न्यूजीलैंड की प्रधानमंत्री जेसिंडा आर्डर्न ने एपेक देशों की एक ऐतिहासिक बैठक बुलाई है. रूस और अमेरिका भी इस वर्चु्अल बैठक में हिस्सा लेंगे, जो ट्रंप-काल में आई रुकावटों के दूर होने का संकेत है.
विज्ञापन
न्यूजीलैंड की प्रधानमंत्री जेसिंडा आर्डर्न ने एशिया पैसिफिक इकनॉमिक फोरम की एक विशेष बैठक बुलाई है जिसमें अमेरिका और रूस के राष्ट्रपतियों ने भी हिस्सा लेने पर सहमति जताई है. इस ऐतिहासिक बैठक का मकसद एशिया पैसिफिक में कोविड-19 महामारी के आर्थिक प्रभाव से निपटना है.
नवंबर में 21 एपेक देशों की सालाना नियमित बैठक होनी है. वैसे तो यह बैठक ऑनलाइन ही होनी है, लेकिन इसका मेजबान देश न्यूजीलैंड है. पर एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए जेसिंडा आर्डर्न ने एपेक देशों से एक अतिरिक्त बैठक करने का आग्रह किया है.
आने वाले शुक्रवार को यह ऑनलाइन बैठक होगी, जो एपेक के इतिहास में पहली बार होगा. इस बैठक का मकसद महामारी के आर्थिक प्रभावों की समीक्षा और उसके लिए जरूरी साझा कदमों पर चर्चा करना होगा जेसिंडा आर्डर्न ने मीडिया को बताया कि एपेक के ज्यादातर नेताओं के अलावा अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन और रूस के राष्ट्रपति व्लादीमीर पुतिन ने भी इस बैठक में शामिल होने की पुष्टि कर दी है.
ऐतिहासिक बैठक
एक बयान में आर्डर्न ने कहा, "एपेक के इतिहास में यह पहली बार हो रहा है कि सर्वोच्च नेतृत्व के स्तर पर सदस्य देश एक अतिरिक्त बैठक के लिए राजी हुए हैं. इससे पता चलता है कि कोविड-19 महामारी और उसके कारण पैदा हुए आर्थिक संकट को हल करने को लेकर हमारी इच्छा कैसी है.”
शुक्रवार को जेसिंडा आर्डर्न द्वारा बुलाई गई बैठक इस लिहाज से भी अहम है क्योंकि हाल के सालों में एपेक देशों के बीच विभिन्न मुद्दों पर सहमति बनाना एक मुश्किल काम साबित हुआ है. इसकी मुख्य वजह पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप की चीन से खींचतान थी. हालांकि जो बाइडेन के सत्ता संभालने के बाद अमेरिका ने हालात को बदलने का वादा किया है.
तस्वीरों मेंः 2020 में ये रहे दुनिया के सबसे महंगे शहर
2021 में दुनिया के 10 सबसे महंगे शहर
दुनिया का सबसे महंगा शहर ना अमेरिका में है, ना यूरोप में. अमेरिकी कन्सलटेंसी फर्म मर्सर के मुताबिक अंतरराष्ट्रीय कर्मचारियों के लिए दुनिया का सबसे महंगा शहर तुर्कमेनिस्तान में है.
तस्वीर: Vyacheslav Sarkisyan/REUTERS
नंबर 10ः बर्न
मर्सर की सूची में दसवें नंबर पर है स्विट्जरलैंड का शहर बर्न. टॉप 10 में इस देश के तीन शहर हैं.
तस्वीर: Anthony Anex/KEYSTONE/dpa/picture alliance
नंबर 9ः बीजिंग
चीन की राजधानी बीजिंग दुनिया का नौवां सबसे महंगा शहर है. इस सूची में चीन के भी दो शहर हैं.
तस्वीर: Reuters/M. Pollard
नंबर 8ः जेनेवा
स्विट्जरलैंड का जेनेवा इस सूची में कई सालों से बना हुआ है. लेकिन अमेरिका का एक भी शहर इस साल टॉप 10 में जगह नहीं बना पाया है.
तस्वीर: Fabrice Coffrini/AFP
नंबर 7ः सिंगापुर
सिटी-स्टेट सिंगापुर भी लगातार इस सूची में बना हुआ है, जो मर्सर ने पांच महाद्वीपों के 209 शहरों का अध्ययन करके बनाई है.
तस्वीर: Eyes on Asia/Westend61/picture alliance
नंबर 6ः शंघाई
चीन का यह दूसरा शहर है जो टॉप 10 में है. न्यू यॉर्क पिछले साल नंबर 6 पर था, जो आठ जगह खिसक कर 14 पर पहुंच गया.
तस्वीर: Zumapress/picture alliance
नंबर 5ः ज्यूरिख
ज्यूरिख स्विट्जरलैंड का सबसे महंगा शहर है. पिछले साल यह नंबर चार पर था.
नंबर 4ः टोक्यो
जापान की राजधानी टोक्यो भी पिछले साल से एक स्थान खिसक गई है. मर्सर का कहना है कि उसने घर, कपड़े, परिवहन, खाना, जूते आदि बहुत सी चीजों की कीमतों की तुलना के बाद यह सूची बनाई है.
तस्वीर: Kim Kyung-Hoon/REUTERS
नंबर 3ः बेरूत
लेबनान की राजधानी बेरूत में पिछले कुछ सालों में महंगाई बेतहाशा बढ़ी है. राजनीतिक उथल पुथल का इसमें भारी योगदान है. इसकी रैंकिंग में 42 स्थान का उछाल आया है.
तस्वीर: Joseph Eid/AFP/Getty Images
नंबर 2ः हांग कांग
पिछले साल दुनिया का सबसे महंगा शहर रहा हांग कांग इस बार खिसक गया है क्योंकि पहले नंबर पर काबिज होने कोई और शहर आ गया है.
तस्वीर: Reuters/J. Lee
नंबर 1ः एशगाबात
तुर्कमेनिस्तान की राजधानी एशगाबात को सफेद संगमरमर की इमारतों के लिए भी जाना जाता है और महंगाई के लिए भी. पिछले साल यह दूसरे नंबर पर था.
तस्वीर: Vyacheslav Sarkisyan/REUTERS
10 तस्वीरें1 | 10
आर्डर्न ने कहा कि इस महामारी के कारण विश्व युद्ध के बाद एपेक देशों को सबसे बड़ा नुकसान पहुंचा है और आठ करोड़ से ज्यादा लोगों की नौकरियां चली गई हैं. उन्होंने कहा, "विश्व युद्ध के बाद एपेक अर्थव्यस्थाओं में यह सबसे बड़ी सिकुड़न है. 81 मिलियन नौकरियां गई हैं. सारी एपेक अर्थव्यवस्थाओँ का मिलकर क्षेत्र के आर्थिक बहाली के लिए काम करना बहुत महत्वपूर्ण है.”
विज्ञापन
दुनिया का सबसे बड़ा हिस्सा
एपेक यानी एशिया पैसिफिक इकनॉमिक फोरम में प्रशांत महासागर के किनारों पर बसे 21 देश शामिल हैं. इनमें अमेरिका से लेकर, चीन, जापान और पापुआ न्यू गिनी तक जैसे देश हैं जो दुनिया के कुल जीडीपी का 60 फीसदी उत्पादन करते हैं. 2021 की सालाना बैठक के मेजबान के तौर पर न्यूजीलैंड पहले से ही ऐसे संकेत दे रहा है कि सदस्यों के बीच चिकित्सा सामग्री और कोविड-19 वैक्सीन का व्यापार तेज किया जाना चाहिए.
आर्डर्न का कहा है कि शुक्रवार को होने वाली बैठक में आर्थिक बहाली के जिन उपायों पर चर्चा हो सकती है, उनमें टीकाकरण को और ज्यादा सक्षम बनाने और सरकारों द्वारा ऐसे जरूरी कदम उठाए जाने की जरूरत शामिल है, जो रोजगार और अर्थव्यवस्थाओं की सुरक्षा कर सकें.
जानेंः चीन के विवाद
एक साथ कई कूटनीतिक विवादों में फंसा है चीन
भारत के साथ सीमा-विवाद हो, हॉन्ग कॉन्ग को लेकर आलोचना हो या महामारी के फैलने के पीछे उसकी भूमिका को लेकर जांच की मांग, चीन इन दिनों कई मोर्चों पर कूटनीतिक विवादों में फंसा हुआ है. आइए एक नजर डालते हैं इन विवादों पर.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/J. Peng
कोरोनावायरस
अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया समेत कई देशों ने मांग की है कि चीन जिस तरह से कोरोनावायरस को रोकने में असफल रहा उसके लिए उसकी जवाबदेही सिद्ध की जानी चाहिए. कोरोनावायरस चीन के शहर वुहान से ही निकला था. चीन पर कुछ देशों ने तानाशाह जैसी "वायरस डिप्लोमैसी" का भी आरोप लगाया है.
तस्वीर: Ng Han Guan/AP Photo/picture alliance
अमेरिका
विश्व की इन दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के आपसी रिश्ते पिछले कई दशकों में इतना नीचे नहीं गिरे जितने आज गिर गए हैं. दोनों देशों के बीच व्यापार और तकनीक को लेकर विवाद तो चल ही रहे हैं, साथ ही अमेरिका के बार बार कोरोनावायरस के फैलने के लिए चीन को ही जिम्मेदार ठहराने से भी दोनों देशों के बीच मतभेद बढ़ गए हैं. चीन भी अमेरिका पर हॉन्ग कॉन्ग के प्रदर्शनों को समर्थन देने का आरोप लगाता आया है.
तस्वीर: picture-alliance/AA/A. Hosbas
हॉन्ग कॉन्ग
हॉन्ग कॉन्ग अपने आप में चीन के लिए एक बड़ी कूटनीतिक समस्या है. चीन ने वहां राष्ट्रीय सुरक्षा कानून लागू करना चाहा लेकिन अमेरिका और दूसरे पश्चिमी देशों ने इसका विरोध किया. हॉन्ग कॉन्ग कभी ब्रिटेन की कॉलोनी था और चीन के नए कदमों के बाद ब्रिटेन ने कहा है कि हॉन्ग कॉन्ग के ब्रिटिश नेशनल ओवरसीज पासपोर्ट धारकों को विस्तृत वीजा अधिकार देगा.
चीन ने लोकतांत्रिक-शासन वाले देश ताइवान पर हमेशा से अपने आधिपत्य का दावा किया है. अब चीन ने ताइवान पर उसका स्वामित्व स्वीकार कर लेने के लिए कूटनीतिक और सैन्य दबाव बढ़ाना शुरू कर दिया है. लेकिन भारी मतों से दोबारा चुनी गई ताइवान की राष्ट्रपति ने चीन के दावों को ठुकराते हुए कह दिया है कि सिर्फ ताइवान के लोग उसके भविष्य का फैसला कर सकते हैं.
तस्वीर: Office of President | Taiwan
भारत
भारत और चीन के बीच उनकी विवादित सीमा पर गंभीर गतिरोध चल रहा है. सुदूर लद्दाख में दोनों देशों के सैनिक एक दूसरे पर अतिक्रमण का आरोप लगा रहे हैं. दोनों में हाथापाई भी हुई थी.
तस्वीर: Reuters/Handout
शिंकियांग
चीन की उसके अपने पश्चिमी प्रांत में उइगुर मुसलमानों के प्रति बर्ताव पर अमेरिका और कई देशों ने आलोचना की है. मई में ही अमेरिका के हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स ने उइगुरों के उत्पीड़न के लिए जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ प्रतिबंध लागू करने वाले एक विधेयक को बहुमत से पारित किया.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/AP Photo/File
हुआवेई
अमेरिका ने चीन की बड़ी टेलीकॉम कंपनी हुआवेई को लेकर सुरक्षा संबंधी चिंताएं व्यक्त की थीं. उसने अपने मित्र देशों को चेतावनी दी थी कि अगर वो अपने मोबाइल नेटवर्क में उसका इस्तेमाल करेंगे तो उनके इंटेलिजेंस प्राप्त की जाने वाली संपर्क प्रणालियों से कट जाने का जोखिम रहेगा. हुआवेई ने इन आरोपों से इंकार किया है.
तस्वीर: picture-alliance/NurPhoto/J. Porzycki
कनाडा
चीन और कनाडा के रिश्ते तब से खराब हो गए हैं जब 2018 में कनाडा ने हुआवेई के संस्थापक की बेटी मेंग वानझाऊ को हिरासत में ले लिया था. उसके तुरंत बाद चीन ने कनाडा के दो नागरिकों को गिरफ्तार कर लिया था और केनोला बीज के आयात को ब्लॉक कर दिया था. मई 2020 में मेंग अमेरिका प्रत्यर्पित किए जाने के खिलाफ दायर किया गया एक केस हार गईं.
तस्वीर: Reuters/J. Gauthier
यूरोपीय संघ
पिछले साल यूरोपीय संघ के विदेश मंत्रियों ने आपस में तय किया कि वो चीन के प्रति अपनी रण-नीति और मजबूत करेंगे. संघ हॉन्ग कॉन्ग के मुद्दे पर चीन की दबाव वाली कूटनीति को ले कर चिंतित है. संघ उसकी कंपनियों के चीन के बाजार तक पहुंचने में पेश आने वाली मुश्किलों को लेकर भी परेशान रहा है. बताया जा रहा है कि संघ की एक रिपोर्ट में चीन पर आरोप थे कि वो कोरोनावायरस के बारे में गलत जानकारी फैला रहा था.
तस्वीर: Getty Images/AFP/O. Messinger
ऑस्ट्रेलिया
मई 2020 में चीन ने ऑस्ट्रेलिया से जौ (बार्ली) के आयत पर शुल्क लगा दिया था. दोनों देशों के बीच लंबे समय से झगड़ा चल रहा है. दोनों देशों के रिश्तों में खटास 2018 में आई थी जब ऑस्ट्रेलिया ने अपने 5जी ब्रॉडबैंड नेटवर्क से हुआवेई को बैन कर दिया था. चीन ऑस्ट्रेलिया की कोरोनावायरस की स्वतंत्र जांच की मांग को लेकर भी नाराज है.
तस्वीर: Imago-Images/VCGI
दक्षिण चीन सागर
दक्षिण चीन सागर ऊर्जा के स्त्रोतों से समृद्ध इलाका है और चीन के इस इलाके में कई विवादित दावे हैं जो फिलीपींस, ब्रूनेई, विएतनाम, मलेशिया और ताइवान के दावों से टकराते हैं. ये इलाका एक महत्वपूर्ण व्यापार मार्ग भी है. अमेरिका ने आरोप लगाया है कि चीन इस इलाके में अपनी मौजूदगी बढ़ाने के लिए कोरोनावायरस के डिस्ट्रैक्शन का फाय उठा रहा है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/T. Aljibe
11 तस्वीरें1 | 11
आर्डर्न ने कहा, "मैं चाहूंगी कि क्षेत्र में आर्थिक बहाली के लिए फौरी तौर पर उठाए जाने वाले उपायों के साथ-साथ दीर्घकालिक व समावेशी वृद्धि के लिए जरूरी कदमों पर चर्चा हो. एपेक नेता महामारी से लड़ने के लिए मिलकर काम करेंगे क्योंकि जब तक सभी सुरक्षित नहीं हैं, तब तक कोई भी सुरक्षित नहीं है.”
एक दूसरे पर भारी शुल्क
पिछले महीने ही एपेक देशों के व्यापार मंत्रियों की बैठक हुई थी जिसमें एक-दूसरे के साथ व्यापार करने में मौजूद बाधाओं की समीक्षा करने पर सहमति बनी थी. बैठक के बाद तीन बयान जारी किए गए थे जिनमें 21 देशों के मंत्रियों ने कहा था कि कोविड वैक्सीन और संबंधित वस्तुओं के आवागमन को हवा, पानी और जमीन के रास्ते से तेज करने पर काम किया जाएगा.
एक बयान में कहा गया, "हम अपने लोगों को लिए इन चीजों की कीमतों को कम करने के लिए स्वेच्छा से कदम उठाने पर विचार करेंगे, खासकर हर अर्थव्यवस्था को अपनी-अपनी सीमा पर लगने वाले शुल्कों की समीक्षा के लिए उत्साहित करके.” एक अन्य बयान कहा गया कि एपेक देशों को उन गैरजरूरी बाधाओं की पहचान करनी होगी जिनके कारण जरूरी चीजों और सेवाओं के आदान-प्रदान में देरी होती है.
देखेंः महामारी से दुनिया में संघर्ष बढ़े
महामारी की वजह से दुनिया में बढ़े संघर्ष
वैश्विक शांति सूचकांक के मुताबिक महामारी के दौरान दुनिया में संघर्ष के स्तरों में बढ़ोतरी हुई है. जानिए कहां कहां और किस किस तरह के संघर्ष के स्तर में इजाफा हुआ है.
तस्वीर: Saifurahman Safi/Xinhua/picture alliance
लगातार बढ़ रहे झगड़े
इंस्टिट्यूट फॉर इकोनॉमिक्स एंड पीस ने कहा है कि 2020 में पिछले 12 सालों में नौवीं बार दुनिया में झगड़े बढ़ गए. संस्थान के वैश्विक शांति सूचकांक के मुताबिक कुल मिला कर संघर्ष और आतंकवाद के स्तर में तो गिरावट आई, लेकिन राजनीतिक अस्थिरता और हिंसक प्रदर्शन बढ़ गए.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo
हिंसक घटनाएं
जनवरी 2020 से अप्रैल 2021 के बीच सूचकांक ने पूरी दुनिया में हुई महामारी से संबंधित 5,000 से ज्यादा हिंसक घटनाएं दर्ज की. 25 देशों में हिंसक प्रदर्शनों की संख्या बढ़ गई, जबकि सिर्फ आठ देशों में यह संख्या गिरी. सबसे खराब हालात रहे बेलारूस, म्यांमार और रूस में, जहां सरकार ने प्रदर्शनकारियों का हिंसक रूप से दमन किया.
तस्वीर: AP/picture alliance
सबसे कम शांतिपूर्ण देश
रिपोर्ट ने अफगानिस्तान को दुनिया का सबसे कम शांतिपूर्ण देश पाया. इसके बाद यमन, सीरिया, दक्षिण सूडान और इराक को सबसे कम शांतिपूर्ण देशों में पाया गया. अफगानिस्तान, ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका और मेक्सिको में आधी से भी ज्यादा आबादी ने उनकी रोज की जिंदगी में हिंसा सबसे बड़ा जोखिम बनी हुई है.
तस्वीर: WAKIL KOHSAR/AFP
सबसे शांतिपूर्ण देश
आइसलैंड को एक बार फिर सबसे शांतिपूर्ण देश पाया गया. आइसलैंड ने यह स्थान 2008 से अपने पास ही रखा हुआ है. पूरे यूरोप को ही कुल मिला कर सबसे शांतिपूर्ण प्रांत का दर्जा दिया गया है. हालांकि संस्थान के मुताबिक वहां भी राजनीतिक अस्थिरता बढ़ गई है.
तस्वीर: Getty Images/M. Cardy
अमेरिका में भी बढ़ी अशांति
इस अवधि में अमेरिका में भी नागरिक अशांति काफी तेजी से बढ़ी. हालांकि ऐसा सिर्फ महामारी की वजह से ही नहीं हुआ. इसमें ब्लैक लाइव्स मैटर आंदोलन के विस्तार और जनवरी 2021 में यूएस कैपिटल पर हुए हमले का भी योगदान है.
तस्वीर: Leah Millis/REUTERS
कई मोर्चों पर स्थिति बेहतर
दुनिया में कई स्थानों पर हत्या की दर, आतंकवाद की वजह से होने वाली मौतों की संख्या और जुर्म के मामलों में काफी गिरावट देखने को मिली.
तस्वीर: Hadi Mizban/AP/picture alliance
और बढ़ेगी अनिश्चितता
संस्थान के संस्थापक स्टीव किल्लीलिया का कहना है कि महामारी के आर्थिक असर की वजह से अनिश्चितता और बढ़ेगी, विशेष रूप से ऐसे देशों में जहां महामारी के पहले से ही हालात अच्छे नहीं थे. इस आर्थिक संकट से बाहर निकलने की प्रक्रिया भी काफी असमान रहेगी, जिससे मतभेद बढ़ेंगे. (डीपीए)
तस्वीर: Jorge Saenz/AP Photo/picture alliance
7 तस्वीरें1 | 7
एपेक देशों में वैक्सीन पर शुल्क 0.8 फीसदी के आसपास है लेकिन वैक्सीन से जुड़ी अन्य चीजों जैसे अल्कोहल सॉल्यूशन, फ्रीजिंग इक्विपमेंट, पैकेजिंग और स्टोरेज मटीरियल पर शुल्क 5 से 30 फीसदी तक है.