जॉन्स हॉपकिंस के ताजा आंकड़ों के मुताबिक अमेरिका में पिछले 24 घंटों में कोरोना से लगभग 2,000 लोगों की मौत हो गई है. इसी दौरान देश में 33,331 नए मामले सामने आए हैं. संक्रमितों की संख्या 4 लाख के आंकड़े के करीब पहुंच गई.
विज्ञापन
अमेरिका के न्यू यॉर्क शहर का कोरोना वायरस की वजह से सबसे बुरा हाल है. यहां इस महामारी ने अब तक 4009 लोगों की जान ले ली है और यह संख्या लगातार बढ़ रही है. कोरोना वायरस से मरने वालों की तुलना 11 सितंबर 2001 को शहर में हुए आतंकी हमलों में मारे गए लोगों से भी कहीं अधिक है. वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हुए आतंकी हमले में 2,753 लोग मारे गए थे. अमेरिकी धरती पर हुए सबसे खतरनाक आतंकी हमलों में कुल 2,977 लोगों की मौत हुई थी. आतंकियों ने विमानों को हाईजैक कर न्यू यॉर्क, पेंटागन और पेनसिल्वेनिया में हमला किया था. इन आतंकी हमलों की तुलना में कोरोना वायरस से सिर्फ न्यू यॉर्क शहर में एक हजार से अधिक लोगों की मौत हुई है. यानि आतंकी हमलों में जहां देश भर में कुल 2,977 लोगों की मौत हुई थी वहीं सिर्फ न्यू यॉर्क में इस घातक बीमारी से अब तक 4009 लोगों की जान चली गई है.
मंगलवार 7 अप्रैल को न्यू यॉर्क में 731 लोगों की मौत दर्ज की गई, जो कि एक दिन में सबसे तेज उछाल है. न्यू यॉर्क के गवर्नर एंड्र्यू कुओमो ने इसकी पुष्टि की है. उन्होंने कहा, "न्यू यॉर्क के लोगों के लिए आज फिर दुख भरा दिन." हालांकि उन्होंने कहा है कि अस्पताल में भर्ती होने वाले नए मरीजों की संख्या में कमी आई है. उन्होंने कहा है कि सोशल डिस्टैंसिंग का असर भी सकारात्मक रहा है. पूरे अमेरिका की बात की जाए तो कोरोना वायरस की वजह से मौत का आंकड़ा 13,000 के करीब पहुंच गया और देश में 4,00,000 लोगों में संक्रमण की पुष्टि हो चुकी है.
कोरोना वायरस के 1 से 11 लाख इंसान तक पहुंचने का सफर
दिसंबर 2019 में कोरोना वायरस के पहले मामले की पुष्टि के बाद अब यह महामारी अब पूरी दुनिया में फैल चुकी है. 60 हजार से ज्यादा लोग मारे गए हैं और 11 लाख से ज्यादा संक्रमित हैं. वैज्ञानिक वैक्सीन की खोज में जुटे हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/SOPA Images/A. Marzo
वुहान में न्यूमोनिया जैसा वायरस (31 दिसंबर 2019)
चीन ने विश्व स्वास्थ्य संगठन को करीब 1.1 करोड़ की आबादी वाली वुहान शहर के लोगों को सांस में दिक्कत का संक्रमण होने की जानकारी दी. मूल वायरस का पता नहीं था लेकिन दुनिया भर के रोग विशेषज्ञ इसकी पहचान करने में जुट गए. आखिरकार शहर के सीफूड मार्केट से इसके निकलने का पता चला जो तुरंत ही बंद कर दिया गया. शुरुआत में 40 लोगों के इससे संक्रमित होने की रिपोर्ट दी गई.
तस्वीर: Imago Images/UPI Photo/S. Shaver
चीन में पहली मौत (11 जनवरी)
11 जनवरी 2020 को चीन ने कोरोना वायरस के कारण पहले मरीज़ की मौत की घोषणा की. 61 साल का एक शख्स वुहान के बाजार में खरीदारी करने गया था. न्यूमोनिया जैसी समस्या के चलते उसकी मौत हुई. वैज्ञानिकों ने सार्स और आम सर्दी की तरह कोरोना वायरस के परिवार में एक नए वायरस की पहचान की. तब उसे 2019 nCoV नाम दिया गया. इसके लक्षणों में खांसी, बुखार और सांस लेने में तकलीफ शामिल थे..
तस्वीर: Reuters/Str
पड़ोसी देशों में पहुंचा वायरस (20 जनवरी)
बाद के दिनों में यह वायरस थाईलैंड और जापान तक पहुंच गया क्योंकि इन देशों के लोग वुहान के उसी बाजार में गए थे. चीन के उसी शहर में दूसरी मौत की पुष्टि हुई. 20 जनवरी तक चीन में 3 लोगों की मौत हो चुकी थी और 200 से ज्यादा लोग इस वायरस की चपेट में आ चुके थे.
तस्वीर: Reuters/Kim Kyung-Hoon
करोड़ों लोग तालाबंदी में (23 जनवरी)
चीन ने वायरस को फैलने से रोकने के लिए वुहान में 23 जनवरी को तालाबंदी कर दी. सार्वजनिक परिवहन बंद कर दिया गया और संक्रमित लोगों के इलाज के लिए रिकॉर्ड समय में एक नया अस्पताल बना दिया गया. तब तक संक्रमित लोगों की संख्या 830 पर पहुंच चुकी थी. 24 जनवरी तक चीन में मरने वालों की तादाद 26 पर पहुंच गई. अधिकारियों ने 13 और शहरों में तालाबंदी करने का फैसला किया. 3.6 करोड़ से ज्यादा लोग घरों में कैद हो गए.
तस्वीर: AFP/STR
दुनिया के लिए हेल्थ इमर्जेंसी?
चीन से बाहर दक्षिण कोरिया, अमेरिका, नेपाल, थाईलैंड, हांगकांग, सिंगापुर, मलेशिया और ताइवान में नए नए मामले सामने आने लगे. मामले बढ़ रहे थे लेकिन विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 23 जनवरी को कहा कि इसे दुनिया के लिए सार्वजनिक हेल्थ इमर्जेंसी कहना अभी जल्दबाजी होगी.
तस्वीर: Getty Images/X. Chu
कोरोना वायरस पहुंचा यूरोप (24 जनवरी)
24 जनवरी को फ्रांस के अधिकारियों ने देश की सीमा में कोरोना वायरस के तीन मामलों की पु्ष्टि की. इसके साथ ही कोरोना वायरस यूरोप पहुंच गया. इसके कुछ ही घंटे बाद ऑस्ट्रेलिया ने भी पुष्टि की कि चार लोग सांस पर असर डालने वाले वायरस से संक्रमित हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/S. Mortagne
जर्मनी में पहले मामले की पुष्टि (27 जनवरी)
27 जनवरी को जर्मनी ने कोरोना वायरस के पहले मामले की पुष्टि का एलान किया. बवेरिया राज्य में 33 साल का एक शख्स बाहर से आए चीनी सहकर्मी के साथ ट्रेनिंग के दौरान इस वायरस की चपेट में आया. उसे म्युनिख के अस्पताल में क्वारंटीन कर दिया गया. इसके अगले ही दिन उसके तीन और सहकर्मियों में भी वायरस की पुष्टि हुई. तब तक चीन में मरने वालों की तादाद 132 हो गई थी और दुनिया भर में 6000 लोग संक्रमित हुए थे.
तस्वीर: Reuters/A. Uyanik
डब्ल्यूएचओ ने ग्लोबल हेल्थ इमर्जेंसी घोषित की (30 जनवरी)
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 30 जनवरी को कोरोना वायरस के चलते सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल की घोषणा की और "कमजोर स्वास्थ्य सेवाओं" वाले देशों को बचाने के लिए गुहार लगाई. डब्ल्यूएचओ के महासचिव टेड्रोस अधानोम गेब्रेयेसुस ने तब भी कारोबार और यात्रा प्रतिबंधों का समर्थन नहीं किया. उनका कहना था कि इससे "अनावश्यक व्यवधान" होगा.
तस्वीर: picture-alliance/KEYSTONE/J.-C. Bott
चीन के बाहर पहली मौत (2 फरवरी)
कोरोना वायरस के कारण चीन से बाहर पहली मौत फिलीपींस में 2 फरवरी को ुई. 44 साल का एक शख्स चीन के वुहान से मनीला आया था. यहां आने के बाद वह बीमार हुआ जिसके बाद उसे अस्पताल में भर्ती कराया गया. बाद में वह न्युमोनिया से मर गया.
तस्वीर: Getty Images/AFP/T. Aljibe
क्रूज यात्रियों का संकट (3 फरवरी)
3 फरवरी को डायमंड प्रिंसेस क्रूज जहाज को जापान के योकोहामा तट पर क्वारंटीन कर दिया गया क्योंकि जहाज पर सवार यात्रियों में कोरोना के नए मामले सामने आए. 17 फरवरी तक जहाज पर 450 लोग इसकी चपेट में आ गए और चीन से बाहर वायरस संक्रमित लोगों की यह तब सबसे बड़ी जमात बन गयी उसके बाद क्रूज पर सवार 3700 से ज्यादा यात्रियों और चालक दल के सदस्यों को विमान से उनके देश भेजा गया.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/kyodo
इटली में क्वारंटीन (8 मार्च)
इटली में कोरोना वायरस के मामले और लोगों की मौत की संख्या तेजी से बढ़ने लगी. 3 मार्च तक यहां 1000 से ज्यादा लोग संक्रमित थे और 77 लोगों की जान गई थी. इसके बाद कई देशों ने उत्तरी इटली जाने पर रोक लगा दी और वहां सैलानियों की संख्या एकदम से घट गई. 8 मार्च को पूरे लॉम्बार्डी क्षेत्र को क्वारंटीन कर दिया गया. 10 मार्च को इटली में 168 लोगों की जान गई जो एक दिन में किसी एक देश के लिए सबसे ज्यादा थी.
तस्वीर: Reuters/R. Casilli
आर्थिक चिंता (10 मार्च)
6 मार्च को अमेरिका और यूरोपीय शेयर बाजार औंधे मुंह गिर गए जिससे 2008 के बाद आर्थिक क्षेत्र के लिए सबसे बुरे सप्ताह का आगाज हुआ. पूरे दुनिया के कारोबार पर इसका असर हुआ और कई कंपनियों ने घाटा होने की बात कही. सबसे बुरा असर पर्यटन क्षेत्र और एयरलाइनों पर पड़ा. यूरोपीय संघ ने 7.5 अरब यूरो के राहत फंड का एलान किया ताकि यूरोजोन में मंदी को रोका जा सके.
तस्वीर: picture-alliance/Jiji Press/M. Taguchi
महामारी की घोषणा (11 मार्च)
दुनिया भर में कोरोना वायरस के मामले 1 लाख 27 हजार को पार कर गए तो डब्ल्यूएचओ ने 11 मार्च को इसे महामारी का दर्जा दे दिया. अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने यूरोप के शेंगेन इलाके से अमेरिका आने वालों पर पाबंदी लगा दी. जर्मन चांसलर ने कहा कि 70 फीसदी से ज्यादा जर्मन लोग इसकी चपेट में आ सकते हैं.
तस्वीर: picture-alliance/Photoshot
यूरोप में रुका सार्वजनिक जीवन (14 मार्च)
14 मार्च को स्पेन ने इटली की राह पर चलते हुए पूरे देश में तालाबंदी की घोषणा कर दी ताकि वायरस के फैलाव को रोका जा सके. 4.6 करोड़ लोगों को बिना किसी जरूरी काम के घर से बाहर निकलने से रोक दिया गया. फ्रांस में कैफे, रेस्तरां और गैर जरुरी दुकानें 15 मार्च तक के लिए बंद कर दी गईं. जर्मनी में कई सार्वजनिक कार्यक्रम रद्द हो गए और स्कूलों को बंद कर दिया गया.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/AAB. Akbulut
अंतरराष्ट्रीय यात्रा पर पाबंदियां (15 मार्च)
15 मार्च तक कई देशों ने कई तरह की यात्रा पाबंदियों का एलान कर दिया. न्यूजीलैंड और ऑस्ट्रेलिया ने सभी अंतरराष्ट्रीय यात्रियों के लिए देश में आने के बाद 14 दिन का क्वारंटीन जरूरी कर दिया. भारत ने भी कई देशों से आने वाले यात्रियों पर इस तरह की पाबंदियां लगाई. अमेरिका ने यूरोपीय देशों के लिए लगाए यात्रा प्रतिबंधों में ब्रिटेन और आयरलैंड को भी शामिल कर दिया.
तस्वीर: picture-alliance/Photoshot
भारत में जनता कर्फ्यू और जर्मनी में आंशिक तालाबंदी (22 मार्च)
भारत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कहने पर पूरे देश में 22 मार्च को एक दिन के लिए जनता कर्फ्यू लगाया गया. तब तक जर्मनी ने भी देश में आंशिक रूप से तालाबंदी का एलान कर दिया. जर्मनी में एक घर के दो से ज्यादा लोगों को काम की जगह के अलावा कहीं और जमा होने पर रोक लगा दी गई. जर्मनी में बड़ी संख्या में लोग संक्रमित हुए हैं मगर मरने वालों की तादाद काफी कम है.
तस्वीर: picture-alliance/EibnerT. Hahn
ब्रिटेन में भी तालाबंदी (23 मार्च)
23 मार्च को ब्रिटेन लोगों की निजी आजादी पर पाबंदी लगाने वाले देशों में शामिल हुआ जब लोगों को कुछ खास कामों के लिए ही घर से बाहर जाने की छूट देने की घोषणा की गई. प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन खुद कोविड-19 की चपेट में आ गए और साथ ही शाही तख्त के दावेदार प्रिंस चार्ल्स भी. इस बीच यह भी शिकायतें आईं कि लोग सामाजिक दूरी को गंभीरता से नहीं ले रहे.
तस्वीर: picture-alliance/R. Pinney
सबसे बड़ी तालाबंदी (24 मार्च)
कोरोना वायरस के कारण दुनिया की सबसे बड़ी तालाबंदी 24 मार्च को तब शुरू हुई जब भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूरे देश में 21 दिनों के लिए तालाबंदी करने का एलान किया. यह तब तक दुनिया में लगाई गई सबसे बड़ी तालाबंदी थी क्योंकि 130 करोड़ लोग एक झटके में अपने घरों में बंद हो गए.
तस्वीर: Imago/A. Das
अमेरिका कोरोना में सबसे आगे (27 मार्च)
27 मार्च को अमेरिका कोरोना से संक्रमम के मामले में चीन और इटली से भी से आगे निकल गया और सबसे ज्यादा संक्रमित लोगों का देश बन गया. यह तब हुआ जब राष्ट्रपति ट्रंप एलान कर रहे थे कि वो बहुत जल्द देश को कोरोना से मुक्त करा लेंगे. इसके बाद खबर आई कि अमेरिका में 66 लाख लोगों ने बेरोजगारी भत्ते के लिए आवेदन किया है जो एक रिकॉर्ड है.
तस्वीर: picture-alliance/Photoshot/J. Fischer
स्पेन में बढ़ता मौत का आंकड़ा (30 मार्च)
30 मार्च को कोरोना से संक्रमित लोगों की संख्या के मामले में स्पेन ने भी चीन को पीछे छोड़ दिया. यह हालत तब हुई जबकि बहुत पहले ही देश में कठोर तालाबंदी लागू कर दी गई थी. सभी गैर जरूरी कामों को रोक दिया गया. मौत के मामले में स्पेन के आगे सिर्फ इटली है.
तस्वीर: picture-alliance/Geisler-Fotopress
10 लाख से ज्यादा मरीज (2 अप्रैल)
जॉन्स हॉपकिंस यूनिवर्सिटी ने गुरुवार को एलान किया कि अब पूरी दुनिया में 10 लाख से ज्यादा कोरोना वायरस के मामले हो गए हैं. अमेरिका फिलहाल सबसे ज्यादा प्रभावित है जहां इटली, चीन और स्पेन के कुल मरीजों से ज्यादा मरीज हैं. यही नहीं एक दिन में सबसे ज्यादा लोगों के मरने का रिकॉर्ड भी अब अमेरिका के नाम हो गया है. गुरुवार से शुक्रवार के बीच यहां 1500 से ज्यादा लोगों की मौत हुई.
तस्वीर: Reuters/J. Redmond
21 तस्वीरें1 | 21
डब्ल्यूएचओ से नाराज ट्रंप
अमेरिका के राष्ट्रपति डॉनाल्ड ट्रंप ने विश्व स्वास्थ्य संगठन पर अपनी नाराजगी जाहिर करते कहा है कि वे इसकी फंडिंग पर रोक लगा रहे हैं. ट्रंप ने डब्ल्यूएचओ पर कोरोना वायरस के हर पहलू को छिपाने और चीन-केंद्रित होने का आरोप लगाया. ट्रंप ने व्हाइट हाउस में अपने नियमित संवाददाता सम्मेलन में कहा, ‘‘हम डब्ल्यूएचओ पर खर्च की जाने वाली राशि पर रोक लगाने जा रहे हैं. हम इस पर बहुत प्रभावशाली रोक लगाएंगे.''
दरअसल डब्ल्यूएचओ ने कोरोना वायरस को लेकर कुछ तथ्यों पर चीन की तारीफ की थी. इसी वजह से ट्रंप फंडिंग पर रोक लगाने की बात कर रहे हैं. ट्रंप ने आगे कहा, "उनको मिलने वाले वित्त पोषण का अधिकांश या सबसे बड़ा हिस्सा हम उन्हें देते हैं. जब मैंने यात्रा प्रतिबंध लगाया था तो वह उससे सहमत नहीं थे और उन्होंने उसकी आलोचना की थी. वे गलत थे. वे कई चीजों के बारे में गलत रहे हैं. उनके पास पहले ही काफी जानकारी थी और वे काफी हद तक चीन-केंद्रित लग रहे हैं.''
डब्ल्यूएचओ के चीन-केंद्रित होने के ट्रंप के आरोप पर संगठन ने अब तक कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी है. हालांकि ट्रंप की पहले ही कोरोना वायरस के प्रकोप को कम आंकने पर आलोचना हो चुकी है.
एए/सीके (रॉयटर्स, एएफपी)
क्या मलेरिया की दवा से ठीक होता है कोरोना?
डॉनल्ड ट्रंप ने भारत से मलेरिया की दवा हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन मंगाई थी. लेकिन क्या यह दवा वाकई कोविड-19 का इलाज कर सकती है?
तस्वीर: Reuters/F. Grulovic
किस दवा की बात हो रही है?
डॉनल्ड ट्रंप भारत से जो दवा मंगाना चाहते हैं उसका नाम है हाइड्रॉक्सी-क्लोरोक्वीन. 1940 के दशक से इस दवा का इस्तेमाल मलेरिया का इलाज करने के लिए होता रहा है.
तस्वीर: AFP/G. Julien
मलेरिया और कोरोना का क्या नाता है?
मलेरिया मच्छर के काटने से होता है और कोविड-19 वायरस से. इसलिए दोनों का एक दूसरे से कोई लेना देना नहीं है. ऐसा नहीं है कि जिन लोगों को मलेरिया का खतरा ज्यादा होता है उन्हें कोविड-19 का खतरा भी होगा.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/P. Pleul
कोरोना के लिए मलेरिया की दवा क्यों?
हाइड्रॉक्सी-क्लोरोक्वीन का इस्तेमाल मलेरिया के अलावा ऑटो-इम्यून बीमारियों को ठीक करने के लिए भी होता रहा है. कोरोना वायरस शरीर के इम्यून सिस्टम पर हमला करता है. इसलिए इस दवा से इम्यून सिस्टम को बचाने की बात हो रही है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/AP/NIAID-RML
क्या अमेरिका के पास नहीं है यह दवा?
ऐसी रिपोर्टें हैं कि अमेरिका में यह दवा पहले से ही भारी मात्रा में मौजूद है लेकिन डॉनल्ड ट्रंप इसे स्टॉक करना चाह रहे हैं. अमेरिका में बिना डॉक्टर की पर्ची के भी यह दवा खरीदी जा सकती है लेकिन इस बीच आम लोग इसे नहीं खरीद पा रहे हैं.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/E. Vucci
डॉक्टरों का क्या कहना है?
खुद अमेरिका में ही डॉक्टरों की राय इस पर बंटी हुई है. ट्रंप के समर्थक इसे आजमाने की पैरवी कर रहे हैं लेकिन अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन की अध्यक्ष का कहना है कि वे इसके इस्तेमाल की सलाह नहीं देंगी.
तस्वीर: Imago Images/Panthermedia/Kzenon
रिस्क क्या है?
इस दवा का साइड इफेक्ट होने पर दिल पर बुरा असर पड़ सकता है. ब्लड प्रेशर कम हो सकता है, मांसपेशियों और नसों को नुकसान हो सकता है. सीने में दर्द के साथ साथ धड़कनें कम हो सकती हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/imageBROKER
क्या पहले कभी इस्तेमाल हुई है?
राजस्थान में डॉक्टरों ने स्वाइन फ्लू, मलेरिया और एचआईवी की दवाओं को मिला कर इस्तेमाल किया और उन्हें सफलता मिली. हालांकि इस मिश्रण के बाकी मरीजों पर इस्तेमाल की बात सामने नहीं आई है.
तस्वीर: picture-alliance/NurPhoto/R. Shukla
कहां से आया दवा के इस्तेमाल का आइडिया?
किसी भी दवा को मरीजों पर तब ही इस्तेमाल किया जाता है जब लैब में उस पर टेस्ट हो चुके हों. इस दवा के मामले में भी ऐसा ही है. कुछ ऐसे टेस्ट हुए जिनके परिणाम आशाजनक दिखाई दिए.
तस्वीर: Reuters/F. Grulovic
रिसर्च क्या कहती है?
एक रिसर्च ने दिखाया कि इस दवा के सेवन से कोरोना वायरस का शरीर की कोशिकाओं में प्रवेश करना मुश्किल हो जाता है. एक अन्य रिसर्च के अनुसार इस दवा लेने से मरीजों को कोई फायदा नहीं हुआ. लेकिन यह रिसर्च सिर्फ 11 लोगों पर की गई.
तस्वीर: picture-alliance/PantherMedia
क्या ज्यादा लोगों पर भी हुई रिसर्च?
चीन में हुई एक रिसर्च ने दिखाया कि 10 अस्पतालों में कुल 100 मरीजों को जब यह दवा दी गई तो उनकी तबियत में सुधार आया. लेकिन तुलना करने के लिए इस रिसर्च में ऐसे मरीजों का कोई आंकड़ा नहीं था जिन्हें यह दवा नहीं दी गई.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/Hao Yuan
ट्रंप ने कौन सी रिसर्च पढ़ी?
डॉनल्ड ट्रंप ने कहा है, "फ्रांस में उन्होंने (रिसर्चरों ने) एक बहुत अच्छा टेस्ट किया है." इसी को आधार बनाते हुए उन्होंने अमेरिका में इसके इस्तेमाल की अनुमति दी है.
तस्वीर: picture-alliance/O. Contreras
कितनी विश्वसनीय है फ्रांस की रिसर्च?
मार्च में जब फ्रांस में कोरोना वायरस फैलने लगा तब वहां कुछ रिसर्चरों ने हाइड्रॉक्सी-क्लोरोक्वीन पर शोध शुरू किया. इस शोध पर अमेरिकी चैनल फॉक्स न्यूज पर हुई चर्चा के तुरंत बाद ट्रंप ने इसकी तारीफ शुरू कर दी.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/empics/C. Ball
WHO का क्या कहना है?
विश्व स्वास्थ्य संगठन इस वक्त कोरोना वायरस पर छह अलग अलग दवाओं को टेस्ट कर रहा है. इस वायरस को ले कर जल्दी प्रतिक्रिया ना देने को लेकर WHO की काफी आलोचना हो रही है.
तस्वीर: Getty Images/AFP
अब आगे क्या?
कोरोना स्थिति को देखते हुए अमेरिका समेत कई देश लैब टेस्टिंग का इंतजार नहीं करना चाहते हैं. ऐसे में बहुत मुमकिन है कि मौजूदा मरीजों पर ही ट्रायल एंड एरर किया जाएगा और शायद उसके बाद ही पता चलेगा कि दवा कारगर है या नहीं.