केरल के समाचार चैनल मीडिया वन टीवी को उसका प्रसारण रोके जाने के खिलाफ हाई कोर्ट ने कोई राहत नहीं दी है. केंद्रीय गृह मंत्रालय ने राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला देते हुए चैनल को दोबारा लाइसेंस जारी करने की इजाजत नहीं दी थी.
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गृह मंत्रालय के कहने पर सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने मीडिया वन पर प्रतिबंध लगा दिया था, जिसे चैनल ने केरल हाई कोर्ट में चुनौती दी थी. लेकिन अदालत ने चैनल को कोई भी राहत देने से मना कर दिया है. अदालत ने कहा है कि चैनल के लाइसेंस को आगे बढ़ाने की अनुमति न दिए जाने के लिए पर्याप्त कारण हैं.
हालांकि सरकार ने इन कारणों के बारे में विस्तृत जानकारी सार्वजनिक नहीं की है. अदालत में सरकार ने दलील थी कि राष्ट्रीय सुरक्षा के मामलों में नैसर्गिक न्याय की दलील नहीं दी जा सकती है. अदालत ने भी इस पर सहमति व्यक्त की है.
राष्ट्रीय सुरक्षा का 'दायित्व'
बल्कि न्यायमूर्ति एन नागरेश ने अपने फैसले में प्राचीन ग्रन्थ अत्रि संहिता का जिक्र करते हुए कहा कि संहिता में भी यही लिखा है कि राष्ट्रीय सुरक्षा सरकार का सबसे जरूरी दायित्व होता है. इस पूरे मामले के केंद्र में भी सवाल यही है कि राष्ट्रीय सुरक्षा की आखिर परिभाषा क्या है और सरकार इसके दायरे में किस किस गतिविधि को देखती है.
भारत में टीवी चैनलों को प्रसारण के लिए सूचना और प्रसारण मंत्रालय से लाइसेंस लेना पड़ता है. मौजूदा नीति के तहत लाइसेंस 10 सालों के दिया जाता है और फिर उसे दोबारा जारी करवाना होता है. लाइसेंस मिलने के लिए गृह मंत्रालय से सुरक्षा संबंधित अनुमति लेना अनिवार्य होता है.
मीडिया वन टीवी माध्यमम ब्रॉडकास्टिंग नाम की कंपनी का मलयालम समाचार टीवी चैनल है. माध्यमम के कई निवेशक जमात-ए-इस्लामी हिंद संस्था के सदस्य हैं. केरल में कई बार अफवाह उड़ाई गई हैं कि यह संस्था भारत में प्रतिबंधित है लेकिन संस्था ने बताया कि यह झूठ है और प्रतिबंधित संस्था का नाम जमात-ए-इस्लामी, जम्मू और कश्मीर है.
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विपक्ष का विरोध
जमात-ए-इस्लामी हिंद के मुताबिक वो एक अलग संस्था है और उस पर कोई प्रतिबंध नहीं है. मीडिया वन टीवी की शुरुआत फरवरी 2013 में हुई थी. एक समारोह में चैनल का उद्घाटन तत्कालीन रक्षा मंत्री और केरल से कांग्रेस पार्टी के सांसद एके एंटनी ने किया था.
मौके पर केरल के तत्कालीन मुख्यमंत्री ऊमन चंडी, मौजूदा मुख्यमंत्री वीएस अच्युतानंदन और बीजेपी नेता श्रीधरन पिल्लई भी मौजूद थे. लेकिन चैनल कई बार विवादों में रहा. केंद्र सरकार ने 2020 में भी दिली दंगों की "पक्षपाती' कवरेज के लिए चैनल के प्रसारण को 48 घंटों के लिए रोक दिया गया था.
चैनल पर प्रतिबंध लगाए जाने का विपक्षी पार्टियों ने जम कर विरोध किया है. मामले को लोक सभा में उठाते हुए सदन में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि सरकार ने चैनल का लाइसेंस रद्द करने के पीछे अस्पष्ट कारण दिए हैं.
चैनल के मुख्य सम्पादक प्रमोद रमन ने एक बयान में कहा है कि हाई कोर्ट के फैसले को देखते हुए प्रसारण फिलहाल बंद किया जा रहा है लेकिन कानूनी लड़ाई जारी रहेगी. उन्होंने बताया कि चैनल जल्द ही हाई कोर्ट की डिवीजन पीठ में अपील करेगा. अभी यह स्पष्ट नहीं हो पाया है कि चैनल में कितने लोग काम करते थे और प्रसारण रोक दिए जाने के बाद उनका क्या होगा.
मीडिया पर हमला करने वाले 37 नेताओं में मोदी शामिल
अंतरराष्ट्रीय संस्था 'रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स' ने मीडिया पर हमला करने वाले 37 नेताओं की सूची जारी की है. इनमें चीन के राष्ट्रपति और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री जैसे नेताओं के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भी नाम है.
'रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स' (आरएसएफ) ने इन सभी नेताओं को 'प्रेडेटर्स ऑफ प्रेस फ्रीडम' यानी मीडिया की स्वतंत्रता को कुचलने वालों का नाम दिया है. आरएसएफ के मुताबिक ये सभी नेता एक सेंसर व्यवस्था बनाने के जिम्मेदार हैं, जिसके तहत या तो पत्रकारों को मनमाने ढंग से जेल में डाल दिया जाता है या उनके खिलाफ हिंसा के लिए भड़काया जाता है.
तस्वीर: rsf.org
पत्रकारिता के लिए 'बहुत खराब'
इनमें से 16 प्रेडेटर ऐसे देशों पर शासन करते हैं जहां पत्रकारिता के लिए हालात "बहुत खराब" हैं. 19 नेता ऐसे देशों के हैं जहां पत्रकारिता के लिए हालात "खराब" हैं. इन नेताओं की औसत उम्र है 66 साल. इनमें से एक-तिहाई से ज्यादा एशिया-प्रशांत इलाके से आते हैं.
तस्वीर: Li Xueren/XinHua/dpa/picture alliance
कई पुराने प्रेडेटर
इनमें से कुछ नेता दो दशक से भी ज्यादा से इस सूची में शामिल हैं. इनमें सीरिया के राष्ट्रपति बशर अल-असद, ईरान के सर्वोच्च नेता अली खामेनी, रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और बेलारूस के राष्ट्रपति एलेग्जेंडर लुकाशेंको शामिल हैं.
मोदी का नाम इस सूची में पहली बार आया है. संस्था ने कहा है कि मोदी मीडिया पर हमले के लिए मीडिया साम्राज्यों के मालिकों को दोस्त बना कर मुख्यधारा की मीडिया को अपने प्रचार से भर देते हैं. उसके बाद जो पत्रकार उनसे सवाल करते हैं उन्हें राजद्रोह जैसे कानूनों में फंसा दिया जाता है.
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पत्रकारों के खिलाफ हिंसा
आरएसएफ के मुताबिक सवाल उठाने वाले इन पत्रकारों के खिलाफ सोशल मीडिया पर ट्रोलों की एक सेना के जरिए नफरत भी फैलाई जाती है. यहां तक कि अक्सर ऐसे पत्रकारों को मार डालने की बात की जाती है. संस्था ने पत्रकार गौरी लंकेश का उदाहरण दिया है, जिन्हें 2017 में गोली मार दी गई थी.
तस्वीर: Imago/Hindustan Times
अफ्रीकी नेता
ऐतिहासिक प्रेडेटरों में तीन अफ्रीका से भी हैं. इनमें हैं 1979 से एक्विटोरिअल गिनी के राष्ट्रपति तेओडोरो ओबियंग गुएमा बासोगो, 1993 से इरीट्रिया के राष्ट्रपति इसाईअास अफवेरकी और 2000 से रवांडा के राष्ट्रपति पॉल कगामे.
तस्वीर: Ju Peng/Xinhua/imago images
नए प्रेडेटर
नए प्रेडेटरों में ब्राजील के राष्ट्रपति जैर बोल्सोनारो को शामिल किया गया है और बताया गया है कि मीडिया के खिलाफ उनकी आक्रामक और असभ्य भाषा ने महामारी के दौरान नई ऊंचाई हासिल की है. सूची में हंगरी के प्रधानमंत्री विक्टर ओरबान का भी नाम आया है और कहा गया है कि उन्होंने 2010 से लगातार मीडिया की बहुलता और आजादी दोनों को खोखला कर दिया है.
तस्वीर: Ueslei Marcelino/REUTERS
नए प्रेडेटरों में सबसे खतरनाक
सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस सलमान को नए प्रेडेटरों में सबसे खतरनाक बताया गया है. आरएसएफ के मुताबिक, सलमान मीडिया की आजादी को बिलकुल बर्दाश्त नहीं करते हैं और पत्रकारों के खिलाफ जासूसी और धमकी जैसे हथकंडों का इस्तेमाल भी करते हैं जिनके कभी कभी अपहरण, यातनाएं और दूसरे अकल्पनीय परिणाम होते हैं. पत्रकार जमाल खशोगी की हत्या का उदाहरण दिया गया है.
तस्वीर: Saudi Royal Court/REUTERS
महिला प्रेडेटर भी हैं
इस सूची में पहली बार दो महिला प्रेडेटर शामिल हुई हैं और दोनों एशिया से हैं. हांग कांग की चीफ एग्जेक्टिवे कैरी लैम को चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की कठपुतली बताया गया है. बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना को भी प्रेडेटर बताया गया है और कहा गया है कि वो 2018 में एक नया कानून लाई थीं जिसके तहत 70 से भी ज्यादा पत्रकारों और ब्लॉगरों को सजा हो चुकी है.