अपने दकियानूसी विचारों के लिए बदनाम हरियाणा की लड़कियां पहलवानी में छाई हुई हैं. इस बार निशाना रियो ओलंपिक है. एक ही परिवार की तीन लड़कियां रियो जा रही हैं.
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विनेश फोगाट जिस तरह अपनी प्रतिद्वन्द्वियों को पटकती हैं, उसे देखकर एक बात तो साफ हो जाती है कि अबला जैसा शब्द उनके लिए नहीं है. लेकिन अबला और महिला होने की सारी परेशानियों से दूर फोगट इस वक्त रियो ओलंपिक के लिए अपनी दांव पक्के करने में जुटी हैं. वह भारत की ओर से कुश्ती में हिस्सा लेने रियो जा रही हैं. हां, फोगाट भले ही ऐसा नहीं सोचतीं कि वह महिला हैं और भारत के उस समाज से आती हैं जहां आज भी लड़कियों को इज्जत के नाम पर कत्ल किया जाता है, लेकिन उन्होंने बेड़ियां तो तोड़ ही दी हैं.
विनेश, उनकी चचेरी बहन बबीता और दोस्त साक्षी मलिक, तीनों ने ओलंपिक के लिए क्वॉलिफाई किया है. तीनों हरियाणा की रहने वाली हैं जो अपनी ऑनर किलिंग्स और खराब लैंगिक अनुपात के लिए बदनाम है. विनेश और साक्षी को वे पल याद आते हैं जब गांव वाले उन्हें लड़कों के साथ कुश्ती करता देख नाक-भौं सिकोड़ा करते थे क्योंकि उनके गांव में तो ज्यादातर औरतें मुंह तक ढककर रखती हैं. 21 साल की विनेश बताती हैं, "जब हम प्रैक्टिस के लिए शॉर्ट्स पहनती थीं तो लोग बड़ी गंदी निगाहों से हमें देखते थे. वे हमारे बारे में तरह तरह की बातें करते और कहते कि यह गलत है." वैसे विनेश का पूरा परिवार ही पहलवानी में है.
तस्वीरों में: क्या मेकअप सिर्फ लड़कियों के लिए?
मेकअप सिर्फ लड़कियों के लिए?
कौन कहता है कि मेकअप और ब्यूटी पार्लर सिर्फ महिलाओं के लिए होता है. आजकल पुरुष भी इस साज सज्जा में पीछे नहीं. चाहे आइब्रो हो या वैक्सिंग.. या फिर फेशियल.. सभी पुरुषों के लिए भी है.
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ब्यूटी
किसी जमाने में पुरुषों के सीने पर बाल होना या पीठ पर बाल होना किसी को परेशान नहीं करता था. लेकिन आजकल इन्हें हटा देने का फैशन है. शेविंग से बचना ठीक है क्योंकि इससे बाल और कड़े और त्वचा संवेदनशील हो जाती है. ध्यान न रखा जाए तो स्किन एलर्जी भी हो सकती है.
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सुंदर भवें
वर्ल्ड कप फाइनल में जर्मनी को जिताने वाले मारियो गोएत्से का चेहरा हमेशा एकदम चमकता दमकता रहता है. उनकी भवें सुंदर बनी हुई और चेहरा एकदम सुंदर. फिर वो मैच खेलें या फिर विज्ञापन की शूटिंग.
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मोटी चमड़ी
कहा जाता है कि मर्दों की त्वचा मोटी होती है इसलिए उसे देखरेख की कोई जरूरत नहीं. वैज्ञानिक तौर पर यह सही भी है. डॉक्टरों के मुताबिक पुरुषों की त्वचा महिलाओं की तुलना में पांच गुना मोटी होती है. और उनकी त्वचा का पीएच मानक भी ज्यादा होता है. लेकिन उसकी देखभाल तो फिर भी जरूरी है.
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नियमित क्रीम जरूरी
त्वचा मोटी होने के कारण धूल धूप का असर मर्दों पर तुलनात्मक रूप से कम होता है. लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि चेहरे का बिलकुल की ख्याल न रखा जाए. खासकर 40 के बाद चेहरे की त्वचा रूखी होने लगती है. ऐसे समय में नमी देने वाली क्रीम जरूरी है.
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ध्यान देना जरूरी
शेविंग के बाद अगर तुरंत साबुन और अति अल्कोहल वाले आफ्टरशेव का इस्तेमाल बार बार किया जाए, तो यह त्वचा को नुकसान पहुंचाता है. इसलिए नमी देने वाली क्रीम और अच्छे आफ्टर शेव का इस्तेमाल जरूरी है. शेविंग के बाद त्वचा रूखी होती हो तो वैसलीन सबसे बढ़िया उपाय है.
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फेयर एंड हैंडसम!!
उपभोक्तावाद के इस दौर में जो दिखता है वही चलता है. इसी तर्ज पर अब ढीले, बुरी दाढ़ी और बालों वाले मर्द कम पसंद किए जाते हैं. यही कारण है कि हैंडसम और फेयर बनाने के वादे वाली क्रीम भारतीय बाजार में भरी पड़ी हैं.
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टैटू और पियर्सिंग
कान नाक छिदवाना आधुनिक समाज में लंबे समय तक महिलाओं से जुड़ा रहा. जबकि आदिवासी समाज दिखाता है कि पुरुष भी गुदना और पियर्सिंग करवाते रहे हैं. आजकल कई देशों में इनका खूब चलन है.
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सुंदरता का आकर्षण
साफ सुथरा चेहरा और उतने ही साफ हाथ और पैर के नाखून.. जितना यह पुरुषों को आकर्षित करते हैं उतना ही महिलाओं को भी. तो अपना ख्याल रख अपनी जीवन साथी को खुश करने में हर्ज ही क्या है...
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हरियाणा में लड़कियों की स्थिति आज भी ज्यादा अच्छी नहीं है. 1000 पुरुषों पर सिर्फ 877 महिलाएं जो कि देश में सबसे खराब लैंगिक अनुपात है. आलम यह है कि लड़कियों की कमी के कारण लड़कों की शादियां भी नहीं हो पा रही हैं. ऐसे में साक्षी मलिक जब बड़ी हो रही थीं तो लोग उनके परिवार को कहते थे कि बेटी को पहलवानी ना सिखाएं क्योंकि उससे उनके कान बड़े हो जाएंगे और फिर शादी नहीं होगी. पहलवानों में कान बड़े हो जाना आम बात है. 23 साल की मलिक कहती हैं, "दुख तो होता था. मैं सोचती थी कि लोग ऐसी बातें क्यों करती हैं. तब तो मैं इतनी छोटी थी. इसे मुझे भी खुद पर संदेह होने लगा था." मलिक ने सिर्फ 12 साल की उम्र में कुश्ती शुरू कर दी थी.
लेकिन, लड़की होने के मायने बदलतीं इन लड़कियों की सोच बबीता फोगाट की बड़ी बहन गीता ने बदली. गीता फोगाट भी पहलवान हैं और 2010 के कॉमनवेल्थ गेम्स में उन्होंने गोल्ड मेडल जीता था. वह ओलंपिक के लिए क्वॉलिफाई करने वाली पहली महिला पहलवान बनी थीं.
देखें, ओलंपिक्स की सबसे पुरानी तस्वीरें
ओलंपिक की सबसे पुरानी तस्वीरें
ओलंपिक खेल दुनिया के सबसे बड़े खेल हैं, सिर्फ आकार और संख्या के कारण नहीं बल्कि भावनाओं के कारण भी. देखिए, ऐतिहासिक उद्घाटन समारोहों की कुछ ऐतिहासिक तस्वीरें...
तस्वीर: Reuters
1896, पहला आधुनिक ओलंपिक
पहली बार ओलंपिक प्राचीन ग्रीक में 776 बीसी में हुए थे. लेकिन 339 एडी में इन्हें थिओडोसियस ने बंद करा दिया. फ्रांसीसी नागरिक पिएरे डा कूबर्टिन की कोशिशों से ये फिर शुरू हुए. अप्रैल 1896 में पहले आधुनिक ओलंपिक खेल हुए.
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1920, एंटवर्प
पहला विश्व युद्ध खत्म होने के दो साल बाद एंटवर्प में ओलंपिक हुए. बेल्जियम के इस शहर में उस ओलंपिक प्लैग को पहली बार फहराया गया, जिसे 1913 में डिजायन किया गया था.
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1928, ऐम्सटर्डम
यहां पहली बार एक व्यवस्था बनाई गई कि ओलंपिक समारोह में क्या कैसे और कब होगा. ग्रीक टीम ने स्टेडियम में सबसे पहले प्रवेश किया. उसके पीछे अल्फाबेटिकल ऑर्डर में बाकी देश आए.
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1936, बर्लिन
एथेंस से ओलंपिक मशाल की यात्रा बर्लिन ओलंपिक से ही शुरू हुई थी.
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1936, नाजी जर्मनी
बर्लिन में पहली बार नाजी जर्मनी का झंडा दिखा. और एक मजेदार बात भी हुई. हैती और लिष्टेनश्टाइन की टीमें अपने-अपने झंडे लेकर आईं तो पता चला कि दोनों के झंडे एकदम एक जैसे हैं.
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1964, टोक्यो
हिरोशिमा बेबी के नाम से चर्चित हुए योशिनारी सकाई ने टोक्यो में मशाल जलाई. सकाई का जन्म 6 अगस्त 1945 को हुआ था, जिस दिन अमेरिका ने जापान पर परमाणु बम गिराया था.
तस्वीर: Getty Images
1980, मॉस्को
ओलंपिक में राजनीति का खेल भी होता है. मॉस्को में इसकी सबसे बड़ी मिसाल दिखी जब ब्रिटेन, जापान और पश्चिमी जर्मनी ने खेलों का बहिष्कार किया.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo
1992, बार्सिलोना
पहली बार तीर से मशाल जलाई गई. कैटालोनिया के विकलांग खिलाड़ी ने तीर चलाया. उस वक्त मशाल के पास एक अधिकारी उसे जलाने के लिए पहले से तैयार खड़ा था.
तस्वीर: picture-alliance/Lehtikuva Oy
1996, अटलांटा
उस साल मोहम्मद अली का जादू साफ दिखा. वह ठीक से खड़े भी नहीं हो पा रहे थे. उन्होंने मशाल जलाई और लोगों की आंखें भीग गईं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
2004, एथेंस
आइसलैंड की आर्टिस्ट बजोर्क ने अपना गीत ओशियाना पेश किया था लेकिन चर्चा उनकी ड्रेस की रही जो 10 हजार स्क्वेयर फुट के आकार के नक्शे को ढक रही थी.
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2008, बीजिंग
यह सबसे महंगा ओलंपिक उद्घाटन समारोह था. इसके लिए चीन ने 10 करोड़ डॉलर खर्च किए थे. 14,000 परफॉर्मर्स ने इसमें परफॉर्म किया था.
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2012, लंदन
लंदन में क्वीन एलिजाबेथ ने उद्घाटन किया था. इस तरह वह दो देशों के ओलंपिक में उद्घाटन करने वालीं पहली राष्ट्रप्रमुख बनीं. 1976 में मॉन्ट्रियाल ओलंपिक का उद्घाटन भी उन्होंने ही किया था, बतौर कनाडा की महारानी के.
तस्वीर: Reuters
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वैसे, यह भी छोटी बात नहीं है कि इन लड़कियों की सफलता के पीछे एक पुरुष है जो लौह बनकर खड़ा रहा है. महावीर सिंह फोगाट खुद एक पहलवान रहे हैं. वह अपनी इन बच्चियों को किसी भी पुरुष से ज्यादा ताकतवर बनाने के लिए मेहनत करते रहते हैं. विनेश उनकी भतीजी हैं. वह कहती हैं, "वह लड़कों को उतना नहीं डाटंते थे जितना हमें डांटते थे. वह हमेशा कहते थे कि तुम उनसे कमजोर नहीं हो." विनेश बताती हैं कि महावीर के हाथ में हमेशा एक छड़ी होती थी. जब दूसरे माता-पिता अपनी बेटियों को शादी के लिए तैयार कर रहे थे तब महावीर उन्हें कुश्ती के दांव सिखा रहे थे. वह बताते हैं, "हरियाणा में जो संस्कृति है, उसके हिसाब से यह आसान तो नहीं था. गांव वालों ने तो मुझसे बात करना ही बंद कर दिया था. मेरे अपने माता-पिता मुझे रोज कोसते थे. यह सब बकवास सुनकर मुझे गुस्सा भी बहुत आता था. लेकिन मैं बस लगा रहा यह सोचकर कि इन सबको गलत साबित करूंगा. मुझे लोगों को दिखाना था कि ये लड़कियां कुछ भी कर सकती हैं."
जानें, रियो ओलंपिक को 0 से 206 तक
रियो ओलंपिक 0 से 206 तक
रियो ओलंपिक्स में एक महीने से भी कम वक्त रह गया है. 5 अगस्त से दुनिया का सबसे बड़ा खेल मेला शुरू होगा. तो पेश है, एक झलक आंकड़ों में...
तस्वीर: picture-alliance/dpa/M. Sayao
0 मेडल
ब्राजील को फुटबॉल का पावर हाउस कहा जाता है लेकिन उसने आज तक इस खेल में एक भी मेडल नहीं जीता है.
तस्वीर: Reuters/S. Moraes
1 टीम
ओलंपिक में पहली बार एक ऐसी टीम होगी जिसका कोई देश नहीं होगा. यह प्रवासियों की टीम होगी.
तस्वीर: Getty Images/AFP/V. Almeida
5 लाख देखने वाले
यह संख्या ही है जो ब्राजील की सबसे बड़ी उम्मीद है. अनुमान है कि खेलों को देखने के लिए पांच लाख टूरिस्ट आएंगे और बहुत सारा बिजनस लाएंगे.
तस्वीर: Reuters/P. Olivares
16 किलोमीटर मेट्रो
रियो में ओलंपिक की तैयारी के लिए 16 किलोमीटर लंबी अतिरिक्त मेट्रो लाइन बिछाई गई है. यह किसी भी खेल आयोजन के लिए अब तक का सबसे बड़ा प्रोजेक्ट था.
तस्वीर: picture-alliance/Rio City Hall/Renato Sette Camara
17 हजार मेहमान
रियो में लगभग 17 हजार मेहमान पहुंच रहे हैं जिनमें से 11 हजार तो सिर्फ खिलाड़ी हैं. बाकी अधिकारी और उनके सहयोगी हैं.
तस्वीर: Reuters/U. Marcelino
25 हजार पत्रकार
दुनिया के सबसे बड़े खेल आयोजन की रिपोर्टिंग करने के लिए खिलाड़ियों से ज्यादा पत्रकार होंगे. हर खिलाड़ी पर दो से ज्यादा पत्रकार.
तस्वीर: Getty Images/AFP/E. Sa
हरेक के लिए 41 कॉन्डम
रियो में 11 हजार ऐथलीट्स के लिए 45 हजार कॉन्डम इंतजार कर रहे हैं. यानी हर खिलाड़ी के लिए करीब 41 कॉन्डम.
तस्वीर: Reuters/S. Moraes
75 लाख टिकट
सभी प्रतियोगिताओं के लिए कुल 75 लाख टिकट रखे गए हैं. अभी ज्यादा टिकट बिके नहीं हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/M.Sayao
78 हजार सीटें
जिस माराकाना स्टेडियम में उद्घाटन और समापन समारोह होगा वहां 78 हजार लोग बैठ सकते हैं.
तस्वीर: Getty Images/AFP/V. Almeida
80 हजार कुर्सियां
देखने वालों के लिए खेल गांव में 80 हजार कुर्सियां रखी गई हैं. मेहमानों के लिए 3604 फ्लैट बनाए गए हैं जिन्हें खेलों के बाद बेच दिया जाएगा.
तस्वीर: Getty Images/M. Tama
206 देश
रियो ओलंपिक्स में 206 देशों के खिलाड़ी हिस्सा ले रहे हैं.
तस्वीर: Reuters/Y. Behrakis
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और कॉमनवेल्थ गेम्स में भारत की महिला पहलवानों को मिले मेडल ने सब बदल दिया. उसके बाद सबकी नजरें बदल गईं और उनमें सम्मान आ गया. अब ये लड़कियां रियो ओलंपिक के लिए मेहनत कर रही हैं और अगर वहां एक भी मेडल आ गया तो यह ऐसा इतिहास होगा जिसके नक्श ए कदम से लाखों लड़कियों की जिंदगी बदल जाएगी.