दुनिया भर में एक तिहाई से ज्यादा पेड़ों की प्रजातियों पर विलुप्त होने का खतरा मंडरा रहा है, जिससे पृथ्वी पर जीवन संकट में पड़ सकता है. यह चेतावनी सोमवार को प्रकाशित एक रिपोर्ट में दी गई.
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सोमवार को जारी ‘ग्लोबल ट्री असेसमेंट‘ रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि धरती पर मौजूद पेड़ों की हर तीन में से एक प्रजाति पर विलुप्त होने का खतरा है. ‘इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर‘ (आईयूसीएन) की ‘रेड लिस्ट ऑफ थ्रेटेंड स्पीशीज‘ के तहत यह रिपोर्ट जैव विविधता पर संयुक्त राष्ट्र के कॉप16 शिखर सम्मेलन के दौरान जारी की गई, जो कोलंबिया के काली शहर में हो रहा है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि पेड़ों की 16,000 से अधिक प्रजातियों के विलुप्त होने का खतरा है. अध्ययन के लिए 47,000 से अधिक प्रजातियों का आकलन किया गया. इस अध्ययन में 1,000 से ज्यादा विशेषज्ञ शामिल थे. अनुमान है कि दुनियाभर में पेड़ों की 58,000 प्रजातियां हैं.
रिपोर्ट में कहा गया है कि जंगल तेजी से कम हो रहे हैं, पेड़ों को लकड़ी के लिए काटा जा रहा है और खेती और मानव विस्तार के लिए जमीन खाली की जा रही है. इसके अलावा, जलवायु परिवर्तन भी सूखा और जंगल की आग जैसी समस्याओं के कारण एक अतिरिक्त खतरा पैदा कर रहा है.
तो क्या जिराफ भी विलुप्त हो जाएगा!
पीले-भूरे चकत्तों से भरी चमकीली त्वचा और लंबी गर्दन वाला जिराफ दुनिया का सबसे लंबा जीव है. जिन जीवों को संरक्षण की जरूरत है, उनका नाम याद करिए तो शायद आप भी जिराफ को नहीं गिनेंगे. जबकि इसकी आबादी लगातार घट रही है.
तस्वीर: WANG Yu and GUO Xiaocong
जी फॉर जिराफ
जिराफ से हमारी पहचान बचपन जितनी पुरानी है. अंग्रेजी वर्णमाला सीखते हुए हमें सिखाया जाता है, जी फॉर जिराफ. एक शाकाहारी जीव, जिसका पसंदीदा खाना है अकेशिया के पत्ते. इस प्रजाति के पौधे उष्णकटिबंधीय और कटिबंधीय इलाकों में पाए जाते हैं. जिराफ भी इसी आबोहवा का जीव है. अफ्रीका के करीब 21 देश हैं, जो जिराफ का कुदरती घर माने जाते हैं. इसकी कई प्रजातियां और उपप्रजातियां हैं.
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इतनी ऊंचाई तक कैसे पहुंचती है जिराफ की जीभ
अकेशिया के पौधों का आकार अनूठा होता है. इसका ऊपरी हिस्सा ऐसा दिखता है मानो किसी ने छाता तान दिया हो. अपनी लंबी गर्दन के सहारे जिराफ की जीभ बड़े आराम से इसके ऊपरी हिस्सों तक पहुंच जाती है. जिराफ की तो जीभ भी बड़ी लंबी होती है. इसका आकार 18 इंच तक हो सकता है. यानी, सामान्य आकार की लगभग तीन पेंसिलों जितना लंबा. वहीं, हमारी-आपकी (वयस्क) जीभ की औसत लंबाई 3.1 (महिलाएं) से 3.3 इंच (पुरुष) ही होती है.
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अभी जीभ का वर्णन खत्म नहीं हुआ
जिराफ की जीभ 'प्रिहेंसिबल' होती है, यानी ऐसी लपलपाने वाली जिसकी मदद से उसे चीजों को पकड़ने या अपनी ओर खींचने में मदद मिलती है. जैसे कि हाथी की सूंड. अपनी इस खास जीभ की मदद से ऊंचाई की टहनियों पर लगे पत्ते अपनी तरफ खींच लेता है. वो कांटों के बीच से पत्ते चुनकर खा लेता है, बिना अपनी जीभ घायल किए. इसमें खास तरह की एक गोंदनुमा परत भी होती है, जो जीभ को सुरक्षित रखने में मदद करती है.
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गजब की पाचन शक्ति
क्लीवलैंड जूलॉजिकल सोसायटी के मुताबिक, जिराफ की जीभ किसी भी अन्य जानवर से ज्यादा मजबूत होती है. जिराफ खूब पेटू जीव है. उसे बहुत भूख लगती है और वो ज्यादातर वक्त खाता-पीता ही नजर आता है. नेशनल जिओग्रैफिक के मुताबिक, एक जिराफ दिनभर में 45 किलो तक पत्तियां और टहनियां खा सकता है. काफी अच्छा मेटाबॉलिजम है ना!
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तेज धावक
इंसानों में छह फुट खासा लंबा माना जाता है ना! नैशनल जियोग्रैफिक सोसायटी के मुताबिक, इतने तो जिराफ के पांव ही होते हैं. लंबे पैरों से कुलांचे भरता हुआ वो करीब 56 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से दौड़ सकता है.
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कद के फायदे भी, नुकसान भी
लंबे कद के कारण वो खतरे को दूर से देख सकता है. हालांकि, कद का एक नुकसान यह है कि उसे छोटे स्रोतों से पानी पीने में दिक्कत आती है, अपने पैर छितराकर बैठना पड़ता है. ऐसे में कई बार बड़े जीव हमला भी कर सकते हैं. वैसे उसे रोज पानी की जरूरत नहीं पड़ती. शरीर में तरल की ज्यादातर जरूरत पत्तियों से पूरी हो जाती है.
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सबके पास अपने-अपने खास 'चकत्ते'
हम इंसानों के फिंगर प्रिंट की तरह सभी जिराफ के अपने-अपने चकत्तों का खास पैटर्न होता है. ये बड़े सामाजिक जीव माने जाते हैं और आमतौर पर शांति से रहते हैं. इनके सोने का तरीका भी बड़ा दिलचस्प है. आमतौर पर ये खड़े-खड़े सोते हैं. बमुश्किल ही कभी लेटते हैं. यहां तक कि मादा जिराफ भी खड़े-खड़े ही बच्चे को जन्म देती है.
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थोड़ा सा सोकर ही काम चल जाता है
सैन डिएगो चिड़ियाघर की वेबसाइट पर मिला कि जिराफ को लंबी नींद की जरूरत ही नहीं पड़ती. वो दिनभर में पांच मिनट से आधे घंटे तक की नींद लेते हैं. सोते समय कोई उनपर हमला ना कर दे, इसलिए झुंड का कोई एक सदस्य जागकर बाकियों की रखवाली करता है.
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क्या जिराफ की आबादी फल-फूल रही है?
जिराफ की संख्या तेजी से घट रही है. वन्यजीवन और जलवायु संकट से जुड़े विषयों पर काम करनी वाली संस्था 'नैचुरल रिसोर्सेज डिफेंस काउंसिल' के मुताबिक, जिराफ गंभीर संकट का सामना कर रहे हैं. बीते तीन दशकों में उनकी आबादी करीब 40 प्रतिशत कम हो गई है.
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मंडरा रहा है विलुप्त होने का खतरा
इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजरवेशन ऑफ नेचर (आईयूसीएन) की रेड लिस्ट में इन्हें "वलनरेबल" श्रेणी में रखा गया है. यानी, उनके विलुप्त होने का जोखिम है. अनुमान है कि कुदरती परिवेश में इनकी संख्या बस 117,000 बची है. इंटरनेशनल फंड फॉर एनिमल के मुताबिक, 2016 से पहले ये सबसे कम चिंता वाले जीवों की श्रेणी में थे. सिकुड़ता प्राकृतिक आवास और पोचिंग इनके लिए सबसे बड़ा खतरा साबित हो रहे हैं.
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इंसानों से है खतरा
नैचुरल हिस्ट्री म्यूजियम के मुताबिक, जिराफ को उसकी त्वचा, मस्तिष्क और बोन मैरो जैसी चीजों के लिए पोच किया जा रहा है. तंजानिया, जहां का वह राष्ट्रीय जीव है, वहां कई लोग मानते हैं कि जिराफ के अंगों से एचआईवी-एड्स का इलाज हो सकता है. कई समुदायों में मांस के लिए भी उनका शिकार किया जाता है.
तस्वीर: DW
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ये आंकड़े केवल प्रतीकात्मक नहीं हैं. विशेषज्ञ एमिली बीच ने बताया कि लोग "खाने, लकड़ी, ईंधन और दवाओं" के लिए पेड़ों की अलग-अलग प्रजातियों पर निर्भर करते हैं. पेड़ ऑक्सीजन बनाते हैं और वातावरण से कार्बन डाइऑक्साइड जैसी ताप रोकने वाली गैसों को सोखते हैं.
आईयूसीएन की महानिदेशक ग्रेथल एगुइलर ने कहा, "पेड़ पृथ्वी पर जीवन बनाए रखने के लिए जरूरी हैं और लाखों लोग अपने जीवन और आजीविका के लिए उन पर निर्भर हैं."
अरबों पेड़ हो रहे हैं खत्म
2015 में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, दुनिया में लगभग 300 अरब पेड़ हैं. विज्ञान पत्रिका नेचर में प्रकाशित इस अध्ययन में अनुमान लगाया गया कि हर साल 15 अरब से अधिक पेड़ काटे जाते हैं और मानव सभ्यता की शुरुआत से पेड़ों की वैश्विक संख्या लगभग आधी हो चुकी है.
आईयूसीएन की रेड लिस्ट में जिन 5,000 से अधिक प्रजातियों को खतरे वाली सूची में डाला गया है, उनका उपयोग लकड़ी के लिए किया जाता है. 2,000 से अधिक प्रजातियों का उपयोग दवाओं, खाने और ईंधन के लिए किया जाता है.
खतरे में पड़ी प्रजातियों में हॉर्स चेस्टनट और जिन्कगो शामिल हैं, जिनका उपयोग चिकित्सा में किया जाता है. बिग लीफ महोगनी का इस्तेमाल फर्नीचर बनाने में होता है. इसके अलावा कई ऐश, मैगनोलिया और यूकेलिप्टस की प्रजातियां भी खतरे में हैं.
रिपोर्ट के अनुसार, विलुप्ति के कगार पर पहुंच चुकीं पेड़ों की प्रजातियों की संख्या "सभी संकटग्रस्त पक्षियों, स्तनधारियों, सरीसृपों और उभयचरों की संख्या से दोगुनी से भी अधिक" है. यही वजह है कि वैज्ञानिक जोर-शोर से जैव विविधता को बचाने के उपाय खोज रहे हैं.
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द्वीपों पर खतरा सबसे ज्यादा
192 देशों में पेड़ प्रजातियों के विलुप्त होने का खतरा है, लेकिन द्वीपों पर यह अनुपात सबसे अधिक है, जहां तेजी से शहरी विकास, कृषि का विस्तार और अन्य स्थानों से लाई गई प्रजातियां, कीट और बीमारियां इसके लिए जिम्मेदार हैं.
लगभग विलुप्त हो चुकी गैंडा प्रजाति को बचाने की कोशिश
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दक्षिण अमेरिका में, जहां दुनिया में सबसे अधिक पेड़ों की विविधता है, 13,668 आकलित प्रजातियों में से 3,356 विलुप्त होने के खतरे में हैं. अमेजन वनों के घर इस महाद्वीप की कई प्रजातियां अब तक खोजी भी नहीं गई हैं.
रिपोर्ट के अनुसार, जब उन प्रजातियों की खोज की जाती है, तो वे " संभावना है कि विलुप्ति के खतरे में होंगी." रिपोर्ट में पेड़ लगाने के माध्यम से जंगल संरक्षण और पुनर्स्थापना का आह्वान किया गया है, साथ ही प्रजातियों को बचाने के लिए बीज बैंकों और वनस्पति उद्यानों में उनके संरक्षण पर जोर दिया गया है.