भारत की सख्त जवाबी कार्रवाई के बाद ब्रिटेन ने कोविशील्ड वैक्सीन को मान्यता दे दी है. अब भारत से गए टीकाकृत लोगों को ब्रिटेन में क्वॉरन्टीन में नहीं रहना होगा.
विज्ञापन
भारत और ब्रिटेन के बीच आखिरकार कोविशील्ड वैक्सीन को लेकर जारी विवाद पर विराम लग गया है. ब्रिटेन ने इस वैक्सीन को मंजूरी दे दी है और अब कोविशील्ड की दोनों खुराक पाए भारतीयों को ब्रिटेन में क्वारंटीन में नहीं रहना होगा.
भारत में ब्रिटेन के उच्चायुक्त ने गुरुवार को बताया कि 11 अक्टूबर से ब्रिटेन आने वाले उन भारतीयों को क्वारंटीन में नहीं रहना होगा जो कोविशील्ड की दोनों खुराक ले चुके हैं.
तस्वीरेंः भारत के वैक्सीन-वीर
वैक्सीन पहुंचाने वाले ये वीर
कुछ स्वास्थ्यकर्मी हिमालय के दूर-दराज के गांवों में जाकर वैक्सीन लगाने का दुरुह काम कर रहे हैं. तस्वीरों में मिलिए इन बहादुरों से...
तस्वीर: Adnan Abidi/REUTERS
हिमालय में वैक्सीन
हिमाचल के मलाना गांव तक पहुंचना कोई आसान काम नहीं है. जिस दिन टीम को जाना था उससे एक दिन पहले हुए भूस्खलन ने सड़क बंद कर दी.
तस्वीर: Adnan Abidi/REUTERS
तीन घंटे की ट्रेकिंग
नतीजतन स्वास्थ्यकर्मियों को तीन घंटे ट्रेकिंग करके गांव तक पहुंचना पड़ा. नदी घाटी में चढ़ाई और उतराई का यह लंबा रास्ता है.
तस्वीर: Adnan Abidi/REUTERS
सब तक टीका
इस मेहनत का फल यह हुआ कि मलाना हिमाचल का पहला ऐसा गांव बन गया है जहां सभी वयस्कों को टीके की कम से कम एक खुराक मिल चुकी है.
तस्वीर: Adnan Abidi/REUTERS
तीन दिन का काम
वैक्सीन खुराकों से भरे दो डिब्बों के साथ डॉ. अतुल गुप्ता के नेतृत्व में पांच स्वास्थ्यकर्मियों के दल ने यह उपलब्धि सितंबर में ही हासिल की.
तस्वीर: Adnan Abidi/REUTERS
नदी के उस पार
नदी पार करने के लिए वैक्सीन के बॉक्स गोंदोला के जरिए एक तरफ से दूसरी ओर भेजे गए जबकि लोगों को ट्रेक करना पड़ा.
तस्वीर: Adnan Abidi/REUTERS
330 फुट की चढ़ाई
यह ट्रेक कितना मुश्किल है इसका अंदाजा इस बात से लगा सकते हैं कि 330 फुट की खड़ी चढ़ाई है.
तस्वीर: Adnan Abidi/REUTERS
देवताओं की सुनी
मलाना में 11,00 वयस्क हैं. गांव के प्रधान राजाराम बताते हैं कि लोग वैक्सीन लगवाने से पहले डर रहे थे लेकिन जब देवताओं ने कहा तो वे मान गए. हिमाचली गांवों में देवताओं की उपाधि सम्माननीय और धार्मिक लोगों को मिलती है.
तस्वीर: Adnan Abidi/REUTERS
7 तस्वीरें1 | 7
ब्रिटिश उच्चायुक्त एलेक्स एलिस ने एक ट्वीट कर कहा, "कोविशील्ड या यूके द्वारा मंजूर अन्य किसी वैक्सीन की दोनों खुराक पाए भारतीय यात्रियों को 11 अक्टूबर से क्वारंटीन नहीं करना होगा.”
कई दिन चला विवाद
दोनों देशों के बीच कोविशील्ड को लेकर कई दिनों से विवाद चल रहा था. जब पिछले महीने जब ब्रिटेन ने अपनी सीमाएं खोलीं तो पूरी तरह टीकाकृत लोगों को क्वॉरन्टीन से छूट दे दी गई. लेकिन कोविशील्ड को मान्यता नहीं दी, जो भारत में इस्तेमाल की जा रही है.
ब्रिटेन के इस फैसले की तीखी आलोचना हुई और भारत में उसे साम्राज्यवादी तक कहा गया. भारत ने ब्रिटेन की इस नीति पर आपत्ति जताई. भारत के विदेश सचिव हर्ष श्रृंगला ने ब्रिटिश नीति को भेदभावपूर्ण बताते हुए जवाबी कार्रवाई की चेतावनी दी थी.
1 अक्टूबर को जवाबी कार्रवाई करते हुए ब्रिटेन से आने वाले हर यात्री पर पर 10 दिन का अनिवार्य क्वारंटीन लागू कर दिया, फिर चाहे उसने वैक्सीन ली हो ना नहीं.
इसी हफ्ते भारत ने अपनी हॉकी टीमों को कोविड का खतरा बताते हुए अगले साल बर्मिंगम में होने वाले कॉमनवेल्थ खेलों में भेजने से इनकार कर दिया था.
दबाव काम आया
बढ़ते दबाव के बीच गुरुवार को ब्रिटेन ने आखिरकार नीति में बदलाव की घोषणा की. ब्रिटेन परिवहन मंत्री ग्रांट शैप्स ने ट्वीट कर इसकी जानकारी दी. उन्होंने कहा, "मैं ऐसे बदलाव कर रहा हूं कि ब्रिटेन आने वाले यात्रियों के लिए शर्तें कम हों. भारत, तुर्की और घाना समेत 37 नए देशों और क्षेत्रों में टीका लगवाए लोगों को मान्यता मिलेगी और उन यात्रियों को ब्रिटेन में पूरी तरह टीकाकृत माना जाएगा.”
जानें, वैक्सीन काम करती है
वैक्सीन काम करती है, इसका सबूत है इन बीमारियों पर विजय
दुनिया में कोविड-19 के खिलाफ टीकाकरण अभियान के बीच याद रखना जरूरी है कि मानव जाति ने वैक्सीन की बदौलत ही कई बीमारियों पर विजय हासिल की है. हो सकता है जल्द कोरोना वायरस भी उतना सिमट जाए जितने ये बीमारियां सिमट चुकी हैं.
तस्वीर: Ciro Fusco/ANSA/picture alliance
पोलियो
1988 में दुनिया में पोलियो के तीन लाख से भी ज्यादा मामले थे, और आज 200 से भी कम मामले हैं. दो बूंद जिंदगी की - इस अभियान ने भारत से पोलियो को पूरी तरह हटाने में बड़ी भूमिका निभाई. पाकिस्तान, अफगानिस्तान और अफ्रीका के कुछ हिस्सों को छोड़ कर आज बाकी पूरी दुनिया पोलियो मुक्त हो चुकी है, टीके की बदौलत.
1980 में दुनिया भर में मीजल्स वायरस 25 लाख से भी ज्यादा लोगों की मौत का कारण बना था, लेकिन 2014 आते आते यह संख्या 75,000 से भी नीचे आ गई. मीजल्स के टीके को कई देशों में दूसरे टीकों के साथ मिला कर भी दिया जाता है और इसे काफी सफल टीका माना जाता है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/J.P. Müller
चेचक
इसे आधुनिक दुनिया की सबसे खतरनाक बीमारी कहा जाता रहा है. चेचक पीड़ित 30 फीसदी लोगों की जान चली जाती थी. टीका बन जाने के बाद भी इस बीमारी को पूरी तरह खत्म करने में करीब दो सौ साल का वक्त लग गया. 1970 के दशक में दुनिया को चेचक से मुक्ति मिली.
तस्वीर: Getty Images/CDC
स्पेनिश फ्लू
1918 में शुरू हुए इंफ्लुएंजा या स्पेनिश फ्लू का टीका 1945 में जा कर बना. दुनिया की एक तिहाई आबादी इससे संक्रमित हुई और पांच करोड़ लोगों की जान गई. अगर टीका ना बना होता, तो आज दुनिया काफी अलग दिखती.
तस्वीर: picture-alliance/Everett Collection
टेटनस
जब भी कभी चोट लगती है, तो लोग टेटनस का इंजेक्शन लेने भागते हैं. डॉक्टर कहते हैं कि हर दस साल में एक बार टेटनस का टीका लगवाना चाहिए. टेटनस एक जानलेवा बीमारी है और हालांकि अब टेटनस के मामले ना के बराबर हैं, लेकिन रोकथाम के लिए टीका अब भी दिया जाता है.
तस्वीर: Imago Images
डिप्थेरिया
नवजात शिशुओं को डीपीटी का टीका दिया जाता है. डी से डिप्थेरिया, टी से टेटनस और पी से पर्टुसिस. ये तीनों बीमारियां बैक्टीरिया के कारण होती हैं. 1948 में डीपीटी का टीका विकसित हुआ लेकिन इसके काफी साइड इफेक्ट हुआ करते थे. 1990 के दशक में इसके फॉर्मूला में बदलाव किए गए.
तस्वीर: picture-alliance/OKAPIA KG/G. Gaugler
इबोला
2014 में फैले इबोला संक्रमण को टीके की मदद से ही रोका जा सका. दो साल तक इस बीमारी ने पश्चिमी अफ्रीका में कहर मचाया. इस दौरान वहां ग्यारह हजार से ज्यादा लोगों की जान गई.
तस्वीर: picture-alliance/AP/S. Alamba
7 तस्वीरें1 | 7
ब्रिटिश उच्चायोग के एक प्रवक्ता ने गुरुवार को एक बयान जारी कर इसकी पुष्टि की कि भारत के लोगों पर ब्रिटेन में पाबंदियां नहीं होंगी. उन्होंने कहा, "हमारे मंत्रालयों के बीच करीबी तकनीकी सहयोग के बाद लोगों की सेहत को ध्यान में रखते हुए यह फैसला किया गया.”
प्रवक्ता ने कहा कि ब्रिटेन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वैक्सीन के प्रभाव से जुड़ी सूचनाएं और आंकड़ों की समीक्षा करता रहता है और अपने वीजा नियमों की हमने महामारी के दौरान लगातार समीक्षा की है ताकि धीरे-धीरे सुरक्षित तरीके से यात्राओं को शुरू करते हुए सीमाएं खुली रखी जाएं.
ब्रिटिश अधिकारियों ने मीडिया से कहा था कि मुद्दा वैक्सीन नहीं थी बल्कि भारत में वैक्सीनेशन सर्टिफिकेट जारी करने की प्रक्रिया थी और उच्च स्तर पर बातचीत होने के बाद दोनों देशों ने एक दूसरे के प्रमाण पत्रों को मान्यता दी है.
विज्ञापन
कोविशील्ड पर विवाद
ब्रिटेन से पहले यूरोपीय संघ के साथ भी कोविशील्ड को लेकर भारत का विवाद हो चुका है. जुलाई में जब यूरोपीय संघ ने मान्य टीकों की सूची जारी की थी तो उसमें कोविशील्ड नहीं थी.
तस्वीरेंः बच्चों के लिए महामारी का मतलब
बच्चे कैसे देखते हैं कोरोना महामारी को
कोरोना वायरस महामारी के बारे में बच्चे क्या महसूस कर रहे हैं, यह जानने के लिए डीडब्ल्यू ने एक चित्रकला प्रतियोगिता आयोजित की थी. देखिए दुनिया भर के बच्चों ने कैसे कैसे चित्र बनाए.
तस्वीर: Marie
गुआदालुप
11 साल, कोलंबिया
तस्वीर: Guadalupe
जूड
पांच साल, लेबनान
तस्वीर: Jude
ऐंटोनिस
छह साल, ग्रीस
तस्वीर: Antonis
जेसिका
11 साल, सिंगापुर
तस्वीर: Jessika
पौला
14 साल, जर्मनी
तस्वीर: Paula
वीनस
10 साल, ईरान
तस्वीर: Venus
डैनिल
10 साल, रूस
तस्वीर: Daniil
जोशी
17 साल, भारत
तस्वीर: Joshi
अनीसा
11 साल, इंडोनेशिया
तस्वीर: Annisa
यास्मीन
10 साल, मोरक्को
तस्वीर: Yasmine
मीरा जेनेप
10 साल, तुर्की
तस्वीर: Mira Zeynep
सखा
छह साल, इंडोनेशिया
तस्वीर: Sakha
नूर
11, इंडोनेशिया
तस्वीर: Nur
एमिलिया
नौ साल, चिली
तस्वीर: Emilia
लूसिया
नौ साल, वेनेजुएला
तस्वीर: Lucía
बिलाल
आठ साल, इंडोनेशिया
तस्वीर: Bilal
रिजकी
नौ साल, इंडोनेशिया
तस्वीर: Rizki
आगुस्तीना
12 साल, चिली
तस्वीर: Agustina
वोकिम
10 साल, चिली
तस्वीर: Joaquin
एलेग्जेंडर
10 साल, रूस
तस्वीर: Alexander
आंद्रे
10 साल, रूस
तस्वीर: Andrej
अलिसा
11 साल, रूस
तस्वीर: Alisa
रेजिना
10 साल, मेक्सिको
तस्वीर: Regina
क्लावियो
11 साल, कोलंबिया
तस्वीर: Clavijo
रफन
सात साल, भारत
तस्वीर: Rafan
लोपेज
11 साल, कोलंबिया
तस्वीर: Camillo
आमिर
नौ साल, मेक्सिको
तस्वीर: Amir
साल्वादोर
पांच साल, चिली
तस्वीर: Salvador
रैदनि
दो साल, भारत
तस्वीर: Radnyi
सोसिच
13 साल, फ्रांस
तस्वीर: Soazic
गेब्रियल
सात साल, बोलीविया
तस्वीर: Gabriel
रिया
नौ साल, भारत
तस्वीर: Riya
दानिएला
10 साल, कोलंबिया
तस्वीर: Daniela
डेलीला
छह साल, भारत
तस्वीर: Delilah
मार्क
आठ साल, लेबनान
तस्वीर: Mark
मारी
11 साल, जर्मनी
तस्वीर: Marie
36 तस्वीरें1 | 36
भारत में ऑक्सफर्ड यूनिवर्सिटी-एस्ट्राजेनेका की कोविशील्ड वैक्सीन को उसके स्थानीय निर्माता सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (एसआईआई) ने नाम दिया है. इसे यूरोपीय मेडिसिन एजेंसी (ईएमए) द्वारा मान्यता नहीं दी गई क्योंकि एजेंसी के मुताबिक उसे पुणे स्थित एसआईआई द्वारा अनुरोध नहीं मिला था.
इसलिए कोविशील्ड वैक्सीन लेने वाले यात्रियों को ईएमए से मंजूरी प्राप्त करने की शर्त लगा दी गई. चिंता जताए जाने और विरोध के बाद ईयू ने कहा है कि सदस्य देशों को अन्य वैक्सीन को भी मंजूर करने का विकल्प है, खासतौर पर वे टीके जिन्हें डब्ल्यूएचओ द्वारा मान्यता प्राप्त है. बाद में यूरोपीय देशों ने अपने-अपने स्तर पर कोविशील्ड को मान्यता दी.