ईयू: तालिबान कर रहा महिलाओं के अधिकारों का गंभीर उल्लंघन
१५ अगस्त २०२२
तालिबान के सत्ता में आने के एक साल पर यूरोपीय संघ ने कहा है कि तालिबान ने महिलाओं और लड़कियों के अधिकारों का गंभीर उल्लंघन किया है.
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यूरोपीय संघ के विदेश मामलों की प्रवक्ता नबीला मसराली ने ब्रसेल्स में तालिबान के संबंध में एक बयान में कहा, "तालिबान एक बहुराष्ट्रीय राजनीतिक व्यवस्था बनाने में विफल रहा है और इस तरह वह अफगान लोगों की आकांक्षाओं को पूरा करने में सक्षम नहीं हैं."
अमेरिका सैनिकों की वापसी के बाद पिछले साल तालिबान ने अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया था. सोमवार, 15 अगस्त को अफगानिस्तान में तालिबानी शासन का एक साल पूरा हो गया. बीते एक साल में तालिबान ने जो वादे महिलाओं को लेकर किए थे वह पूरे होते नहीं दिख रहे हैं.
मानवाधिकार विशेषज्ञों और विश्व नेताओं का कहना है कि तालिबान ने महिलाओं के अधिकारों पर कड़े प्रतिबंध लगाए हैं. अफगानिस्तान में माध्यमिक विद्यालय अभी भी लड़कियों के लिए बंद हैं. मीडिया पर भी सख्त पाबंदियां लगाई गई हैं. यहां तक कि महिला एंकर और टीवी चैनलों पर आने वाली महिलाओं को भी अपना चेहरा ढकने का आदेश दिया गया है.
महिलाओं के अधिकार और मीडिया की स्वतंत्रता महत्वपूर्ण मुद्दे हैं, लेकिन इसके अलावा यह युद्धग्रस्त देश गंभीर आर्थिक समस्याओं से भी जूझ रहा है. अमेरिकी सेना की वापसी के बाद, अमेरिका ने अफगान सरकार की लगभग नौ अरब डॉलर की संपत्ति को फ्रीज कर दिया. तालिबान कई बार इस पैसे की वापसी की मांग कर चुका है. लेकिन तालिबान पर विश्व स्तर पर भरोसा कायम नहीं हो पाया है.
वहीं संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक इस साल लाखों अफगान बच्चों को भुखमरी का खतरा है. कुछ प्रांतों में सूखे और भूकंप ने व्यापक विनाश किया है. देश की ज्यादातर आबादी गरीबी में जीने को मजबूर है.
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तालिबान सरकार को मान्यता नहीं मिली
अभी तक किसी भी देश ने तालिबान सरकार को मान्यता नहीं दी है. आंतरिक रूप से तालिबान सरकार भी दबाव में है. तालिबान की सख्ती के बावजूद शिक्षा, रोजगार और आवाजाही की स्वतंत्रता के अपने अधिकारों के नुकसान के खिलाफ महिलाएं विरोध प्रदर्शन भी करती आईं हैं.
यूरोपीय संघ का कहना है कि तालिबान द्वारा अल्पसंख्यकों की रक्षा नहीं की जा रही है. यूरोपीय संघ ने कहा तालिबान शासन के तहत शिया और हजारा लोगों के आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक अधिकारों को निशाना बनाया जा रहा है. ईयू ने अफगान तालिबान से कहा है कि वे यह सुनिश्चित करें कि अफगान लोगों के अधिकारों का उल्लंघन न हो.
यूरोपीय संघ के बयान में यह भी कहा गया है कि "अफगानिस्तान को आतंकवादियों का अड्डा नहीं बनना चाहिए और न ही अफगानिस्तान की धरती को अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बनना चाहिए."
15 अगस्त, 2021 को तालिबान ने काबुल पर कब्जा कर लिया था. पिछले साल अफगानिस्तान में नाटो मिशन की 20वीं वर्षगांठ थी. कुछ विश्लेषकों के अनुसार अमेरिका और नाटो मिशन ने जल्दबाजी में अफगानिस्तान से हटने का फैसला किया. और इसी वापसी के बाद से तालिबान ने अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया.
एए/सीके (एफपी, डीपीए)
नौ युवा ऐक्टिविस्ट जो लड़ रहे हैं दुनिया की सबसे बड़ी समस्याओं से
ग्रेटा थुनबर्ग से लेकर मलाला यूसुफजई तक, कई किशोरों ने जलवायु परिवर्तन और परमाणु युद्ध जैसे विषयों पर अपनी बात रखी है. यह अलग बात है कि दुनिया भर में सत्ता में बैठे वयस्क इनकी बातें सुनने को तैयार हैं या नहीं.
तस्वीर: Hanna Franzén/TT News/picture alliance
ग्रेटा थुनबर्ग
ग्रेटा शायद आज के पर्यावरण संबंधी एक्टिविज्म का सबसे मशहूर चेहरा हैं. 2018 में उन्होंने अपने देश स्वीडन की संसद के बाहर अकेले हर शुक्रवार प्रदर्शनों की शुरुआत की थी. लेकिन उनके अभियान ने एक वैश्विक आंदोलन को जन्म दे दिया जिसके तहत दुनिया भर में किशोरों ने शुक्रवार को स्कूल छोड़ कर अपनी अपनी सरकारों से जलवायु परिवर्तन के खिलाफ निर्णायक कदमों की मांग की.
तस्वीर: Hanna Franzén/TT News/picture alliance
सेवर्न कल्लिस-सुजुकी
1992 में कनाडा में रहने वाली 12 साल की सेवर्न कल्लिस-सुजुकी को "दुनिया को पांच मिनट के लिए शांत कराने वाली लड़की" के रूप में जाना जाने लगा था. उन्होंने संयुक्त राष्ट्र की अर्थ समिट में वैश्विक नेताओं से अपने तरीके बदलने के लिए आग्रह किया था. वो कनाडा के पर्यावरणविद डेविड सुजुकी की बेटी हैं. उन्होंने मात्र नौ साल की उम्र में एनवायर्नमेंटल चिल्ड्रेन्स आर्गेनाईजेशन (ईसीओ) नाम के संगठन की शुरुआत की.
तस्वीर: UN
शूतेजकात रॉस्क-मार्तीनेज
शूतेजकात रॉस्क-मार्तीनेज अमेरिका में एक जलवायु एक्टिविस्ट हैं और 'अर्थ गार्जियंस' नाम के संगठन के यूथ डायरेक्टर हैं. 15 साल की उम्र से पहले ही उन्होंने जलवायु परिवर्तन पर तीन बार संयुक्त राष्ट्र को संबोधित कर लिया था. मार्तीनेज एक संगीतकार भी हैं और उन्होंने "स्पीक फॉर द ट्रीज" नामक एक हिप-हॉप गीत भी बनाया है. उनके गीत को 2015 के संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन का थीम सॉन्ग बनाया गया था.
तस्वीर: Lev Radin/Pacific Press/picture alliance
मेलाती और इसाबेल विसेन
इंडोनेशिया के बाली की रहनी वालीं मेलाती और इसाबेल विसेन ने स्कूल में मशहूर ऐक्टिविस्टों के बारे में पढ़ कर उनसे प्रेरित हो 2013 में "बाय बाय प्लास्टिक बैग्स" की स्थापना की. उनकी इस पहल का उद्देश्य है समुद्र तट, स्कूलों और समुदायों से एक बार इस्तेमाल कर फेंक दिए जाने वाले प्लास्टिक को बैन करवाना, ताकि 2022 के अंत तक बाली प्लास्टिक मुक्त हो जाए.
तस्वीर: Britta Pedersen/dpa/picture alliance
मलाला यूसुफजई
17 साल की उम्र में मलाला यूसुफजई मानवतावादी कोशिशों के लिए नोबेल पुरस्कार पाने वाली सबसे कम उम्र की विजेता बन गईं. उन्हें पाकिस्तान में महिलाओं के लिए शिक्षा के अधिकार की मांग करने के लिए तालिबान ने गोली मार दी थी, लेकिन वो बच गईं और अपना काम जारी रखा.
तस्वीर: WAEL HAMZEH/EPA/dpa/picture alliance
इकबाल मसीह
पाकिस्तान के इकबाल मसीह को पांच साल की उम्र में कालीन की एक फैक्ट्री में गुलाम बना दिया गया था. 10 साल की उम्र में आजाद होने के बाद उन्होंने दूसरे बाल गुलामों की भाग निकलने में मदद की और बाल श्रम के खिलाफ संघर्ष के प्रतीक बन गए. लेकिन 12 साल की उम्र में उनकी हत्या कर दी गई. इस तस्वीर में उनकी मां और उनकी बहन उनके हत्यारे की गिरफ्तारी की मांग कर रही हैं.
तस्वीर: STR/AFP/Getty Images
जाम्बियान थांडीवे चामा
जब जाम्बियान थांडीवे चामा आठ साल की थीं तब उनके स्कूल के कई शिक्षकों की एचआईवी/एड्स से मौत हो जाने की वजह से स्कूल को बंद करना पड़ा था. तब उन्होंने 60 और बच्चों को इकठ्ठा किया, उन्हें लेकर दूसरे स्कूल पहुंचीं और सबके शिक्षा की अधिकार की मांग करते हुए उन्हें वहां दाखिला देने की मांग की. वो अपनी किताब "द चिकन विद एड्स" की मदद से बच्चों में एचआईवी/एड्स को लेकर जागरूकता फैलाती हैं.
तस्वीर: picture-alliance/ dpa
कोसी जॉनसन
जन्म से एचआईवी संक्रमित कोसी जॉनसन को दक्षिण अफ्रीका के जोहान्सबर्ग के एक सरकारी स्कूल ने दाखिला देने से मना कर दिया था. 2000 में 11 साल की उम्र में उन्होंने अंतरराष्ट्रीय एड्स सम्मेलन में कीनोट भाषण दिया और अपनी आपबीती को दुनिया के साथ साझा किया. अपनी पालक मां के साथ उन्होंने एचआईवी संक्रमित माओं और उनके बच्चों के लिए एक शरण स्थान की स्थापना की.
तस्वीर: picture alliance / AP Photo
बाना अल आबेद
24 सितंबर, 2016 को सिर्फ सात साल की बाना अल आबेद ने तीन शब्दों में अपना पहला ट्वीट लिखा था, "मुझे शांति चाहिए." उसके बाद उन्होंने युद्ध ग्रस्त सीरिया में उनके जीवन के बारे में पूरी दुनिया को बताया. तब से वो विश्व के नेताओं से सीरिया में शांति की स्थापना कराने की गुहार लगा रही हैं. आज ट्विटर पर उनके 2,78,000 फॉलोवर हैं.