिक स्टेट द्वारा मारे गए लोगों की संख्या भले ही बोको हराम से कम हो, लेकिन इस संगठन को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दुनिया के लिए सबसे बड़ा खतरा माना जा रहा है. 2015 में इस्लामिक स्टेट ने 6,073 लोगों को मारा. कुल 5,799 आतंकी हमले किये. अबु बकर बगदादी का यह संगठन यूरोप, सीरिया, इराक, तुर्की और बांग्लादेश में सक्रिय है.
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3. तालिबान
अफगानिस्तान के गृह युद्ध के दौरान 1994 में तालिबान बना. इसे दुनिया का सबसे अनुभवी आतंकी संगठन कहा जाता है. 2015 में तालिबान ने 891 हमले किये, जिनमें 3,477 लोगों की जान गई. हिबातुल्लाह अखुंदजादा की अगुवाई वाला तालिबान अफगानिस्तान पर दोबारा कब्जा करना चाहता है.
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4. फुलानी उग्रवादी
इस संगठन के बारे में बहुत ज्यादा जानकारी अभी भी नहीं है. खानाबदोश की तरह जगह बदलता यह संगठन नाइजीरिया में सक्रिय है. यह फुला कबीले का हथियारबंद संगठन है. ये फुलानी लोगों के जमींदारों को निशाना बनाता है. 2015 में इस उग्रवादी संगठन ने 150 से ज्यादा हमले किये और 1,129 लोगों की जान ली.
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5. अल शबाब
बोको हराम का संबंध जहां इस्लामिक स्टेट से है, वहीं अल शबाब के तार अल कायदा से जुड़े हैं. पूर्वी अफ्रीका में सक्रिय यह आतंकी संगठन सोमालिया को इस्लामिक स्टेट बनाना चाहता है. बीते साल अल शबाब ने 496 आतंकी हमले किये और 1,021 लोगों की जान ली.
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फातिमा बताती है कि हर रोज उसका शारीरिक और मानसिक शोषण होता था और उससे पश्चिमी संस्कृति को त्यागने के लिए कहा जाता था. स्थानीय हाउसा भाषा में बोको हराम का शाब्दिक अर्थ होता है पश्चिमी शिक्षा हराम है. यह चरमपंथी गुट कट्टरपंथी इस्लामी शरिया कानून लागू करना चाहता है.
बोको हराम ने 2009 से नाइजीरिया, चाड, कैमरून और निजेर में कम से कम 20 हजार लोगों की जानें ली हैं. उसने हजारों लड़कियों और महिलाओं का अपहरण किया है जिन्हें आम तौर पर यौन गुलाम के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है. मानवाधिकार संस्था एमनेस्टी इंटरनेशनल का कहना है कि जरूरत पड़ने पर इन लड़कियों और महिलाओं को आत्मघाती हमलावर बनने के लिए भी मजबूर किया जाता है.
जब फातिमा अपनी जिद पर अड़ी रही तो उसे एक तरफ ले जाकर यह सिखाया गया कि खुद को कैसे उड़ाया जाता है. एक आतंकवादी ने उससे कहा कि उसे अल्लाह ने एक खास काम के लिए चुना है. फिर एक दिन उसे नशीलें दवाएं दी गयीं और विस्फोट बेल्ट वाली पोशाक पहनायी गयी.
चरमपंथियों ने उसे एक छोटी लड़की के साथ सैन्य चौकी की तरफ चल कर जाने को कहा और वहां पहुंचने पर खुद को उड़ाने का आदेश दिया गया. फातिमा बताती है, "उस पल मुझे अहसास हुआ कि मुझे तो आत्मघाती मिशन पर भेजा रहा है. मेरे आसपास जो भी लोग होंगे उन सभी के पास हथियार होंगे और मेरे बचने की कोई गुंजाइश नहीं है."
अफ्रीका में गहरी पैठ बनाता आतंकवाद
बोको हराम अफ्रीका में हिंसा फैलाने वाला एकमात्र संगठन नहीं है. इस्लाम की अपनी अपनी व्याख्याएं देने वाले कई गुट लोगों की जान के दुश्मन बने हुए हैं.
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बोको हराम, नाइजीरिया
बोको यानी पश्चिमी शिक्षा. यह गुट 2002 से नाइजीरिया में सक्रिय है. 2009 में इसे सेना के हाथों मुंह की खानी पड़ी, लेकिन अगले ही साल यह एक बार फिर सक्रिय हो गया. तब से यह गुट कई चर्चों को अपना निशाना बना चुका है. इस पर सैकड़ों लड़कियों को अगवा करने, हत्याओं और बड़े पैमाने पर तबाही मचाने के कई आरोप हैं.
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अल शबाब, सोमालिया
2008 में सोमालिया के इस गुट को अमेरिका ने अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी संगठन घोषित कर दिया. इसी साल अल शबाब ने आगे बढ़ कर आतंकी संगठन अल कायदा से हाथ मिला लिए. अमेरिका ने 2012 में अल शबाब के सात आतंकवादियों को अपनी मोस्ट वॉन्टेड की लिस्ट में भी डाला.
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अनसर दिने, माली
अनसर दिने यानि धर्म के रखवाले. माली में सक्रिय यह गुट देश में शरिया कानून लागू करना चाहता है. कभी अनजान सा रहा यह संगठन 2012 में तुआरेग विद्रोहियों की शाखा के तौर पर उभरा.
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मूजाओ, पश्चिमी अफ्रीका
मूजाओ यानि मूवमेंट फॉर द यूनिटी एंड जिहाद इन वेस्ट अफ्रीका. यह गुट कथित रूप से अफ्रीका में लोगों को जिहाद का सही मतलब समझाने के लिए बनाया गया था. मूजाओ अल्जीरिया के कई राजदूतों को अगवा कर चुका है.
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एक्यूआईएम, उत्तरी अफ्रीका
यानि अल कायदा इन इस्लामिक मघरेब. इस गुट की शुरुआत 2006 में हुई. उस समय अल्जीरियाई इस्लामिक लड़ाकों के संगठन इस्लामिस्ट सलाफिस्ट ग्रुप फॉर प्रीचिंग एंड कॉम्बैट ने अल कायदा सरगना ओसामा बिन लादेन को मार गिराने की योजना बनाई थी. उसी के जवाब में यह गुट बना.
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फातिमा और एक अन्य लड़की को मोटरसाइकल पर बैठा कर चार चरमपंथी नाइजीरियाई सेना की एक नजदीकी चेकपोस्ट तक ले गये. चरमपंथी खुद झाड़ियों में छिप गये और ये लड़कियां सैनिकों के एक समूह की तरफ बढ़ने लगीं. एक सैनिक ने जब इन लड़कियों को देखा तो वह चिल्लाया, "रुको! कहां जा रही हो?" फातिमा ने हिम्मत की और बोली, "मैं एक छात्र हूं. मेरे शरीर पर कुछ बंधा हुआ. मुझे छूना मत."
फातिमा कहती है कि उसने सैनिकों से अपनी मातृ भाषा कनुरी की बजाय अंग्रेजी में बात की, ताकि पता चल सके कि वह पढ़ी लिखी लड़की है और इन आतंकवादियों से अलग है.
तभी पहली गोली चली. फातिमा का कहना है कि झाड़ियों में छिपे आतंकवादियों को शक होने लगा था. वे दूर से बम में धमाका करना चाहते थे और इसीलिए उन्होंने गोली चलायी. एक सैनिक तभी लड़कियों को पीछे की तरफ ले गया. कुछ देर के बाद दो आतंकवादी वहां कार्रवाई में मारे गये और दो अन्य को गिरफ्तार कर लिया गया.
जंग की भेट चढ़ता बचपन
यूक्रेन, सीरिया, इराक, यूगांडा या फिर नाइजीरिया में जारी हिंसा में नुकसान सिर्फ बड़ों का नहीं बचपन का भी हो रहा है. इन विद्रोहों में कम उम्र बच्चों या किशोरों के शामिल होने से उनका पूरा भविष्य दांव पर है.
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ह्यूमन राइट्स वॉच संस्था के मुताबिक सीरिया में सरकार के खिलाफ लड़ाई में विद्रोही धड़ल्ले से किशोरों को शामिल कर रहे हैं.
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ह्यूमन राइट्स वॉच ने सीरिया के विद्रोही समूह से अपील की है कि वे लड़ाई में कम उम्र लड़ाकों को शामिल करना बंद करें. साथ ही उन्होंने विद्रोहियों को समर्थन दे रही सरकारों से भी कहा है कि यदि ऐसा जारी रहता है तो वे समर्थन वापस लें.
तस्वीर: UNICEF/NYHQ2012-0881/Sokol
13 साल की एवलिन अपोको गुलु के एक पुनर्सुधार गृह में आराम कर रही है. उसे दिसंबर 2004 में अगवा कर लिया गया था. अक्टूबर 2005 में वह भाग निकलीं. यूगांडा में विद्रोहियों ने पिछले 18 सालों में करीब 20,000 बच्चों को अगवा किया है. वे उन्हें या तो लड़ाई में शामिल करते हैं या फिर सेक्स के लिए उन्हें बंदी बनाकर रखते हैं.
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कच्ची उम्र के लड़ाकों की वापसी के बाद में भी उनके व्यक्तित्व पर पड़े असर की छाप दिखाती है, जिससे इन्हें बाहर लाने में लंबा समय लग सकता है. बच्चों के लिए काम करने वाली संयुक्त राष्ट्र एजेंसी यूनीसेफ ने ऐसे कई पुनर्सुधार गृहों की स्थापना की है जहां इन बच्चों की मदद की जाती है.
इन केंद्रों में ना सिर्फ इनकी मनोचिकित्सकीय मदद की जाती है बल्कि इन्हें हुनर भी सिखाए जाते हैं ताकि वे अपने पैरों पर खड़े हो सकें. जैसे यहां इस तस्वीर में आप यूगांडा के एक सहायता केंद्र में 15 साल की प्रोसकाविया को सिलाई सीखते देख सकते हैं.
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इसके बाद स्पेशल पुलिस यूनिट बुलायी गयी और फातिमा के शरीर से विस्फोटक हटाये गये. फिर उसे बोर्नो प्रांत की राजधानी माइदैगुरी के सैन्य हिरासत केंद्र में लाया गया. पांच महीने तक उससे वहां पूछताछ चलती रही. सेना उससे बार-बार अपहरण और आत्मघाती मिशन के बारे में पूछती रही. इसके जरिए जहां वे आतंकवादी संगठन बोको हराम के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानकारी हासिल करना चाहते थे, वहीं इस बात को भी सुनिश्चित कर रहे थे कि कहीं फातिमा का ब्रेनवॉश तो नहीं किया गया है. आखिरकार फातिमा को रिहा किया गया और वह माइदैगुरी के शरणार्थी शिविर में पहुंची. वह कई दिनों तक तंबू में ही छिपी रही. उसे डर था कि कहीं लोग बोको हराम का जासूस ना समझें.
फिर एक दिन बामा के उसके एक पड़ोसी ने फातिमा को पहचाना और उसे उसकी मां तक पहुंचाने में मदद की जो माइदैगुरी के ही एक अन्य शरणार्थी शिविर में रहती थी. अपनी मां से फिर मिलने पर फातिमा मुस्कराते हुए कहती है, "मैं बहुत खुशकिस्मत हूं." दो साल से मां बेटी इसी शिविर में रह रही हैं.
फातिमा को उम्मीद है कि वे जल्दी ही बामा लौट जायेंगे. अब पता नहीं वहां उनकी किस्मत में क्या लिखा होगा.