1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें
कारोबारउत्तरी अमेरिका

तेल कंपनियां इतने मुनाफे में कैसे ?

५ अगस्त २०२२

दुनिया भर में तेल की बढ़ती कीमतें उपभोक्ताओं को परेशान किए हुए हैं, वहीं दुनिया की सबसे बड़ी तेल कंपनियों के रिकॉर्ड मुनाफे ने लोगों को हैरान कर रखा है.

एक्सॉन
तस्वीर: Spencer Platt/Getty Images

वैश्विक ऊर्जा संकट और बढ़ती महंगाई दर से आम आदमी परेशान है और अनिश्चितता के दौर से गुजर रहा है लेकिन दुनिया की सबसे बड़ी तेल कंपनियों के लिए यह ऐतिहासिक लाभ का सौदा साबित हो रहा है. मंगलवार को ब्रिटिश पेट्रोलियम यानी बीपी उन कंपनियों में शामिल हो गई जिसने इस साल की दूसरी तिमाही में जबर्दस्त मुनाफा कमाया. बीपी ने 8.5 अरब डॉलर का मुनाफा कमाया है जो पिछले 14 साल में सबसे ज्यादा है. इसी तिमाही में पिछले साल की तुलना में यह मुनाफा करीब तीन गुना ज्यादा है.

कंपनी के अब तक के इतिहास में दूसरी सबसे ज्यादा मुनाफा कमाने वाली तिमाही है और बहुत ज्यादा मुनाफा कमाने वाली तेल कंपनियों में सबसे नई है. एक्सॉनमोबिल और शेवरान जैसी अमेरिकी कंपनियों ने भी हाल ही में घोषणा की थी कि उन्होंने भी रिकॉर्ड मुनाफा कमाया है. तीस जून को खत्म हुई तिमाही में एक्सॉन को 17.9 अरब डॉलर का मुनाफा हुआ था जो कि उसके पिछले रिकॉर्ड की तुलना में दो अरब डॉलर ज्यादा था. शेवरॉन ने भी दूसरी तिमाही में 11.6 अरब डॉलर का लाभ कमाया जो कि उसके लिए एक रिकॉर्ड है.

यूरोप की सबसे बड़ी तेल कंपनी, शेल ने पिछले हफ्ते घोषणा की कि उसने दूसरी तिमाही में 11.5 अरब डॉलर की कमाई करते हुए मुनाफे के सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए.

तेल कंपनियां का मुनाफा

टैक्स का सवाल

इन कंपनियों के इस रिकॉर्ड मुनाफे के पीछे बिजली की बढ़ती कीमतें और रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से बाजार में चल रही उथल-पुथल भी जिम्मेदार है. वॉशिंगटन डीसी स्थिति कंसल्टेंसी कंपनी रेपिडन एनर्जी ग्रुप के अध्यक्ष बॉब मैक्नेली कहते हैं, "ये मुनाफे मुख्य रूप से कच्चे तेल की कीमतों में उतार-चढ़ाव की वजह से होते हैं. तेल उद्योग अपने ज्यादातर खर्चों को पहले ही उत्पादन और विकास में लगा चुका होता है. इसके बाद संचालन पर आने वाला खर्च बहुत कम होता है. इसलिए जब कीमतें बढ़ती हैं तो इनका मुनाफा काफी ज्यादा दिखता है.”

इन कंपनियों के पास यह जोरदार मुनाफा उस वक्त आ रहा है जब दुनिया भर में महंगाई बढ़ रही है, इसलिए सरकारों पर इस बात का दबाव बढ़ रहा है कि वो तेल कंपनियों पर ज्यादा कर लगाएं.

मई में ब्रिटेन ने घोषणा की कि वो तेल और गैस कंपनियों के मुनाफे पर 25 फीसद ‘विंडफाल' टैक्स की घोषणा करेगी. इटली ने भी कुछ ऐसा ही किया है. अमेरिका में राष्ट्रपति जो बाइडेन पर अपनी ही पार्टी के सांसदों का इतना दबाव पड़ा कि उन्हें एक ‘विंडफाल' टैक्स से संबंधित विधेयक लाना पड़ा. हालांकि इसकी वजह से उन्हें परेशानी का भी सामना करना पड़ सकता है.

जर्मनी में वित्त मंत्री क्रिस्टियान लिंडनर इस तरह का कर लगाने की मांगों को लगातार खारिज कर रहे हैं, हालांकि उनकी सहयोगी पार्टियां इसके पक्ष में हैं. लिंडनर फ्री डेमोक्रैट्स पार्टी के सदस्य हैं जिसे व्यापारियों का समर्थक माना जाता है. एफडीपी, ग्रीन पार्टी ओर सोशल डमोक्रैट्स पार्टी के साथ सत्ता में है.

लिंडनर कहते हैं कि इस तरह के कर महंगाई बढ़ाने में मददगार साबित हो सकते हैं. उनके इस विचार को कई उन स्वतंत्र अर्थशास्त्रियों का भी समर्थन है जो जर्मन विदेश मंत्रालय को परामर्श देते हैं. इन अर्थशास्त्रियों ने चेतावनी दी है कि ‘राजनीतिज्ञों को इस मामले में बहुत ही सावधान रहना चाहिए जब वो इस तरह की घातक कर प्रणाली शुरू करने जा रहे हों, क्योंकि यह लोकप्रिय तो है लेकिन लंबे समय के लिए यह अर्थव्यवस्था के लिए ठीक नहीं है.'

जर्मनी के वित्त मंत्री क्रिस्टियान लिंडनरतस्वीर: Stefan Boness/Ipon/IMAGO

हरित निवेश

तेल कंपनियां हरित निवेश के जरिए उद्योग में डीकार्बोनाइजेशन प्राप्त करने की कोशिश की बजाय इस विंडफाल टैक्स का दृढ़ता से विरोध कर रही हैं. बीपी के मुनाफे की घोषणा के साथ-साथ पवन ऊर्जा और इलेक्ट्रिक वेहिकल चार्जिंग में निवेश की घोषणा के साथ हुई. शेल के चीफ इक्जीक्यूटिव बेन वान ब्योर्डेन ने हरित निवेश के पक्ष में बोलते हुए कहा कि यह टैक्स से बचने का एक वैकल्पिक उपाय है.

वो कहते हैं, "पैसा कमाना हमारा दायित्व है और यह भी दायित्व है कि हम ऊर्जा सुरक्षा में निवेश जारी रखें और ऊर्जा के वैकल्पिक साधनों के बारे में सोचते रहें. आखिरकार, लोगों की यह सोच तेल और गैस पर हमारी निर्भरता को कम कर देगी.”

मैक्नेली कहते हैं कि कंपनियां जानती हैं कि वो मुनाफा जितना ज्यादा कमाएंगी, सरकारों के ऊपर उन पर कर लगाने का दबाव बढ़ता जाएगा, लेकिन उन्हें उम्मीद है कि सरकारें कोई संतुलित रास्ता निकालेंगी. वो कहते हैं, "कंपनियों को लगता है कि वो एक ऐसे दौर में हैं जबकि अस्थिर तेल कीमतों और मुनाफे के कारण चुनौती के साथ अस्थिरता भी है. कंपनियों का कहना है कि सरकारी खर्चों में हाथ बंटाने का भी उन पर दबाव है और साथ में डीकार्बोनाइजेशन को बढ़ाने का भी.”

वो कहते हैं, "कंपनियां चाहती हैं कि सरकारें स्पष्ट, टिकाऊ और व्यावहारिक नीतियां बनाएं ताकि पर्याप्त निवेश और ऊर्जा आपूर्ति में संतुलन बना रहे. कंपनियों के सामने सबसे बड़ी चुनाती अस्थिर, अनिश्चित और सरकार की अवास्तविक नीतियां हैं.”

ब्रिटिश पेट्रोलियम, बीपीतस्वीर: BEN STANSALL/AFP/Getty Images

तेल कीमतों पर नजर रखिए

बढ़ती महंगाई और बढ़ती बिजली कीमतों के दौर में तेल कंपनियों के बढ़ते तेल मुनाफों के लेकर राजनीतिज्ञ, ट्रेड यूनियन के अधिकारी और पर्यावरण कार्यकर्ता काफी आलोचना कर रहे हैं. यूके में ट्रेड यूनियन कांग्रेस के महासचिव में फ्रांसिस ओग्रैडी कहते हैं, "कंपनियों का यह आंख खोलने वाला मुनाफा उन करोड़ों लोगों की बेइज्जती है जो बिजली की बढ़ती कीमतों के चलते जीवन के लिए संघर्ष कर रहे हैं.”

इस साल की शुरुआत में ग्रीनपीस संस्था ने तेल कंपनियों की इस ‘बेशर्म मुनाफाखोरी' की आलोचना की थी और कहा था कि पहली तिमाही में जो मुनाफा हुआ है वह ‘अनैतिक' है. अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडेन ने भी इसकी तीखी आलोचना की थी और हाल ही में कहा था कि एक्सनमोबिल जैसी कंपनियां ‘भगवान से भी ज्यादा मुनाफा' कमा रही हैं.

हालांकि ऐसा लगता है कि फिलहाल ये कीमतें घटने नहीं जा रही हैं. मैक्नेली कहते हैं कि जब तक तेल रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण तेल कीमतें बढ़ी रहेंगी, तेल कंपनियां ऐसे ही मुनाफा कमाती रहेंगी. वो कहते हैं, "तेल कीमतों का बढ़े रहना मंदी की आहट है. इस क्षेत्र में निवेश को लेकर लोगों की बेरुखी कुछ समय तक बनी रहेगी क्योंकि उनके दिमाग से सात साल पहले वाली स्थिति अभी गई नहीं.”

वो इस बात का भी जिक्र करते हैं कि यदि तेल की कीमतें तेजी से घट जाती हैं, तो उसी अनुपात में तेल कंपनियों को भी सफर करना पड़ेगा यानी उन्हें नुकसान सहना पड़ेगा. वो कहते हैं, "यदि कीमतें घट जाती हैं जैसा कि दो साल पहले हुआ था, तो मुनाफा कम हो जाएगा.”

रिपोर्ट: अर्थर सुलीफान

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी को स्किप करें

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें को स्किप करें

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें