विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के मुताबिक साल 2020 के दौरान दुनिया भर में लगभग 2,87,000 महिलाओं की मृत्यु गर्भावस्था और प्रसव के दौरान हुई. यानी करीब 800 मौतें प्रतिदिन.
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डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट कहती है कि गर्भावस्था या प्रसव के दौरान अपर्याप्त चिकित्सा सुविधाओं के कारण हर दो मिनट में एक महिला की मृत्यु हो जाती है. रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया भर में करीब 2,87,000 महिलाओं की मौत इसी वजह से हुईं और इस तरह हर दिन करीब 800 महिलाओं की मौत होती है यानी हर दो मिनट में एक मौत.
महिलाओं की मौत के क्या कारण
डब्ल्यूएचओ के महानिदेशक तेद्रोस अधनोम गेब्रयेसुस ने कहा, "हालांकि गर्भावस्था महिलाओं के लिए एक उम्मीद और सकारात्मक अनुभव होना चाहिए, लेकिन दुर्भाग्य से यह अभी भी दुनिया भर की लाखों महिलाओं के लिए एक बहुत खतरनाक अनुभव है."
इस रिपोर्ट में डब्ल्यूएचओ ने यह भी कहा कि इनमें से अधिकतर मौतें अत्यधिक रक्तस्राव, संक्रमण, असुरक्षित गर्भपात और एचआईवी या एड्स जैसी बीमारियों के कारण होती हैं. इनकी रोकथाम और इलाज भी संभव है.
संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष की प्रमुख नतालिया कानेम ने कहा कि लाखों महिलाएं इस तरह से मरती हैं और यह दर अथाह रूप से उच्च है.
अपनी रिपोर्ट में डब्ल्यूएचओ ने इस बात पर भी जोर दिया कि महिलाओं को अपने प्रजनन स्वास्थ्य निर्णयों पर नियंत्रण रखना चाहिए, विशेष रूप से कि क्या वे बच्चे पैदा करना चाहती हैं और किस उम्र में वे बच्चे पैदा करना चाहती हैं.
मातृत्व और गर्भावस्था से अधिक मौतें कहां?
डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट के मुताबिक इन लाखों मौतों में से ज्यादातर गरीब और संघर्ष प्रभावित देशों में गर्भावस्था और प्रसवके दौरान हुईं. इस रिपोर्ट की लेखिका जेनी क्रेसवेल ने रिपोर्ट में लिखा है कि 2020 में ऐसी मौतों में से 70 प्रतिशत उप सहारा अफ्रीकी देशों से दर्ज की गईं, जहां इन मौतों की दर ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड की तुलना में 136 गुना थी. रिपोर्ट में कहा गया है कि संकट का सामना कर रहे सीरिया, सोमालिया, दक्षिण सूडान, सूडान और यमन जैसे देशों में मातृ और शिशु मृत्यु दर ऐसी मौतों की वैश्विक औसत दर से दोगुनी थी.
संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनिसेफ) की प्रमुख कैथरीन रसेल ने इन आंकड़ों के बारे में बात करते हुए स्वास्थ्य क्षेत्र में इलाज और चिकित्सा सुविधाओं के समान प्रावधान पर जोर दिया. उन्होंने कहा, "स्वास्थ्य समानता हर मां को, चाहे वह कोई भी हो और कहीं भी हो, सुरक्षित मातृत्व और अपने परिवार के साथ एक स्वस्थ भविष्य का उचित मौका देती है.
एए/सीके (एएफपी, डीपीए)
गर्भावस्था में पेट दर्द हो तो ध्यान दें
गर्भावस्था में थोड़ा बहुत पेट दर्द होना सामान्य बात है लेकिन अगर यह लगातार हो रहा है तो इस पर ध्यान देने की जरूरत है. किस तरह का पेट दर्द सामान्य माना जा सकता है और किस तरह का नहीं, इसे समझना जरूरी है.
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क्यों होता है दर्द?
उदयपुर स्थित नारायण सेवा संस्थान के वरिष्ठ सर्जन डॉ. अमरसिंह चूंडावत के अनुसार गर्भाशय का विस्तार होने के साथ चूंकि मां के अंग शिफ्ट हो हाते हैं और साथ ही अस्थि-बंधन एक साथ फैल रहे होते हैं, ऐसे में पेट दर्द स्वाभाविक है. लेकिन यह भी जानना जरूरी है कि पेट दर्द को कब गंभीरता से लिया जाए.
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कब जाएं डॉक्टर के पास?
डॉ. चूंडावत कहते हैं कि पेट दर्द को तब गंभीर माना जा सकता है, जब पेट दर्द के साथ उल्टी, बुखार, ठंड लगना और योनि से असामान्य रक्तस्राव होने लगे. साथ ही राउंड लिगामेंट दर्द अधिकतम कुछ मिनट के लिए ही होता है. ऐसे में यदि पेट में दर्द लगातार है तो मामला गंभीर है. इसके अलावा अगर पेटदर्द से चलने, बोलने या सांस लेने में भी मुश्किल हो जाए तो इसे गंभीरता से लिया जाना चाहिए.
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क्या हो सकता है परिणाम?
इस तरह के पेट दर्द के कई परिणाम हो सकते हैं, मसलन समय से पहले बच्चे का जन्म या, गर्भपात, अपेंडिसाइटिस या फिर पथरी. हर दर्द के साथ कुछ ना कुछ अलग लक्षण भी होते हैं, जिन पर ध्यान देना बेहद आवश्यक है. इसे विस्तार से समझने के लिए आगे पढ़ें.
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गर्भपात
स्वास्थ्य प्रबंधन सूचना प्रणाली के अनुसार भारत में अप्रैल 2017 से मार्च 2018 तक 5.55 लाख गर्भपात दर्ज किए गए, जिनमें से 4.7 लाख सरकारी अस्पतालों में हुए. गर्भपात के मामलों में पेट दर्द की महत्वपूर्ण भूमिका है. हर 5-20 मिनट में संकुचन, पीठ दर्द, ऐंठन के साथ या बिना रक्तस्राव, योनि में हल्की या तेज ऐंठन, गर्भावस्था के अन्य लक्षणों में अप्रत्याशित रूप से कमी आदि गर्भपात के प्रमुख संकेत है.
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समय से पहले जन्म
गर्भावस्था कुल 40 हफ्ते चलती है. 24 से 37वें हफ्ते के बीच होने वाले जन्म को प्रीमैच्योर कहा जाता है. संयुक्त राष्ट्र के अनुसार भारत में 2018 में 35,19,100 जन्म समयपूर्व हुए. यह कुल जन्म का लगभग 24% है. भारत दुनिया की समयपूर्व डिलीवरी में 60 प्रतिशत योगदान देने वाले 10 देशों की सूची में सबसे ऊपर है. डॉक्टर गर्भवती महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान नियमित चिकित्सा जांच के लिए जाने का सुझाव देते हैं.
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प्रीक्लेम्पसिया
20 सप्ताह की गर्भावस्था के बाद महिलाएं उच्च रक्तचाप की समस्या से भी ग्रस्त हो सकती हैं. कभी-कभी महिलाओं के मूत्र में प्रोटीन भी आने लगता है. यह बच्चे के विकास को धीमा कर देता है क्योंकि उच्च रक्तचाप गर्भाशय में रक्त वाहिकाओं के कसने का कारण बन सकता है. इसके सिरदर्द, मतली, सूजन, पेट दर्द और नजर के धुंधले होने जैसे कई लक्षण हैं.
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मूत्र पथ के संक्रमण
जीवाणु संक्रमण से यूटीआई यानी यूरिनरी ट्रैक्ट इंफेक्शन या फिर मूत्र पथ का संक्रमण हो सकत है. यूटीआई मूत्रमार्ग, मूत्राशय और यहां तक कि गुर्दे में संक्रमण की ओर ले जाता है. इस स्थिति के साथ आने वाले लक्षणों में जननांग क्षेत्र में जलन, पेशाब करने की इच्छा, पेशाब के दौरान जलन और पीठ में दर्द शामिल हो सकते हैं. अध्ययनों के अनुसार क्रैनबेरी के नियमित सेवन से यूटीआई को रोका जा सकता है.
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अपेंडिसाइटिस
गर्भावस्था के दौरान अपेंडिक्स के संक्रमण से गर्भावस्था में सर्जरी की स्थिती बन सकती है. यह शरीर में होने वाले शारीरिक परिवर्तनों के कारण होता है. डॉक्टरों के अनुसार पहली और दूसरी तिमाही में निदान करना आसान है. निचले हिस्से में दर्द, उल्टी और भूख की कमी जैसे लक्षण होते हैं.
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पित्ताशय की पथरी
अतिरिक्त एस्ट्रोजन के कारण गर्भावस्था के दौरान पित्ताशय की पथरी एक आम समस्या है. वजन ज्यादा होने पर, 35 वर्ष से अधिक आयु होने पर और परिवार में पथरी का चिकित्सा इतिहास होने पर पित्ताशय की पथरी की संभावना ज्यादा रहती है.
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एक्टोपिक गर्भावस्था
महिलाओं को पेट में गंभीर दर्द की शिकायत तब भी होती है जब अंडा, गर्भाशय के अलावा किसी अन्य स्थान पर प्रत्यारोपित हो जाता है. एक्टोपिक गर्भावस्था में गर्भावस्था के 6-10वें सप्ताह के बीच दर्द और रक्तस्राव होता है. गर्भाधान के समय अगर एंडोमेट्रियोसिस, ट्यूबल लाइगैशन और गर्भधारण के दौरान इन्ट्रायूटरिन डिवाइस का इस्तेमाल हो, तो महिलाएं अधिक जोखिम में होती हैं.
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क्या क्या सावधानियां बरतें?
दर्द होने पर तत्काल आराम करें. पेट के निचले हिस्से में दर्द होने पर गर्म पानी से स्नान करें. पीड़ा को कम करने के लिए पानी की गर्म बोतल से सिकाई करें. पेट के वायरस और भोजन की विषाक्तता के लिहाज से विशेष सावधानी बरतें. आसानी से पचने वाला खाना खाएं. पेट के दर्द से जुड़े चेतावनी संकेतों पर नजर रखें और अगर परेशानी बढ़े, तो बिना देरी किए डॉक्टर से संपर्क करें.