एक देश, एक चुनाव को लेकर केंद्र ने कमेटी बनाई
१ सितम्बर २०२३एक दिन पहले ही केंद्र सरकार ने 18 से 22 सितंबर के बीच संसद का विशेष सत्र बुलाने का ऐलान कर सबको चौंका दिया था. इस विशेष सत्र में पांच बैठकें होंगी, हालांकि संसद के इस विशेष सत्र का एजेंडा क्या होगा इसके बारे में आधिकारिक तौर पर कुछ नहीं बताया गया है.
राजनीतिक गलियारों में इस विशेष सत्र को बुलाने को लेकर अलग-अलग अटकलें लगाई जा रही हैं. कुछ लोगों का मानना है कि सरकार इस विशेष सत्र में कोई महत्वपूर्ण बिल पास करवा सकती है.
लेकिन शुक्रवार को न्यूज एजेंसी पीटीआई ने सूत्रों के हवाले से खबर दी कि केंद्र सरकार ने पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक देश, एक चुनाव को लेकर कानूनी पहलुओं पर विचार करने और इस पर रिपोर्ट सौंपेने के लिए एक कमेटी का गठन किया.
पिछले कुछ वर्षों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक साथ लोकसभा और राज्य विधानसभा चुनावों के विचार को दृढ़ता से आगे बढ़ाया है. इस पर विचार करने के लिए पूर्व राष्ट्रपति कोविंद को जिम्मेदारी सौंपने का निर्णय ऐसे समय में लिया गया है जब नवंबर-दिसंबर में पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव होने हैं, इसके बाद अगले साल मई-जून में लोकसभा के चुनाव होने हैं.
पहले भी हो चुके हैं साथ चुनाव
देश में 1952, 1957, 1962 और 1967 में एक साथ लोकसभा और विधानसभा चुनाव हो चुके हैं. 1968-69 में कुछ राज्य विधानसभाओं को समय से पहले भंग कर दिए जाने के बाद यह प्रक्रिया बंद हो गई.
हालांकि एक देश, एक चुनाव के लिए संवैधानिक संशोधन की आवश्यकता होगी और फिर इसे राज्यों की विधानसभाओं में ले जाने की जरूरत होगी.
2014 के अपने लोकसभा चुनाव घोषणापत्र में बीजेपी ने विधानसभा और लोकसभा चुनाव एक साथ कराने के लिए एक पद्धति विकसित करने का वादा किया था.
राजनीतिक दलों ने क्या कहा
मुंबई में विपक्षी गठबंधन इंडिया की बैठक में शामिल होने पहुंचे कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे से जब सवाल किया गया कि सरकार विशेष सत्र बुला रही है और एक देश, एक चुनाव का बिल ला सकती है तो उन्होंने कहा, "उन्हें लाने दीजिए, लड़ाई जारी रहेगी."
प्रधानमंत्री मोदी ने 2016 में एक साथ चुनाव कराने की बात कही थी और 2019 में लोकसभा चुनाव के तुरंत बाद उन्होंने इस मुद्दे पर चर्चा के लिए सर्वदलीय बैठक बुलाई थी. बैठक में कई विपक्षी दलों ने भाग नहीं लिया था.
मोदी तर्क देते रहे हैं कि हर कुछ महीनों में चुनाव कराने से देश के संसाधनों पर बोझ पड़ता है और शासन में रुकावट आती है.
इससे पहले कई विपक्षी नेता समय से पहले लोकसभा चुनाव होने की आशंका जता चुके हैं. कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने कहा, "एक देश, एक चुनाव को लेकर केंद्र सरकार की नीयत साफ नहीं है. अभी इसकी जरूरत नहीं है. पहले महंगाई और बेरोजगारी का निदान होना चाहिए."
आम आदमी पार्टी की प्रवक्ता प्रियंका कक्कड़ ने कहा, "इससे स्पष्ट रूप से पता चलता है कि वे डरे हुए हैं. इंडिया गठबंधन की पहली दो बैठकों के बाद उन्होंने एलपीजी की कीमतों में 200 रुपये की कमी की. अब वे संविधान में संशोधन करने के लिए तैयार हैं, लेकिन वे इसके साथ आगामी चुनाव नहीं जीत पाएंगे."
वहीं कांग्रेस नेता राशिद अल्वी ने कहा कि जो विशेष सत्र सरकार बुला रही उसको लेकर सस्पेंस हैं. उन्होंने मीडिया से बातचीत में कहा, "सत्र में कौन सा बिल आएगा, कौन सा बिल नहीं आएगा, मीडिया में चर्चा है कि वन नेशनल, वन इलेक्शन के लिए बिल आ सकता है. महिला आरक्षण के लिए बिल आ सकता है. यूनिफॉर्म सिविल कोड बिल आ सकता है. क्या देश के अंदर तानाशाही है. "
उन्होंने कहा, "अगर विशेष सत्र आपको बुलाना है तो आपको विपक्ष को विश्वास में लेना चाहिए. उनको बताना चाहिए कि विशेष सत्र क्यों बुला रहे हैं और कौन से बिल पास कराने हैं. इस देश में पहले भी विशेष सत्र बुलाए गए हैं लेकिन हमेशा विपक्ष को विश्वास में रखकर बुलाए गए हैं. "
जी20 सम्मेलन के बाद होने वाले इस विशेष सत्र को सियासी रूप से अहम माना जा रहा है. चर्चा है कि मौजूदा लोकसभा का यह आखिरी सत्र हो सकता है. यह भी कहा जा रहा है कि सत्र संसद की पुरानी इमारत से शुरू होकर नयी इमारत में खत्म हो सकता है.