विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा है कि कोरोना वायरस से ठीक हुए मरीज दोबारा इस संक्रमण से बच जाएंगे इसके सबूत नहीं है. इसका मतलब है कि जिन्हें कोरोना हुआ है और वे ठीक हो चुके हैं उन्हें दोबारा भी संक्रमण होने का खतरा है.
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यूएन एजेंसी के मुताबिक कोविड-19 से ठीक हुए मरीजों के फिर संक्रमित नहीं होने के सबूत मौजूद नहीं है. यह कहना सही नहीं है कि जो लोग कोविड-19 से ठीक हो चुके हैं और जिनमें रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत है वे सुरक्षित हैं. डब्ल्यूएचओ ने एक संदेश जारी कर सरकारों को "इम्यूनिटी पासपोर्ट" या "जोखिम- मुक्त प्रमाणपत्र" जारी करने के खिलाफ चेतावनी दी है. कुछ देशों ने ऐसे दस्तावेज जारी करने की बात कही थी.
डब्ल्यूएचओ के मुताबिक, "कुछ सरकारों ने सलाह दी है कि कोविड-19 पैदा करने वाले वायरस एसएआरएस-सीओवी-2 की एंडीबॉडी का मिलना इम्यूनिटी पासपोर्ट या जोखिम-मुक्त प्रमाणपत्र का आधार बन सकता है, जिससे यह लोग यात्रा कर पाएंगे और काम पर लौट पाएंगे. लेकिन हम कहना चाहेंगे कि मौजूदा समय में ऐसा कोई सबूत नहीं है." इंसान में कोविड-19 के एंटीबॉडी का पता लगाने वाले परीक्षणों की सटीकता और विश्वसनीयता को अभी साबित करना होगा.
संगठन का कहना है कि "इम्यूनिटी पासपोर्ट" या "जोखिम- मुक्त प्रमाणपत्र " देने से वास्तव में वर्तमान संक्रमण का खतरा और बढ़ेगा. ठीक हो चुके लोग कोरोना वायरस के खिलाफ मानक एहतियात बरतने में सलाह की अनदेखी कर सकते हैं.
पिछले हफ्ते चिली ने कहा था कि वह बीमारी से ठीक हो चुके लोगों को हेल्थ पासपोर्ट देना शुरू करेगा. एक बार जांच में यह साबित हो जाता है कि उनके शरीर में वायरस की प्रतिरोधक एंडीबॉडी विकसित हो चुकी हैं तो वे काम पर लौट सकेंगे. पिछले साल चीन के वुहान से फैला कोरोना वायरस अब तक 28 लाख लोगों को संक्रमित कर चुका है और दो लाख से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है.
डब्ल्यूएचओ वायरस पर एंटीबॉडी की प्रतिक्रिया के सबूतों की समीक्षा कर रहा है. कई अध्ययनों में यह बात कही गई है कि संक्रमण से ठीक हो चुके लोगों में वायरस के प्रति एंटीबॉडी विकसित हो गई हैं. डब्ल्यूएचओ का कहना है कि उनमें से कुछ लोगों के खून में निष्क्रिय करने वाली एंटीबॉडी का स्तर बहुत कम है. इसका मतलब है कि कोविड-19 से ठीक होने के लिए कोशिका प्रतिरक्षा भी महत्वपूर्ण हो सकती है.
डब्ल्यूएचओ ने आगाह किया था इन 15 बीमारियों के खतरे से
डब्ल्यूएचओ ने 2018 में ऐसी 15 बीमारियों की सूची तैयार की थी जो महामारी की शक्ल ले सकती हैं. "मैनेजिंग एपिडेमिक" नाम से डब्ल्यूएचओ की सलाह को एक किताब की शक्ल भी दी गई. 21वीं सदी इनमें से कई बीमारियों को देख चुकी है.
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इबोला
कोविड-19 की तरह यह भी एक वायरस से फैलता है और संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आने वाले लोग बीमार हो जाते हैं. इबोला के अधिकतर मामले अफ्रीका के गरीब इलाकों में देखे गए हैं.
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लस्सा बुखार
यह बुखार चूहों के कारण फैलता है. चूहों के मल या मूत्र के संपर्क में आने से इंसान बीमार हो सकता है. बीमार व्यक्ति के शारीरिक द्रव से यह दूसरों में फैल सकता है. बच्चों पर इसका ज्यादा बुरा असर होता है.
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सीसीएचएफ
क्रीमियन कॉन्गो हेमोरहेजिक फीवर उन परजीवियों के काटने से होता है जो इंसानों, जानवरों या पक्षियों के शरीर पर रह कर उनका खून चूस कर जीते हैं. यह बीमारी भी इंसानों से इंसानों में फैलती है. मृत्यु दर बहुत ज्यादा होती है.
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पीला बुखार
अर्बन येलो फीवर पीले बुखार की सबसे खतरनाक किस्म है. इस बीमारी का टीका विकसित किया जा चुका है. इस लिहाज से इसका खतरा बाकी बीमारियों की तुलना में कम है.
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जीका
जीका का बुखार एडीस मच्छर के काटने से होता है. यह मच्छर दिन में काटता है. गर्भवती महिलाओं में जीका होने से मां और बच्चे दोनों की जान को खतरा होता है. इसका कोई टीका उपलब्ध नहीं है.
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चिकनगुनिया
यह बीमारी भी एडीस मच्छर के काटने से ही फैलती है. रिहाइशी इलाकों में इसके फैलने का खतरा ज्यादा होता है. इस बीमारी के लक्षण डेंगू जैसे होते हैं. भारत में हर साल इसके कई मामले सामने आते हैं.
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जानवरों से फैलने वाले फ्लू
इसमें एवियन और स्वाइन फ्लू शामिल हैं. 2009 में स्वाइन फ्लू को वैश्विक महामारी (पैंडेमिक) घोषित किया गया था. यह दुनिया भर में फैला था लेकिन कोरोना वायरस की तुलना में काफी कम मामले सामने आए थे.
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मौसमी फ्लू
यह हर साल मौसम बदलने के साथ होने वाला फ्लू है. यह वायरस के कारण होता है और इसकी दो किस्में होती हैं: ए और बी. बड़ी उम्र के लोगों को इससे बचने के लिए सालाना टीका लेने के लिए कहा जाता है.
अगर किसी ऐसे वायरस के कारण फ्लू होता है जिसके खिलाफ लोगों के शरीर में प्रतिरोधक क्षमता का विकास नहीं हो पाता है तो वह वैश्विक महामारी की शक्ल ले सकता है. और बीमारी को समझने और टीका विकसित करने में काफी समय लग सकता है.
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मर्स
मिडल ईस्ट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम एक तरह के कोरोना वायरस के कारण होता है. यह बीमारी ऊंटों के कारण फैलती है. 2012 से 2015 के बीच यह बीमारी 24 देशों में फैली और 400 लोगों की जान गई.
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हैजा
साफ सफाई की कमी और गंदे पानी से हैजा फैलता है. इसमें बुखार नहीं होता. मरीज का पेट खराब होता है, दस्त के कारण कमजोरी होती है और कुछ मामलों में तो कुछ घंटों में ही जान चली जाती है.
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मंकी पॉक्स
यह उसी किस्म के वायरस के कारण फैलता है जिससे चेचक होता है. अपने नाम से विपरीत यह बंदरों से नहीं, चूहों के कारण फैलता है. जानवरों से इंसानों में पहुंचने के बाद इंसानों के बीच संक्रमण फैलने लगता है.
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प्लेग
यह छोटे जानवरों में मिलने वाले बैक्टीरिया से फैलता है. ज्यादातर चूहे इसके लिए जिम्मेदार होते हैं. प्लेग की सबसे आम किस्म है ब्यूबोनिक प्लेग जो इंसान से इंसान में नहीं फैलता है.
इस बीमारी के बारे में कम जानकारी के कारण अकसर डॉक्टर इसे पहचानने में गलती करते हैं. अगर वक्त रहते ही सही एंटीबायोटिक दिए जाएं तो इलाज मुमकिन है.
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मेनिंगनाइटिस
मेनिंगोकोकल मेनिंगनाइटिस दिमाग पर असर करता है. इस बीमारी का मृत्यु दर 50 प्रतिशत है. एंटीबायोटिक दे कर इसे रोका ना जाए तो यह दूसरों में भी फैल सकती है.