आदिमानव का जीनोम खोजने वाले वैज्ञानिक को नोबेल पुरस्कार
३ अक्टूबर २०२२फियिजोलॉजी और मेडिसिन के लिए नोबेल पुरस्कार देने वाले स्वीडन के कारोलिंस्का इंस्टीट्यूट ने जैसे ही स्वांते पेबो का नाम लिया, वैसे ही एक बड़े वैज्ञानिक समुदाय में, "ये तो होना ही था" जैसा भाव उभरने लगा. नोबेल पुरस्कार देने वाले वाली कमेटी ने अपने बयान में कहा, "विलुप्त हो चुके होमिनिन्स (आदिमानवों) और आज जिंदा सभी इंसानों के बीच अनुवांशिक अंतर बताने वाली उनकी खोजें, उस बुनियाद जैसी है जो बताती हैं कि हमें अनोखा इंसान बनाने वाली चीजें क्या हैं."
पुरस्कार समिति की जूरी ने कहा, "आदिकाल से आज के इंसानों तक जीनों का प्रवाह, आज भी शरीर विज्ञान के लिहाज से महत्वपूर्ण है, मसलन हमारा इम्यून सिस्टम कैसे इंफेक्शनों के प्रति रिएक्ट करता है."
2022 का नोबेल प्राइज इन फिजियोलॉजी ऑर मेडिसिन जीतने वाले डॉ. पेबो को एक करोड़ स्वीडिश क्रोनर (करीब 90.15 लाख डॉलर) की पुरस्कार राशि और मेडल 10 दिसंबर 2022 को दिया जाएगा. पुरस्कार स्वीडन के राजा कार्ल 16 गुस्ताव देंगे. 10 दिसंबर को डायनामाइट का आविष्कार करने वाले स्वीडिश वैज्ञानिक अल्फ्रेड नोबल की पुण्यतिथि होती है. 1896 में दुनिया को अलविदा कहने वाले अल्फ्रेड नोबेल की आखिरी इच्छा थी कि उनकी संपत्ति से अच्छी वैज्ञानिक खोज करने वाले वैज्ञानिकों के लिए एक पुरस्कार शुरू किया जाए. नोबेल पुरस्कार इसी कारण शुरू हुए.
स्वांते पेबो की खोज की अहमियत
67 साल के प्रोफेसर डॉक्टर स्वांते पेबो जर्मनी के प्रतिष्ठित माक्स प्लांक इस्टीट्यूट फॉर इवोल्यूशनरी एंथ्रोपॉलजी के डाइरेक्टर हैं. इंसान की निएंडरथाल नाम की विलुप्त हो चुकी प्रजाति के जीनोम की खोज के दौरान उन्होंने एक ऐसी तकनीक विकसित कर ली जिससे किसी भी जीवाश्म के जीनोम तक पहुंचा जा सकता है. जीनोम यानि किसी कोशिका के भीतर जींस की जानकारी वाले सेट. जीनोम के भीतर डीएनए की शक्ल में उस जीव की पूरी जानकारी रहती है. जीनोम कही जाने वाली ये इंफॉर्मेशन डीएनए मॉलिक्यूल्स से बनी होती है. जब कभी कोशिका विभाजित या कॉपी होती है तो ये सूचना भी साथ में कॉपी होती है.
कभी कभी नई कोशिकाएं बनते समय जीनोम में स्टोर कुछ डीएनए मॉलिक्यूल की पोजिशन बदल जाती है. अरबों डीएनए मॉलिक्यूल में से कुछ की पोजिशन में आया ये बदलाव, पीढ़ी दर पीढ़ी बड़े अंतर पैदा करता जाता है. मसलन अगर दो इंसानों के जीनोम की तुलना की जाए तो 1200 से 1400 मॉलिक्यूल कैरेक्टर के बाद कोई अंतर निकलेगा. इसी अंतर को और गहराई से देखा जाए तो लाखों अंतर सामने आने लगते हैं. इन अंतरों का इतिहास खंगालने पर आज के इंसान के जीन, लाखों साल पुराने आदिमानवों से जुड़ने लगते हैं. ऐसे ही अंतरों ने लाखों करोड़ों साल पहले चिपैंजी की कुछ प्रजातियों को इतना बदल दिया कि इंसान जैसी प्रजातियां बन गईं. इनमें विलुप्त हो चुके निएंडरथाल भी हैं और आज के इंसान होमो सेपियंस भी.
डॉ. पेबो ने ऐसी तकनीक विकसित की जिससे जीवाश्म के रूप में मिलने वाली छोटी सी हड्डियों से भी जीनोम निकाला जा सकता है. डॉ. पेबो की 40 साल से ज्यादा लंबी मेहनत ने ऐसी तकनीक खोजी, जिससे लाखों साल पुराने जीनोम का सटीक विश्लेषण किया जा सकता है. इस तकनीक के जरिए डीएनए से, बैक्टीरिया, फंगस, धूल, मौसमी बदलावों और बाहरी रासायनिक परिवर्तन जैसे फैक्टरों को साफ किया जाता है. बीते 20 साल में यह तकनीक इतनी आगे जा चुकी है कि अब एक साथ लाखों डीएनए का विश्लेषण किया जा सकता है.
क्रमिक विकास की गहरी दुनिया में आगे बढ़ता विज्ञान
इसी तकनीक की बदौलत पता चल सका है कि दुनिया में आज जितने भी इंसान हैं, वो एक लाख से दो लाख साल पहले एक परिवार से निकलने के बाद कैसे दूसरी प्रजातियों से घुलते मिलते हुए बदलते गए. इस थ्योरी के आधार पर कहा जाता है कि हमारे पुरातन पुरखे जब अफ्रीकी महाद्वीप से बाहर निकले तो वो मध्यपूर्व में रहने वाली निएंडरथाल प्रजाति से घुले मिले. यूरोप और एशिया के इंसानों के जीनोम में निएंडरथाल प्रजाति का भी अंश है. चीन, साइबेरिया और पापुआ न्यू गिनी जैसे इलाकों से निएंडरथाल के सबूत मिल चुके हैं.
डॉ. पेबो को 2020 में द जापान प्राइज, 2018 में क्रोएबर यूरोपियन साइंस प्राइज, 2016 में ब्रेकथ्रो प्राइज इन लाइफ साइंस, 2003 में ग्रुबर जेनेटिक्स प्राइज और 1992 में लाइबनित्स प्राइज से भी सम्मानित किया जा चुका है. 3 अक्टूबर 2022 को जब उन्हें मेडिसिन का नोबेल दिया गया तो कई वैज्ञानिकों को हैरानी नहीं हुई.