जनमतसंग्रहों के भी अप्रत्याशित जोखिम और दुष्प्रभाव हो सकते हैं और संभव है कि व्लादिमीर पुतिन को ये अब पता चले. उन्होंने अभी अभी लोगों से संविधान में संशोधनों का अनुमोदन कराया है.
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जब ब्रिटेन के तत्कालीन प्रधानमंत्री डेविड कैमरॉन ने अपने देश की यूरोपीय संघ की सदस्यता पर जनमतसंग्रह कराया था, तब उन्हें यह कराने की जरूरत नहीं थी. उन्होंने वह कदम संवैधानिक आवश्यकता के तहत नहीं, बल्कि राजनीतिक दबाव में उठाया था. उन्होंने एक ऐसे प्रश्न को 'हां' या 'ना' के सीधे से वोट से जोड़ दिया जो बिल्कुल सरल नहीं था, और ऐसा करके उन्होंने अपने देश को एक ऐसी राजनीतिक उथल-पुथल में डाल दिया, जो अभी तक जारी है.
जब रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने एक बड़े संवैधानिक सुधार पर रूस की जनता की राय लेने के जनमतसंग्रह की घोषणा की, तब उन्हें भी ऐसा करने की जरूरत नहीं थी. पुतिन ने भी संवैधानिक आवश्यकता के कारण नहीं, बल्कि राजनीतिक दबाव महसूस करते हुए ये कदम उठाया. उन्होंने 'हां' या 'ना' के एक सरल सवाल को एक अत्यंत पेचीदा मुद्दे के साथ जोड़ दिया. संवैधानिक सवाल हमेशा मुख्य रूप से सत्ता के सवाल होते हैं और ये उन चीजों को छूते हैं जो एक समाज को अंदर से जोड़ते हैं.
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पुतिन के परिवार से आप मिले हैं?
रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को आपने विश्व नेताओं के साथ खूब देखा होगा. शायद छुट्टियां मनाते हुए उनकी दबंग तस्वीरें भी आपने देखी हों. लेकिन क्या आप उनके परिवार से मिले हैं?
तस्वीर: picture-alliance/AA/Russian Presidential Press and Information Office
ताकतवर पुतिन
पिछले डेढ़ दशक से भी ज्यादा समय से रूसी ताकत और सत्ता पुतिन के इर्द गिर्द ही घूम रही है. वह दुनिया के सबसे ताकतवर लोगों में शुमार होते हैं. विश्व भर के मीडिया में वह छाये रहते हैं. लेकिन इस दौरान उनके परिवार के सदस्यों की झलक कम ही देखने को मिलती है.
तस्वीर: Alexey Druzhinin/AFP/Getty Images
पुतिन का परिवार
किसी जमाने में खुफिया एजेंसी केजीबी के एजेंट रहे पुतिन की दो बेटियां हैं येकातेरीना और मारिया. 1983 में उन्होंने ल्युदमिला पुतिना से शादी की. लेकिन 2014 में उनका तलाक हो गया. पुतिन अपनी निजी जिंदगी को पोशीदा रखने के लिए जाने जाते हैं.
तस्वीर: Imago
रॉक एंड रोल डांसर
2015 में उनकी छोटी बेटी येकातेरीना उस वक्त सुर्खियों में आयी जब पता चला कि वह मॉस्को में ही कैटरीना तीखोनोवा के नाम से रह रही हैं. तीखोनोवा एक्रोबेटिक रॉक एंड रोल डांसर हैं और 2013 में स्विट्जरलैंड में हुई वर्ल्ड चैंपियनशिप में तीसरे स्थान पर आयी थीं.
तस्वीर: Reuters/J. Dabrowski
अरबों की संपत्ति
मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक तीखोनोवा की शादी पुतिन के एक दोस्त के बेटे किरिल शामालोव से हुई है. शामालोव पेशे से कारोबारी हैं और उनकी संपत्ति दो अरब डॉलर के आसपास बतायी जाती है. उन्होंने तेल और पेट्रोकेमिकल्स उद्योग में भारी निवेश किया है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/M. Mordasov
बड़ी बेटी मारिया
येकातेरीना पुतिन की छोटी बेटी है जो 1986 में जर्मन शहर ड्रेसडेन में जन्मी. उस वक्त पुतिन जर्मनी में तैनात थे. उनकी बड़ी बेटी मारिया 1985 में लेनिनग्राद में पैदा हुई. यह तस्वीर 2008 की है जिसमें मारिया अपने पिता पुतिन के साथ मॉस्को में एक मतदान केंद्र की तरफ जाती दिख रही हैं.
तस्वीर: Getty Images/AFP
तलाक की घोषणा
और उनकी पत्नी ल्युदमिला ने अपने तलाक की घोषणा सरकारी टीवी पर की. उन्होंने कहा कि यह उन दोनों का साझा फैसला है. पुतिन ने बताया कि वे एक साथ नहीं रह रहे हैं और उनकी मुलाकातें भी नहीं होतीं. दोनों की शादी लगभग 30 साल चली.
तस्वीर: Reuters
ताज का दीदार
पुतिन के सत्ता के शिखर पर पहुंचने के बाद भी ल्युदमिला आम तौर पर लाइमलाइट से दूर ही रहती थीं. हालांकि रूस की प्रथम महिला के तौर पर उन्होंने कई विदेशी दौरे किये. अक्टूबर 2004 में पुतिन जब भारत गये, तो उन्होंने अपनी पत्नी के साथ आगरा में ताज का भी दीदार किया था.
तस्वीर: Reuters
एक दूसरे के करीब
पेशे से एयर होस्टेस रहीं ल्युदमिला ने पुतिन से अपनी शादी खत्म करने की घोषणा करते हुए यह भी कहा कि वे हमेशा एक दूसरे के करीब बने रहेंगे. पुतिन ने भी ऐसा ही कहा. यह तस्वीर 2008 की है जब पुतिन और ल्युदमिला मॉस्को के एक रेस्त्रां में खाना खाने पहुंचे थे.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/Dmitry Astakhov
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जैसा फिल्मों में होता है
लोगों की राय लेने से पहले ही, पुतिन को सत्ता के सवाल का जवाब किसी फिल्मी दृश्य की तरह मिल चुका था. कई महीनों से मॉस्को में राजनीतिक सलाहकार और जानकार यह सोच-सोच कर परेशान हो रहे थे कि पुतिन संवैधानिक रूप से राष्ट्रपति कार्यकाल की सीमा समाप्त होने के बाद भी सत्ता में कैसे रहेंगे? किसी नई नीति के जरिए? एक नए एकीकृत देश में? या एक नए पद के जरिए?
इधर से उधर आलेख भेज गए, परिदृश्यों पर बहस हुई. फिर पुतिन की यूनाइटेड रशिया पार्टी की सांसद वैलेंटीना तेरेश्कोवा के राजनीतिक प्रस्ताव ने बाजी मार ली. तेरेश्कोवा को अंतरिक्ष में जाने वाली पहली महिला के रूप में जाना जाता है और वह पूर्ववर्ती सोवियत संघ की एक हीरो हैं. उन्होंने प्रस्ताव दिया कि संविधान में एक संशोधन कर दिया जाए जिससे पुतिन को बतौर राष्ट्रपति दो और कार्यकाल मिल जाएं.
अगर पुतिन खुद ऐसा चाहते हैं तो. हाल में पुतिन ने कभी कभी सार्वजनिक रूप से इस विचार का जिक्र किया है और यह कहा है कि कुछ परिस्थितियों में वह फिर से राष्ट्रपति चुनाव लड़ने के बारे में सोच सकते हैं. लगता है अब उन परिस्थितियों ने जन्म ले ही लिया है. 98 प्रतिशत मतों की गिनती हो चुकी है और लगभग 78 प्रतिशत मतदाताओं ने अपने राष्ट्रपति से कहा है कि वह राष्ट्रपति बने रहें. ये लगभग उन नतीजों के जैसा ही है जिनकी भविष्यवाणी क्रेमलिन के ज्योतिषियों ने हफ्तों पहले की थी. संवैधानिक सुधार का असली लक्ष्य यही था: कि जनमतसंग्रह से पुतिन को सत्ता में रखने की अपील निकलवाई जाए. वैधता तैयार की जाए, जबकि असलियत में वहां एक नैतिक शून्यता है.
दोनों तरफ के पॉपुलिस्टों की मदद
पुतिन ने रूस के नागरिकों से संवैधानिक संशोधन को पारित करने के बदले में "स्थिरता और सुरक्षा" का वादा किया था. अल्पावधि में वह दोनों ही वादे पूरे कर पाएंगे और इस बात पर उनके राजनीतिक विरोधियों को भी कोई संशय नहीं है. लेकिन यह किस कीमत पर होगा? कम से कम इतना तो अनुमान लगाना संभव ही है कि जब संविधान में किए गए दूसरे संशोधनों का हिसाब लगाया जाएगा तो कुल मिला कर तस्वीर कैसी होगी. इन सबको एक साथ देखें तो पश्चिम और उसकी उदारपंथी व्यवस्था की तरफ से उसे और नकारा जाएगा. भविष्य में, अंतरराष्ट्रीय कानूनों पर रूसी कानून को वरीयता देना संविधान में स्थापित किया जाएगा और इसके साथ भगवान में विश्वास और जीने के हर उस तरीके का बहिष्कार होगा, जो परिवार की पारंपरिक अवधारणा से मेल ना खाता हो.
हो सकता है कि रूस के नए संविधान की भावना को दूसरे लोग भी महसूस करें. इस जनमतसंग्रह में मिले समर्थन के आधार पर, क्रेमलिन अपने शासन के मॉडल को आगे बढ़ाने के लिए और भी प्रोत्साहित होगा. पूरे यूरोप में, राजनीतिक विचारधारा के बाएं और दाएं, दोनों ध्रुवों के पॉपुलिस्ट उम्मीद कर सकते हैं कि रूस तानाशाही को पहले से भी ज्यादा भारी प्रोत्साहन देगा. हालांकि, वे देश जिन्होंने 30 साल पहले सोवियत संघ से आजादी हासिल की, इस संवैधानिक सुधार को लेकर ज्यादा खुश नहीं हैं: आखिर, इस सुधार के पीछे उन्हें एक तथाकथित "ऐतिहासिक सच" दिखता है जो इतिहास की एक पुरानी, सोवियत-साम्राज्य संबंधी अवधारणा पर आधारित है.
मॉस्को में तनाव: कोरोना वायरस और अर्थव्यवस्था
इस संशोधित संविधान के जरिए रूस अपने मंसूबे स्पष्ट कर रहा है. नए संविधान की अवधारणाओं में वही दिखता है जो 20 साल से रूसी राजनीति की पहचान रही हैं. पुतिन अपनी शक्ति को और मजबूत करते जा रहे हैं और उस निरंकुश व्यवस्था को मजबूत करते जा रहे हैं जिसे सिर्फ उनके लिए बनाया गया है. अभी तक जो स्थिति है, इस तरह की व्यवस्था को खड़ा करने वाला और इससे फायदा उठाने वाला हर व्यक्ति आश्वस्त महसूस करेगा. फिर भी, इन दिनो मॉस्को में तनाव दिखता है.
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दशक गुजर गए, पर इनकी सत्ता कायम है...
चीन में शी जिनपिंग जब तक चाहें राष्ट्रपति रह सकते हैं तो रूस में पुतिन फिर से छह साल के लिए राष्ट्रपति बन गए हैं. लेकिन दुनिया में कई राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री दशकों से सत्ता में जमे हैं. डालते हैं इन्हीं पर एक नजर..
तस्वीर: AP
कैमरून: पॉल बिया
अफ्रीकी देश कैमरून में पॉल बिया 35 साल से राष्ट्रपति पद पर कायम हैं. वह 1975 से 1982 तक देश के प्रधानमंत्री भी रहे. फिलहाल उनकी उम्र 85 साल है और सब सहारा इलाके में वह सबसे बुजुर्ग राष्ट्रपति हैं. उन्हें अफ्रीका के सबसे विवादित नेताओं में से एक माना जाता है. उनकी पार्टी 1992 से हर चुनाव में भारी जीतती रही है. लेकिन विरोधी धांधलियों के आरोप लगाते हैं.
तस्वीर: picture alliance/abaca/E. Blondet
रिपब्लिक ऑफ कांगो: डेनिस सासो
अफ्रीकी देश रिपब्लिक ऑफ कांगो में राष्ट्रपति डेनिस सासो पहले 1979 से 1992 तक राष्ट्रपति पद पर रहे और अब 1997 से फिर राष्ट्रपति पद संभाले हुए हैं. 1992 में वह राष्ट्रपति चुनाव हार गए. लेकिन देश में चले दूसरे गृहयुद्ध में सासो के हथियारबंद समर्थकों ने तत्कालीन राष्ट्रपति लेसुबु को सत्ता से बाहर कर दिया.
तस्वीर: Getty Images/AFP
कंबोडिया: हुन सेन
दक्षिण पूर्व एशियाई देश कंबोडिया में हुन सेन पिछले 32 वर्षों से प्रधानमंत्री के पद पर हैं. वह दुनिया में सबसे ज्यादा समय तक प्रधानमंत्री रहने वाले नेता हैं. उनका असली नाम हुन नबाल था लेकिन उन्होंने खमेर रूज के दौर में अपना नाम बदल लिया. वह 1985 में कंबोडिया के प्रधानमंत्री बने. राजशाही वाले देश कंबोडिया में एक पार्टी का शासन है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/M, Remissa
युंगाडा: योवेरी मोसेवेनी
अफ्रीकी देश युगांडा में राष्ट्रपति योवेरी मुसेवेनी ने 1986 में सत्ता संभाली थी. वह दो पूर्व राष्ट्रपतियों ईदी अमीन और मिल्टन ओबोटे के खिलाफ हुई बगावत का हिस्सा भी माने जाते हैं. कई लोग मानते हैं कि मोसेवेनी के शासन में युगांडा को आर्थिक विकास और राजनीतिक स्थिरता तो मिली लेकिन पड़ोसी देशों में जारी हिंसक विवादों में शामिल होने के आरोप भी उस पर लगे.
तस्वीर: Reuters/J. Akena
ईरान: अयातोल्लाह खामेनेई
ईरान में सत्ता का शीर्ष केंद्र सुप्रीम लीडर को माना जाता है और अयातोल्लाह खामेनेई पिछले 29 साल से इस पद पर कायम हैं. बताया जाता है कि ईरान में इस्लामी क्रांति के संस्थापक अयातोल्लाह खमेनी ने उन्हें अपना उत्तराधिकारी चुना था. वह 1981 से 1989 तक ईरान के राष्ट्रपति भी रह चुके हैं.
तस्वीर: khamenei.ir
सूडान: उमर अल बशीर
सूडानी राष्ट्रपति उमर हसन अल बशीर जून 1989 से अपने देश के राष्ट्रपति हैं. इससे पहले वह सूडानी फौज में ब्रिगेडियर थे और उन्होंने एक सैन्य बगावत के जरिए लोकतांत्रिक रूप से चुने हुए प्रधानमंत्री सादिक महदी की सरकार का तख्तापलट किया और देश की बागडोर अपने हाथों में ले ली. उन पर अपने विरोधियों को कुचलने के आरोप लगते हैं.
तस्वीर: Reuters/M. Abdallah
चाड: इदरीस देबी
मध्य अफ्रीकी देश चाड में इदरीस देबी ने 1990 में राष्ट्रपति हुसैन बाहरे को सत्ता से बेदखल किया और खुद देश के राष्ट्रपति बन गए. वह पिछले पांच राष्ट्रपति चुनावों में भारी वोटों से जीत दर्ज करते रहे हैं. लेकिन चुनावों की वैधता पर राष्ट्रपति देबी के विरोधी और अंतरराष्ट्रीय समुदाय हमेशा उंगलियां उठाते रहे है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/L. Marin
कजाकस्तान: नूर सुल्तान नजरबायेव
मध्य एशियाई देश कजाकस्तान में नूर सुल्तान नजरबायेव 28 साल से सत्ता में हैं. सोवियत संघ के विघटन के बाद कजाकस्तान एक अलग देश बना. तभी से नजरबायेव राष्ट्रपति हैं. इससे पहले वह कजाकस्तान कम्युनिस्ट पार्टी के प्रमुख थे. उन्होंने कजाकस्तान में कई आर्थिक सुधार किए हैं. लेकिन देश के राजनीतिक तंत्र को लोकतांत्रिक बनाने में उनकी कोई दिलचस्पी नहीं है.
तस्वीर: picture alliance/Sputnik/S. Guneev
ताजिकस्तान: इमोमाली राहमोन
एक और मध्य एशियाई देश ताजिकस्तान की सत्ता पर भी 1992 से राष्ट्रपति इमोमाली राहमोन का शासन चल रहा है. उन्हें अपने 25 साल के शासनकाल के शुरुआती सालों में गृहयुद्ध का सामना करना पड़ा जिसमें करीब एक लाख लोग मारे गए. ताजिकस्तान भी पहले सोवियत संघ का हिस्सा था. आज इसे मध्य एशिया का सबसे गरीब देश माना जाता है.
तस्वीर: DW/G. Faskhutdinov
इरीट्रिया: इसाइयास आफवेरकी
अफ्रीकी देश इरिट्रिया की आजादी के बाद से ही इसाइयास आफवेरकी राष्ट्रपति हैं. उन्होंने इथोपिया से इरीट्रिया की आजादी के लिए लंबे समय तक संघर्ष किया. इरिट्रिया को मई 1991 में संयुक्त राष्ट्र की निगरानी में होने वाले एक जनमत संग्रह के नतीजे में आजादी मिली थी.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
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इस जनमतसंग्रह का परिणाम वही हो जो क्रेमलिन चाहता है और इस बात को सुनिश्चित करने में क्रेमलिन ने कोई कसर बाकी नहीं रहने दी. लेकिन तब क्या होगा अगर हर तरह की संस्थागत विसंगतियों के साथ इस प्रभाव का असर बिलकुल उल्टा पड़े? अगर राष्ट्रपति को समर्थन नहीं मिला तो? अगर, इसकी जगह, जनमत-संग्रह के परिणाम को गंभीरता से नहीं लिया गया तो? अगर इसी वजह से राजनीतिक विरोध होने लगा तो? पुतिन की लोकप्रियता की रेटिंग महीनों से गिर रही हैं. रूस की अर्थव्यवस्था मंदी से लड़ रही है. कोरोना वायरस कंपनियों को भारी नुकसान पहुंचा रहा है.
कार्यकाल की शर्तों को फिर से तैयार करना
डेविड कैमरॉन को जब अहसास हुआ कि ब्रेक्जिट जनमतसंग्रह पर उन्होंने जो जुआ खेला था, उसमें वह हार गए हैं, तो उन्होंने इस्तीफा दे दिया. वह कैमरों के आगे खड़े हुए, इस्तीफे की घोषणा की, हार मानी, मुड़े और प्रसन्नतापूर्वक गुनगुनाते हुए चले गए.
इसके विपरीत, अगर रूस के जनमतसंग्रह ने अपना राजनीतिक लक्ष्य हासिल नहीं किया, तो व्लादिमीर पुतिन राजनीतिक जीवन से सन्यास लेने में भर में संतोष करने वाले नहीं हैं. रूस की राजनीतिक व्यवस्था में यह विकल्प है ही नहीं. इसकी जगह, नए संविधान की बदौलत, पुतिन अब 16 और सालों तक राज कर सकते हैं. मेरा पूर्वानुमान है कि वो यही करेंगे - चाहे इसकी राजनीतिक कीमत और परिणाम कुछ भी हो.
रूस की सरकार पर अकसर अपने विरोधियों को साफ करने के आरोप लगते रहे हैं. इस तरह की घटनाओं में कई बार घातक जहर का इस्तेमाल किया गया है. एक नजर कुछ ऐसे ही मामलों पर.
तस्वीर: Reuters/J. Roberts
अज्ञात पदार्थ
सबसे ताजा मामला रूस के पूर्व जासूस सेरगेई स्क्रिपाल और उनकी बेटी का है. ब्रिटिश पुलिस का कहना है कि उन पर एक दुर्लभ पदार्थ से हमला किया गया जिसके बाद उनकी हालत काफी वक्त तक गंभीर बनी रही. ब्रिटेन में रूसी दूतावास ने स्क्रिपाल और उनकी बेटी को जहर दिए जाने के बारे में ब्रिटिश मीडिया की खबरों पर चिंता जताई है. रूस का कहना है कि वह इस मामले की जांच में हर तरह के सहयोग को तैयार है.
जहरीला छाता
शीत युद्ध के दौर में एक बुल्गारियाई विद्रोही को जहरीली नोक वाले एक छाते से मारा गया था. मारकोव एक लेखक और पत्रकार थे. उस समय के कम्युनिस्ट नेतृत्व के कटु आलोचक मारकोव ने 11 सितंबर 1978 को दम तोड़ा. विद्रोहियों का कहना है कि उनकी हत्या के पीछे सोवियत खुफिया एजेंसी केजीबी का हाथ था.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/epa/Stringer
पोलोनियम-210
केजीबी के पू्र्व जासूस एलेक्जेंडर लितविनेंको ने लंदन के मिलेनियम होटल में ग्रीन टी पी, जिसमें जहरीला पदार्थ पोलोनियम-210 मिला था. आरोप लगते हैं कि यह हत्या खुद रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के कहने पर हुई थी, हालांकि रूसी सरकार ने इससे हमेशा इनकार किया. पुतिन के कटु आलोचक लितविनेंको लंदन में रह रहे थे.
तस्वीर: Reuters/V. Djachkov
अचानक मौत
नवंबर 2012 में लंदन के एक होटल के बाद अपने एक आलीशान घर में 44 वर्षीय रूसी नागरिक एलेक्जेंडर पेरेपीलिछनी मृत पाए गए. उन्होंने रूसी मनी लॉन्ड्रिंग की छानबीन करने वाली एक स्विस जांच में मदद की थी जिसके बाद उन्हें रूस से भागना पड़ा. उनकी अचानक मौत के बाद भी हत्या होने का संदेह गहराया. लेकिन रूस ने भी इसमें अपना हाथ होने से इनकार किया.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/D. Kalker
अब तक बाकी निशान
यूक्रेन के पूर्व राष्ट्रपति विक्टर युशचेंकों के चेहरे पर 2004 में उस समय जहरीला पदार्थ फेंका गया जब वह राष्ट्रपति चुनाव के दौरान एक रैली में थे. पश्चिम समर्थक युशचेंको तत्कालीन प्रधानमंत्री और रूस समर्थक विक्टर यानुकोविच के खिलाफ मैदान में थे. दर्जनों बार सर्जरी के बावजूद युशचेंकों के चेहरे और शरीर से अब तक निशान नहीं गए हैं. रूस ने इसमें भी अपना हाथ होने से इनकार किया.
तस्वीर: Getty Images/AFP/M. Leodolter
कई बार हमले की कोशिश
रूस के विपक्षी कार्यकर्ता व्लादिमीर कारा-मुर्जा का मानना है कि उन्हें 2015 से 2017 के बीच कई बार जहर देने की कोशिश हुई. बाद में जर्मनी प्रयोगशाला के टेस्ट में उनके शरीर में तीव्र स्तर का पारा, तांबा, मैगनीज और जिंक के अवशेष मिले. रूस ने इस मामले से भी पल्ला झाड़ लिया.