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समाज

कोरोना वायरस ने घटा दी आप्रवासन की रफ्तार

क्रिस्टॉफ हासेलबाख
१९ अक्टूबर २०२०

ओईसीडी की नई रिपोर्ट से पता चला है कि कोरोना काल में पूरे विश्व में आप्रवासन घटा है. साथ ही लॉकडाउन और पाबंदियों के कारण खुद तमाम मुश्किलें झेलने वाले आप्रवासियों ने महामारी से निपटने में बेहद अहम भूमिका निभाई है.

ग्रीस से लेसबोस में कैंप मोरिया से भीड़ को कम करने के लिए दूसरी जगहों पर भेजे गए आप्रवासी. तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/P. Giannakouris

पेरिस स्थित आर्थिक सहयोग और विकास संगठन, ओईसीडी की ताजा रिपोर्ट इसका सबूत देती है कि कोरोना महामारी ने आम लोगों की तरह आप्रवासियों का भी जीवन काफी हद तक बदल दिया है. इसमें एक खास बात यह निकल कर सामने आई है कि ओईसीडी के कई सदस्य देशों में महामारी के दौरान स्वास्थ्य, रीटेल, डिलिवरी और कूरियर जैसी अतिआवश्यक सेवाओं में प्रवासियों ने उल्लेखनीय काम किया. सख्त लॉकडाउन में राष्ट्रीय सीमाओं के बंद होने के समय जर्मनी जैसे देशों तक में अपवाद के रूप में फसल की कटाई के लिए प्रवासियों को आने दिया गया था.

ओईसीडी के सदस्य देशों में करीब 24 फीसदी डॉक्टर और 16 फीसदी नर्सें आप्रवासी हैं. यह वही लोग है जिन्होंने कोरोना वायरस से लड़ाई के दौरान सबसे आगे रह कर अपनी सेवाएं दी हैं. स्वास्थ्यकर्मियों के इस समुदाय को कोविड का संक्रमण भी बाकी समुदायों के मुकाबले कहीं ज्यादा झेलना पड़ा है क्योंकि संक्रमित लोगों के साथ नजदीकी उनके काम का हिस्सा है. रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रवासियों पर बाकी आबादी के मुकाबले संक्रमित होने का दोगुना खतरा होता है. खासकर पूरे यूरोपीय संघ में हॉस्पीटैलिटी इंडस्ट्री में काम करने वालों में से एक चौथाई यूरोप के बाहर से आए प्रवासी हैं. ये लोग अकसर सीमित समय के कॉन्ट्रैक्ट पर काम करते हैं और मुश्किल घड़ी में सबसे पहले इनकी ही नौकरी से छंटनी की जाती है.

स्कूल बंद होने की सबसे ज्यादा मार भी प्रवासियों के बच्चों पर

जहां बाकी देशों में स्कूल बंद होने पर बच्चों को घर में ही पढ़ाने के लिए होम-स्कूलिंग से लेकर ऑनलाइन क्लासेज की व्यवस्था की गई, वहीं तमाम प्रवासियों के बच्चों को कंप्यूटर तक पहुंच ना होने, छोटी जगहों में सिमट कर रहने और माता पिता से पढ़ाई में मदद ना मिल पाने के कारण काफी मुसीबत झेलनी पड़ी.

दुनिया के ज्यादातर स्कूल जाने वाले बच्चों को घर से ही पढ़ाई जारी रखनी पड़ी.तस्वीर: Reuters/L. Nicholson

मोटे तौर पर अब तक के कोरोना काल में ओईसीडी सदस्य देशों में होने वाले आप्रवासन में नाटकीय रूप से कमी देखने को मिली. साल 2020 के पहले छह महीनों में इसमें पिछले साल की तुलना में करीब 50 फीसदी की कमी दर्ज हुई. इन महीनों में अंतरराष्ट्रीय सीमाओं के बंद होने, यात्रा पर तरह तरह के प्रतिबंध होने और केवल गिने चुने विमान उड़ने के कारण यह गिरावट आई.

ओईसीडी रिपोर्ट के लेखकों का मानना है कि भले ही आर्थिक गतिविधियां फिर से जोर पकड़ लें लेकिन फिर भी आप्रवासन में जल्द ही कोई तेजी नहीं दिखेगी. उनका अनुमान है कि जिन लोगों ने दफ्तर के बजाए घर से काम करना शुरु किया था, वे आने वाले समय में भी उसे जारी रखेंगे. छात्र ऑनलाइन कक्षाएं और सेमिनार में शामिल होते रहेंगे और व्यापक तौर पर आम जनता कम से कम आवाजाही करना चाहेगी.

नस्लवादी हिंसा बढ़ने की संभावना

रिपोर्ट में कहा गया है कि ओईसीडी देशों में बेरोजगारी बढ़ने के कारण नस्लवादी हिंसा बढ़ने की भी संभावना है. स्थानीय लोग जब सीमित रोजगार के मौकों को देखते हुए आप्रवासियों को अपना दुश्मन समझने लगते हैं तो स्थिति खतराब होने लगती है. कई देशों में इस तरह की स्थिति पैदा होने की आशंका को देखते हुए पहले से ही ऐसी नस्लवादी धारणाओं को तोड़ने के लिए अभियान चलाए जा रहे हैं. रिपोर्ट में सलाह दी गई है कि सभी सरकारें आप्रवासियों को समाज में जोड़ने को ऐसा दीर्घकालीन निवेश समझ कर काम करें जिसमें सबकी भलाई छुपी है.

आरपी/एनआर

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