रविवार सुबह 8 बजे, सात घंटे की यात्रा पर निकली पनडुब्बी टाइटन का अब भी कोई अता पता नहीं है. सबमरीन में मौजूद 96 घंटे की इमरजेंसी ऑक्सीजन गुरुवार सुबह तक ही चलने वाली थी.
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उत्तरी अटलांटिक महासागर में टाइटैनिक के मलबे तक यात्रा कराने वाली ओशनगेट कंपनी की पनडुब्बी, टाइटन की खोज अब भी जारी है. टाइटन पर ओशनगेट के सीईओ समेत पांच लोग सवार हैं. अमेरिकी कोस्ट गार्ड ने आशंका जताई है कि टाइटन के भीतर ऑक्सीजन अब तक खत्म हो चुकी होगी.
टाइटन को खोजने के लिए कई देश मिलकर सर्च अभियान चला रहे हैं. गुरुवार को दो और पनडुब्बियां इस काम में लगाई गईं. अमेरिकी न्यूज चैनल एनबीसी के टुडे शो से बात करते हुए यूएस कोस्ट गार्ड के रियर एडमिरल जॉन मौजर ने कहा, "लोगों की जिंदा रहने की इच्छाशक्ति को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए. इसीलिए हम सर्च और रेस्क्यू अभियान जारी रखे हुए हैं."
इस बीच फ्रांस का रिसर्च शिप अटलांट भी अभियान में शामिल हो चुका है. अटलांट का अनमैन्ड रोबोट, विक्टर, 6,000 मीटर की गहराई पर जा सकता है. एक्सपर्ट्स का कहना है कि अब सबसे ज्यादा उम्मीद विक्टर से ही है.
ओएसजे/सीके (एपी, एएफपी)
टाइटैनिक टूरिज्म का आगाज
दुनिया का सबसे मशहूर जहाज टाइटैनिक 14 अप्रैल 1912 की रात एक हिमखंड से टकराकर अटलांटिक में समा गया. उस हादसे पर एक फिल्म भी बनी. अब एक अमेरिकी कंपनी पनडुब्बी के सहारे टूरिस्टों को टाइटैनिक के मलबे तक ले जाने वाली है.
तस्वीर: DW
करीब चार किलोमीटर की गहराई
टाइटैनिक के मलबे का पता पहली बार 1985 में चला. उत्तरी अटलांटिक में 3,800 मीटर की गहराई पर टाइटैनिक के टुकड़े 1912 से आराम कर रहे हैं. पानी के भारी दबाव के चलते इतनी गहराई पर खास पनडुब्बियां ही जा सकती हैं.
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टूरिज्म की शुरुआत
अब एक अमेरिकी कंपनी ओशियनगेट वैज्ञानिकों और पेईंग गेस्ट्स को वहां ले जाने की तैयारी कर रही है. एक छोटी पनडुब्बी के सहारे रिसर्चरों और मेहमानों को टाइटैनिक के मलबे तक ले जाया जाएगा.
तस्वीर: OceanGate Inc.
कैसी है पनडुब्बी
टाइटन नाम की पनडुब्बी टाइटैनियम नाम की धातु और बेहद हल्के और अत्यंत मजबूत मैटीरियल कार्बन फाइबर से बनाई गई है. पनडुब्बी में एक पालयट होगा, तीन टूरिस्ट होंगे और एक एक्सपर्ट होगा. पनडुब्बी गोता लगाने के बाद 10 से 12 घंटे समंदर के भीतर गुजारेगी.
तस्वीर: OceanGate Inc.
महंगी ट्रिप
ओशियनगेट के सीईओ स्टॉकटन रश के मुताबिक 2019 की गर्मियों से टाइटैनिक टूरिज्म की शुरुआत होगी. टाइटैनिक का मलबा देखने के लिए एक सैलानी को 1.05 लाख डॉलर चुकाने होंगे.
तस्वीर: OceanGate Inc.
लोहा खाने वाला बैक्टीरिया
आखिरी बार कनाडा की डलहौजी यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक टाइटैनिक के मलबे तक पहुंचे थे. वहां वैज्ञानिकों को एक नए किस्म का बैक्टीरिया मिला. उसे हैलोमोनस टाइटैनिके नाम दिया गया. जिन परिस्थितियों में ज्यादातर जीव जिंदा नहीं रह सकते हैं, उन परिस्थितियों में यह बैक्टीरिया आराम से फलता फूलता है.
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बस 20 साल और
हैलोमोनस टाइटैनिके नाम के बैक्टीरिया को लोहा खाना बहुत पसंद है. विशेषज्ञों का कहना है कि यह बैक्टीरिया अगले 20 साल में टाइटैनिक के मलबे को पूरी तरह से चट कर देगा.