पति के साथ रहने पर मजबूर नहीं किया जा सकताः हाई कोर्ट
३१ दिसम्बर २०२१
गुजरात हाई कोर्ट ने कहा है कि किसी महिला को अपने पति के साथ रहने और संबंध बनाने के लिए कोर्ट के आदेश द्वारा भी मजबूर नहीं किया जा सकता. एक स्थानीय परिवार न्यायालय के फैसले को पलटते हुए कोर्ट ने यह आदेश दिया है.
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मुस्लिम परिवार से संबंधित एक मामले में गुजरात हाई कोर्ट ने अहम टिप्पणी की है. अदालत ने कहा कि मुस्लिम कानून बहुविवाह की इजाजत देता है लेकिन इसे प्रोत्साहित नहीं करता. कोर्ट ने कहा कि इस कानून के आधार पर किसी महिला को पति के साथ रहने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता और पहली पत्नी अपने पति के साथ रहने से इनकार कर सकती है.
कोर्ट ने टिप्पणी की, "भारत में जो मुस्लिम कानून लागू किया जाता है, उसमें बहुविवाह की संस्था को सहन तो किया जाता है लेकिन प्रोत्साहित नहीं किया जाता. इसके तहत किसी पति को अपनी पत्नी को किसी अन्य महिला के साथ मिल जुलकर रहने के लिए मजबूर करने का मूलभूत अधिकार नहीं मिल जाता."
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साथ रहना अन्यायपूर्ण ना हो
गुजरात हाई कोर्ट ने दिल्ली हाई कोर्ट के एक हालिया आदेश का भी संदर्भ दिया जिसमें दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा था कि यूनिफॉर्म सिविल कोड संविधान में बस एक उम्मीद बनकर नहीं रहना चाहिए. समान नागरिक संहिता या यूनिफॉर्म सिविल कोड देश के सभी नागरिकों के लिए एक जैसा कानून लागू करने का विचार है, जिसे सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी जरूरी बताती है.
गुजरात हाई कोर्ट में जस्टिस जेबी पार्डीवाला और जस्टिस नीरल मेहता की खंडपीठ ने कहा कि शारीरिक संबंधों की पुनर्स्थापना का अधिकार सिर्फ पति के अधिकारों पर निर्भर नहीं करता है और परिवार न्यायालय को इस बात पर भी ध्यान देना चाहिए कि महिला को पति के साथ रहने के लिए मजबूर करना अन्यायपूर्ण तो नहीं होगा.
क्या है मामला?
यह आदेश एक महिला द्वारा दायर याचिका के जवाब में दिया गया है. इस महिला ने जुलाई 2021 के परिवार न्यायालय के एक आदेश को चुनौती दी थी. परिवार न्यायालय ने इस महिला को आदेश दिया था कि अपने ससुराल वापस जाए और वैवाहिक जिम्मेदारियां निभाए. इस महिला का निकाह 25 मई 2010 को बनासकांठा में हुआ था और शादी से उसे एक बेटा है जिसका जन्म जुलाई 2015 में हुआ था.
तस्वीरों मेंः क्या है यूनिफॉर्म सिविल कोड
यूनिफॉर्म सिविल कोड की 10 अहम बातें
हर थोड़े दिनों में यूनिफॉर्म सिविल कोड यानी समान नागरिक संहिता को लेकर राजनीतिक गलियारों में बहस शुरू हो जाती है. जानिए कि यह समान नागरिक संहिता है क्या और इसके लागू होने से क्या बदलाव आएंगे.
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एक देश, एक कानून
समान नागरिक संहिता या यूनिफॉर्म सिविल कोड देश के सभी नागरिकों के लिए एक जैसा कानून लागू करने की कोशिश है.
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क्या बदलेगा
इसके तहत संपत्ति के अधिकार के अलावा शादी, तलाक, गुजारा भत्ता, बच्चा गोद लेने और वारिस तय करने जैसे विषयों पर सब लोगों के लिए एक कानून होगा.
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अभी क्या नियम है
अभी भारत इसके अलग-अलग नियम हैं. मतलब संपत्ति और तलाक के नियम हिंदुओं को लिए कुछ और हैं, मुसलमानों के लिए कुछ और ईसाइयों के लिए कुछ और.
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समान संहिता का विरोध
भारत में मुस्लिम पसर्नल लॉ बोर्ड समान नागरिक संहिता का विरोध करता है. वह इसे इस्लामी नियमों और सिद्धातों में हस्तक्षेप मानता है.
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दखल
सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि समान नागरिक संहिता से लैंगिक भेदभाव को कम करने में मदद मिलेगी, जबकि कई मुस्लिम समुदाय इसे अपने धार्मिक मामलों में दखल के तौर पर देखते हैं.
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संहिता एक हल
दूसरी तरफ, तीन तलाक जैसे मुद्दों का विरोध करते हुए लोग कहते हैं कि समान नागरिक संहिता एक हल है. अब सरकार ने त्वरित तीन तलाक को अपराध बना दिया है. ऐसा करने पर सजा का प्रावधान है.
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भाजपा के एंजेडे में
समान नागरिक संहिता को लागू करना दशकों से भारतीय जनता पार्टी के एजेंडे में रहा है.
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सियासत
समान नागरिकता संहिता सियासी मुद्दा रहा है, जिससे वोट बैंक बनते-बिगड़ते रहे हैं. इस सिलसिले में 1985 का शाह बानो केस अहम माना जाता है.
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पलट दिया फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया कि 60 वर्षीय शाह बानो तलाक के बाद अपने पति से गुजारा भत्ता पाने की हकदार है. लेकिन मुस्लिम पर्सनल बोर्ड के कड़े विरोध के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने संसद के जरिए इस फैसले को पलटवा दिया.
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गुजारा भत्ता
वैसे, बाद में एक अन्य फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने इद्दत की अवधि के बाद मुस्लिम महिलाओं को गुजारा भत्ता दिए जाने का फैसला सुनाया. इद्दत तलाक के बाद की वो अवधि होती है जिसमें महिला दूसरी शादी नहीं कर सकती.
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एक सरकारी अस्पताल में बतौर नर्स काम कर रही इस महिला ने 2017 में अपने ससुराल को यह कहकर छोड़ दिया था कि वे उस पर ऑस्ट्रेलिया जाने और काम करने के लिए दबाव डाल रहे थे. अपनी याचिका में महिला ने कहा कि वह ऑस्ट्रेलिया नहीं जाना चाहती थी इसलिए उसने अपने बेटे के साथ ससुराल छोड़ दिया.
महिला के पति की दलील है कि उसने बिना किसी कानूनी आधार के घर छोड़ा. महिला की याचिका स्वीकार करते हुए हाई कोर्ट ने सिविल प्रोसीजर कोड (सीपीसी) के नियम 21 का हवाला देते हुए कहा कि "कोई व्यक्ति किसी महिला या अपनी पत्नी को साथ रहने और शारीरिक संबंध बनाने पर मजबूर नहीं कर सकता. अगर पत्नी साथ रहने से इनकार करती तो किसी आदेश के तहत भी उसे शारीरिक संबंध बनाने को मजबूर नहीं किया जा सकता."
हालांकि कोर्ट ने इस बात को माना कि परिवार न्यायालय का फैसला इस आधार पर था कि "महिला कामकाजी होने के कारण अपनी घरेलू जिम्मेदारियों को निभा नहीं पा रही थी इसलिए प्रताड़ना का बहाना बनाकर घर छोड़ गई." लेकिन उच्च न्यायालय ने कहा कि "कानून के बारे में हमारी अवधारणाएं इस तरह से बदलनी चाहिए कि उन्हें आधुनिक सामाजिक हालात के साथ लाया जा सके."
रिपोर्टः विवेक कुमार
घरेलू हिंसा पर क्या कहती हैं भारतीय महिलाएं
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के डेटा से पता चलता है घरेलू हिंसा के बारे में महिलाओं की क्या सोच है और वे इसे कितना जायज मानती हैं.
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घरेलू हिंसा जायज?
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) के ताजा सर्वे के मुताबिक तीन राज्यों तेलंगाना (84 प्रतिशत), आंध्र प्रदेश (84 प्रतिशत) और कर्नाटक में (77 प्रतिशत) से अधिक महिलाओं ने पुरुषों द्वारा अपनी पत्नियों की पिटाई को सही ठहराया.
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महिलाओं और पुरुषों की राय
एनएफएचएस ने 14 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के पुरुषों और महिलाओं की घरेलू हिंसा पर राय ली. तेलंगाना और आंध्र प्रदेश की 83 प्रतिशत से अधिक महिलाओं ने खुद माना है कि पति द्वारा उनके खिलाफ हिंसा सही है. कर्नाटक की 80 प्रतिशत महिलाओं का ऐसा ही मानना है.
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पिटाई पर पुरुषों का पक्ष
घरेलू हिंसा पर इसी सवाल के जवाब में सबसे अधिक कर्नाटक में (81.9 प्रतिशत) पुरुषों ने इसको जायज माना है. पत्नियों की पिटाई को सबसे कम (14.2 प्रतिशत) हिमाचल प्रदेश के पुरुषों ने जायज माना.
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हिमाचल में सबसे कम सहमति
पतियों द्वारा पिटाई को जायज ठहराने वाली महिलाओं की सबसे कम संख्या हिमाचल प्रदेश में 14.8 प्रतिशत थी.
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क्या था सवाल?
इस सर्वे में सवाल किया गया था: "आपकी राय में पति का अपनी पत्नी को पीटना या मारना जायज है?" इस सर्वे में कई तरह की परिस्थितियों को भी शामिल किया गया था.
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घरेलू हिंसा का आम कारण
सर्वे के मुताबिक घरेलू हिंसा को सही बताने वाले सबसे आम कारणों का हवाला दिया गया. सबसे आम कारण जो सामने आए वे थे ससुराल वालों का अनादर करना और घर व बच्चों की उपेक्षा करना.
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घरेलू हिंसा एक वैश्विक समस्या
भारत ही नहीं कई विकसित देशों में भी घरेलू हिंसा आम समस्या है. अमेरिका और यूरोपीय देशों में भी महिलाएं इसकी शिकार होती हैं. हर साल 25 नवंबर को अंतरराष्ट्रीय महिला हिंसा उन्मूलन दिवस मनाया जाता है. इस दिन को दुनिया भर में महिला हिंसा के खिलाफ जागरूकता बढ़ाने के लिए मनाया जाता है.
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हिंसा की शिकार होतीं महिलाएं
लैंगिक बराबरी के लिए काम करने वाली संयुक्त राष्ट्र की संस्था यूएन वीमेन के मुताबिक दुनिया भर में हर तीसरी महिला के साथ शारीरिक या यौन हिंसा हुई है.