यूपी के गांव में मिले ‘मुगलकालीन’ सिक्कों की क्या कहानी है
२५ मई २०२३सहारनपुर जिले के ननौता कस्बे के हुसैनपुर गांव में लोग उस वक्त हैरान रह गए जब एक उपासना स्थल की चारदीवारी बनाने के लिए वहां खुदाई की जा रही थी. बाद में पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों को सूचना दी गई और सिक्कों को कब्जे में लेकर पुरातत्व विभाग को सूचित कर दिया गया. फिलहाल सिक्के पुरातत्व विभाग की टीम के आने तक प्रशासन की निगरानी में रखे हुए हैं और खुदाई का काम रुकवा दिया गया है.
सहारनपुर के पुलिस अधीक्षक (ग्रामीण) सागर जैन ने बताया कि खुदाई का काम पिछले कई दिनों से चल रहा था लेकिन रविवार को जब सिक्के मिले तो गांव वालों ने पुलिस को सूचना दी. सागर जैन ने बताया, "जो सिक्के मिले हैं, प्रथमद्रष्ट्या वे मुगलकालीन लगते हैं और इन सिक्कों पर अरबी या फारसी भाषा में कुछ लिखा गया है. पुरातत्व विभाग को इन सिक्कों की जानकारी दे दी गई है और फिलहाल खुदाई के काम को रोक दिया गया है. सिक्कों की संख्या करीब चार सौ है. पुरातत्व विभाग से ही इस बात की पुष्टि कराई जाएगी कि सिक्के किस धातु के हैं.”
क्या पुराना किला की खुदाई में निकलेगा प्राचीन इंद्रप्रस्थ
कैसे मिले सिक्के
स्थानीय लोगों के मुताबिक हुसैनपुर गांव के युवाओं की एक समिति गांव के खेड़ा स्थल के सुंदरीकरण के लिए चारदीवारी बनवा रही थी और उसी के निर्माण के लिए नींव की खुदाई की जा रही थी. हुसैनपुर के ग्राम प्रधान प्रमोद कुमार के मुताबिक, "रविवार शाम जेसीबी मशीन से नींव खोदते वक्त वहां बनी एक समाधि उखड़ गई जिसे ग्रामीणों ने एक ओर हटा दिया. अगले दिन जब मजदूर उस जगह को समतल कर रहे थे तभी कुछ सिक्के दिखाई दिए. मिट्टी को पलटने पर नीचे चांदी के सिक्कों से भरा कच्चा घड़ा दिखाई दिया. घड़े के अंदर बड़ी संख्या में सफेद धातु के सिक्के भरे हुए थे. कुल 401 सिक्के मिले थे जिसे पुलिस को सौंप दिया गया.”
गांव के ही रहने वाले राजबीर सिंह ने डीडब्ल्यू को बताया कि यह गांव करीब 350 साल पुराना है और उनके पूर्वज किसी दूसरे गांव से आकर यहां बसे थे. उनके मुताबिक, "पहले यहां जंगल था. पूर्वजों ने यहां आने के बाद खेड़ा स्थापित किया जो आज भी है और गांव के लोग यहां पूजा-पाठ करते हैं. यहीं एक महात्मा निश्चलगिरि की समाधि भी बनी हुई है.”
स्थानीय पत्रकार आरके पुंडीर बताते हैं कि गांवों में खेड़ा या भूमियाखेड़ा उस जगह को कहते हैं जहां गांव वाले पूजा-पाठ करते हैं. उनके मुताबिक, "जब पहली बार गांव बसाया जाता है तो पूजा स्थल जैसी एक जगह बनाकर उसके ऊपर छोटा सा गुंबद बना दिया जाता था. ऐसा माना जाता है कि यही गांव की रक्षा करेंगे. लगभग सभी गांवों में ऐसी जगह मिलेगी. यहां सभी गांव के लोग पूजा-पाठ करते हैं और देखभाल भी करते हैं. ये जगह भी वही है. इसकी देख-रेख के लिए गांव के युवाओं ने एक कमेटी बना रखी है. ग्रामीणों द्वारा ही बाउंड्री बनाकर इसका सुंदरीकरण किया जा रहा था और उसी दौरान ये सिक्के मिले हैं.”
फतेहपुर सीकरी में मिला 16वीं शताब्दी का नायाब खजाना
मुगलकाल के सिक्के
स्थानीय इतिहासकार राजीव उपाध्याय ने मीडिया से बातचीत में बताया कि खुदाई में निकले सिक्के मुगल बादशाह शाह आलम द्वितीय के शासनकाल के प्रतीत होते हैं. उनके मुताबिक ये सिक्के चांदी के बने हुए हैं जिन पर फारसी में कुछ लिखा हुआ है. उन्होंने बताया कि उस समय सहारनपुर में टकसाल हुआ करती थी और शायद ये सिक्के उसी टकसाल के बने हुए हैं. हालांकि इस बारे में स्पष्ट रूप से पुरातत्व विभाग के विशेषज्ञ ही जांच के बाद बता सकेंगे.
राजीव उपाध्याय के मुताबिक मुगल बादशाह अकबर ने सहारनपुर को सरकार का दर्जा भी दिया था जिसमें यमुनानगर से लेकर देहरादून, हरिद्वार और पश्चिमी उत्तर प्रदेश का बड़ा भू-भाग शामिल था.
इस इलाके में पहले भी मुगलकालीन सिक्के मिलते रहे हैं. अभी कुछ दिनों पहले ही औरैया जिले के कोतवाली इलाके में एक मकानी की खुदाई के दौरान भी ईंट और कुछ सिक्के मिले थे. इस मकानी की एक पुरानी दीवार गिरने के बाद मिट्टी की खुदाई की जा रही थी.
पिछले साल हमीरपुर जिले में केन नदी के किनारे भी मुगलकालीन सिक्के मिले थे. इन सिक्कों पर अरबी और फारसी भाषा में लिखा हुआ था. बाद में पुलिस ने ये सिक्के कब्जे में लेकर पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग को भेज दिए थे.
इलाहाबाद विश्वविद्यालय में मध्यकालीन और आधुनिक इतिहास के विभागाध्यक्ष रहे प्रोफेसर हेरम्ब चतुर्वेदी कहते हैं कि उत्तर मुगलकाल में रूहेलखंड बनने के बाद तो इस इलाके का महत्व काफी बढ़ ही गया लेकिन चौदहवीं शताब्दी में तुगलक काल से ही यह इलाका आबाद था. यहां तक कि प्राचीन काल में भी यहां के कई शहरों का ना सिर्फ अस्तित्व था बल्कि महत्वपूर्ण भी थे.
प्रोफेसर चतुर्वेदी बताते हैं, "अठारहवीं शताब्दी में जब मुगल साम्राज्य कमजोर होने लगा तो इस इलाके में मुख्य रूप से तीन राज्य बने- बंगश, रोहिल्ला और अवध में शिया. पूर्वी और उत्तर भारत से दिल्ली जाने वाले लोग भी कई बार रास्ता भटकने पर यही रूट लेते थे. मेरठ-सहारनपुर का क्षेत्र काफी महत्वपूर्ण था. ऐसे में इन इलाकों में मुगलकालीन या उससे भी पहले के सिक्कों का मिलना कोई आश्चर्यजनक नहीं है.”
सिक्कों पर लिखे लेख के बारे में प्रोफेसर चतुर्वेदी का कहना है कि ज्यादातर संग्रहालयों में मुद्राशास्त्र के विशेषज्ञ होते हैं और वही इन्हें पढ़कर इनके बारे में बता सकते हैं कि ये वास्तव में किसके शासनकाल के हैं.