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चांसलर ओलाफ शॉल्त्स की 'खामोशी' से क्यों नाराज है जनता

सबीने किंकार्त्स | येंस थुराऊ
२६ जनवरी २०२४

जर्मनी के किसान सड़कों पर हैं. ट्रेन ड्राइवर हड़ताल पर चले गए हैं. आम जनता भी सरकार से खुश नहीं है. मौजूदा चांसलर ओलाफ शॉल्त्स जनता के बीच उतने लोकप्रिय नहीं हैं, जितने पूर्व चांसलर रहे हैं. आखिर इसकी क्या वजह है?

जर्मनी के चांसलर ओलाफ शॉल्त्स की लोकप्रियता काफी कम हुई है.
जर्मनी के चांसलर ओलाफ शॉल्त्स ने दक्षिणपंथी चरमपंथ के खिलाफ हुए एक प्रदर्शन में हिस्सा लिया. तस्वीर: Sebastian Gollnow/dpa/picture alliance

जर्मनी की राजधानी बर्लिन में बीते दिनों एक बड़े कृषि मेले ‘ग्रीन वीक' का आयोजन हुआ. देश के चांसलर ओलाफ शॉल्त्स भी यहां पहुंचे. उनकी सुरक्षा के लिए विशेष गलियारा बनाया गया, ताकि लोग उनके ज्यादा करीब न आ सकें. जब वे इस रास्ते से गुजर रहे थे, तभी वहां मौजूद एक महिला ने प्रेस फोटोग्राफरों के पीछे खड़े 10 साल के दो लड़कों को आगे की ओर धकेलते हुए कहा, "देखो, वो हमारे चांसलर ओलाफ शॉल्त्स हैं.” तभी उन दोनों लड़कों में से एक ने पूछा, "वो छोटा गंजा आदमी?”

यहां से कुछ मीटर की दूरी पर खेती में इस्तेमाल होने वाली गाड़ियां खड़ी थीं. इसके पास दो पुरुष और एक महिला खड़े थे. वो काले बैरियर टेप के ऊपर से देखते हुए ऑटोमैटिक मशीन की मदद से स्ट्रॉबेरी की फसल तैयार करने की बातों में मशगूल थे. इन बातों से ऐसा लगता है कि चांसलर और जनता के बीच दूरी काफी ज्यादा बढ़ गई है. कई हफ्तों से जनता को ऐसा महसूस हो रहा है कि उनके चांसलर वहां नहीं हैं. उनकी उपस्थिति काफी कम महसूस की जा रही है.

दिसंबर 2021 में चांसलर बनने के बाद से शॉल्त्स, तीन पार्टी वाली गठबंधन सरकार का नेतृत्व कर रहे हैं. इनमें सेंटर-लेफ्ट सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी (एसडीपी), ग्रीन पार्टी और फ्री डेमोक्रेटिक पार्टी (एफडीपी) शामिल हैं. हालांकि, इस तरह की गठबंधन सरकार को चलाना आसान नहीं है. बात सिर्फ तीन पार्टियों को साथ लेकर चलने की नहीं है. मौजूदा जर्मन सरकार जितनी समस्याओं से जूझ रही है, शायद ही पहले की किसी सरकार को इतनी मुश्किलों का सामना करना पड़ा है.

नई सरकार के गठन के कुछ ही महीनों बाद यूक्रेन-रूस युद्ध शुरू हो गया. इससे ऊर्जा संकट पैदा हुआ. तेल और गैस की कीमतें आसमान छूने लगीं. महंगाई काफी ज्यादा बढ़ गई. सरकार ने लोगों को बढ़ती महंगाई से राहत देने के लिए वित्तीय सहायता उपलब्ध कराई, लेकिन अब सरकारी खजाना खाली हो चुका है. समस्या सिर्फ यहीं खत्म नहीं होती.

चांसलर शॉल्त्स बर्लिन में आयोजित "ग्रीन वीक" में भी पहुंचे. यह कृषि मेला था. तस्वीर: Sabine Kinkartz/DW

अब किसान भी नाराज हो गए हैं क्योंकि सरकार ने बताया कि वह डीजल सब्सिडी और कृषि वाहनों पर टैक्स में मिलने वाली छूट खत्म करने की योजना बना रही है. इसके विरोध में किसान पूरे देश में जगह-जगह प्रदर्शन कर रहे हैं. हालांकि बाद में सरकार ने कहा कि वह दो साल के भीतर ईंधन सब्सिडी को चरणबद्ध तरीके से खत्म करेगी और ट्रैक्टरों पर मिलने वाली टैक्स छूट बरकरार रहेगी. प्रदर्शनकारी किसान इस आंशिक राहत से संतुष्ट नहीं हैं.

प्रदर्शन का दायरा बढ़ता जा रहा है. अब इसमें शिल्पकार और रेलवे ड्राइवर भी शामिल हो गए हैं. शिल्पकार अत्यधिक लागत और काफी ज्यादा नौकरशाही की शिकायत कर रहे हैं. रेलवे ड्राइवर भी हड़ताल कर रहे हैं. ये ड्राइवर काम के घंटे कम कराना और पैसा बढ़ाना चाहते हैं. ऐसे में बड़ा सवाल यह उठ रहा है कि शॉल्त्स और उनकी सरकार क्या कर रही है? नाराज किसानों, शिल्पकारों और ड्राइवरों के लिए वो क्या कर रहे हैं? जनता का कहना है कि सरकार इस दिशा में कोई बेहतर प्रयास करती नहीं दिख रही है.

सिर्फ 19 फीसदी लोग ही शॉल्त्स के काम से संतुष्ट

एसडीपी, ग्रीन और एफडीपी ने अपने गठबंधन समझौते में जो कुछ करने का लक्ष्य रखा था, वह पहले ही हासिल कर लिया है. हालांकि एफडीपी और ग्रीन पार्टी के बीच काफी ज्यादा झगड़े भी हुए. शॉल्त्स आम तौर पर इन झगड़ों से दूर रहते हैं और उनकी यही बात लोगों को याद रहती है.

जनवरी महीने के मध्य में डीडब्ल्यू ने बर्लिन की सड़कों पर सर्वे किया. इस दौरान शॉल्त्स के बारे में लोगों से सवाल पूछे गए. इसके जवाब में एक महिला ने कहा, "लोगों को ऐसा लगता ही नहीं है कि उनकी कोई बात सुनी भी जा रही है. महंगाई आसमान छू रही है. ऐसा महसूस हो रहा है कि अब जर्मनी रहने लायक नहीं है.”

ओपिनियन रिसर्च इंस्टिट्यूट इन्फ्राटेस्ट-डिमैप के अनुसार, सिर्फ 19 फीसदी मतदाता ही अभी शॉल्त्स के कामों से संतुष्ट हैं. यह संस्थान 1997 के बाद से लोगों के बीच जनमत सर्वेक्षण करा रही है. उस समय जर्मनी के चांसलर हेल्मुट कोल थे. सर्वेक्षण से पता चलता है कि तब से लेकर अब तक कोई भी चांसलर इतना ज्यादा अलोकप्रिय नहीं रहा है, जितने शॉल्त्स हैं.

डीडब्ल्यू के साथ बातचीत में एक महिला ने कहा, "लोगों को सीधे तौर पर सिर्फ यह बताने की जरूरत है कि हम काफी मुश्किलों का सामना कर रहे हैं. यह मुश्किल दौर लंबे समय तक जारी रह सकता है.” शॉल्त्स यही काम नहीं कर रहे हैं. वह सिर्फ तब बोलते हैं, जब उन्हें लगता है कि ऐसा करना बहुत जरूरी है. जब भी वह सार्वजनिक मंच पर कुछ बोलते हैं, तो वह हमेशा संक्षिप्त, संजीदा और तथ्यात्मक होता है. वह अपने संदेश के जरिए जनता को खुश करने की कोशिश करते हैं. उन्हें आश्वासन देते हैं कि सब कुछ ठीक हो जाएगा, लेकिन लोगों को उनकी बातों पर विश्वास नहीं हो रहा है.

जर्मन चांसलर ने दिया उम्मीद और मिलजुल कर काम करने पर जोर

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संवाद की जरूरत

बर्लिन स्थित जर्मन इंस्टिट्यूट फॉर इकोनॉमिक रिसर्च (डीआईडब्ल्यू) के अध्यक्ष मार्सेल फ्राचर ने डीडब्ल्यू को बताया, "बेशक, गंभीर समस्याएं हैं. ओलाफ शॉल्त्स को पूरी बातें साफ तौर पर जनता के सामने रखनी होगी. उन्हें इस बारे में ईमानदारी से और खुलकर बोलना चाहिए कि सरकार क्या कर सकती है और क्या नहीं. उन्हें विनम्रता दिखानी चाहिए और अपना नजरिया बताना चाहिए. सबसे जरूरी बात यह है कि उन्हें आम जनता के साथ-साथ कारोबारियों को भी संबोधित करना चाहिए और उनका विश्वास हासिल करना चाहिए.”

जनता की उम्मीदों को बेहतर तरीके से प्रबंधित करने की जरूरत है. ऐसा नहीं है कि शॉल्त्स कुछ नहीं कर रहे हैं. वह अपने कार्यालय में बैठकर देश की तमाम समस्याओं पर नजर बनाए हुए हैं. चांसलर ऑफिस के मुताबिक, पूर्व चांसलर अंगेला मैर्केल की तुलना में शॉल्त्स ने नागरिकों से जुड़ने के लिए अधिक प्रयास किए हैं. हालांकि इनमें बड़े पैमाने पर ऐसे कार्यक्रम रहे हैं, जहां किसी खास वर्ग के लोग पहुंचे. जैसे, ग्रीन वीक में भाग लेना, किसी अस्पताल या कंपनी का दौरा करना या चांसलर कार्यालय में कारोबारियों के साथ बैठक करना.

दिसंबर 2023 के आखिरी दिनों और जनवरी 2024 की शुरुआत में शॉल्त्स ने बाढ़ से तबाह हुए इलाकों का दौरा किया और यूरोपीय चैंपियनशिप में जर्मन हैंडबॉल टीम के शुरुआती मैच में पहुंचे. उनके इन दौरे से पता चलता है कि लोगों के बीच उनकी छवि किस तरह की बन चुकी है. लोगों ने शॉल्त्स का मजाक उड़ाया, उनका अपमान किया और उन्हें उलाहना दिया.

स्टर्नबर्ग झील के किनारे पर मौजूद छोटे शहर तुत्सिंग में एकेडमी ऑफ पॉलिटिकल एजुकेशन की निदेशक उर्सुला मुंच ने डीडब्ल्यू को बताया, "चांसलर के संदेश आम जनता तक सही तरीके से पहुंच ही नहीं पा रहे हैं. सब कुछ देखने का यह मतलब नहीं होता कि आप वास्तव में कोई महत्वपूर्ण काम कर रहे हैं. लोगों को लग रहा है कि चांसलर ने शुरू में जो वादा किया था, उस हिसाब से काम नहीं कर रहे हैं.”

उर्सुला उस बात की ओर इशारा करती हैं, जब शॉल्त्स ने कहा था, "जो मेरे नेतृत्व में काम करना चाहता है, उसे मेरा पूरा साथ मिलेगा.” वह कहती हैं कि जनता की नजर में एक चांसलर को नेतृत्व करने में सक्षम होना चाहिए. हालांकि एसडीपी, ग्रीन और एफडीपी के गठबंधन में चांसलर खुद को बॉस से ज्यादा मॉडरेटर के रूप में देखते हैं.

अलोचकों की नजर में, शॉल्त्स अंतरराष्ट्रीय मंच पर भी सही से नेतृत्व नहीं कर पा रहे हैं. वह दावोस में आयोजित वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम में शामिल नहीं हुए थे. उनके शामिल न होने की कोई वजह भी नहीं बताई गई थी.

इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि शॉल्त्स को लेकर उनकी पार्टी में भी नाराजगी बढ़ रही है. पत्रिका ‘डेय स्पीगल' पहले से ही यह रिपोर्ट कर रही है कि 2025 में होने वाले चुनाव में मौजूदा रक्षा मंत्री बोरिस पिस्टोरियस को एसडीपी की तरफ से चांसलर पद का उम्मीदवार बनाने के लिए गुप्त बैठकें हो रही हैं. क्या शॉल्त्स ने इन अफवाहों पर किसी तरह की प्रतिक्रिया दी है? जवाब है, नहीं.

 

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