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क्या शी जिनपिंग पर कोई दबाव डाल पाएंगे ओलाफ शॉल्त्स?

यूशेन ली
१३ अप्रैल २०२४

जर्मन चांसलर ओलाफ शॉल्त्स चीन जा रहे हैं, जहां वह राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाकात करेंगे. शॉल्त्स पर कारोबारी हितों और भू-राजनीतिक चिंताओं के बीच संतुलन साधने का दबाव होगा.

China | Bseuch | Bundeskanzler Olaf Scholz und Xi Jinping in Peking
बतौर चांसलर, यह शॉल्त्स का दूसरा चीन दौरा है. इससे पहले वह नवंबर 2022 में चीन गए थे.तस्वीर: Kay Nietfeld/dpa/picture alliance

जर्मन चांसलर ओलाफ शॉल्त्स शनिवार को अपने तीन-दिवसीय चीन दौरे पर रवाना हो रहे हैं. इस दौरे पर शॉल्त्स चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग और प्रधानमंत्री ली कियांग से मुलाकात करेंगे.

शॉल्त्स के साथ शीर्ष स्तर का कारोबारी प्रतिनिधिमंडल भी चीन जा रहा है. उम्मीद की जा रही है कि शॉल्त्स इस दौरे चीन के साथ यूरोपीय संघ और चीन के बीच व्यापार-घाटे के मुद्दे को उठाएंगे. चीन दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है. वहीं जर्मनी इस सूची में तीसरे पायदान पर है.

शॉल्त्स से यह उम्मीद भी की जा रही है कि वह यूक्रेन युद्ध के मद्देनजर चीन के रूस के साथ संबंधों पर चर्चा करेंगे. साथ ही, वह ताइवान के प्रति चीन की आक्रामकता का मुद्दा भी उठा सकते हैं. ताइवान स्वायत्त द्वीप है, जिस पर चीन अपना दावा करता है.

शॉल्त्स बीजिंग में राष्ट्रपति जिनपिंग और प्रधानमंत्री कियांग से अपने दौरे के आखिरी दिन मंगलवार को मिलेंगे. बतौर चांसलर, यह शॉल्त्स का दूसरा चीन दौरा है. इससे पहले वह नवंबर 2022 में चीन गए थे.

कूटनीतिक मामलों में जर्मनी चीन को लेकर जितना सख्त रुख दिखा रहा है, वैसा धरातल पर होता नजर नहीं आ रहा है.तस्वीर: Oliver Berg/dpa/picture alliance

चीन जाने के पीछे क्या है शॉल्त्स का एजेंडा?

शॉल्त्स के पिछले चीन दौरे से अब तक बहुत कुछ बदल चुका है. पिछले साल जर्मनी ने चीन को लेकर अपनी खास रणनीति पर काम शुरू किया था. इसका मकसद कुछ खास क्षेत्रों में चीनी बाजार पर निर्भरता घटाना था. साथ ही, जर्मनी की यह मंशा भी थी कि यूरोपीय संघ (ईयू) चीन के साथ जोखिम घटाने का जो प्रयास कर रहा है, जर्मनी को उसके अनुरूप लाया जा सके.

फिर भी शॉल्त्स औद्योगिक क्षेत्र के बड़े अधिकारियों के साथ चीन जा रहे हैं. इससे संकेत मिलता है कि जर्मनी चीन के साथ कारोबारी रिश्ते बनाए रखना चाहता है.

जूजा एना फेरेंसी यूरोपीय संसद में राजनीतिक सलाहकार रही हैं. वह ताइवान की नेशनल डांग ह्वा यूनिवर्सिटी में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं. फेरेंसी कहती हैं कि चीन को लेकर जर्मनी के बदले हुए सुर "धरातल पर उतरते नहीं दिखाई देते हैं".

पश्चिमी विशेषज्ञ मानते हैं कि जर्मनी यह समझने की कोशिश कर रहा है कि अपनी ही तय की हुई प्रतिबद्धताएं कैसे पूरी की जाएं.तस्वीर: Jens Krick/Flashpic/picture alliance

डीडब्ल्यू से बात करते हुए फेरेंसी ने कहा, "सवाल यह है कि शॉल्त्स इस समय चीन क्यों जा रहे हैं. मेरे ख्याल से जर्मनी यह समझने की कोशिश कर रहा है कि अपनी ही तय की हुई प्रतिबद्धताएं कैसे पूरी की जाएं."

फिलिप ले कोर एशिया सोसायटी पॉलिसी इंस्टिट्यूट के 'सेंटर फॉर चाइना एनालिसिस' में चीन-यूरोप संबंधों के विशेषज्ञ हैं. वह कहते हैं कि खुद जर्मनी के भीतर इस पर राय बंटी हुई है कि चीन के साथ व्यापार जारी रखना चाहिए या नहीं.

ले कोर कहते हैं कि यह विभाजन जर्मनी की गठबंधन सरकार में ही नहीं, बल्कि विभिन्न उद्योगों के बीच भी है. "व्यापारिक समूहों के कम से कम दो गुट हैं. इनमें से एक धड़ा चाहता है कि चीन में और निवेश किया जाए, जबकि दूसरे को लगता है कि चीन प्रतिद्वंद्वी बनता जा रहा है."

यूक्रेन और ताइवान पर क्या कहेंगे शॉल्त्स?

कारोबारी दुविधा के अलावा शॉल्त्स पर भू-राजनीतिक मुद्दों को लेकर यूरोपीय संघ का दबाव है. शी जिनपिंग से मुलाकात में उन्हें यूक्रेन में जारी जंग के मद्देनजर रूसी वॉर मशीन को मिल रहे चीन के समर्थन पर भी बात करनी होगी.

साथ ही, चीन दक्षिणी चीन सागर और ताइवान जलडमरूमध्य में अपनी सैन्य मौजूदगी बढ़ाता जा रहा है. इससे पश्चिम चौकन्ना हो गया है.

ले कोर को उम्मीद है कि शॉल्त्स अपने चीन दौरे पर ताइवान का मुद्दा उठाएंगे. वह कहते हैं, "यूरोप में ताइवान मुद्दे पर इतनी दिलचस्पी कभी नहीं देखी गई है. यहां तक कि खुद जर्मनी में भी, जो फ्रांस और ब्रिटेन के मुकाबले ज्यादा कारोबारी मानसिकता वाला देश है."

पिछले साल जून में शॉल्त्स की बर्लिन में चीनी प्रधानमंत्री ली कियांग से मुलाकात हुई थी. इसके बाद शॉल्त्स ने जर्मन संसद को संबोधित करते हुए कहा था कि उन्होंने चीन को किसी इलाके को बलपूर्वक हथियाने के खिलाफ चेतावनी दी थी, खासकर ताइवान के खिलाफ. हालांकि, कथित तौर पर ली के साथ मुलाकात में उन्होंने इतनी सख्त भाषा भी इस्तेमाल नहीं की थी, जितनी उन्होंने संसद में बताई.

ताइवान को लेकर चीन की आक्रामकता ने पश्चिम को और चौकन्ना कर दिया है.तस्वीर: Yomiuri Shimbun/AP/picture alliance

शॉल्त्स के दौरे को लेकर फेरेंसी डीडब्ल्यू से बातचीत में कहती हैं, "इस दौरे से हम उम्मीद कर सकते हैं कि जर्मनी शायद उसी बात पर कायम रहेगा, जो उसने पहले कही है कि ताकत का इस्तेमाल बिल्कुल स्वीकार्य नहीं है. लेकिन सवाल यह है कि वह सुरक्षा संबंधी चिंताओं और कारोबारी हितों को कैसे साधेंगे".

ले कोर भी ऐसे ही विचार रखते हैं. वह कहते हैं, "वे भू-राजनीति पर बात करने के लिए इकट्ठे नहीं हो रहे हैं. ऐसे में राजनीति या कूटनीति पर आपकी भाषा की विश्वसनीयता प्रभावित हुई है."

अपनी इलेक्ट्रिक कारों की जांच से 'नाखुश' चीन

चीन की यूरोपीय संघ के साथ अपनी शिकायतें हैं. सबसे अहम तो यही है कि यूरोपीय आयोग चीनी इलेक्ट्रिक वाहनों और उन्हें मिलने वाली सरकारी सब्सिडी की जांच कर रहा है.

इस जांच का एलान पिछले साल सितंबर में हुआ था. इससे यूरोपीय अधिकारियों को चीन के सस्ते इलेक्ट्रिक वाहनों पर दंडात्मक टैरिफ लगाने का अवसर मिल सकता है, जिसका मकसद यूरोपीय संघ के निर्माताओं का बचाव करना है.

यूरोपीय संघ में चीन के राजदूत ने इस जांच को 'अनुचित' बताया. उन्होंने कहा, "चीन सहयोग कर रहा था, क्योंकि हम ऐसी परिस्थिति से बचना चाहते हैं, जहां दोनों पक्षों को एक-दूसरे के खिलाफ कारोबारी युक्तियां आजमानी पड़ें."

ले कोर ने डीडब्ल्यू से कहा कि चूंकि जर्मनी यूरोपीय संघ में चीन का सबसे बड़ा कारोबारी साझेदार है, इसलिए शॉल्त्स को अपने दौरे पर इस मुद्दे पर बात करनी होगी. "शॉल्त्स को इस मुद्दे पर चीन से झटका भी मिल सकता है, क्योंकि चीनी नेता पूछ सकते हैं कि अगर आप हमारे साथ व्यापार करना चाहते हैं, तो चीनी इलेक्ट्रिक वाहनों के खिलाफ जांच क्यों करा रहे हैं".

यूरोपीय देशों के साथ अलग सुर

चीन का कूटनीतिक लक्ष्य जर्मनी से कहीं आगे का है. इस साल मई में जिनपिंग यूरोप दौरे पर आ रहे हैं और वह फ्रांस के राष्ट्रपति इमानुएल माक्रों से मिलेंगे.

विश्लेषक ले कोर कहते हैं कि जिनपिंग यूरोप के अलग-अलग देशों के साथ अलग-अलग बातचीत कर सकते हैं, क्योंकि चीन "यूरोपीय देशों को बांटने का उस्ताद" है.

रोडियम ग्रुप में चीन को लेकर वरिष्ठ सलाहकार नोआ बार्किन कहते हैं कि यूरोपीय संघ ने पिछला एक साल कारोबारी तरीकों का उपयोग करके और अपना आर्थिक सुरक्षा एजेंडा शुरू करके चीन पर आर्थिक बढ़त हासिल करने में बिताया है.

साथ ही, वह यह भी रेखांकित करते हैं, "लेकिन अगर यूरोप की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के नेता चीन को कोई अलग संकेत देते हैं, तो यह बढ़त बहुत जल्द खत्म भी हो सकती है".

इस परिप्रेक्ष्य में फेरेंसी कहती हैं कि उन्हें उम्मीद है कि जर्मनी यूरोपीय संघ के भेजे गए उस संदेश का प्रतिनिधित्व करेगा, जिसके तहत "चीन के साथ व्यापार संतुलित करने की जरूरत है. वरना मुझे लगता है कि शॉल्त्स का यह दौरा सिर्फ जर्मन हितों की पूर्ति करेगा."

वीएस/एके

चीनी कारों ने जर्मनी के सामने खड़ी कर दी है मुश्किल

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