नाक में उंगली डालने वालों को हो सकती है गंभीर बीमारी
विवेक कुमार
२ नवम्बर २०२२
वैज्ञानिकों का कहना है नाक में उंगली डालना अच्छी बात नहीं है. सिर्फ इसलिए नहीं कि अन्य लोगों को यह अच्छा नहीं लगता, बल्कि इसलिए भी कि इससे डिमेंशिया या अल्जाइमर्स हो सकता है.
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नाक में उंगली डालना एक ऐसी क्रिया है, जो करने वाले अनायास ही कर बैठते हैं और देखने वाले घिना जाते हैं. यह तो इस क्रिया का सामाजिक और व्यवहारिक पक्ष है. वैज्ञानिकों ने इसका एक स्वास्थ्यगत पक्ष भी खोजा है, जो डरावना हो सकता है.
एक शोध में पता चला है कि नाक में उंगली डालने की आदत से लोगों को अल्जाइमर्स और डिमेंशियाका भी खतरा हो सकता है. ऑस्ट्रेलिया की ग्रिफिथ यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं की एक टीम ने यह रिसर्च की है. शोधकर्ताओं ने चूहों पर की रिसर्च में पाया कि बैक्टीरिया नाक की नली से होता हुआ चूहों के मस्तिष्क में पहुंच गया, जहां उसने ऐसे बदलाव पैदा किए जो अल्जाइमर्स के संकेत थे.
विज्ञान पत्रिका साइंटिफिक रिपोर्ट्स में छपा यह अध्ययन कहता है कलामीडिया न्यूमेनिए नाम का एक बैक्टीरिया मनुष्यों को संक्रमित कर सकता है. यही बैक्टीरिया न्यूमोनिया के लिए जिम्मेदार होता है. हालांकि अधिकतर डिमेंशिया रोगियों के मस्तिष्क में भी यही बैक्टीरिया पाया गया है.
डिमेंशिया से बचने के सात उपाय
अल्जाइमर्स जैसी कई तंत्रिका तंत्र की बीमारियों के होने का कारण हम आज भी नहीं जानते. लेकिन विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) का कहना है कि व्यायाम, संतुलित भोजन और मानसिक रूप से चुस्त रहने से इससे बचा जा सकता है.
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वजन घटाना
मोटापा डिमेंशिया विकसित होने का एक बड़ा कारण है. इसलिए वजन कम करने और नियमित व्यायाम से रक्त संचार सुधारने से मेटाबोलिज्म बेहतर होगा और डिमेंशिया से भी बचाव होगा.
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हेल्दी खाना
ऐसा खाना जिनमें सब्जियों, सलाद और सब्जियों से मिलने वाले फैट की प्रचुरता हो - खून की नलियों पर अच्छा असर डालता है. इससे दिल के दौरे और स्ट्रोक का खतरा कम हो जाता है और बाद में डिमेंशिया होने की संभावना भी हाई कोलेस्ट्रॉल वाले लोगों से कम होता है.
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चहल कदमी जरूरी
शारीरिक गतिविधियां खून की नलियों को सक्रिय रखती हैं इसलिए डिमेंशिया के खिलाफ काम करती हैं. सक्रिय रहना सीधे तौर पर तंत्रिका तंत्र पर अच्छा असर डालता है. यही तंत्र पूरे शरीर पर नियंत्रण रखता है और याददाश्त को भी सुरक्षित रखता है.
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बुराइयों से दूरी
सिगरेट पीने वालों को पता होगा कि इसे छोड़ना कितना कठिन है. लेकिन यह सच है कि निकोटीन तंत्रिका तंत्र के लिए जहर के समान है. इससे रक्त संचार प्रभावित होता है क्योंकि खून कम से कम ऑक्सीजन दिमाग तक पहुंचाने लगता है. जाहिर है इससे डिमेंशिया का खतरा बढ़ जाता है.
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शराब को ना
अल्कोहल तो है ही नर्व एजेंट यानि इसकी ज्यादा मात्रा सीधे दिमाग पर ही बुरा असर डालती है. कम मात्रा में लेने पर भी ये डिमेंशिया का खतरा बढ़ाती ही है. इससे शरीर के आवश्यक अंगों को भी नुकसान पहुंचता है.
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ब्लड प्रेशर पर नजर
डिमेंशिया से बचने का एक तरीका ब्लड प्रेशर को सीमा में रखना है. खेल कूद करने से ब्लड प्रेशर कम रहता है. इससे बात ना बने तो दवा लेकर भी बीपी को स्वस्थ रेंज में रखा जा सकता है. डॉक्टर से संपर्क करें.
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मानसिक कसरत
किसी भी तरह से अपने दिमाग को सक्रिय रखना जरूरी है. इसके लिए हमेशा पहेलियां बुझाते या नई चीजें रटना ही जरूरी नहीं. समाज में लोगों से संपर्क बनाए रखना, मिलना जुलना और बातें करना कहीं ज्यादा जरूरी है. इससे याददाश्त दुरुस्त रहती है और रिश्ते भी बने रहते हैं. (फाबियान श्मिट/आरपी)
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शोधकर्ताओं ने नाक की नली और मस्तिष्क को जोड़ने वाली नस को नर्वस सिस्टम में पहुंचने के रास्ते के तौर पर प्रयोग किया. ऐसा होने पर मस्तिष्क की कोशिकाओं ने एमिलॉएड बीटा प्रोटीन का उत्पादन कर प्रतिक्रिया दी. यही प्रोटीन अल्जाइमर्स के मरीजों के मस्तिष्क में बनता है.
नाक और मस्तिष्क को जोड़ने वाली यह नस हवा के संपर्क में होती है. यानी बाह्य वातावरण से मस्तिष्क के भीतरी हिस्सों की दूरी बहुत कम होती है. वायरस और बैक्टीरिया इस रास्ते से बहुत आराम से मस्तिष्क तक पहुंच सकते हैं.
कैसे हुआ अध्ययन?
चूहों पर हुआ यह अध्ययन क्लेम जोंस सेंटर फॉर न्यूरोबायोलॉजी और स्टेम सेल रिसर्च सेंटर में किया गया. सेंटर के प्रमुख प्रोफेसर जेम्स सेंट जॉन ने बताया, "हमने इसे एक मॉडल के तौर पर चूहों में होते देखा और यह मनुष्यों में संभावना का एक डरावना प्रमाण है.”
इस शोध का अगला चरण सिद्धांत का इंसानी मस्तिष्क पर परीक्षण करना है. प्रोफेसर सेंट जॉन कहते हैं, "हमें इसे मनुष्यों पर जांचना होगा और देखना होगा कि वहां भी यह रास्ता ऐसा ही प्रभाव डाल सकता है या नहीं. इस शोध का प्रस्ताव तो बहुत से लोगों ने दिया है लेकिन अभी तक किसी ने इसे पूरा नहीं किया है.”
अल्जाइमर्स के खिलाफ कारगर ग्रीन टी?
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शोधकर्ता प्रोफेसर जेम्स सेंट जॉन कहते हैं, "नाक में उंगली डालना और नाक के बाल तोड़ना अच्छी आदत नहीं है.” वह कहते हैं कि अगर ऐसा करते हुए कोई अपनी नाक की परत को नुकसान पहुंचा देता है तो बैक्टीरिया के मस्तिष्क में पहुंचने का खतरा बढ़ जाता है.
शोधकर्ताओं ने कहा कि सूंघने की शक्ति खो बैठने को अल्जाइमर्स रोग का शुरुआती संकेत माना जा सकता है. इसलिए वह सुझाव देते हैं कि 60 साल से ऊपर के लोगों का सूंघने की शक्ति का टेस्ट अल्जाइमर्स के शुरुआती संकेत के तौर पर होना चाहिए.
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क्या है अल्जाइमर्स रोग?
अल्जाइमर्स मस्तिष्क की एक बीमारी है जिसमें याद्दाश्त कमजोर या पूरी तरह नष्ट हो जाती है. इसका असर सोचने-समझने की क्षमता पर भी पड़ता है और एक वक्त ऐसा आता है जब इंसान रोजमर्रा के सामान्य काम करने की क्षमता भी खो बैठता है. अधिकतर लोगों में यह बीमारी उम्र के दूसरे हिस्से में नजर आने लगती है लेकिन 65 वर्ष की आयु के बाद इसका खतरा ज्यादा माना जाता है.
एक अनुमान के मुताबिक भारत में 40 लाख से ज्यादा लोगों को किसी ना किसी तरह का डिमेंशिया है जबकि पूरी दुनिया में साढ़े चार करोड़ लोग इससे पीड़ित हैं. इस बीमारी में मस्तिष्क का सीखने वाला हिस्सा यानी हिपोकैंपस सबसे पहले प्रभावित होता है. इसलिए याद रखना मुश्किल होता जाता है.
उम्र ढलने पर भी दिमाग रहे तेज
व्यायाम करने, ब्लडप्रेशर को नियंत्रण में रखने और दिमाग की कुछ खास तरह की ट्रेनिंग करके उम्र के बढ़ने पर भी दिमाग को चुस्त दुरुस्त रखा जा सकता है. देखिए दिमाग की ट्रेनिंग के तरीके.
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खतरनाक बदलाव
वैज्ञानिक बताते हैं कि अल्जाइमर्स या इसके जैसी दूसरी डिमेंशिया वाली बीमारियां होने से दशकों पहले ही दिमाग में खतरनाक बदलाव आने लगते हैं. तभी लोगों के पास अपने दिमाग की सेहत सुधारने का मौका होता है.
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ब्लड प्रेशर का ख्याल
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एजिंग के अनुसार तीन तरह के उपाय करके दिमाग की सेहत को दुरुस्त रखा जा सकता है. इनमें से पहला है अधेड़ उम्र आते आते ब्लड प्रेशर का खास ख्याल. हाई बीपी से हर हाल में बचना.
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विशेष ध्यान
हाई बीपी वालों को वैसे भी दिल की बीमारियों से बचने के लिए विशेष ध्यान देने की जरूरत होती है. साथ ही साथ हाइपरटेंशन की हालत में दिमागी बीमारियों के होने का खतरा भी बढ़ जाता है.
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दिमाग की सेहत
शारीरिक गतिविधि बढ़ाना जरूरी है. आमतौर पर समझा जाना चाहिए कि जो व्यायाम या गतिविधियां दिल की बीमारियों में काम आती हैं वे दिमाग की सेहत के लिए भी अच्छी होती हैं.
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ब्रेन एक्सरसाइज
कॉग्नीटिव ट्रेनिंग या ब्रेन एक्सरसाइज कहे जाने वाले खास तरह के ट्रेनिंग प्रोग्राम कर दिमाग में स्पर्श, गंध, पहचान, तर्क और याददाश्त को बेहतर बनाया जा सकता है.
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मदद के साक्ष्य
कई विशेषज्ञ इन ब्रेन एक्सरसाइज को ब्रेन गेम से अधिक नहीं मानते. उनका मानना है कि भले ही इससे तुरंत फायदा महसूस होता हो लेकिन बड़ी बीमारियों में इनसे बहुत अधिक मदद मिलते के साक्ष्य नहीं हैं.
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नयी भाषा
अब तक जिस चीज का सबसे अधिक फायदा साबित हुआ है वह है सामाजिक और सामूहिक गतिविधियों में शामिल होना. इसके अलावा नयी भाषा सीखने को कुछ सबसे प्रभावी दिमागी व्यायामों में से एक माना गया है.
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विज्ञान के मुताबिक आयु के अलावाकुछ और कारक भी हैं जो अल्जाइमर्स रोग की वजह बन सकते हैं. इनमें अनुवांशिकी सबसे अहम है. यानी, अगर माता-पिता या पूर्वजों में अल्जाइमर्स रोग रहा हो तो व्यक्ति को इसके होने की संभावना हो जाती है. कुछ शोध बताते हैं कि हृदय रोगों से पीड़ित लोग भी डिमेंशिया और अल्जाइमर्स का शिकार होने की ज्यादा संभावना के साथ जीते हैं. मस्तिष्क पर चोट लगने से भी ऐसा हो सकता है.