खाड़ी देशों में रेत के तूफान यूं तो सदियों से आते रहे हैं लेकिन अब इनकी संख्या और इनके कारण होने वाला नुकसान बहुत बढ़ गया है. इससे हर साल अरबों रुपये का नुकसान हो रहा है.
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पिछले दो महीने से इराक के लोग रेत की चादर तले रहने, काम करने और सांस लेने को मजबूर हैं. इस दौरान देश में रेत के कम से कम नौ तूफान आ चुके हैं. ये तूफान कई कई दिन तक रहते हैं और कंबल की तरह सब कुछ ढक लेते हैं.
इन तूफानों के चलते अस्पतालों में भर्ती होने वाले मरीजों की संख्या बढ़ गई है. सांस की परेशानी के कारण डॉक्टरों के पास जाने वाले मरीजों की संख्या बढ़ गई है, स्कूल-कॉलेजों को बंद रखना पड़ा है और कई बार विमानों को देरी हुई अथवा वे उड़ ही नहीं पाए.
पर्यावरण के लिए काम करने वाली एक समाजसेवी संस्था नेचर इराक के संस्थापक आजम अलवाश कहते हैं, "बिना मुंह ढके मैं घर से बाहर निकल ही नहीं सकता. निकलूंगा तो खांसने लगूंगा. अभी हाल में ही जो तूफान आया था उसके कारण दो दिन तक मैं घर में ही बंद रहा. मुझे दमे की बीमारी है तो अपने फेफड़ों की खातिर मुझे अंदर रहना पड़ता है."
इराक, ईरान, सीरिया और अन्य खाड़ी देशों के लिए रेत के तूफान कोई नई चीज नहीं है. मई से जुलाई के बीच इनका आना सदा से आम बात रही है क्योंकि तब उत्तर-पश्चमी हवाएं चलती हैं जो भारी मात्रा में रेत लेकर आती हैं. लेकिन आजकल ये तूफान बहुत जल्दी-जल्दी आने लगे हैं और कभी जो इनकी संख्या साल में एक-दो हुआ करती थी, अब उनकी संख्या भी बढ़ गई है. अब ये तूफान मार्च में ही शुरू हो जाते हैं और बहुत बड़े क्षेत्र को प्रभावित करते हैं.
साइकिल प्रेमियों के पसंदीदा शहर
विश्व साइकिल प्रतियोगिता 'टूर द फ्रांस' के इस साल के संस्करण की शुरुआत डेनमार्क की राजधानी कोपेनहेगन में हो चुकी है. कोपेनहेगन साइकिल प्रेमियों के लिए बनाई गई विशेष सार्वजनिक व्यवस्था के लिए जाना जाता है.
तस्वीर: CC/Negu
350 किलोमीटर लंबा साइकिल पथ
डेनमार्क की राजधानी कोपेनहेगन में विशेष रूप से साइकिलों के लिए 350 किलोमीटर लंबा रास्ता है. इसके अलावा ऐसे ट्रैफिक सिग्नल भी हैं जो साइकिल सवारों को पहले जाने का हक देते हैं. यहां तक कि लाल बत्ती पर रुकने वाले साइकिल सवारों के लिए सड़क के किनारे पर फुटरेस्ट भी बनाए गए हैं. देश में 63 प्रतिशत लोग अपने अपने काम पर साइकिल से ही जाते हैं.
नीदरलैंड्स की राजधानी एम्स्टर्डम यूरोप में साइकिल प्रेमियों के लिए सबसे अनुकूल शहरों में से है. शहर के साइकिल सवार एक दिन में करीब 20 लाख किलोमीटर साइकिल चलाते हैं. सपाट होने के कारण लगभग पूरा देश ही साइकिल सवारों के बीच लोकप्रिय है. उत्रेख्त शहर में तो दुनिया का सबसे बड़ा साइकिल पार्किंग गेराज है जिसमें 33,000 साइकिलें खड़ी की जा सकती हैं.
तस्वीर: picture-alliance/NurPhoto/N. Economou
रविवार को वाहनों की आवाजाही बंद
पेरिस में सरकार कई सालों से साइकिल के नेटवर्क को बढ़ा रही हैं. रविवार को तो कई सड़कों पर बाकी वाहनों की आवाजाही बंद कर दी जाती है. पूरे शहर में साइकिल किराए पर लेने की सुविधा भी है. फ्रांस के ही एक और शहर स्ट्रासबर्ग में भी इसी तरह के इंतजाम हैं.
तस्वीर: picture-alliance/robertharding/S. Dee
एक साइकिल होटल
स्वीडन के माल्मो शहर में साइकिल सवारों के लिए व्यवस्था को और सुदृढ़ बनाने के लिए काफी पैसे खर्च किए गए हैं. साइकिल चलाने के लिए करीब 500 किलोमीटर लंबी सड़कें बनाई गई हैं, जिनके किनारे हवा भरने के स्टेशन भी हैं. यह तस्वीर एक साइकिल होटल की है जहां साइकिल ठीक करने की दुकान, साइकिल किराए पर लेने की सुविधा और कमरों के ठीक बाहर साइकिल पार्किंग की व्यवस्था भी है.
तस्वीर: Ohboy
दुनिया की पहली साइकिल लिफ्ट
नॉर्वे का ट्रोंडहाइम एक पहाड़ी शहर है जहां बनाई गई है दुनिया की पहली साइकिल लिफ्ट, 'द ट्रैम्प'. 426 फुट लंबी यह लिफ्ट एक बार में 300 साइकिल सवारों तक को पहाड़ के ऊपर क्रिस्टियांस्टन किले तक ले जाती है. पहाड़ पर चढ़ने के लिए एक पटरी बिछाई गई है जिस पर एक प्लेट लगाई गई है. प्लेट पर आप अपने दायां पांव रख कर खड़े हो सकते हैं और फिर वो प्लेट साइकिल और सवार को पहाड़ के ऊपर धक्का देती है.
तस्वीर: public domain
लोगों से ज्यादा साइकिलें
वेस्टफेलिया के मुंस्टर में लोगों से ज्यादा साइकिलें हैं. शायद यही वजह है कि जर्मनी में लाइपजिष के बाद यहीं सबसे ज्यादा साइकिलें चोरी होती हैं. लेकिन लोग इससे साइकिल चलाना छोड़ नहीं देते. मुंस्टर में साइकिल चलाने के लिए चौड़ी सड़कें, पर्याप्त पार्किंग और सपाट भूमि जो है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/B. Thissen
थीमों वाले साइकिल रास्ते
स्पेन के बार्सिलोना में 2002 में ही साइकिल किराए पर लेने की सुविधा शुरू हो गई थी. शहर में 250 किलोमीटर लंबे साइकिल रास्ते हैं. कई ऐसे इलाके हैं जहां ट्रैफिक की रफ्तार 30 किलोमीटर प्रति घंटा पर सीमित है. पर्यटकों के लिए शहर में कई तरह की थीमों वाले साइकिल रास्ते हैं जिनसे आप समुद्र तट तक या अन्य पर्यटन स्थलों तक जा सकते हैं.
तस्वीर: picture-alliance/imageBROKER/G. Guarino
साइकिल सवारों के लिए आयोजन
स्विट्जरलैंड के शहर बेसल में जमीन सपाट है और दूरियां कम. 'स्लोअप' नाम के कार्यक्रम के दौरान शहर की सड़कों पर काफी भीड़ रहती है. गर्मियों में होने वाले इस कार्यक्रम में आयोजक सुंदर इलाकों में करीब 30 किलोमीटर जगह को सिर्फ साइकिल सवारों के लिए खुला रखते हैं और उनके रास्ते में कई तरह की गतिविधियों का आयोजन भी करते हैं.
तस्वीर: picture-alliance/imageBROKER/M. Dr. Schulte-Kellinghaus
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सरकारें इन तूफानों के कारण आईं आपदाओं से निपटने में काफी संघर्ष कर रही हैं. पर्यावरणविद और सरकारी अधिकारियों का कहना है कि जलवायु परिवर्तन और जल संसाधनों के खराब प्रबंधन के कारण खतरा और ज्यादा बड़ा होता जा रहा है क्योंकि इनके कारण क्षेत्र की मिट्टी रेत में तब्दील हो रही है. वे लोग चेतावनी देते हैं कि बढ़ते तापमान और बदले मौसम का संकेत है कि हालात अभी और बुरे होंगे. विशेषज्ञों का कहना है कि इससे बचने का उपाय यही है कि सरकारें मिलकर काम करें और जलवायु परिवर्तन को बढ़ाने वाले उत्सर्जन को कम करें.
‘ध्यान नहीं दे रहीं सरकारें'
न्यूयॉर्क के सिटी कॉलेज में शोध वैज्ञानिक कावे मदानी कहते हैं कि रेत के तूफानों के खतरों को स्थानीय सरकारें बहुत लंबे समय से टालती रही हैं. वह कहते हैं, "यह सीमाओं और पीढ़ियों के पार फैला एक मुद्दा है और हर साल खतरनाक होता जा रहा है."
ईरान के पर्यावरण विभाग के अध्यक्ष रह चुके मदानी बताते हैं, "यह बेहद निराशाजनक है कि 21वीं सदी की सबसे बड़ी पर्यावरणीय समस्याओं से एक को बड़ी सरकारों और वैज्ञानिक एजेंसियों उचित मान्यता तक नहीं दे रही हैं."
ये तूफान इतने खतरनाक होते हैं कि एक तूफान हजारों किलोमीटर की दूरी तय कर सकता है और अपने रास्ते में दर्जनों देशों में तबाही मचा सकता है. ये तूफान भवनों, बिजली की तारों और अन्य महत्वपू्र्ण ढांचों को नुकसान पहुंचाते हैं, फसलें तबाह कर देते हैं और वायु व सड़क परिवहन को प्रभावित करते हैं.
वर्ल्ड बैंक की 2019 की एक रिपोर्ट कहती है कि मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्रीका में रेत के तूफानों के कारण हर साल लगभग 13 अरब डॉलर यानी लगभग दस खरब रुपये का नुकसान होता है. विशेषज्ञ खराब जल प्रबंधन को इस नुकसान की बड़ी वजह मानते हैं. मध्य पू्र्व और उत्तरी अफ्रीका में 85 प्रतिशत पानी सिंचाई में प्रयोग होता है.
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खेती का तरीका बदलना होगा
जलवायु विशेषज्ञ कहते हैं कि खेती की तकनीकें पर्यावरण के अनुकूल नहीं हैं. जैसे कि जरूरत से ज्यादा चराई, रसायनों व मशीनों का जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल और अत्याधिक सिंचाई होती है जिसे अक्सर पानी पर मिलने वाली सब्सिडी से बढ़ावा मिलता है. ये नीतियां इलाके के मरुस्थलीकरण को बढ़ा रही हैं.
साथ ही मदानी क्षेत्र में बन रहे बांधों को भी एक बड़ी वजह मानते हैं. वह कहते हैं कि बड़ी-बड़ी नदियों पर बांध बनाए जा रहे हैं जिस कारण समस्या बढ़ रही है. मदानी कहते हैं, "इसे अगर आप जमीन का बदला इस्तेमाल, वनों की कटाई और खाली पड़े खेतों से मिला दें तो बार-बार आने वाले बड़े तूफान तैयार हो जाते हैं."
40 साल बाद लौटे विलुप्त हुए राइनो
40 साल तक विलुप्त रहने के बाद ये राइनो फिर लौट आए हैं. और अपने साथ पर्यटक व भविष्य के लिए उम्मीदें भी लाए हैं.
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लौट आए राइनो
मोजाम्बिक में चार दशक पहले ये राइनो विलुप्त हो गए थे. अब एक योजना के तहत स्थानीय नेशनल पार्क में इन्हें फिर से लाया गया है.
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एक हजार मील दूर से
मोजाम्बिक में ये ब्लैक एंड वाइट राइनो एक हजार मील दूर दक्षिण अफ्रीका से लाए गए हैं.
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पीस पार्क्स की कोशिश
दोबारा देश में राइनो लाने की यह कोशिश पीस पार्क्स फाउंडेशन ने की है. प्राणी संरक्षण के लिए काम करने वाले एंथनी एलेग्जैंडर कहते हैं कि इस ऐतिहासिक प्रजाति को एक बार फिर देश में देखना बहुत उत्साहवर्द्धक है.
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दो साल तक आते रहेंगे
मई 2022 में राइनो को लाने का यह काम शुरू हुआ था जो दो साल तक जारी रहेगा. इस दौरान 40 राइनो इस नेशनल पार्क में लाए जाएंगे.
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2,300 फिर लौटे प्राणियों का घर
दस लाख एकड़ में फैले इस पार्क में 2,300 से ज्यादा प्राणी हैं जिन्हें दोबारा यहां लाया गया है. पीस पार्क्स को उम्मीद है कि इस स्थानांतरण से प्राणियों की संख्या बढ़ाने में मदद मिलेगी.
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गृह युद्ध का असर
मोजांबीक में 15 साल तक चले गृह युद्ध और शिकार का वन्य जीवन पर बहुत बुरा असर हुआ था. 1992 में यह युद्ध खत्म हुआ लेकिन हालात अब तक पूरी तरह सामान्य नहीं हो पाए हैं.
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यूएन के आर्थिक और सामाजिक आयोग के उप महासचिव कावे जाहेदी कहते हैं, "इलाके में सूखे का बढ़ना खासतौर पर चिंता का विषय है." वह सलाह देते हैं कि प्रभावित देशों को पूर्व चेतावनी और पूर्वानुमान देने वाली तकनीकों में निवेश करना चहिए, ज्यादा दक्ष जल और भूमि प्रबंधन नीतियां बनानी चाहिए और सबसे कमजोर प्रभावित तबकों की मदद के लिए सामाजिक सुरक्षा उपलब्ध करानी चाहिए.