भारत सरकार ने बिजली संकट की संभावनाओं को खारिज करते हुए कहा है कि उसके पास पर्याप्त कोयला है. पिछले कई दिनों से कोयला बिजली संयंत्रों के पास ईंधन खत्म हो जाने की खबरें आ रही हैं.
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भारत सरकार ने कहा है कि पावर प्लांट्स की मांग पूरी करने के लिए उसके पास पर्याप्त कोयला है. रविवार को एक बयान जारी कर भारत सरकार ने कहा कि बिजली का संकट नहीं होने जा रहा है.
केंद्र सरकार ने कहा कि कोयला बिजली संयंत्रों के पास 72 लाख टन कोयला भंडार हैं जो चार दिन के लिए पर्याप्त हैं. इसके अलावा सरकारी कंपनी कोल इंडिया लिमिटेड के पास भी चार करोड़ टन कोयला भंडार होने की बात कही गई है.
क्या हमेशा से काला रहा है कोयले के इतिहास
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कोयला मंत्रालय ने रविवार को जारी एक बयान में कहा, "बिजली कटौती की आशंकाएं बेवजह हैं.” दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा था कि कोयला संकट के चलते दिल्ली को बिजली कटौती झेलनी पड़ सकती है, जिसके बाद केंद्र को यह सफाई देनी पड़ी.
क्यों है कोयले का संकट
भारत में हाल के महीनों में कई इलाकों में बिजली की भारी समस्या रही है. देश के कोयला संयंत्रों के पास सितंबर के आखिर में सिर्फ चार दिन का कोयला बचा था, जो कई दशकों में सबसे कम है.
दुनिया में दूसरे सबसे ज्यादा कोयला उपभोग करने वाले देश भारत में कोयले की इस कमी की बड़ी वजह चीन में हो रही बिजली कटौती है. चीन के बिजली संकट के कारण फैक्ट्रियां काम नहीं कर पा रही हैं और उत्पादन प्रभावित होने से वैश्विक सप्लाई पर असर पड़ा है.
भारत में जरूरत की 70 प्रतिशत बिजली कोयले से बनाई जाती है. इसके लिए तीन चौथाई ईंधन स्वदेशी ही होता है. लेकिन मॉनसून की भारी बारिश ने कोयला खदानों में पानी भर दिया है और परिवहन को भी प्रभावित किया है, जिसके चलते कोयले की कमी हो गई है और कीमतें आसमान छू रही हैं.
हालांकि केंद्रीय कोयला मंत्रालय ने भरोसा दिलाया है कि मांग में तेज बढ़त और भारी मॉनसून के बावजूद "घरेलू सप्लाई ने बिजली उत्पादन को बड़ा समर्थन बनाए रखा है.”
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बायोमास का इस्तेमाल
कोयले की सप्लाई के अलावा भारत ने बिजली उत्पादन का स्तर बनाए रखने के लिए और भी कई कदम उठाए हैं. मसलन कुछ कोयला बिजली संयंत्रों में बायोमास का इस्तेमाल अनिवार्य बना दिया गया है. इसका मकसद कृषि के कचरे से बिजली बनाकर वायु प्रदूषण को कम करना है.
बिजली उत्पादन के तरीके
बिजली उत्पादन के विभिन्न तरीके
रोटी, कपड़ा और मकान की तरह ही बिजली भी लोगों की मूलभूत आवश्यकता बन चुकी है. घर रोशन करने से लेकर ट्रेन चलाने तक हर जगह बिजली की जरूरत होती है. एक नजर बिजली उत्पादन के तरीकों पर.
तस्वीर: picture-alliance/imageBROKER/W. Diederich
कोल पावर प्लांट
कोल पावर प्लांट बिजली उत्पादन का परंपरागत तरीका है. इसमें कोयले की मदद से पानी गर्म किया जाता है. इससे बनी भाप के उच्च दाब से टरबाइन तेजी से घूमता है और बिजली का उत्पादन होता है.
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हाइड्रो इलेक्ट्रिसिटी पावर प्लांट
हाइड्रो इलेक्ट्रिसिटी पावर प्लांट ऐसी जगहों पर बनाए जाते हैं जहां तेजी से पानी का प्रवाह होता है. सबसे पहले बांध बना कर नदी के पानी को रोका जाता है. यह पानी तेजी से नीचे गिरता है. इसकी मदद से टरबाइन को घुमाया जाता है और बिजली उत्पादन होता है.
तस्वीर: Yi Chang/dpa/picture alliance
सौर ऊर्जा
सौर ऊर्जा प्लांट की स्थापना उन क्षेत्रों में की जाती है जहां पूरे साल सूरज की रोशनी पहुंचती है. सूर्य की किरणों को बिजली में बदलने के लिए फोटोवोल्टिक सेलों का उपयोग होता है. इससे एक बैटरी जुड़ी होती है जिसमें बिजली जमा होती है. सोलर फोटोवोल्टिक सेल से पैदा होने वाली बिजली दिष्ट धारा (डायरेक्ट करंट) के रूप में होती है.
तस्वीर: Imago Images/Le Pictorium
पवन चक्की
पवन चक्की का इस्तेमाल उन क्षेत्रों में किया जाता है जहां हवा की गति तेज होती है. पवन चक्की लगाने के लिए एक टावर के ऊपर पंखे लगाए जाता है. यह पंखा हवा की वजह से घूमता है. पंखे के साथ शाफ्ट की मदद से एक जेनेरेटर जुड़ा होता है. जेनरेटर के घूमने से बिजली उत्पादन होता है.
तस्वीर: Martin Bernetti/AFP
न्यूक्लियर पावर प्लांट
इस प्लांट में यूरेनियम-235 को ईंधन के रूप में इस्तेमाल किया जाता है. यूरेनियम के परमाणुओं को विखंडित करने के लिए एटॉमिक रिएक्टर का इस्तेमाल होता है. इससे पैदा होने वाली उष्मा से भाप बनाई जाती है. इसी भाप से टरबाईन को घुमाया जाता है जिससे बिजली का उत्पादन होता है. एक किलो यूरेनियम 235 से उत्पन्न ऊर्जा 2700 क्विंटल कोयले जलाने से पैदा हुई ऊर्जा के बराबर होती है.
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डीजल पावर प्लांट
डीजल पावर प्लांट की स्थापना उन जगहों पर की जाती है जहां कोयले और पानी की उपलब्धता पर्याप्त मात्रा में नहीं होती है. डीजल मोटर की मदद से जेनरेटर चलाया जाता है जो बिजली का उत्पादन करता है. यह एक तरह का वैकल्पिक साधन है. सिनेमा हॉल, घर, शादी-विवाह या किसी कार्यालय में आपात स्थिति में बिजली की आपूर्ति के लिए इसका इस्तेमाल होता है.
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नैचुरल गैस पावर प्लांट
नैचुरल गैस पावर प्लांट कोल थर्मल पावर प्लांट की तरह ही होता है. फर्क बस इतना है कि इसमें पानी को गर्म करने के लिए कोयले की जगह नैचुरल गैस का इस्तेमाल होता है. पानी गर्म होने के बाद भाप बनता है. उच्च दाब वाले भाप से टरबाइन घूमता है. और इससे बिजली उत्पादन होता है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
समुद्री लहर
समुद्र की लहरों से बिजली पैदा की जाती है. समुद्र किनारे दीवार या चट्टान में जेनरेटर और टरबाइन लगाया जाता है. (एक हौज बनाया जाता है जहां टरबाइन और जेनरेटर लगे होते हैं. लहरें जब हौज के भीतर आती है उसमें मौजूद पानी ऊपर उठता-गिरता है. इससे हौज के ऊपरी हिस्से में बनी जगह पर हवा तेजी से ऊपर-नीचे आती है.) लहरों के आने जाने पर टरबाइन दबाव से घूमता है और जेनरेटर चलने लगता है. बिजली पैदा होती है.
तस्वीर: Lauren Frayer
समुद्री तरंग
इस तरीके में लोहे के बड़े-बड़े पाइपों को स्प्रिंग के माध्यम से एक साथ जोड़ा जाता है. ये समुद्र की सतह पर तैरते रहते हैं. इनका आकार रेलगाड़ी के पांच डिब्बों के बराबर होता है. इनके अंदर मोटर तथा जेनरेटर लगे होते हैं. तरंगों की वजह से पाइप जब ऊपर नीचे होते हैं तो अंदर मौजूद मोटर चलने लगती है. मोटर से जेनेरेटर चलता है और बिजली उतपन्न होती है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
बायोमास से बिजली निर्माण
खेती, पशुपालन, उद्योग या वन क्षेत्र के उपयोग में काफी मात्रा में बायोमास सामग्री इकट्ठा होती है. कोल थर्मल पावर प्लांट की तरह ही इसका भी प्लांट होता है. फर्क ये है कि यहां कोयले की जगह बायोमास को जलाया जाता है और पानी को गर्म किया जाता है. पानी गर्म से होने से जो भाप बनती है उससे टरबाइन घूमता है और बिजली उत्पादन होता है.
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जियो थर्मल पावर प्लांट
जैसे-जैसे पृथ्वी की गहराई में जाते हैं, धरती गर्म होती जाती है. एक स्थान वह भी आता है जहां गर्मी की वजह से सारे पदार्थ पिघल जाते हैं जिसे लावा कहते हैं. धरती के अंदर मौजूद इसी ताप के इस्तेमाल से बिजली बनाई जाती है. इसके लिए जमीन में कुएं खोदे जाते हैं. अंदर के गर्म पानी और उसकी भाप का अलग-अलग तरह से इस्तेमाल कर टरबाइन घुमाया जाता है और बिजली बनाई जाती है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/T. Karumba
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शुक्रवार को बिजली मंत्रालय ने यह फैसला किया था जिसके तहत तीन श्रेणियों के थर्मल पावर प्लांट में कोयले के साथ 5 प्रतिशत बायोमास मिलाने की बात कही गई है.
उत्तरी भारत के कुछ हिस्सों में किसान फसल की कटाई के बाद बचे हिस्से को जलाकर खेत साफ करते हैं. इससे इलाके में वायु प्रदूषण होता है, जिसे लेकर पिछले दो-तीन साल से काफी चिंता जताई जा रही है. सरकार इसे कोयला संयंत्रों में इस्तेमाल करना चाहती है.
बायोमास के इस्तेमाल पर एक केंद्रीय नीति भी बनाई गई है जो अगले साल अक्टूबर से लागू हो जाएगी. इस नीति के तहत दो श्रेणियों के कोयला बिजली संयंत्रों को अगले दो साल में बायोमास का इस्तेमाल 7 प्रतिशत तक बढ़ाना होगा.
बिजली मंत्रालय ने अपने बयान में कहा, "(कोयले के साथ) बायोमास जलाने की नीति 25 साल तक या फिर प्लांट की आयु पूरी होने तक, जो भी पहले खत्म हो तब तक लागू रहेगी.”