जर्मनी में बेघरों की संख्या बेतहशा बढ़ी है. 2021 के मुकाबले 2022 में बेघर लोगों की संख्या में सीधे दोगुना उछाल दर्ज किया गया है.
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जर्मनी में बेघर लोगों की संख्या में बहुत ज्यादा बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है. नए आंकड़ों के मुताबिक 30 जून, 2022 तक बेघर लोगों की संख्या 4,47,000 रही. यह आंकड़े जर्मनी की फेडरल असोसिएशन फॉर होमलेस असिस्टेंस के हैं.
चौंकाने वाली बात यह है कि साल 2021 के मुकाबले यह संख्या दुगुनी हो चुकी है. उस समय 2,68,000 बेघर लोग थे. संस्था का कहना है कि इस बढ़त के पीछ कई कारण हैं, जिसमें यूक्रेनी रिफ्यूजी शामिल हैं क्योंकि उनके पास रहने को घर नहींहैं. बेघर जर्मन लोगों की संख्या में भी 5 फीसदी का इजाफा हुआ है लेकिन यह गैर-जर्मन लोगों से बहुत कम है. उनकी संख्या 118 फीसदी बढ़ी है.
क्यों हैं इतने लोग बेघर
बेघर होने की वजहें बहुत विविध हैं. आंकड़ों से पता चलता है कि गैर-जर्मन लोगों के पास जर्मनी के किसी भी इलाके में कभी कोई घर था ही नहीं. जर्मन नागरिकता रखने वाले बेघरों में से ज्यादातर को घरों से निकाल दिया गया.
दूसरा बड़ा कारण है मकान का किराया और ऊर्जा से जुड़े बिल, रिहायश को लेकर झगड़े या तलाक की वजह से अलग होना. होमलेस असिस्टेंस ऑफिस की प्रबंध निदेशक वेरेना रोजेंके कहती हैं कि महंगाई, बढ़ी कीमतें और ऊंचा किराया, लोगों की घरेलू आय पर गहरा असर डाल रहा है.
भूकंप से हुए बेघर, अब कैंपों में जिंदगी
6 फरवरी को आए भयानक भूकंप के कारण तुर्की और सीरिया में हजारों लोग बेघर हो गए हैं. वे अस्थायी शिविरों में रहने को मजबूर हैं. एक पल में लाखों लोगों की जिंदगी बदल गई. अब वे किस तरह से रह रहे हैं, देखिए इन तस्वीरों में.
तस्वीर: Nir Elias/REUTERS
स्टेडियम बन गया नया ठिकाना
26 साल के मोहम्मद ने तुर्की के कहमानरस शहर में स्थित स्टेडियम में एक टेंट में शरण ली है. भूकंप से मोहम्मद का घर तबाह हो गया. उन्होंने किसी तरह से अपने पालतू पक्षियों को बचाया. अब सभी इस कैंप में रह रहे हैं.
तस्वीर: Nir Elias/REUTERS
बच्चों को व्यस्त रखने का इंतजाम
तुर्की के इस्केंदरून शहर को भी भूकंप से भारी नुकसान पहुंचा है. सैकड़ों लोगों की जान चली गई कई बच्चे अनाथ हो गए हैं. हालांकि सभी बच्चों को व्यस्त रखकर दुख भुलाने की कोशिश की जा रही है. इस तस्वीर में बच्चे पेंटिंग कर रहे हैं.
तस्वीर: Eloisa Lopez/REUTERS
छोटे कंधों पर बड़ी जिम्मेदारी
पश्चिमोत्तर सीरिया के जबलेह जिले का रहने वाला यह बच्चा राहत कैंप से अपने परिवार के लिए रोटी लेकर जाता हुआ. यहां साफ पानी और भोजन की दिक्कत है.
तस्वीर: Amr Alfiky/REUTERS
स्कूल ही अब घर है
सीरिया के लताकिया के शरणार्थियों को रेफत दाहो स्कूल में पनाह दी गई है, तस्वीर में उस स्कूल के सामने का दृश्य.
तस्वीर: Amr Alfiky/REUTERS
उदास चेहरे पर खुशी के रंग
बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए उन्हें तरह-तरह से खुश रखने की कोशिश की जा रही है. तुर्की के उस्मानिये में एक महिला बच्चे के गाल पर तस्वीर बनाकर उसे खुश करने की कोशिश कर रही है.
तस्वीर: Suhaib Salem/REUTERS
अल्लाह से मदद की गुहार
तुर्की और सीरिया में कई लोग धीरे-धीरे सामान्य जीवन की ओर लौटने की कोशिश कर रहे हैं. तुर्की के आदियामन शहर में शुक्रवार को सैकड़ों लोग नमाज अदा करते नजर आए.
तस्वीर: Thaier Al-Sudani/REUTERS
खुश करने वाली थाली
कहमानरस में एक छोटा सा बच्चा राहत शिविर में भोजन की थाली लेने के बाद परिवार के पास लौटता हुआ. भूकंप के बाद हजारों लोगों को स्टेडियम में ही रखा गया है.
तस्वीर: Suhaib Salem/REUTERS
दुख भुलाने के लिए थोड़ा मनोरंजन
इस्केंदरून में हजारों भूकंप पीड़ित इन्हीं कैंपों में रह रहे हैं. उनके बच्चों के मनोरंजन के लिए झूले लगाए गए हैं.
तस्वीर: Eloisa Lopez/REUTERS
राशन के लिए लंबी लाइन
यह तस्वीर भी तुर्की के इस्केंदरून शहर की है. यहां लोगों को खाने पीने का सामान मुफ्त में दिया जा रहा है. जिनके पास जरूरी सामान नहीं हैं वे लंबी कतारों में अपनी बारी का इंतजार कर रहे हैं.
तस्वीर: Eloisa Lopez/REUTERS
पढ़ाई भी जरूरी
तस्वीर में दिख रही ये दोनों बच्चियां सीरिया से आई हैं और उन्होंने तुर्की के कहमानरस में एक शरणार्थी शिविर में शरण ली हैं. वे कैंप में अपनी पढ़ाई में व्यस्त दिख रही हैं.
तस्वीर: Eloisa Lopez/REUTERS
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यह गरीबी, किराया देने में चूक और बेघर होने की वजह बनता है. वह कहती हैं, खासतौर पर कमजोर समुदायों में कम आय वाले अकेले रहने वाले लोग, सिंगल पेरेंट या कई बच्चों वाले पति-पत्नी हैं.
इन आंकड़ों में ना सिर्फ उन लोगों को शामिल किया गया है जो आपातकालीन शेल्टर जैसे किसी संस्था के जरिए सिर छिपाने की जगह पाते हैं बल्कि वो भी शामिल हैं जो दोस्तों और परिवारों के साथ अस्थायी तौर पर रहने की व्यवस्था करते हैं या फिर जिनके पास बिल्कुल ही रहने की कोई जगह नहीं है. यानी वह लोग जो सड़कों पर जिंदगी गुजार रहे हैं.
दुनिया भर में बेघरों का हाल
पूरी दुनिया में बेघर लोगों की समस्या बहुत गहरी है और लगातार खराब ही होती जा रही है. इसमें दो राय नहीं है कि बेघर जिंदगी बिताना, रहने की सुरक्षित जगह का अभाव, बुनियादी मानवाधिकार का उल्लंघन है.
बेघरों, खासकर महिलाओं के लिए यह ज्यादा खतरनाक साबित होता है क्योंकि यह स्थिति उन्हें हाशिए पर धकेल कर भेदभाव और अपराध झेलने को मजबूर करती है. घर के अभाव में युवा महिलाएं और लड़कियां, यौन हिंसा और तस्करी के खतरे में जीती हैं.
आवास संकट से जूझता गजा, कब्रिस्तान में रहने को मजबूर लोग
गजा पट्टी में रहने वालों के पास मृतकों के लिए कब्रों की कमी है और यहां आवास का भी संकट बढ़ता जा रहा है. कई लोग कब्रिस्तानों में घर बनाकर रहने को मजबूर हैं.
तस्वीर: Mohammed Salem/REUTERS
कब्रिस्तान में ही घर
शेख शाहबान कब्रिस्तान में कामिलिया कुहैल का परिवार रहता है. यह कब्रिस्तान इलाके का सबसे पुराना कब्रिस्तान है. घर को कुहैल के पति ने बनाया है और वह दो अनजान लोगों की कब्र पर खड़ा है.
तस्वीर: Mohammed Salem/REUTERS
शहर में रहने के लिए जगह नहीं
कुहैल के पति ने कब्रिस्तान में रहने की व्यवस्था की क्योंकि उनके पास रहने के लिए और कोई जगह नहीं थी. जब कुहैल से यह पूछा गया कि कब्रिस्तान में रहना कैसा लगता है, तो उन्होंने कहा, "अगर मुर्दे बोल पाते तो हमसे कहते- यहां से चले जाओ!"
तस्वीर: Mohammed Salem/REUTERS
13 साल से यही है ठिकाना
कुहैल के परिवार में पति और छह बच्चे हैं. पूरा परिवार पिछले 13 सालों से यहीं रहने को मजबूर है.
तस्वीर: Mohammed Salem/REUTERS
कब्रों के बीच रहते हुए देखते हैं सपना
कुहैल के चार बच्चे कब्रिस्तान से स्कूल जा रहे हैं. वे पढ़ना चाहते हैं और आगे चलकर अच्छी कमाई भी करना चाहते हैं. कुहैल के बच्चे शव को दफनाने के वक्त पानी पहुंचाकर कुछ कमा लेते हैं.
तस्वीर: Mohammed Salem/REUTERS
गजा में भूमि संकट
कुहैल जैसे कई लोग अब कब्रिस्तानों में रहने को मजबूर हैं. गजा में संघर्ष के चलते बहुत से लोग विस्थापित होते हैं. ऐसे लोगों के लिए फिर से घर बनाना, संघर्ष में मारे गए लोगों को दफनाना अब एक बड़ी चुनौती है.
तस्वीर: Mohammed Salem/REUTERS
14 हजार आवास की जरूरत
गजा के उप आवास मंत्री नाजी सरहान ने कहा कि गजा पट्टी में आवास की समस्या को हल करने के लिए कम से कम 14,000 घरों के निर्माण करने की जरूरत है.
तस्वीर: Mohammed Salem/REUTERS
कब्रिस्तान भी जरूरी है
जगह की कमी के कारण गजा में कुल 24 कब्रिस्तान बंद कर दिए गए हैं. शेख रदवान कब्रिस्तान के गार्ड खालिद हिजाजी ने बताया कि कुछ पुराने कब्रिस्तान बंद हैं तो कई लोग अपने मृत रिश्तेदारों को घरों के पास बंद कब्रिस्तान में जबरन दफना रहे हैं.
तस्वीर: Mohammed Salem/REUTERS
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यह स्थिति स्वास्थ्य सुविधाओं तक पहुंच को तो कम करती ही है, सड़क पर रहने का मतलब है गरीबी, बेरोजगारी और अशिक्षा की दीवारों के बीच घिर जाना.
2011 की भारतीय जनगणना के मुताबिक, 17 लाख भारतवासियों के सिर पर छत नहीं है जिसमें से 9,38,384 शहरी इलाकों में रहते हैं. यह संख्या कितनी सही है इस पर बहस कभी थमती नहीं लेकिन आंकड़े बेहद निराशाजनक हैं, इससे इंकार मुमकिन नहीं.
भारत का सबसे अफोर्डेबल शहर कौन सा है
प्रॉपर्टी कंसल्टेंसी नाइट फ्रैंक के अफोर्डेबिलिटी सूचकांक में 2030 तक भारत में अफोर्डेबल हाउसिंग की मांग और संभावनाओं का ताजा मूल्यांकन किया गया है. जानिये भारत का कौन सा शहर है सबसे ज्यादा अफोर्डेबल.
तस्वीर: Amit Dave/REUTERS
सबसे महंगा शहर
इस सूचकांक में किसी शहर में एक परिवार की औसत आमदनी के मुकाबले वहां होम लोन की ईएमआई के लिए कितनी रकम चुकानी पड़ती है इस आधार पर शहरों की रैंकिंग की गई है. इस लिहाज से मुंबई को सबसे महंगा हाउसिंग मार्केट पाया गया.
तस्वीर: Francis Mascarenhas/REUTERS
जरा हट के, जरा बच के
मुंबई के लिए ईएमआई और आमदनी का अनुपात 55 प्रतिशत पाया गया, यानी शहर में एक औसत परिवार की कमाई का आधे से ज्यादा हिस्सा ईएमआई चुकाने में चला जाता है. 50 प्रतिशत से ऊपर के अनुपात को अनअफोर्डेबल माना जाता है, क्योंकि इससे ज्यादा अनुपात की स्थिति में बैंक लोन नहीं देते हैं.
तस्वीर: Francis Mascarenhas/REUTERS
दूसरा सबसे महंगा शहर
सूचकांक में हैदराबाद को दूसरे सबसे महंगे शहर का स्थान दिया गया है. यहां ईएमआई से आमदनी का अनुपात 31 प्रतिशत है. सूचकांक में होम लोन की अवधि 20 साल मानी गई है.
तस्वीर: DW
राजधानी की कहानी
तीसरे स्थान पर है दिल्ली एनसीआर, जहां आपको एक मकान का मालिक बनने के लिए ईएमआई पर अपनी आमदनी का 30 प्रतिशत खर्च करना पड़ता है. सूचकांक में माना गया है कि मकान के मूल्य के 80 प्रतिशत के बराबर लोन लिया गया होगा.
तस्वीर: Charu Kartikeya/DW
चेन्नई, पुणे, कोलकाता में थोड़ी राहत
28 प्रतिशत अनुपात के साथ सूचकांक में चौथे नंबर पर है चेन्नई. 26 प्रतिशत अनुपात के साथ पुणे और कोलकाता को पांचवां स्थान हासिल हुआ है. सूचकांक में सभी शहरों में मकानों का साइज एक जैसा ही माना गया है.
तस्वीर: Dipayan Bose/ZUMA Wire/IMAGO
सबसे अफोर्डेबल शहर
इस सूचकांक में सबसे अफोर्डेबल शहर पाया गया अहमदाबाद. शहर में एक औसत परिवार को ईएमआई पर अपनी आय का 23 प्रतिशत खर्च करना पड़ता है, जो बाकी शहरों से काफी कम है.