यूक्रेन में सैनिकों की मौत को कैसे दिखाता है उत्तर कोरिया
१२ सितम्बर २०२५
यूक्रेन के खिलाफ रूस की तरफ से लड़ रहे उत्तर कोरियाई सैनिकों की मौत का आंकड़ा लगातार बढ़ रहा है. इन संख्याओं के जरिये उत्तर कोरियाई सरकार जनता का विश्वास सुनिश्चित करने के लिए अपनी पुरानी प्रचार तकनीकों का इस्तेमाल कर रही है.
पिछले महीने के अंत में उत्तर कोरिया की सरकारी मीडिया ने एक डॉक्यूमेंट्री भी दिखाई, जिसमें यूक्रेन में लड़ रहे सैनिकों की गतिविधियां दिखाई गई और इसमें खुले तौर पर सैनिकों की मौत का जिक्र भी किया गया.
दक्षिण कोरिया की योनहाप न्यूज एजेंसी के मुताबिक इस कार्यक्रम में 20 वर्षीय यून जोंग-ह्युक और 19 वर्षीय वू वी-ह्युक, दो सैनिकों की कहानी बताई गई, जो दुश्मनों से घिर गए थे. लेकिन पकड़े जाने के बजाय उन्होंने ग्रेनेड फोड़कर खुद की मौत चुनी. डॉक्यूमेंट्री में इनकी मौत को "वीर बलिदान” बताया गया.
पुतिन ने क्यों की उत्तर कोरियाई सैनिकों के बहादुरी की तारीफ
विशेषज्ञों का कहना है कि जहां दुनिया के दूसरे हिस्सों में ऐसी कहानियां कुछ खास असर नहीं करेंगी, वहीं उत्तर कोरिया में, जहां सरकार के पास मीडिया पर पूरी पकड़ है. आम जनता के सामने किसी और तरह की कहानी या सच्चाई पहुंच ही नहीं सकती है.
विश्लेषकों का कहना है कि जहां दुनिया के बाकी हिस्सों में "मातृभूमि के लिए जान देने वाले बहादुर सैनिकों” की कहानियां और युवाओं को सेना में भर्ती होकर "गोलियों और बमों की टुकड़ी” बनने की अपील शायद असर न डाले, वहीं उत्तर कोरिया में स्थिति बिल्कुल अलग है. वहां सरकार का घरेलू मीडिया पर पूरा नियंत्रण है, जिस कारण आम जनता तक किसी वैकल्पिक सोच या कहानी का पहुंच पाना लगभग नामुमकिन है.
‘पूर्ण निष्ठा' पैदा करने का प्रोपेगेंडा
न्यूयॉर्क के पेस यूनिवर्सिटी में कम्युनिकेशन और मीडिया स्टडीज के प्रोफेसर, मिन सोंग-जाए ने डीडब्ल्यू को बताया, "उत्तर कोरिया यही करता है यानी वैचारिक पोषण, ताकि मौजूदा सैनिकों और आने वाली पीढ़ियों दोनों को ही उत्तर कोरियाई शासन के प्रति वफादार बनाया जा सके.”
कार्यक्रम के अन्य हिस्सों में भी ऐसे ही आत्मघाती बलिदानों को दिखाया गया, जो खासकर तब से बढ़ गए हैं, जब से दो घायल उत्तर कोरियाई सैनिकों ने ठीक उनकी पहली तैनाती के बाद ही यूक्रेनी सेना के सामने आत्मसमर्पण कर दिया था.
मिन के अनुसार, "वह उन सैनिकों के आत्महत्या करने के दृश्य दिखाते हैं क्योंकि यह शासन की लंबे समय से चली आ रही सर्वोच्च निष्ठा और बलिदान की कहानी में पूरी तरह से फिट बैठता है.”
उत्तर कोरियाई समाचारों में लगातार ऐसे फुटेज भी दिखाए जा रहे हैं, जिसमें किम जोंग-उन मारे गए सैनिकों की तस्वीरों के सामने सिर झुकाते दिख रहे हैं और शोक संतप्त परिवारों को गले लगा रहे हैं.
एक दृश्य में तो किम जोंग-उन सैनिक के परिवार को उत्तर कोरियाई झंडे में लपेटी उनकी तस्वीरें सौंपते भी दिख रहे हैं. मिन के अनुसार इन तस्वीरों को बनाया ही इस तरीके से जाता है ताकि लोग समझ सके कि किम जोंग-उन को सैनिकों के बलिदान पर गहरा दुख महसूस हुआ है.
उन्होंने कहा, "जब सैनिकों के खुद पर ग्रेनेड फोड़ने की तस्वीरें दिखाई जाती हैं, तो उसके जरिये शासन यह संदेश देता है कि मातृभूमि के प्रति पूर्ण निष्ठा का मतलब है, आत्मसमर्पण से पहले मौत को गले लगाना बेहतर है. इस कहानी को बेवजह मौत की बजाय ‘वीर शहादत' के रूप में पेश किया जाता है. जो दृश्य बाहरी दुनिया के लिए भयावह हैं, उत्तर कोरिया उन्हें अपने सैनिकों की अटूट निष्ठा की तरह पेश करता है.”
मॉस्को के लिए संदेश
डॉक्यूमेंट्री प्रसारित होने के दो दिन बाद दक्षिण कोरिया की नेशनल इंटेलिजेंस सर्विस (एनआईएस) ने अनुमान दिया कि रूस-यूक्रेन युद्ध में प्योंगयांग से भेजे गए लगभग 13,000 सैनिकों में से 2,000 मारे जा चुके हैं.
मिन का कहना है कि यह संदेश केवल उत्तर कोरिया की जनता के लिए ही नहीं है. बल्कि प्योंगयांग मॉस्को को भी यह दिखाना चाहता है कि वह निडर नौजवानों को भेज कर दोनों देशों की साझेदारी को मजबूत कर रहा है.
मिन बताते हैं कि जहां ज्यादातर देशों में ऐसी तस्वीरें मनोबल तोड़ सकती हैं और "सवाल उठा सकती हैं कि बेटों और भाइयों को मरने के लिए विदेश क्यों भेजा जा रहा है.” वहीं उत्तर कोरिया में स्थिति बिल्कुल अलग है.
उनके अनुसार, "राज्य का सख्त सूचना नियंत्रण यह सुनिश्चित करता है कि इन तस्वीरों का अर्थ वहां बिल्कुल भी अलग तरह से पेश ना हो. मौत को नुकसान के रूप में नहीं, बल्कि वीर शहादत के रूप में देश जाने.”
किम जोंग-उन की "ताबूतों पर रोते हुए, शोकग्रस्त परिवारों को दिलासा देते हुए और गंभीर समारोहों की अध्यक्षता करते हुए” दिखाई जाने वाली तस्वीरों का इस्तेमाल "जनता की एकता दिखाने” के रूप में किया जाता है.
सजा भी है प्रोपेगेंडा का हिस्सा?
हालांकि, सियोल की हांकुक यूनिवर्सिटी ऑफ फॉरेन स्टडीज में अंतरराष्ट्रीय राजनीति के प्रोफेसर, एर्विन तान राय बिलकुल अलग है. उनका मानना है कि ऐसा हो सकता है कि जिन सैनिकों को आत्महत्या करते हुए दिखाया गया, उन्हें ऐसा करने पर मजबूर किया गया हो या तो इसलिए कि वे भागने की कोशिश कर रहे थे, या फिर इसलिए क्योंकि वह युद्ध में खराब प्रदर्शन कर रहे थे.
तान ने कहा, " शायद ऐसे वीडियो उत्तर कोरिया के बाकी सैनिकों को यह संदेश देने के लिए बनाए गए हो कि ‘कायरता और अयोग्यता' बर्दाश्त नहीं किया जाएगा.” उन्होंने यह भी कहा कि हो सकता है उन्हें आत्महत्या करने का आदेश दिया गया हो, ताकि अगर वे पकड़े भी जाएं, तो भी उनसे पूछताछ न हो सके और युद्ध में उत्तर कोरिया की असल भागीदारी सामने ना आ सके.
तान बताते हैं कि उत्तर कोरियाई शासन लंबे समय से प्रोपेगेंडा और कड़े आंतरिक सुरक्षा तंत्र का इस्तेमाल जनता से वफादारी की मांग करने के लिए करता रहा है. जिसका मुख्य कारण यह भी है कि उसे 1980 के दशक के अंत में पूर्वी यूरोप के सोवियत देशों जैसी स्थिति (यानी जहां सरकारें गिर गई थी) होने का डर है.
तान के अनुसार, "उत्तर कोरियाई शासन को अच्छी तरह पता है कि उसकी सत्ता पर पकड़ काफी नाजुक है.” इसलिए नियंत्रण बनाए रखने के लिए उसने मुखबिरों और आंतरिक निगरानी एजेंसियों का एक ऐसा जाल बिछा रखा है, जिससे वहां किसी भी तरह का विद्रोह हो पाना बेहद मुश्किल हो जाता है.
ऐसे ही शासन यह भी सुनिश्चित करता है कि सेना के शीर्ष नेता यानी जो प्रतिरोध का एक अहम स्रोत हो सकते हैं, उन्हें वफादार बनाए रखा जाए. जिसके लिए या तो उन्हें प्रभावशाली पद दे दिया जाता है, या फिर शासन के खिलाफ खड़े होने का दम रखने वालों को रास्ते से हटा दिया जाता है.
प्रोपेगेंडा में नया पहलू
रुस-यूक्रेन युद्ध में शामिल होने के प्योंगयांग के प्रोपेगेंडा में अब एक नया पहलू भी जुड़ गया है. जिसके अनुसार उत्तर कोरियाई सैनिक इसलिए हस्तक्षेप कर रहे हैं क्योंकि अमेरिका, जापान और दक्षिण कोरिया ने यूक्रेन की तरफ से अपनी सेनाएं भेजी है.
यह बात वहां की जनता को आसानी से समझाई जा सकती है, क्योंकि उन्हें हमेशा से अमेरिका की "बुराई और झूठ”, दक्षिण कोरिया के "कठपुतली राज्य” और जापान के "युद्ध भड़काने वाले” देश के रूप में कहानियां सुनाई जाती रही हैं. सरकारी मीडिया जापान को अब भी ऐसे देश की तरह पेश करता है, जो कोरियाई प्रायद्वीप पर हमला करने की योजना बनाता रहता है.
मिन के अनुसार, "उत्तर कोरियाई मीडिया का दावा है कि उनके सैनिक अमेरिकी, दक्षिण कोरियाई और जापानी सैनिकों से लड़ रहे हैं. जो कि इस युद्ध को वैचारिक रूप से सही ठहराता है.”
उन्होंने बताया कि प्योंगयांग लंबे समय से अपने नागरिकों को सिखाता आया है कि यह तीन देश उनके "दुश्मन” हैं.
मिन ने कहा, "इसलिए जब यूक्रेन युद्ध को उसी संघर्ष का मोर्चा बताकर पेश किया जाता है, तो यह लड़ाई रूस के लिए नहीं बल्कि मातृभूमि की सीधी रक्षा के लिए बन जाता है.”
उन्होंने बताया कि यह रणनीति लोगों के भीतर "गौरव, बदले और प्रतिरोध” जैसी भावनाएं जगाती है और इस सच्चाई को ढक देता है कि उत्तर कोरियाई सैनिक असल में अपने हितों के लिए नहीं, बल्कि मॉस्को के लिए मर रहे हैं.