सीरो सर्वे में मध्य प्रदेश 79 प्रतिशत "सीरोप्रीवैलेंस" के साथ सूची में सबसे ऊपर है, जबकि केरल 44 प्रतिशत के साथ सबसे नीचे है.
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पिछले दो दिनों से केरल ने 22,000 से अधिक संक्रमणों की सूचना दी है, जो राष्ट्रीय स्तर पर 50 प्रतिशत से अधिक है. राज्य कई हफ्तों से देश में सबसे अधिक मामले दर्ज कर रहा है.
भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने देश के 11 राज्यों में 14 जून से लेकर 6 जुलाई के बीच सीरो सर्वे किया था. इस सर्वे में मध्य प्रदेश 79 प्रतिशत "सीरोप्रीवैलेंस" के साथ सूची में सबसे ऊपर है, जबकि केरल 44.4 प्रतिशत के साथ सबसे नीचे है. असम में "सीरोप्रीवैलेंस" 50.3 प्रतिशत और महाराष्ट्र में 58 प्रतिशत है.
आईसीएमआर द्वारा किए गए सीरो सर्वे के निष्कर्षों के मुताबिक 11 राज्यों में सर्वेक्षण की गई कम से कम दो-तिहाई आबादी में कोरोना वायरस एंटीबॉडीज विकसित पाई गईं.
कर्ज लेकर कोरोना का इलाज
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सीरोप्रीवैलेंस सर्वेक्षण का चौथा दौर
आईसीएमआर ने हाल ही में भारत के 70 जिलों में राष्ट्रीय सीरो सर्वेक्षण किया. सर्वेक्षित जनसंख्या में राजस्थान में 76.2 प्रतिशत, बिहार में 75.9 प्रतिशत, गुजरात में 75.3 प्रतिशत, छत्तीसगढ़ में 74.6 प्रतिशत, उत्तराखंड में 73.1 प्रतिशत, उत्तर प्रदेश में 70.2 प्रतिशत सीरोप्रीवैलेंस पाया गया. वहीं आंध्र प्रदेश में 70.2, कर्नाटक में 69.8 फीसदी, तमिलनाडु में 69.2 फीसदी और ओडिशा में 68.1 फीसदी सर्वेक्षित आबादी में कोविड एंटीबॉडीज पाई गईं.
केंद्र सरकार ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को सलाह दी है कि वे सीरोप्रीवैलेंस के बारे में जिला स्तर पर डेटा इकट्ठा करने के लिए आईसीएमआर के साथ विचार-विमर्श कर सीरोप्रीवैलेंस सर्वेक्षण करें, जो स्थानीय स्तर पर सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं के लिहाज से जरूरी है. केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव ने सभी राज्यों को लिखे गए पत्र में यह बात कही है.
केरल में कोरोना
केरल में कोरोना का कहर थमता नहीं दिख रहा है. राज्य में दैनिक कोविड-19 मामलों की संख्या में कोई कमी नहीं दिख रही है. बुधवार को लगातार दूसरे दिन यह आंकड़ा 22,000 के पार चला गया. केरल में अब तक 33 लाख से अधिक लोग संक्रमित हो चुके हैं. 16 हजार से अधिक लोगों की मौत कोरोना के कारण हुई है. केरल में एक्टिव केसों की संख्या भी 1,45,876 है.
इस बीच देश में पिछले 24 घंटे में 43,509 नए कोविड-19 केस दर्ज किए गए. इस दौरान 38,525 लोग ठीक हुए और 640 मरीजों की मौत हुई. भारत में ठीक होने की दर अब 97.38 फीसदी हो गई है.
सिर्फ बीमारी नहीं फैलाते हैं चमगादड़
कोरोना वायरस का स्रोत माने जाने की वजह से चमगादड़ बड़े बदनाम हो गए हैं, लेकिन असल में धरती पर इनकी काफी उपयोगिता भी है. क्या आप जानते हैं ये सब इनके बारे में?
तस्वीर: DW
ना कैंसर और ना बुढ़ापा छू सके
साल में केवल एक ही संतान पैदा कर सकने वाले चमगादड़ ज्यादा से ज्यादा 30 से 40 साल ही जीते हैं. लेकिन ये कभी बूढ़े नहीं होते यानि पुरानी पड़ती कोशिकाओं की लगातार मरम्मत करते रहते हैं. इसी खूबी के कारण इन्हें कभी कैंसर जैसी बीमारी भी नहीं होती.
ऑस्ट्रेलिया की झाड़ियों से लेकर मेक्सिको के तट तक - कहीं पेड़ों में लटके, तो कहीं पहाड़ की चोटी पर, कहीं गुफाओं में छुपे तो कहीं चट्टान की दरारों में - यह अंटार्कटिक को छोड़कर धरती के लगभग हर हिस्से में पाए जाते हैं. स्तनधारियों में चूहों के परिवार के बाद संख्या के मामले में चमगादड़ ही आते हैं.
तस्वीर: Imago/Bluegreen Pictures
क्या सारे चमगादड़ अंधे होते हैं
इनकी आंखें छोटी होने और कान बड़े होने की बहुत जरूरी वजहें हैं. यह सच है कि ज्यादातर की नजर बहुत कमजोर होती है और अंधेरे में अपने लिए रास्ता तलाशने के लिए वे सोनार तरंगों का सहारा लेते हैं. अपने गले से ये बेहद हाई पिच वाली आवाज निकालते हैं और जब वह आगे किसी चीज से टकरा कर वापस आती है तो इससे उन्हें अपने आसपास के माहौल का अंदाजा होता है.
तस्वीर: picture-alliance/Mary Evans Picture Library/J. Daniel
काले ही नहीं सफेद भी होते हैं चमगादड़
यह है होंडुरान व्हाइट बैट, जो यहां हेलिकोनिया पौधे की पत्ती में अपना टेंट सा बना कर चिपका हुआ है. दुनिया में पाई जाने वाली चमगादड़ों की 1,400 से भी अधिक किस्मों में से केवल पांच किस्में सफेद होती हैं और यह होंडुरान व्हाइट बैट तो केवल अंजीर खाते हैं.
चमगादड़ों को आम तौर पर दुष्ट खून चूसने वाले जीव समझा जाता है लेकिन असल में इनकी केवल तीन किस्में ही सचमुच खून पीती हैं. जो पीते हैं वे अपने दांतों को शिकार की त्वचा में गड़ा कर छेद करते हैं और फिर खून पीते हैं. यह किस्म अकसर सोते हुए गाय-भैंसों, घोड़ों को ही निशाना बनाते हैं लेकिन जब कभी ये इंसानों में दांत गड़ाते हैं तो उनमें कई तरह के संक्रमण और बीमारियां पहुंचा सकते हैं.
कुदरती तौर पर चमगादड़ कई तरह के वायरसों के होस्ट होते हैं. सार्स, मर्स, कोविड-19, मारबुर्ग, निपा, हेन्ड्रा और शायद इबोला का वायरस भी इनमें रहता है. वैज्ञानिकों का मानना है कि इनका अनोखा इम्यूम सिस्टम इसके लिए जिम्मेदार है जिससे ये दूसरे जीवों के लिए खतरनाक बीमारियों के कैरियर बनते हैं. इनके शरीर का तापमान काफी ऊंचा रहता है और इनमें इंटरफेरॉन नामका एक खास एंटीवायरल पदार्थ होता है.
तस्वीर: picture-lliance/Zuma
ये ना होते तो ना आम होते और ना केले
जी हां, आम, केले और आवोकाडो जैसे फलों के लिए जरूरी परागण का काम चमगादड़ ही करते हैं. ऐसी 500 से भी अधिक किस्में हैं जिनके फूलों में परागण की जिम्मेदारी इन पर ही है. तस्वीर में दिख रहे मेक्सिको केलंबी नाक वाले चमगादड़ और इक्वाडोर के ट्यूब जैसे होंठों वाले चमगादड़ अपनी लंबी जीभ से इस काम को अंजाम देते हैं. (चार्ली शील्ड/आरपी)