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जापोरिझिया में हादसे से क्या चेर्नोबिल जैसा खतरा होगा

११ नवम्बर २०२२

निश्चित तौर पर ऐसा कहना संभव नहीं है कि किसी परमाणु संयंत्र में हुई दुर्घटना का उसके आस-पास के इलाकों में रहने वाले लोगों के स्वास्थ्य पर क्या प्रभाव पड़ता है, फिर भी विशेषज्ञों ने इस बारे में कुछ आशंकाएं जताई हैं.

Ukraine-Krieg Saporischschja Atomkraftwerk
तस्वीर: Konstantin Mihalchevskiy/SNA/IMAGO

ऐसे समय में जब यूक्रेन युद्ध के दौरान परमाणु हमले की धमकी की चर्चा हो रही है, तो लोगों के मन में मुख्य रूप से दो आशंकाएं उभरती हैं. पहली यह कि अगर यूक्रेन के परमाणु संयंत्रों पर हमला हो गया तो क्या होगा? और दूसरी यह कि यदि युद्ध के दौरान परमाणु हथियारों का इस्तेमाल हुआ तो क्या होगा?

इस लेख के लिए हमने विशेषज्ञों से इस बारे में बात की कि फुकुशिमा और चेर्नोबिल संयंत्रों में हुई दुर्घटनाओं ने आस-पास के लोगों के स्वास्थ्य को किस तरह से प्रभावित किया. साथ ही उनसे यह बताने को कहा गया कि ऐसी दुर्घटनाएं जापोरिझिया संयंत्र के खतरे के बारे में हमारी मौजूदा समझ को विकसित करने में कितनी मददगार हो सकती हैं.

इस श्रृंखला के अगले लेख में हम हिरोशिमा और नागासाकी में परमाणु बम धमाके से लोगों के स्वास्थ्य पर हुए प्रभाव की जानकारी देंगे. साथ ही, यह भी जानने की कोशिश होगी कि यदि आज के समय में युद्ध में परमाणु हथियारों का प्रयोग होता है तो उसका क्या असर होगा.

कब्जे में जापोरिझिया

यूक्रेन का जापोरिझिया परमाणु संयंत्र देश की दक्षिणी सीमा से ज्यादा दूर नहीं है. इस साल इसने युद्ध के दौरान भी चलते रहने का रिकॉर्ड बनाया और ऐसा करने वाला यह पहला परमाणु संयंत्र बन गया.

इस साल मार्च में जब से रूसी सेनाओं ने इस संयंत्र पर कब्जा किया है, तभी से पूरे यूरोप में लोग इसकी तुलना चेर्नोबिल परमाणु संयंत्रसे कर रहे हैं कि अगर 1986 की तरह यहां भी ऐसी कोई दुर्घटना होती है तो क्या होगा. चेर्नोबिल परमाणु संयंत्र में 1986 में हुई दुर्घटना परमाणु ऊर्जा के इतिहास की सबसे खौफनाक दुर्घटना है. इस हादसे के बाद चेर्नोबिल संयंत्र से निकले विकिरणों ने पूरे यूरोप को प्रभावित किया और इस इलाके में मनुष्यों के साथ-साथ पौधों और जानवरों को भी नुकसान पहुंचाया.

1986 के हादसे से पहले चेर्नोबिल से कुछ किलोमीटर दूर स्थित शहर प्रिपाटतस्वीर: Sean Gallup/Getty Images

इस दुर्घटना के तीन महीने के भीतर 30 से ज्यादा कर्मचारियों की मौत हो गई थी. साल 2003 में इस हादसे से स्वास्थ्य और पर्यावरण पर आए प्रभाव के अध्ययन के लिए संयुक्त राष्ट्र की एजेंसियों का एक समूह बना चेर्नोबिल फोरम. 2006 में फोरम ने एक रिपोर्ट प्रकाशित की जिसके मुताबिक इसकी वजह से आगे चलकर करीब चार हजार लोग कैंसर से मर गए. हालांकि इस आंकड़े को लेकर कई तरह के सवाल भी उठे.

चेर्नोबिल के स्वास्थ्य प्रभावों पर बहस

कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि आपदा के असली प्रभावों को उस वक्त सोवियत संघ के अधिकारियों ने छिपा लिया था ताकि उसकी भयावहता को कम करके दिखाया जा सके. इन विशेषज्ञों में मेसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी की प्रोफेसर केट ब्राउन भी हैं. उन्होंने 1986 में आपदा के बाद से ही यूक्रेन और आस-पास के लोगों के स्वास्थ्य पर इस दुर्घटना से निकले विकिरण के प्रभावों का काफी गहन अध्ययन किया है.

साल 2006 में ग्रीनपीस में प्रकाशित एक रिपोर्ट में शोधकर्ताओं ने अनुमान लगाया था कि इस दुर्घटना में मरने वालों की संख्या 90 हजार के करीब थी जो कि चेर्नोबिल फोरम रिपोर्ट के अनुमानों से करीब 23 गुना ज्यादा थी.

अमेरिका स्थित वैज्ञानिकों की एक संस्था न्यूक्लियर पॉवर सेफ्टी के निदेशक और भौतिकविज्ञानी एडविन लिमैन कहते हैं कि ‘मुझे नहीं लगता कि चेर्नोबिल फोरम रिपोर्ट आधिकारिक रिपोर्ट है.' 

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लिमैन कहते हैं कि फोरम की रिपोर्ट सिर्फ कैंसर से मरने वाले लोगों की संख्या पर आधारित है, वो भी पूर्व सोवियत संघ में. इस रिपोर्ट में यूरोप के दूसरे हिस्सों और उत्तरी गोलार्ध के अन्य इलाकों की आबादी को नजरअंदाज किया गया है. लिमैन कहते हैं कि संयुक्त राष्ट्र की एजेंसियों की ओर से चेर्नोबिल दुर्घटना के स्वास्थ्य प्रभावों पर वास्तविक रिपोर्ट 1988 में प्रकाशित हुई थी जिसमें इसके वैश्विक प्रभाव का अध्ययन किया गया था और इसके मुताबिक, रेडियेशन की वजह से हुए कैंसर के कारण करीब तीस हजार लोगों की जान गई.

वो कहते हैं, "मूल मुद्दा यह है कि कुछ लोग सवाल उठाते हैं कि विकिरण के निम्न स्तरीय एक्सपोजर कैंसर का कारण बनते हैं या नहीं, और दुनिया भर में विशेषज्ञों की सहमति इस बात पर है कि हां, ऐसा होता है. चेर्नोबिल फोरम की सोच इससे अलग है.”

चेर्नोबिल हादसे के बाद इलाके के मेंढकों का रंग ऐसे बदल गयातस्वीर: CC-by-Germán Orizaola/Pablo Burraco

वो कहते हैं कि ये निष्कर्ष दरअसल राजनीतिक दस्तावेज थे जिनमें बहुत ही सावधानीपूर्वक दुर्घटना के प्रभावों को कम से कम करके दिखाया गया था.

चेर्नोबिल दुर्घटना में बचने वाले लोगों पर किए गए अध्ययन बताते हैं कि ऐसे लोगों में थाइरॉयड कैंसर के मामले ज्यादा थे. दुर्घटना के कई दशक बाद, शोधकर्ताओं ने पूर्व सोवियत संघ के युवा लोगों में इसकी दर का पता लगाया जो अनुमान से तीन गुना ज्यादा थी. अध्ययन के मुताबिक, इस बढ़ोत्तरी के पीछे दूषित दूध का सेवन है.

लिमैन कहते हैं कि हालांकि कैंसर के खतरे से संबंधित कई विस्तृत अध्ययन साल 2000 के शुरुआती महीनों में प्रकाशित हुए थे जबकि चेर्नोबिल आपदा की वजह से कैंसर के बहुत से मामले तब तक दिखने शुरू नहीं हुए थे. बीस साल बाद, इन रिपोर्टों पर आगे कोई अध्ययन नहीं हुआ.

आपदा के स्वास्थ्य प्रभावों से संबंधित रिपोर्टों में दुर्घटना के आस-पास के इलाकों में आपदा की वजह से अवसाद और चिंता से संबंधित परेशानियों को भी रेखांकित किया गया है.

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फुकुशिमा से तुलना कहीं बेहतर है

लिमैन के मुताबिक, जापोरिझिया परमाणु संयंत्र में किसी भी संभावित दुर्घटना से होने वाला नुकसान साल 2011 में जापान के फुकुशिमा परमाणु संयंत्र में होने वाले नुकसान जैसा हो सकता है. उनके मुताबिक, "चेर्नोबिल दुर्घटना के जो परिणाम हुए थे, वैसे परिणामों की आशंका जापोरिझिया संयंत्र में कम है क्योंकि ये हल्के पानी (light water) के रिएक्टर हैं जो कि जर्मनी और अन्य पश्चिमी देशों के परमाणु संयंत्रों के रिएक्टरों की तरह हैं.”

फुकुशिमा परमाणु दुर्घटना किसी परमाणु संयंत्र में एकमात्र आपदा है जिसे अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी यानी आईएईए के इंटरनेशनल न्यूक्लियर इवेंट स्केल पर सात अंक दिए गए हैं. यह आपदा सुनामी और भूकंप की वजह से आई थी जिनके चलते संयंत्र में बिजली चली गई, तीन परमाणु संयंत्र नष्ट हो गए, हाइड्रोजन विस्फोट हुआ और बहुत ज्यादा विकिरण फैल गया.

आधिकारिक रिपोर्टों के मुताबिक, हालांकि सुनामी और भूकंप से कई लोगों की जान गई लेकिन परमाणु संयंत्र की वजह से सीधे किसी की भी मौत नहीं हुई. हां, विकिरण की वजह से लोग बीमार जरूर हुए लेकिन इसका सबसे बड़ा स्वास्थ्य प्रभाव लोगों पर मनोवैज्ञानिक स्तर पर पड़ा जब उन्हें वहां से निकाला गया था.

सूनामी में अपने मां बाप को खोने वाला शख्स श्रद्धांजलि देते हुएतस्वीर: Yuichi Yamazaki/Getty Images

अब, शोधकर्ताओं का कहना है कि फुकुशिमा आपदा का आस-पास के पर्यावरण पर बहुत ही मामूली प्रभाव पड़ा क्योंकि ज्यादातर विकिरण समुद्र में चला गया.

लिमैन कहते हैं, "जापोरिझिया वास्तव में जमीन से घिरा हुआ है, इसलिए ऐसा नहीं होगा. लेकिन, फिर भी यह उम्मीद की जा सकती है कि यहां से कम विकिरण निकलेगा और उसका प्रसार भी कम होगा.”

लिमैन आगे कहते हैं कि जापोरिझिया में किसी शक्तिशाली दुर्घटना के बाद विकिरण का स्तर इस बात पर भी निर्भर करेगा कि यह दुर्घटना तकनीकी कारणों से हो रही है या फिर युद्ध की वजह से. युद्ध की स्थिति में दुर्घटनाग्रस्त होने पर संयंत्र से विकिरण बहुत तेजी से निकलेगा. ऐसी स्थिति में परिणाम की भयावहता कुछ ऐसी होगी जिसे चेर्नोबिल और फुकुशिमा के परिणामों के बीच में रखा जा सकेगा.

वो कहते हैं, "मुझे लगता है कि चेर्नोबिल जैसी घटना की आशंका बहुत कम है जिसका प्रभाव जर्मनी पर हो. कुछ ना कुछ प्रभाव तो जरूर होंगे लेकिन 1986 में चेर्नोबिल जैसी स्थिति नहीं होने पाएगी.”

यूक्रेन के दूसरे रिएक्टरों को भी खतरा है

जापोरिझिया परमाणु संयंत्र ने लोगों का ध्यान इसलिए आकर्षित किया है क्योंकि यह यूक्रेन का एकमात्र परमाणु संयंत्र है तो प्रत्यक्ष तौर पर रूस के नियंत्रण में है. लेकिन लिमैन कहते हैं कि उन्हें यूक्रेन के दूसरे परमाणु संयंत्रों की भी चिंता है जो कि पुराने हैं. दुर्घटना की स्थिति में विनाशकारी प्रभाव के लिहाज से वो और भी संवेदनशील हो गए हैं.

वो कहते हैं, "यूक्रेन में तीन और परमाणु संयंत्र हैं और ये सभी पश्चिमी सीमा के नजदीक हैं. इसलिए ये मोर्चे से थोड़ा दूर हैं लेकिन अभी भी ये रूसी रॉकेट और ड्रोन की सीमा में हैं.”

उनके मुताबिक, हालांकि इनमें से कोई भी संयंत्र चेर्नोबिल के मॉडल का नहीं है और कुछ पुराने हल्के पानी वाले रिएक्टर हैं और इन्हें भी जापोरिझिया की तरह ही हमले से इतना नुकसान नहीं होने वाला है. वो कहते हैं, "यदि चीजें सुलझती हैं और इन पर हमला करना अधिक आसान हो जाता है तब ये पश्चिमी यूरोप के लिए कहीं ज्यादा चिंता का सबब होगा.”

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