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विज्ञानविश्व

नकारात्मक विचार कर सकते हैं आपको बीमार

कार्ला ब्लाइकर
५ अप्रैल २०२४

आपने प्लेसिबो प्रभाव के बारे में सुना होगा. इसमें सकारात्मक सोच यह विश्वास दिलाती है कि आपकी दवाएं काम कर रही हैं. वहीं, नोसीबो इफेक्ट में नकारात्मक सोच अपनी ताकत दिखाती है. लेकिन आखिर कैसे?

एक मरीज को कोरोना की वैक्सीन लगाते डॉक्टर.
अगर कोई शख्स पहले से ही वैक्सीन के संभावित साइड इफेक्ट के बारे में परेशान हो, तो उसके इन दुष्प्रभावों को महसूस करने की संभावना बढ़ जाती है. यह नोसीबो प्रभाव का एक उदाहरण है. तस्वीर: JEFF PACHOUD/AFP

"कोई आपसे कहता है कि तुम ठीक नहीं दिख रहे, क्या तुम बीमार होने वाले हो. इसके बाद आप अचानक से बीमार जैसा महसूस करने लगते हैं. आपकी आशंका लक्षणों को बढ़ा देती है."  यह कहना है चार्लोट ब्लीज का. ब्लीज, स्वीडन की उप्साला यूनिवर्सिटी में एक स्वास्थ्य शोधकर्ता हैं. वह 'दी नोसीबो इफेक्ट: वेन वर्ड्स मेक यू सिक' की सह-लेखिका हैं.

ब्लीज आयरलैंड की एक बस यात्रा का अनुभव बताती हैं. उन्हें यात्रा के दौरान होने वाली मोशन सिकनेस का एहसास हो रहा था. वह कुछ और सोचकर अपना ध्यान भटकाने की कोशिश कर रही थीं क्योंकि उन्हें पता था कि अगर किसी ने उन्हें टोक दिया, तो नोसीबो प्रभाव शुरू हो जाएगा.

ब्लीज ने डीडब्ल्यू को बताया, "नोसीबो प्रभाव में नकारात्मक अपेक्षाओं की वजह से नकारात्मक स्वास्थ्य समस्याएं पैदा होती हैं. यह दर्द, चिंता, उल्टी और थकान की भावनाओं का बढ़ा सकता है."

नोसीबो: प्लेसिबो का एकदम उल्टा

प्लेसिबो प्रभाव की तुलना में नोसीबो प्रभाव एकदम उल्टा और नकारात्मक होता है. एक मेडिकल ट्रायल की कल्पना कीजिए. एक समूह के लोगों को सिरदर्द ठीक करने के लिए असली दवाएंदी गई हैं. वहीं, दूसरे समूह के लोगों को मीठी गोलियां दी गई हैं, जिनमें कोई दवा नहीं है.

जब दूसरे समूह के लोग बताते हैं कि उनका सिरदर्द ठीक हुआ है, तो डॉक्टर कहते हैं कि वे प्लेसिबो प्रभाव का अनुभव कर रहे हैं. उन्हें लगा कि वे असली दवाएं ले रहे थे और इसी सकारात्मक सोच की वजह से उन्हें सिरदर्द से राहत मिली.

प्लेसिबो प्रभाव चिकित्सकीय रूप से मान्यता प्राप्त है. अब नोसीबो प्रभाव को भी धीरे-धीरे डॉक्टरों के बीच पहचान मिल रही है. यह प्रभाव तब होता है, जब नकारात्मक सोच आपके परिणामों को नकारात्मक रूप से प्रभावित करती है.

प्लेसिबो इफेक्ट काफी दिलचस्प मामला है. अगर आप ऐसी दवा लें जिसमें चीनी के अलावा और कुछ भी ना हो, तब भी प्लेसिबो प्रभाव के कारण आप बेहतर महसूस कर सकते हैं. तस्वीर: Lucas Seebacher/imageBROKER/picture alliance

नोसीबो प्रभाव, कोविड और टीके से झिझक

कोरोना महामारी के दौरान शोधकर्ताओं ने पाया कि कोविड-19 टीकाकरण से पहले लोगों को होने वाली आशंकाएं, उनके बाद के अनुभवों पर प्रभाव डाल सकती हैं. इस्राएल और ब्रिटेन के वैज्ञानिकों की टीम ने एक अध्ययन किया. इसमें 60 साल से अधिक उम्र के 756 इस्राएली नागरिक शामिल थे. इनमें से हरेक को कोविड-19 का तीसरा टीका, यानी बूस्टर शॉट दिया गया था.

याकोव हॉफमान इस अध्ययन के प्रमुख लेखक हैं. वह इस्राएल की बार-इलान यूनिवर्सिटी के सामाजिक और स्वास्थ्य विज्ञान विभाग में प्रोफेसर भी हैं. हॉफमान बताते हैं, "हमने टीके के प्रति लोगों के नकारात्मक रवैये और आशंकाओं को मापा. साथ ही, रिपोर्ट किए गए दुष्प्रभावों की संख्या भी देखी."

इस अध्ययन के नतीजे दिसंबर 2022 में 'साइंटिफिक रिपोर्ट्स' जर्नल में प्रकाशित हुए. इसके परिणामों ने संकेत दिया कि जिन लोगों के मन में दूसरा टीका लगवाने को लेकर आशंकाएं थीं, उनमें तीसरा टीका लगवाने के बाद दुष्प्रभाव होने की संभावना अधिक थी. इस बारे में हॉफमान ने डीडब्ल्यू को बताया, "किसी व्यक्ति को वैक्सीन, इसकी सुरक्षा और दुष्प्रभावों को लेकर जितनी ज्यादा चिंता होगी, वह उतने ही ज्यादा दुष्प्रभावों का सामना करेगा."

हॉफमान आगे कहते हैं, "जब नोसीबो प्रभाव और टीके से जुड़ी झिझक एक साथ मिल जाते हैं, तो ये एक दुष्चक्र बना सकते हैं. एक व्यक्ति जो टीका लगवाने से झिझक रहा था, क्योंकि शायद उसने इंटरनेट पर इसके दुष्प्रभावों के बारे में पढ़ा था, उसमें टीका लगवाने के बाद दुष्प्रभाव की आशंका अधिक होगी. फिर इन दुष्प्रभावों को डॉक्टर द्वारा रिकॉर्ड और रिपोर्ट किया जाएगा. इससे इन दुष्प्रभावों के बारे में मीडिया में अधिक बात होगी, जिसकी वजह से और ज्यादा लोग टीका लगवाने से झिझकेंगे. इस तरह यह दुष्चक्र चलता रहेगा."

नोसीबो प्रभाव से कैसे निपटें डॉक्टर

डॉक्टरों के सामने यह चुनौती हो सकती है कि कहीं उनकी बातों के कारण मरीजों में नोसीबो प्रभाव की शुरुआत ना हो जाए. ब्लीज कहती हैं, "डॉक्टरों का दायित्व है कि वे मरीज को नुकसान ना पहुंचाएं, या जहां संभव हो वहां नुकसान कम करें, लेकिन सच बताना भी उनका दायित्व है."

वहीं, हॉफमान कहते हैं, "बेहद कम दुष्प्रभाव वाले टीके के मामले में नोसीबो प्रभाव पर ध्यान देना समझ में आता है. शायद यहां हकीकत बताना ही सही होगा. लोगों को बताया जाए कि वे जिन दुष्प्रभावों का अनुभव कर रहे हैं, वे नोसीबो प्रभाव की वजह से हैं. यानी वे वास्तव में दुष्प्रभावों का अनुभव तो कर रहे हैं, लेकिन यह अनिवार्य रूप से खतरे का संकेत नहीं है." हालांकि, हॉफमान ने इस बात पर जोर दिया कि ये केवल अटकलें थीं और पुख्ता सबूत के लिए और शोध की जरूरत है.

दुष्प्रभावों के बारे में कैसे बताएं

अन्य विशेषज्ञ भी इस बात से सहमत हैं कि जिस तरह से डॉक्टर अपने मरीजों के साथ बातचीत करते हैं, उससे नोसीबो प्रभाव को रोकने में मदद मिल सकती है. उलरिका बिंगल एक क्लिनिकल न्यूरोसाइंस प्रोफेसर हैं. वह जर्मनी के यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल एसेन में दर्द अनुसंधान इकाई का नेतृत्व करती हैं.

बिंगल कहती हैं कि डॉक्टरों के मरीजों से बात करने के तरीके से उपचार के परिणाम प्रभावित हो सकते हैं. वह बताती हैं, "अभी तक संवाद को अच्छा अनुभव देने वाले मुद्दे के तौर पर देखा गया है. हमें इसके महत्व पर और जागरूकता की आवश्यकता है."

उदाहरण के लिए, वैक्सीन के मामले में डॉक्टरों को इसके संभावित दुष्प्रभावों के बारे में बताना होता है. बिंगल कहती हैं, "मरीजों को डराने वाले दुष्प्रभावों की सूची बनाने की जगह डॉक्टरों को दुष्प्रभावों के बारे में यह कहकर बताना चाहिए कि ये उनकी प्रतिरक्षा प्रणाली के अच्छी तरह काम करने का संकेत हैं." इस तरह, मरीजों की आशंकाएं कम हो सकती हैं और दुष्प्रभावों में भी कमी आ सकती है.

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विकासवादी हो सकता है नोसीबो प्रभाव

दिमाग में चल रहे नकारात्मक विचार हमारे शरीर को कैसे प्रभावित कर सकते हैं? सबसे पहले यह समझना जरूरी है कि नोसीबो प्रभाव वास्तविक है. ये किसी मरीज की निराशावादी कल्पना का परिणाम नहीं है.

बिंगल ने डीडब्ल्यू को बताया, "नोसीबो और प्लेसिबो प्रभाव में जटिल न्यूरोसाइंटिफिक प्रक्रियाएं शामिल होती हैं. नोसीबो प्रभाव के दौरान आपका शरीर दर्द निवारकों को पंप करना बंद कर देता है. इससे आपके दिमाग को ज्यादा आवेग मिलते हैं और अधिक दर्द महसूस होता है."

समस्या यह है कि शोधकर्ता ऐसा होने की वजह नहीं बता सकते. अभी तक तो नहीं. लेकिन उनका मानना है कि इसका हमारे विकास से कुछ संबंध हो सकता है. बिंगल कहती हैं, "यह महत्वपूर्ण है कि हमारे पूर्वज किसी जंगली जानवर या जहरीले पौधे के संपर्क में आने से सीखते थे. उनका शरीर ऐसी अगली घटना के लिए तैयार हो जाता था."

दूसरे शब्दों में कहें, तो प्रारंभिक मानव की नकारात्मक अपेक्षाओं ने ही उन्हें तैयार किया होगा, जिससे जरूरत पड़ने पर वे अपनी जान बचाने के लिए भाग सकें.ब्लीज कहती हैं, "नोसेबो प्रभाव अतीत का अवशेष हो सकता है, लेकिन यह आज के आधुनिक चिकित्सा परिवेश से मेल नहीं खाता."

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