पाकिस्तानी समाज की महिला विरोधी जहरीली मानसिकता
३० जुलाई २०२१नूर मुकादम दक्षिण कोरिया में पाकिस्तान के पूर्व राजदूत की बेटी थी. 20 जुलाई को इस्लामाबाद में नूर की बेरहमी से हत्या कर दी गई. इस हत्या का आरोप जहीर जमीर जाफर पर लगा जो नूर को पहले से जानता था. पुलिस की रिपोर्ट के मुताबिक, जहीर ने पहले नूर को गोली मारी और फिर उसके सिर को काटकर धड़ से अलग कर दिया.
पाकिस्तान में महिलाओं के खिलाफ हिंसा की घटनाएं बड़े पैमाने पर दर्ज की जाती हैं, लेकिन हाल ही में ऐसी हत्या की घटनाओं ने इस दक्षिण एशियाई देश को झकझोर कर रख दिया है. दक्षिणी सिंध प्रांत में पिछले रविवार को एक व्यक्ति ने अपनी पत्नी को जलाकर मार डाला, जबकि शिकारपुर शहर में उसी दिन एक अन्य व्यक्ति ने अपनी पत्नी, अपनी चाची, और दो नाबालिग बेटियों की गोली मारकर हत्या कर दी. इससे एक दिन पहले रावलपिंडी में 30 साल की महिला के साथ बलात्कार किया गया और फिर छुरा घोंपकर बुरी तरह से घायल कर दिया गया. अगले दिन उस महिला की मौत हो गई.
सिंध प्रांत में 18 जुलाई को एक महिला को उसके पति ने पीट-पीटकर मार डाला. पिछले महीने पेशावर में एक शख्स ने 'इज्जत' के नाम पर अपनी पूर्व पत्नी समेत दो महिलाओं की हत्या कर दी थी.
हाल की घटनाओं ने एक नई बहस छेड़ दी है कि सरकार महिलाओं की सुरक्षा क्यों नहीं कर पा रही है? क्या लोगों के बीच कानून का डर समाप्त हो गया है? क्या समाज महिलाओं को आजादी से जीने नहीं देना चाहता या समाज में महिलाओं को प्रताड़ित करने की प्रवृति बढ़ रही है? आखिर इन सब की वजह क्या है?
दोषियों को सजा न देने संस्कृति
महिलाओं के लिए दुनिया के खतरनाक देशों के तौर पर पाकिस्तान का छठा स्थान है. देश में महिलाओं के प्रति तेजी से बढ़ रहे घरेलू और यौन हिंसा के मामले इसकी गवाही देते हैं. महिलाओं के अधिकार के लिए काम करने वाले कार्यकर्ताओं का कहना है कि महिलाओं के खिलाफ हिंसा में हालिया वृद्धि के लिए ‘सजा न देने की संस्कृति' जिम्मेदार है.
बलूचिस्तान प्रांत की पूर्व सांसद यास्मीन लहरी ने डॉयचे वेले को बताया, "एक युवा महिला वकील को 12 से अधिक बार चाकू मारने वाले व्यक्ति को हाल ही में अदालत ने रिहा कर दिया था. इससे महिलाओं के खिलाफ हिंसा को अंजाम देने वाले अपराधियों को क्या संदेश मिलता है?”
महिला अधिकार कार्यकर्ता मुख्तार माई का भी यही मानना है. वह डॉयचे वेले को बताती हैं, "महिलाओं के खिलाफ हिंसा करने वाले लोग कानून से नहीं डरते हैं. अधिकांश पाकिस्तानी किसी महिला की पिटाई को हिंसा नहीं मानते हैं. पाकिस्तानी समाज अभी भी सामंती और आदिवासी परंपराओं में उलझा हुआ है.” साल 2002 में मुख्तार माई के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया था.
पितृसत्तात्मक समाज और धर्म
अन्य कार्यकर्ताओं का भी कहना है कि पितृसत्तात्मक समाज महिलाओं के खिलाफ हिंसा के पीछे की मुख्य वजह है. लाहौर की रहने वाली महिला आधिकार कार्यकर्ता महनाज रहमान कहती हैं, "महिलाओं को सिखाया जाता है कि वे पुरुषों की बात मानें, क्योंकि परिवार में उनकी स्थिति बेहतर होती है. जब कोई महिला अपने अधिकारों की मांग करती है, तो उसे अक्सर हिंसा का शिकार होना पड़ता है.”
लाहौर की रहने वाली कार्यकर्ता शाजिया खान का मानना है कि कुछ मामलों में, धार्मिक शिक्षाओं से पुरुषों को प्रोत्साहन मिलता है. वह कहती हैं, "इस्लामी मौलवी धर्म की व्याख्या इस तरह से करते हैं जिससे यह आभास होता है कि पुरुषों को महिलाओं को दबाकर रखना चाहिए. वे कम उम्र में शादियों का समर्थन भी करते हैं. साथ ही, महिलाओं से यह कहा जाता है कि वे अपने पति की हर बात मानें. अगर पति हिंसा करे, तो भी उसका विरोध न करें. दरअसल, ये मौलवी पुरुषों को महिलाओं के खिलाफ हिंसा करने के लिए उकसाते हैं.”
पीड़ित को ही दोषी ठहराना
पाकिस्तान में कई अधिकार कार्यकर्ता देश में महिलाओं के खिलाफ हिंसा में वृद्धि के लिए प्रधानमंत्री इमरान खान के "पीड़िता को दोषी ठहराने" की नीति को जिम्मेदार मानते हैं. पिछले महीने पीएम इमरान खान ने कहा था, "यदि एक महिला बहुत कम कपड़े पहनती है, तो किसी भी आदमी पर इसका असर होगा, अगर वे रोबोट नहीं हैं. अमेरिकी ब्रॉडकास्टर एचबीओ की तरफ से प्रसारित होने वाली डॉक्युमेंट्री-न्यूज सीरीज एक्सियोस के लिए साक्षात्कार के दौरान खान ने इसे "कॉमन सेन्स" वाली बात बताया था. इमरान खान की इस टिप्पणी की तीखी आलोचना हुई.
यह पहला मौका नहीं था जब इमरान खान ने महिलाओं को लेकर इस तरह की टिप्पणी की. इस साल की शुरुआत में, उन्होंने मीडिया से बात करते हुए कहा था कि पाकिस्तान में यौन हिंसा में वृद्धि देश में "पर्दा" की कमी के कारण हुई है.
महिला अधिकार कार्यकर्ता साजिया खान कहती हैं, "पीएम खान और उनके मंत्री अक्सर महिला विरोधी टिप्पणी करते हैं. इससे पाकिस्तान में महिलाओं के खिलाफ हिंसा को बढ़ावा मिलता है.”
पूर्व सांसद यास्मीन लहरी का मानना है कि खान की सरकार ने महिलाओं की सुरक्षा के लिए कुछ नहीं किया है. इसके बजाय, सरकार महिलाओं के खिलाफ अत्याचार रोकने के लिए एक विधेयक लाई गई जो अभी तक पास नहीं हुई है.
पश्चिमी संस्कृति को दोष देते हैं रूढ़िवादी
पीएम इमरान खान की तरह, देश के रूढ़िवादी वर्ग भी महिलाओं के खिलाफ यौन और शारीरिक हिंसा के लिए "पश्चिमी संस्कृति" को जिम्मेदार ठहराते हैं. पूर्व सांसद सामिया राहील काजी का कहना है कि हिंसा की हालिया घटनाओं में ऐसे लोग शामिल हैं जो इस्लामी शिक्षाओं से दूर हो गए हैं.
काजी ने डॉयचे वेले को बताया, "नूर मुकादम मामले में कथित अपराधी नास्तिक है. देश में पश्चिमी संस्कृति के बढ़ते प्रभावों के बीच पारिवारिक व्यवस्था कमजोर हो रही है और इस तरह के अपराध बढ़ रहे हैं.” सांसद किश्वर जेहरा भी काजी की बातों का समर्थन करती हैं और कहती हैं, "हमें इन अपराधों को रोकने के लिए अपने पारिवारिक मूल्यों को फिर से वापस पाना होगा.”