कोरोना की वजह से प्रचलित हो रही हैं ऑनलाइन अदालतें
१२ जून २०२०
भारत में वर्चुअल अदालतों को कोविड-19 को देखते हुए एक अस्थायी और आपातकालीन प्रतिक्रिया के रूप में अपनाया गया. क्या महामारी के खत्म होने के बाद भी अदालतों की कार्यवाही में वर्चुअल अदालतों को शामिल किया जाना संभव हो सकेगा?
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जून की पहली तारीख. सुप्रीम कोर्ट के लिए यह एक ऐतिहासिक दिन था. उस दिन पहली बार देश की सर्वोच्च अदालत की एक न्यायपीठ के सामने एक पूरी की पूरी कागज-रहित सुनवाई हुई. एक वर्चुअल अदालत में तीन जजों को अपने सामने मोटी मोटी फाइलों की जगह लैपटॉप रख बैठे देखना एक दुर्लभ दृश्य था. वकील वीडियो लिंक के जरिए सुनवाई से संबंधित बातें बता रहे थे और जज नोट लिखने की जगह टाइप कर रहे थे.
भारत में वर्चुअल अदालतों को कोविड-19 को देखते हुए एक अस्थायी और आपातकालीन प्रतिक्रिया के रूप में अपनाया गया लेकिन अब कुछ जज और वकील चाहते हैं कि महामारी के खत्म होने के बाद भी अदालतों की सामान्य कार्यवाही में वर्चुअल अदालतों को शामिल किया जाए.
भारत के मुख्य न्यायाधीश शरद अरविंद बोब्दे ने कहा है कि "अब पीछे नहीं देखा जाएगा" और आगे चल कर "नए और पुराने" यानी वास्तविक अदालतों और वर्चुअल अदालतों दोनों की मिली-जुली प्रणाली का इस्तेमाल किया जाएगा.
हालांकि, वर्चुअल अदालतों के इस नए चलन के मद्देनजर कई ढांचागत चुनौतियों का भी सामना करना पड़ेगा. कई जज और वकील ये मानते हैं कि इससे पहले कि भारतीय अदालतें डिजिटल दुनिया में पहुंच सकें, इन चुनौतियों का समाधान निकालना जरूरी है.
न्याय तक पहुंच
वरिष्ठ अधिवक्ता और सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष दुष्यंत दवे ऑनलाइन और फिजिकल प्रणालियों के एक मिश्रण का समर्थन करते हैं लेकिन वे कहते हैं कि मौजूदा तकनीकी चुनौतियां लोगों की न्याय तक पहुंच बनाने में एक बाधा हैं. उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया, "निकट भविष्य में एक कंप्यूटर क्रांति के लिए हमारी न्याय प्रणाली पूरी तरह से अनुपयुक्त है. उदाहरण के तौर पर, कम से कम सुप्रीम कोर्ट के जज अभी जिन चीजों का इस्तेमाल कर रहे हैं उनकी गुणवत्ता बहुत ही खराब है".
दवे ने यह भी कहा कि वर्चुअल अदालतों की तरफ बदलाव भारत के लिए आसान नहीं होगा क्योंकि देश में हजारों अदालतों का एक व्यापक न्यायिक इंफ्रास्ट्रक्चर है, जिनमें से कई सुदूर इलाकों में हैं जहां ब्रॉडबैंड सेवाएं उपलब्ध नहीं हैं, "देश की न्यायिक प्रणाली को कंप्यूटरीकृत करने के लिए आपको अरबों रुपयों की जरूरत होगी और मुझे नहीं लगता कि भारत आज इस तरह का खर्च उठा सकता है".
उन्होंने यह भी कहा, "अगर भारत वाकई दुनिया की सबसे ज्यादा तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्थाओं में से एक बनना चाहता है तो हमें इन सब चीजों के बारे में बहुत पहले सोचना चाहिए था. मुझे यह कहने में बहुत निराशा हो रही है कि हमने इसके बारे में तब तक नहीं सोचा जब तक कोविड-19 की हम पर मार नहीं पड़ी. इसलिए मुझे लगता है कि हमने एक से ज्यादा तरीकों से मौका गंवा दिया है."
प्रवासियों पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा आदेश
देशभर में फंसे प्रवासी मजदूरों की समस्या और उन पर आई विपत्ति को लेकर देश की सर्वोच्च अदालत ने गुरुवार को 28 मई को बड़ा आदेश सुनाया है. कई महीनों से मजदूर जहां-तहां फंसे हुए हैं. ऐसे में उनके लिए आदेश राहत लेकर आया है.
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किराया नहीं लिया जाएगा
प्रवासी मजदूरों की बदहाली पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा लॉकडाउन के दौरान घर जाने के लिए संघर्ष करते लोगों से राज्य सरकार किराया ना ले और साथ ही ऐसे लोगों को रास्ते में भोजन दिया जाए. कोर्ट में मामले की सुनवाई के दौरान सरकारी वकील सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और कपिल सिब्बल के बीच तीखी बहस हुई. कोर्ट ने कहा कि जहां से यात्रा शुरू होगी वहां की सरकार खाना-पानी देगी और बस में भी इंतजाम किए जाएं.
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ट्रेनों का इंतजाम
सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि राज्य की सरकारें ट्रेन का किराया देंगी और प्रवासियों को घर पहुंचाने की व्यवस्था करेंगी. अदालत के मुताबिक राज्य सरकारें ट्रेन और बसों का खर्च आपस में उठाएंगी. राज्यों की मांग के मुताबिक रेलवे को ट्रेन उपलब्ध करानी होगी. साथ ही कोर्ट ने कहा कि जो लोग सड़क पर पैदल जा रहे हैं, उन्हें तुरंत आश्रय केंद्रों में लाकर उनकी मदद की जाए.
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शेल्टर-खाना दे सरकार
दरअसल पिछले दो महीने से अधिक समय से प्रवासी मजदूर, दिहाड़ी कर्मचारी और अन्य लोग शहरों से निकलकर अपने गांवों की तरफ लौट रहे हैं. कई लोग पैदल या फिर अवैध तरीके से राज्य की सीमा पार करने की कोशिश भी कर रहे हैं और ऐसे में हादसे भी हो रहे हैं. कोर्ट ने कहा है कि राज्य प्रवासियों को उन स्थानों पर खाना-पानी मुहैया करवाएंगे, जहां पर वे फंसे हुए हैं. यात्रा के दौरान रेलवे भी भोजन-पानी का इंतजाम करेगा.
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मजदूरों का रजिस्ट्रेशन
कोर्ट ने कहा कि मजदूरों के घर जाने के लिए रजिस्ट्रेशन राज्य सरकार करेगी. कोर्ट ने कहा कि राज्य सरकारें प्रवासी मजदूरों को उनके घर पहुंचाने के लिए वहीं पर सहायता डेस्क लगाकर उनका पंजीकरण करें जहां वे फंसे हुए हैं और उन्हें ट्रेन और बस पर चढ़ने की पूरी जानकारी दें. कोर्ट ने सूचना के प्रसार पर जोर दिया.
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91 लाख मजदूर जा चुके वापस
केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि रेलवे ने 1 मई से 27 मई तक 3,700 श्रमिक स्पेशल टेनें चलाई हैं और इनसे करीब 50 लाख प्रवासियों को घर भेजा गया है. कुछ राज्यों गुजरात, राजस्थान ने पड़ोसी राज्यों के मजदूरों को बसों से भी भेजा है. केंद्र ने कोर्ट को बताया कि 1 मई से 27 मई के बीच 91 लाख प्रवासियों को घर भेजा गया.
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कोर्ट का संज्ञान
मजदूरों की हालत पर सुप्रीम कोर्ट ने खुद संज्ञान लिया था और केंद्र, राज्य सरकार, केंद्र शासित प्रदेशों को नोटिस जारी करते हुए जवाब मांगा था. उत्तर प्रदेश की सरकार ने कोर्ट को बताया कि 18 लाख लोग वापस लौटे हैं, बिहार ने कहा कि 10 लाख लोग प्रदेश वापस आ चुके हैं.
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भारत में जो तकनीकी असमानताएं हैं वे सिर्फ कनेक्टिविटी और वास्तविक इंफ्रास्ट्रक्चर से जुड़े मुद्दों तक सीमित नहीं हैं. कई लोगों के पास या तो इन प्रणालियों का इस्तेमाल करने की जानकारी नहीं है या वे इनका इस्तेमाल करने में सहज महसूस नहीं करते. पिछले कुछ हफ्तों में वकीलों के कई संगठनों ने मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिख कर फिजिकल अदालतों की प्रणाली पर वापस आ जाने की मांग की है. बार कॉउंसिल ऑफ इंडिया जैसे संगठन तो ये दावा करते हैं कि देश में 90 प्रतिशत वकीलों और जजों को इस "टेक्नोलॉजी के बारे में नहीं मालूम है". कुछ वकील अपनी आजीविका को लेकर चिंतित हैं और दावा करते हैं कि अभी काफी कम लोगों की वर्चुअल अदालतों तक पहुंच है.
सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज मदन बी लोकुर ने डीडब्ल्यू से कहा, "बदलाव का प्रबंधन जरूरी है और बदलाव क्रमिक होने चाहिए. वे सबको स्वीकार्य भी होने चाहिए. जल्दबाजी करने की जरूरत नहीं है. बदलावों को वकीलों और जजों पर जबरन नहीं थोपना चाहिए."
न्यायपूर्ण सुनवाई
कुछ लोगों का यह भी मानना है कि वीडियो स्ट्रीमिंग में खराबी की वजह से अदालत की कार्यवाही के कुछ जरूरी पहलू, जैसे जिस व्यक्ति से सवाल पूछे जा रहे हों उसका बर्ताव और उसके चेहरे के हाव-भाव, फीके पड़ सकते हैं. डर यह है कि ऐसा होने से सुनवाई की न्यायपूर्णता कमजोर पड़ जाएगी.
दिल्ली हाई कोर्ट में वरिष्ठ अधिवक्ता एन हरिहरन ने बताया कि एक क्रिमिनल लॉयर के दृष्टिकोण से, मुद्दा बहुआयामी कनेक्टिविटी का है और वास्तविकता के पहलू को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. हरिहरन ने डीडब्ल्यू को बताया, "बहुआयामी कनेक्टिविटी का इंतजाम करने की जरूरत है, जिसमें एक तरफ जांच एजेंसियां हों और दूसरी तरफ बचाव पक्ष के वकील और मुल्जिम, जिसे हर तारीख पर मौजूद होना जरूरी है. ये न्यायपूर्ण सुनवाई का एक पहलू है कि जो भी हो रहा है वे भी देख सकें".
उन्होंने आगे कहा, "मुझे वाकई नहीं मालूम कि हम इस समय इस तरह की तकनीक से लैस हैं या नहीं". वर्चुअल अदालतों में सुनवाई के उनके तजुर्बे में उन्होंने यह पाया कि लोग पर्याप्त रूप से प्रशिक्षित नहीं होते हैं. हरिहरन ने इस बात पर भी ध्यान दिलाया कि अगर गवाह अपने घरों से गवाहियां देने लगे तो उनसे सवाल-जवाब करने में भी चुनौतियां पेश आएंगी, "सवाल-जवाब में कई चीजें गवाह के बर्ताव और उसके हाव-भाव पर भी निर्भर करती हैं, जो की अदालत तब देख सकती है जब गवाह का परीक्षण अदालत के सामने हो रहा हो. साथ ही आप यह कैसे सुनिश्चित करेंगे कि वह जो भी जानकारी दे रहा है अपनी मर्जी से दे रहा है"?
अजब गजब केस जो हार गए लोग
मामला कितना भी अजीब क्यों न हो, अदालत को उस पर गंभीरता से विचार करके फैसला देना है. जर्मन जजों के सामने ऐसे कई मामले आ चुके हैं.
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कॉपी करने के चक्कर में
एक साहब दफ्तर में फोटो कॉपी मशीन के पास खड़े थे. सोचा कॉपी करते करते अल्कोहल-फ्री बियर गटक ली जाए. लेकिन बियर की बोतल खुली तो झाग निकली और हड़बड़ा गए. कई दांत तुड़ा बैठे. इंश्योरेंस से पैसे मांगे. ड्रेसडेन की कोर्ट ने कहा, नहीं. खाना-पीना तो इंश्योरेंस के तहत नहीं आता. और फोटोकॉपी करने से आप थकते भी नहीं हैं कि पानी की प्यास लगी. लिहाजा, कुछ नहीं मिलेगा.
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फिसल गए
एक महिला ने घर में ही दफ्तर बना रखा था. वह पानी लेने के लिए उठीं तो फिसल गईं. मामला जर्मनी की नेशनल सोशल कोर्ट तक पहुंचा. कोर्ट ने कहा कि ऑफिस में खाने पीने के लिए जाते वक्त कुछ होने पर मुआवजा मिलना चाहिए. लेकिन ऑफिस तो घर में ही था. इसलिए महिला को खुद ही जिम्मेदार ठहराया गया.
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आइस क्रीम से हार्ट अटैक
एक साहब काम से घर लौट रहे थे, आइस क्रीम खाते हुए. ट्राम में घुसने लगे तो जल्दबाजी में एक पूरा बड़ा सा हिस्सा निगल गए. यह हिस्सा यूं का यूं चला गया नली में. और जो दर्द उठा. बाद में पता चला कि यह हार्ट अटैक था. मुआवजा नहीं दिया. कोर्ट पहुंचे. कोर्ट ने कहा, यह हादसा काम से नहीं जुड़ा था. आइस क्रीम मजे के लिए खाई जाती है.
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सेक्स में गड़बड़
एक सरकारी अफसर बिजनेस ट्रिप पर थीं. उस दौरान होटल में सेक्स करते हुए एक गड़बड़ हो गई. दीवार पर लगा बल्ब उखड़ा और उनके ऊपर आ गिरा. चोट भी लगी. महिला ने मुआवजा मांगा तो कोर्ट ने साफ इनकार कर दिया. कोर्ट ने कहा कि अफसर को उस वक्त सेक्स नहीं करना चाहिए था क्योंकि वह काम पर थीं.
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कूदने से पहले सोचें
एक ऑफिस में ट्रेनिंग चल रही थी. ब्रेक हुआ तो कॉलीग्स मस्ती करने लगे. एक 27 साल के युवक पर लोग पिचकारी से पानी फेंकने लगे. वह खिड़की से कूद गया. धड़ाम से गिरा. चोट लगी. लेकिन मुआवजा नहीं मिला. कोर्ट ने कहा, कूदना ही नहीं चाहिए था.
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काम पर सो गए
बार में काम करते हुए एक बंदी सो गई और नींद में कुर्सी से गिर गई. चोट लग गई. मुआवजा नहीं मिला. कोर्ट ने कहा कि वह काम की वजह से नहीं गिरी है इसलिए उसे मुआवजा नहीं मिल सकता.
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सोच समझ के लड़ो
एक साहब काम से इबित्सा गए थे. बीच पर क्लाइंट्स के साथ थोड़ी ज्यादा ही पी ली. बाउंसर्स से झगड़ा हो गया. दो-चार पड़ भी गए. अब उन्होंने कहा कि मैं तो काम से वहां गया था, मुआवजा दो. कोर्ट ने झाड़ा. कहा कि काम से गए थे तो दारू क्यों पी.
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गाय सोच-समझकर बचाएं
एक गाय अपनी ही जंजीर में फंस गई. उसका दम घुटने लगा. गाय के मालिक का भाई उसे बचाने आया तो उस पर एक और गाय ने पांव रख दिया. उसकी टांग टूट गई. कोर्ट ने मुआवजा खारिज कर दिया. कहा कि तुम उस वक्त किसी का काम नहीं कर रहे थे, इसलिए कुछ नहीं मिलेगा.
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आगे का रास्ता
ऑनलाइन अदालतों की मांग के बावजूद कई लोगों का मानना है कि फिजिकल अदालतों को खत्म नहीं किया जा सकता और जरूरत एक ऐसी आदर्श कानून व्यवस्था की है जो उपस्थित ढांचागत चुनौतियों का समाधान करते हुए ऑनलाइन अदालतों को भी सम्मिलित कर ले. विधि सेंटर फॉर लीगल पॉलिसी में सीनियर रेजिडेंट फेलो, अमीन जौहर कहते हैं, "इस व्यवस्था को एक तरह की मिली-जुली व्यवस्था ही होना पड़ेगा". उनका प्रस्ताव है कि वे लोग जो फिजिकल अदालत में सुनवाई चाहते हैं उन्हें इसका विकल्प दिया जाना चाहिए.
पूर्व सुप्रीम कोर्ट जज लोकुर ऑनलाइन अदालतों और वर्चुअल अदालतों के बीच के फर्क की तरफ ध्यान दिलाते हैं. उनका कहना है, "ऑनलाइन अदालतें वे हैं जिनकी तरफ हमारी न्याय प्रणाली जाने की कोशिश कर रही है. वर्चुअल अदालतें ट्रैफिक के नियमों का उल्लंघन जैसी कम्पाउंडेबल गलतियों के लिए स्वचालित कोर्ट होते हैं."
लोकुर ने इस बात पर भी जोर दिया कि ऑनलाइन अदालतों की तरफ भारत के बदलाव के लिए वकील, जज, कोर्ट के अधिकारी और लिटीगेंट सभी की मंजूरी ली जाए. उन्होंने यह भी कहा कि सभी के लिए जागरूकता और प्रशिक्षण के कार्यक्रम आयोजित किए जाने चाहिए. इसके लिए इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत करना पड़ेगा और उसका मतलब सिर्फ हार्डवेयर ही नहीं, बल्कि यूजर फ्रेंडली सॉफ्टवेयर भी लाना होगा.
कोरोना महामारी के बाद सामान्य होते माहौल में बीजिंग में चीन की राष्ट्रीय जन कांग्रेस का अधिवेशन शुरू हुआ है. बजट पास कराने के अलावा यहां हांगकांग के लिए एक सुरक्षा कानून भी पास किया जा रहा है.
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सांसद मास्क में नेता बिना मास्क के
चीन की राष्ट्रीय जनसंसद के अधिवेशन में देश के नेताओं ने मास्क नहीं पहन रखा था, जबकि सामान्य प्रतिनिधियों(सांसदों) ने महामारी से बचने के लिए मास्क पहन रखा था. साल में एक बार होने वाला अधिवेशन इस साल कोरोना से सुरक्षा बंदोबस्त के बीच हो रहा है. अधिवेशन में करीब 3000 प्रतिनिधि भाग ले रहे हैं.
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वीडियो लिंक पर इंटरव्यू
चीनी संसद के अधिवेशन में सांसदों के अलावा हजारों पत्रकार भी भाग लेते हैं. इस बार यह संभव नहीं है. भारी सुरक्षा के बीच हो रहे अधिवेशन में प्रतिनिधियों से इंटरव्यू वीडिया लिंक के जरिए हो रही है. इस तरह प्रतिनिधियों ने आपस में और पत्रकारों के साथ सामाजिक दूरी बनाकर रखी है.
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बीजिंग के ग्रेट हॉल में सम्मेलन
चीन की राष्ट्रीय जन कांग्रेस का अधिवेशन राजधानी बीजिंग में ग्रेट हॉल ऑफ पीपुल्स में हो रहा है. यहां अधिवेशन के आयोजन में मदद कर रहा एक कर्मचारी उद्घाटन समारोह के दौरान चेहरे पर मास्क लगाए दिख रहा है. यह अधिवेशन मार्च में होना था, लेकिन कोरोना महामारी के चलते तब इसे स्थगित कर दिया गया.
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अर्थव्यवस्था पर खर्च
चीन ने कोरोना वायरस की चपेट में आई अर्थव्यवस्था को फिर से पटरी पर लाने के लिए सरकारी मदद की बात की है. लेकिन नए चीन का स्टिमुलस पैकेज अमेरिका या जापान के स्तर का नहीं होगा. प्रधानमंत्री ली केचियांग ने कहा कि वह आर्थिक विकास की कोई दर तय नहीं करेगा.
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भारी बेरोजगारी
चीन की कम्युनिस्ट सरकार ने कोई आंकड़े नहीं दिए हैं, लेकिन प्राइवेट सेक्टर के विश्लेषकों का कहना है कि कोरोना वायरस की वजह से देश के शहरी इलाकों में करीब 30 फीसदी यानि 13 करोड़ कामगार अस्थाई तौर पर बेरोजगार हो गए हैं. उनका कहना है कि करीब 2.5 करोड़ नौकरियां सदा के लिए खत्म हो गई हैं.
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रोजगार बचाने के लिए
कोरोना की वजह से दुनिया भर में नगरपालिकाएं भी प्रभावित हुई हैं. एक ओर उनका खर्च बढ़ा है , दूसरे ओर उनकी आय में भारी कमी हुई है. चीन सरकार रोजगार के नष्ट होने को रोकने के लिए स्थानीय निकायों को 280 अरब डॉलर की मदद देगी. इस धन का इस्तेमाल कोविड-19 का सामना कर रहे लोगों की आवश्यक जरूरतों को पूरा करने पर खर्च होगा.
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मास्क पहनकर उत्पादन
चीन दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है. पिछले साल के मुकाबले इस साल के पहले तीन महीनों में चीन की अर्थव्यवस्था 6.6 प्रतिशत सिकुड़ गई है. विश्लेषकों का मानना है कि इस साल विकास दर शून्य रहेगी. 2019 में चीन में विकास दर 6.1 प्रतिशत रही जो पिछले दशकों में सबसे कम थी.
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अमेरिका से तनाव
अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रपं चीन से नाराज हैं. पिछले साल के कारोबारी झगड़े के बाद कोरोना पर चीन के रुख को लेकर भी अमेरिका नाराज है और उसे समय पर जानकारी नहीं देने की कीमत चुकाने की धमकी दे चुका है. ली केचियग ने कहा है कि चीन अमेरिका के साथ रिश्तों को सामान्य बनाने के लिए काम करेगा.
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सेना पर खर्च कम नहीं होगा
राष्ट्रीय संसद की बैठक में बजट का जो मसौदा पेश किया गया है उसमें सेना पर 178 अरब डॉलर खर्च करने की बात है. यह अमेरिका के बाद दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा बजट है. पिछले साल के मुकाबले बजट में 6.6 प्रतिशत का इजाफा हुआ है लेकिन इसमें बड़े हथियार तंत्रों की खरीद शामिल नहीं है.
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हांगकांग का सुरक्षा कानून
चीनी संसद में हांगकांग के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा कानून बनाने का बिल भी पेश किया गया है. लोकतंत्र समर्थकों ने इसे हांगकांग की स्वायत्तता पर हमला बताया है. अमेरिका ने मनमाने तरीके से इस कानून को हांगकांग पर लागू करने के प्रस्ताव की निंदा की है और कहा है कि इसका हांगकांग के विशेष दर्जे पर असर हो सकता है.