यूक्रेन के 10 लाख से ज्यादा बच्चे शरणार्थी बन चुके हैं. रातोंरात शरणार्थी बनने की पीड़ा बच्चों के दिल-दिमाग पर असर कर रही है. कोई पीछे छूटे पिता के लिए परेशान है तो किसी को अपने दोस्तों की फिक्र हो रही है.
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10 साल की अनामारिया मसलोव्स्का का घर खारकीव में था. जब वहां बमबारी शुरू हुई, तो अनामारिया के दोस्त, उनके खिलौने और यहां तक कि उसका देश यूक्रेन भी उससे छूट गया. उसे अपना सबकुछ पीछे छोड़कर मां के साथ एक लंबी यात्रा पर निकलना पड़ा. कई दिन लंबी इस यात्रा का हासिल बस इतना है कि अब अनामारिया और उनकी मां सुरक्षित हैं. इस सुरक्षा के लिए उन्हें सबकुछ गंवाकर शरणार्थी बनना पड़ा है.
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"मुझे अपने दोस्तों की फिक्र हो रही है"
अनामारिया और उनकी मां उन सैकड़ों शरणार्थियों के दल का हिस्सा थे, जो बहुत मशक्कतों के बाद ट्रेन के रास्ते हंगरी सीमा पार करने में कामयाब रहे. हालांकि वो अनामारिया खुश नहीं हैं. उन्हें खारकीव में रह रहे अपने दोस्तों की चिंता है. उसने अपने दोस्तों को वाइबर पर कई संदेश भेजे, लेकिन अभी तक कोई जवाब नहीं आया है.
हंगरी के सीमावर्ती शहर जाहून में रेलवे स्टेशन के भीतर बैठी अनामारिया बताती हैं, "मुझे उनकी बहुत याद आती है. मेरा उनसे संपर्क नहीं हो पा रहा है. वे बस मेरे भेजे मेसेज पढ़ते हैं, उनका जवाब नहीं आता. मुझे सच में बहुत चिंता हो रही है क्योंकि मैं नहीं जानती कि वे कहां हैं."
अनामारिया की परवरिश उनकी मां ने अकेले ही की है. वह उन 10 लाख शरणार्थी बच्चों में शामिल है, जिन्हें रूसी हमले के बाद यूक्रेन से जान बचाकर भागना पड़ा. पिछले दो हफ्तों में यूक्रेन से निकले शरणार्थियों की संख्या 20 लाख से ज्यादा हो गई है. इनमें आधे बच्चे हैं. कई बच्चे ऐसे भी हैं, जिन्हें जान बचाने की यात्रा अकेले ही करनी पड़ी. संयुक्त राष्ट्र की रिफ्यूजी एजेंसी 'यूनाइटेड नेशन्स हाई कमिश्नर फॉर रिफ्यूजीज' (यूएनएचसीआर) ने इसे दूसरे विश्व युद्ध के बाद से अब तक का यूरोप का सबसे बड़ा शरणार्थी संकट बताया है.
रूस से जंग के बीच क्या कर रहे हैं यूक्रेन के बच्चे
युद्ध के शुरुआती दो हफ्ते में ही 20 लाख से ज्यादा यूक्रेनी रिफ्यूजी बन गए हैं. शरणार्थियों में मुख्य रूप से महिलाएं और बच्चे ही हैं क्योंकि यूक्रेन में अभी 18 से 60 की उम्र के पुरुषों के देश से जाने पर रोक है.
तस्वीर: Stringer/AA/picture alliance
कितना प्यारा दिल...
8 मार्च तक 12 लाख से ज्यादा शरणार्थी पोलैंड आ चुके थे. इसके अलावा हंगरी, रोमानिया, स्लोवाकिया, चेक रिपब्लिक, मोलदोवा, जर्मनी, फ्रांस, ब्रिटेन, आयरलैंड में भी यूक्रेनी शरणार्थी पहुंच रहे हैं. इस तस्वीर में यूक्रेन से भागकर आया एक रिफ्यूजी बच्चा बुडापेस्ट के युगाति रेलवे स्टेशन पर ट्रांसपोर्ट का इंतजार करते हुए कांच पर अपने हाथ जोड़कर दिल बना रहा है.
तस्वीर: Marton Monus/REUTERS
हर हाल में हंस पड़ना...
यूक्रेन के पड़ोसी देशों ने वहां से आ रहे शरणार्थियों के लिए बड़े स्तर पर इंतजाम किए हैं. रोमानिया ने कहा कि उसकी सीमाएं जरूरतमंदों के लिए खुली हैं. शरणार्थियों को सुरक्षित महसूस करवाने के लिए सरकार हर मुमकिन कोशिश करेगी. इस तस्वीर में एक शरणार्थी बच्ची रोमानिया के अपने कैंप के पास खड़ी होकर मुस्कुरा रही है. कैसे भी हालात में हंस पड़ना, खुश हो जाना...बचपन सच में कितना निर्दोष होता है.
तस्वीर: Cristian Ștefănescu/DW
मदद के नन्हे हाथ
पोलैंड की सरकार ने यूक्रेनी शरणार्थियों के लिए एक अलग फंड बनाने का फैसला किया है. इसके तहत हर एक रिफ्यूजी को एक बार के लिए एक रकम भी दी जाएगी. संयुक्त राष्ट्र ने कहा है कि दूसरे विश्व युद्ध के बाद से यह यूरोप का सबसे तेजी से बढ़ रहा शरणार्थी संकट है. तस्वीर में एक शरणार्थी बच्चा ट्रॉली के साथ.
तस्वीर: Cristian Ștefănescu/DW
बच्ची और बिल्ली
संयुक्त राष्ट्र ने चेताया है कि शरणार्थियों की दूसरी खेप ज्यादा दयनीय स्थिति में हो सकती है. यूएनएचसीआर ने कहा कि अगर युद्ध जारी रहता है, तो बड़ी संख्या में ऐसे शरणार्थी आते रहेंगे जिनके पास ना कोई संसाधन होगा, ना अपना कोई संपर्क. ऐसे में यूरोपीय देशों के लिए जटिल स्थिति होगी. तस्वीर में मरियोपोल से आई एक शरणार्थी बच्ची अपनी बिल्ली के साथ.
तस्वीर: AA/picture alliance
इंतजार
दी इंटरनेशनल रेस्क्यू कमिटी (आईआरसी) ने कहा है कि शरणार्थियों के लिए लंबे समय तक मानवीय सहायता का इंतजाम करना होगा. लोगों के रोजगार का इंतजाम करना होगा. वे किराया दे सकें, सामान्य जीवन जी सकें, अपने पैरों पर खड़े हो सकें, इसके लिए उन्हें मदद देनी होगी. इस तस्वीर में मरियोपोल से आया एक शरणार्थी बच्चा स्कूल की इमारत के भीतर सुरक्षित निकाले जाने का इंतजार कर रहा है.
तस्वीर: Stringer/AA/picture alliance
बदलाव
शरणार्थियों पर हंगरी का रवैया बेहद सख्त रहा है. सात साल पहले उसने शरणार्थियों को अपनी सीमा में घुसने से रोकने के लिए कंटीली बाड़ लगवाई थी और कु्त्ते तैनात किए थे. उसी हंगरी ने अब तक करीब दो लाख यूक्रेनी शरणार्थियों को अपने यहां जगह दी है. तस्वीर में हंगरी का एक अस्थायी शरणार्थी शिविर, जिसे म्यूनिसिपल्टी और बैप्टिस्ट चैरिटी मिलकर चला रहे हैं.
तस्वीर: Anna Szilagyi/AP Photo/picture alliance
आम आबादी भी कर रही है मदद
हंगरी के एक अस्थायी शेल्टर के भीतर स्ट्रोलर में बैठी बच्ची. यूक्रेनी शरणार्थियों की मदद के लिए सरकारी इंतजामों के अलावा आम आबादी भी सामने आ रही है. पड़ोसी देशों में स्थानीय लोग खाने-पीने की चीजों के अलावा बच्चों के लिए जरूरत पड़ने वाली चीजें भी डोनेट कर रहे हैं. बड़ी संख्या में लोग शेल्टर होम्स में वॉलंटियर सर्विस भी दे रहे हैं.
तस्वीर: Anna Szilagyi/AP/picture alliance
जर्मनी में भी शरणार्थियों का स्वागत
यूक्रेनी शरणार्थी बस और ट्रेन से जर्मनी भी आ रहे हैं. बर्लिन में शरणार्थियों को लेने के लिए रेलवे स्टेशन पर आए आम लोगों की तस्वीरें खूब वायरल हुईं. लोग शरणार्थियों को अपने घर में जगह दे रहे हैं. इस तस्वीर में दिख रही बस शरणार्थियों को लेकर पोलैंड के एक रेलवे स्टेशन जा रही है, जहां से उन्हें जर्मनी ले जाया जाएगा.
तस्वीर: Markus Schreiber/AP Photo/picture alliance
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बच्चों पर इस त्रासदी का गहरा असर
बहुत छोटे बच्चों को अभी यह समझ नहीं आ रहा होगा कि उनकी जिंदगी कैसे सिर के बल उलट गई है. मगर थोड़े बड़े बच्चे हालात को समझ पा रहे हैं. उन्हें सामने आई परेशानियां महसूस हो रही हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि इन बच्चों पर युद्ध की विभीषिका और शरणार्थी होने की पीड़ा का मनोवैज्ञानिक असर पड़ सकता है.
37 साल की विक्टोरिया फिलोनचुक अपनी एक साल की बेटी मारगोट को साथ लेकर कीव से रोमानिया पहुंची हैं. वह बताती हैं, "मारगोट को यह यात्रा किसी एडवेंचर जैसी लगी. उसके जैसे छोटे बच्चों को शायद समझ ना आए, लेकिन तीन-चार साल के बच्चे त्रासदी को समझ रहे हैं. मुझे लगता है कि यह उनके लिए बहुत मुश्किल अनुभव है."
डैनियल ग्रैडिनारु रोमानिया की सीमा पर शरणार्थियों के लिए काम कर रहे गैर-सरकारी संगठन 'फाइट फॉर फ्रीडम' के संयोजक हैं. उन्हें डर है कि अचानक घर छूट जाने और ठंड में कई दिनों की लंबी यात्रा का अनुभव शायद बच्चों की आगे की पूरी जिंदगी पर निशान छोड़ेगा. डैनियल कहते हैं, "मैं उम्मीद करता हूं कि ये लोग जहां भी जाएं, वहां के लोग इनकी काउंसलिंग कराने में मदद करें."
यूक्रेन युद्ध के बीच खूब याद किया जा रहा है शांति के प्रतीक कबूतर को
प्राचीन काल से कबूतर को शांति के प्रतीक के रूप में माना गया है. यूक्रेन में युद्ध छिड़ने के बाद यह चिड़िया एक बार फिर मित्रता और एकता की अहमियत की याद दिलाने वाला एक जरिया बन गई है. देखिए लोग कैसे इसका इस्तेमाल कर रहे हैं.
तस्वीर: Rolf Vennenbernd/dpa/picture alliance
यूक्रेन के लिए शांति की कामना
जर्मन कलाकार जस्टस बेकर ने फ्रैंकफर्ट में एक इमारत की बाहरी दीवार पर जैतून की एक शाख लिए एक कबूतर का विशाल चित्र बनाया है. जैतून की शाख को यूक्रेन के राष्ट्रीय रंगों नीले और पीले रंग में रंगा गया है. बेकर को यह म्यूरल बनाने में तीन दिन लगे. वो इसके जरिए यूक्रेन के साथ एकजुटता और शांति के लिए उम्मीद का संदेश देना चाहते हैं.
तस्वीर: picture alliance/dpa
सफेद और शुद्ध
प्राचीन काल से ऐसी मान्यताएं रही हैं कि कबूतरों में खास शक्तियां होती हैं. लोगों का मानना था कि इस चिड़िया के शरीर में पित्ताशय या गॉल ब्लैडर नहीं होता है इसलिए इसके व्यवहार में ना कटुता होती है और न दुष्टता. सफेद कबूतर यूनान में प्रेम की देवी एफ्रोडाइटी का साथी माना जाता है.
तस्वीर: picture-alliance/Leemage
बाइबल में उम्मीद का प्रतीक
बाइबल के अनुसार महाप्रलय के बाद अपनी नाव में 40 दिन बिताने के बाद नोआ ने पानी के बीच जमीन खोजने के लिए सबसे पहले कबूतरों को भेजा. जैतून की शाख लिए ये कबूतर न सिर्फ प्रलय के अंत का बल्कि भगवान के साथ फिर से शांति की स्थापना का प्रतीक थे.
तस्वीर: picture alliance / imageBROKER
शांति का आइकॉन
पिकासो द्वारा बनाया कबूतर का चित्र 1950 के दशक में शांति आंदोलन का प्रतीक बन गया था और उसने विश्व इतिहास में अपनी जगह बना ली थी. उसके बाद पिकासो ने कई बार अपने चित्रों में कबूतर को दर्शाया और अपनी बेटी का नाम भी "पालोमा" रखा, जिसका स्पेनिश भाषा में अर्थ कबूतर होता है.
तस्वीर: picture alliance/dpa
भारत में भी कबूतर
पिकासो के चित्र ने जिन कलाकारों को प्रेरणा दी उनमें भारतीय शहर चंडीगढ़ का डिजाइन बनाने वाले आर्किटेक्ट ल कोर्बूजिए भी थे. उन्होंने शहर में यह कलाकृति बनाई, जिसमें एक खुली हथेली को एक कबूतर के आकार में दिखाया गया है. यह कलाकृति अंग्रेजी हुकूमत से भारत की स्वतंत्रता का प्रतीक थी.
तस्वीर: picture alliance / Photononstop
शांति आंदोलन का प्रतीक
शांति प्रदर्शनों में इस्तेमाल होने वाले इस लोगो को 1970 के दशक में फिन्निश ग्राफिक डिजाइनर मीका लौनीस द्वारा ली गई एक कबूतर की तस्वीर से बनाया गया था. अब हर शांति प्रदर्शन में नीले झंडे दिखाए जाते हैं जिन पर यह लोगो बना होता है.
तस्वीर: Daniel Naupold/picture alliance/dpa
एक पुराना संदेश
यूक्रेन युद्ध के खिलाफ प्रतिक्रिया के रूप में जर्मन थिएटर कंपनी बर्लिनर औंसौम्ब्ल ने पिकासो के मशहूर चित्र के साथ इस झंडे को दर्शाया. इस झंडे को सबसे पहले 1950 के दशक में जर्मन थिएटर जगत के दिग्गज बेर्टोल्ट ब्रेक्ट ने स्वतंत्रता के प्रतीक के रूप में लगाया था. बर्लिनर औंसौम्ब्ल ब्रेक्ट की शांति की अपील को फिर से जीवित करना चाहता है और यूक्रेन के साथ एकजुटता दिखाना चाहता है.
तस्वीर: Jens Kalaene/dpa/picture alliance
युद्ध की क्रूरता
इस साल जर्मनी के शहर कोलोन में पारंपरिक रोज मंडे परेड को एक शांति रैली में बदल दिया गया, जिसमें 25,000 लोगों ने हिस्सा लिया. एक झांकी में खून से लथपथ एक कबूतर को और रूस के झंडे को उस कबूतर के आर पार दिखाया गया. (किम-आइलीन स्टरजेल, लैला अब्दल्ला)
तस्वीर: Rolf Vennenbernd/dpa/picture alliance
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रूस पर नागरिकों के दमन का इल्जाम
ज्यादातर शरणार्थी यूक्रेन की पश्चिमी सीमा- हंगरी, पोलैंड, स्लोवाकिया, रोमानिया और मोलदोवा की ओर से आ रहे हैं. सबसे ज्यादा लोग पोलैंड पहुंच रहे हैं. पोलिश बॉर्डर गार्ड एजेंसी के मुताबिक, अब तक 13 लाख से ज्यादा शरणार्थी पोलैंड आ चुके हैं. हालिया दिनों में कई यूक्रेनी मानवीय गलियारों के रास्ते संघर्ष वाले इलाकों से निकल रहे हैं. यूक्रेन में यूएन की अधिकारी नतालिया मुदरेंको रूस पर महिलाओं और बच्चों समेत आम लोगों को रोकने का आरोप लगाती हैं. उन्होंने इल्जाम लगाया कि यूक्रेन के कुछ संघर्ष वाले शहरों में रूस भागने की कोशिश कर रहे लोगों को रोककर उन्हें बंधक बना रहा है.
8 मार्च को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) की एक बैठक में नतालिया ने कहा कि नागरिकों को बाहर नहीं आने दिया जा रहा है और मानवीय सहायता उनतक पहुंचाने में भी रुकावट डाली जा रही है. रुंधे गले से नतालिया ने आरोप लगाया, "अगर लोग भागने की कोशिश करते हैं, तो रूसी उनपर गोलियां चलाकर उन्हें मार डालते हैं. लोगों के पास खाना-पानी खत्म हो रहा है, वे मर रहे हैं." 7 मार्च को मरियोपोल शहर में मर गई एक छह साल की बच्ची के बारे में बताते हुए नतालिया ने कहा, "अपने जीवन के आखिरी पलों में वह बच्ची बिल्कुल अकेली थी. उसकी मां रूसी गोलीबारी में पहले ही मारी गई थी."
यूक्रेन में बर्बादी का हाल बयां करती हैं ये तस्वीरें
यूक्रेन पर रूस के हमले से करोड़ों लोगों की जिंदगी उलट पुलट हो गई. घर नष्ट हो गए हैं, रसद की कमी हो गई है और कई दुकानें भी तेजी से खाली हो रही हैं. कई लोग हताशा में बस वहां से भाग जाने की कोशिश कर रहे हैं.
तस्वीर: Emilio Morenatti/AP/picture alliance
मदद के लिए
यूक्रेनी सैनिक राजधानी कीव में इरपिन नदी पार करने में छोटे बच्चों वाले एक परिवार की मदद कर रहे हैं. इस इलाके में अधिकांश पुल ध्वस्त हो चुके हैं. इस तरह के दृश्य अब यूक्रेन में आम हो गए हैं. रूसी सेना कई शहरों पर हमला कर रही है.
तस्वीर: Emilio Morenatti/AP/picture alliance
गोलाबारी से बचाव
कीव से कुछ ही किलोमीटर दूर इरपिन शहर भी है जहां पांच मार्च को रूसी सेना ने पूरे दिन बमबारी की. बम के गोलों से बचने के लिए स्थानीय लोगों ने एक टूटे हुए पुल के नीचे शरण ली. बाद में लोगों ने इस शहर को भी छोड़ कर जाना शुरू कर दिया.
तस्वीर: Emilio Morenatti/AP/picture alliance
जोखिम भरा अभियान
कुछ स्थानीय लोग बस में बैठ कर इरपिन से बच कर निकलने में सफल रहे. लेकिन कई लोगों को पैदल ही नदी पार करना पड़ा. उन्होंने लकड़ी के फट्टों से बने एक कामचलाऊ पुल का इस्तेमाल किया. इसमें यूक्रेनी सिपाहियों ने भी उनकी मदद की. पूरा अभियान बेहद जोखिम भरा रहा क्योंकि इस दौरान रूसी सेना की बमबारी लगातार जारी रही.
तस्वीर: Aris Messinis/AFP/Getty Images
भागने की हताशा
कई लोगों ने भाग निकलने के लिए ट्रेनों को भी जरिया बनाया. यह तस्वीर इरपिन स्टेशन की है जहां बड़ी संख्या में लोगों को कीव जाने वाली ट्रेनों में सवार होने की कोशिश करते देखा जा सकता है. इन लोगों को उम्मीद है कि कीव पहुंचने के बाद उन्हें देश से बाहर निकलने का रास्ता मिल जाएगा.
तस्वीर: Chris McGrath/Getty Images
आखिरी बार मुड़ कर देखना
जाने वालों को इस बात का जरा भी अंदेशा नहीं है कि वो कभी अपने शहर, अपने घर वापस लौट भी पाएंगे या नहीं और जब लौटेंगे तब वहां क्या मंजर होगा. ट्रेनों में भारी भीड़ है, जिसका मतलब है भागने वाले लोग अपने साथ ज्यादा सामान भी नहीं ले जा सकते हैं.
तस्वीर: Chris McGrath/Getty Images
जलते घर
इस मकान पर बम का गोला गिरा था और इस तस्वीर में घर के लोग जलते हुए मकान से जो सामान बचा सकें उसे निकालने की कोशिश कर रहे हैं. संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है कि अभी तक 15 लाख से ज्यादा लोग यूक्रेन छोड़ कर जा चुके हैं. कुछ विशेषज्ञों का कहना कि यह संख्या एक करोड़ तक जा सकती है.
तस्वीर: Aris Messinis/AFP/Getty Images
बमबारी का असर
इरपिन में इस आवासीय इमारत पर इतनी बमबारी हुई कि यह मिट्टी में मिल जाने के कगार पर पहुंच गई थी. रूसी सेना ने रिहायशी इमारतों और दूसरे सार्वजनिक स्थानों पर हमले बढ़ा दिए हैं और माना जा रहा है कि शरणार्थियों की संख्या में भारी उछाल आने की यह एक बड़ी वजह बन सकती है.
तस्वीर: Getty Images
भोजन का संकट
यहां बस कुछ ही दिनों पहले एक आम, चहल पहल वाला सुपरमार्केट था. लेकिन अब इसकी जल्दी जल्दी खाली होती अलमारियां युद्ध कालीन अभाव की स्थिति का चिन्ह बन गई हैं. यूक्रेनी सैनिक बचेखुचे खाने और पानी को लोगों में बांटने के लिए इकट्ठा कर रहे हैं.
तस्वीर: Chris McGrath/Getty Images
सिनेमा घर में बंदूक चलाने की प्रैक्टिस
जो लोग सेना की मदद के लिए पीछे रह गए उन्हें लड़ाई का बुनियादी प्रशिक्षण दिया जा रहा है. यह लवीव का एक सिनेमा घर है जहां आम लोगों को हथियार दिए गए और उन्हें चलाने के बारे में संक्षेप में बताया गया. कई लोगों ने अपनी जिंदगी में पहली बार हाथों में हथियार उठाए हैं. रिपोर्ट- ग्रेटा हामन
तस्वीर: Felipe Dana/AP/picture alliance
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त्रासदी का अनुभव
9 साल की वलेरिया वरेनको यूक्रेन की राजधानी कीव में रहती थीं. जब यहां रूसी बमबारी शुरू हुई, तो उसे अपनी इमारत के बेसमेंट में छुपना पड़ा. अपने छोटे भाई और मां जूलिया के साथ एक लंबा सफर तय करके 9 मार्च को वलेरिया हंगरी पहुंची है. इन तीनों को यहां बाराबास शहर के एक अस्थायी शरणार्थी शिविर में जगह मिल गई है. अब वलेरिया यूक्रेन में छूट गए बच्चों को कहना चाहती हैं कि वे सावधान रहें. सड़क पर पड़ी किसी लावारिस चीज को न छूएं क्योंकि "वे बम हो सकते हैं और बच्चों को बहुत नुकसान पहुंचा सकते हैं." वलेरिया के पिता भी यूक्रेन में ही हैं. वह रूसी हमलावर सैनिकों से कीव की रक्षा करने में हाथ बंटा रहे हैं. वलेरिया को अपने पिता पर गर्व है, लेकिन उसे पापा की बहुत याद आ रही है. वह कहती है, "मैं चाहती हूं कि पापा भी हमारे पास आ जाएं, लेकिन उन्हें आने की इजाजत नहीं है."
वलेरिया केवल नौ साल की है. युद्ध ने उसे रातोरात बहुत अनुभवी बना दिया है. त्रासदी में बच्चों का यूं एकाएक इतना समझदार हो जाना कितना भीषण है!