"अमेरिका में नस्लभेद रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्सा है”
मियोद्राग सोरिच
३ जून २०२०
जॉर्ज फ्लॉयड की मौत के बाद अमेरिकी शहरों में हो रहे प्रदर्शनों से चौंकना नहीं चाहिए. बराक ओबामा के दो राष्ट्रपति कार्यकालों के बावजूद अमेरिका में आज भी नस्लभेद दिखता है. मियोद्राग सोरिच का ब्लॉग.
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"दंगा, उन लोगों की भाषा है जिन्हें सुना नहीं जाता” करीब पचास साल पहले ये शब्द नागरिक अधिकार के लिए लड़ने वाले लीडर मार्टिन लूथर किंग जूनियर ने कहे थे. वे समझा रहे थे कि अमेरिका में काले लोग क्यों सड़कों पर उतरते हैं.
यह देखना दुर्भाग्यपूर्ण है कि तब से अब तक परिस्थितियां कितनी सुधरी हैं. एक बार फिर, हजारों लोग नस्लभेद और पुलिस की बर्बरता के विरुद्ध प्रदर्शन कर रहे हैं. एक बार फिर, उन लोगों को बदलाव की बड़ी कम उम्मीद है.
प्रदर्शनों के बावजूद, ज्यादातर काले लोग अमेरिका की समृद्धि में अपनी हिस्सेदारी नहीं पा सकेंगे, वे गोरों के मुकाबले कम पैसा कमाते रहेंगे. ज्यादातर काले लोगों को खुद को बेहतर बनाने के मौके नहीं मिलेंगे. और वे अपने बच्चों को दोयम दर्जे के स्कूलों में भेजते रहेंगे. इस बात की बहुत कम गुंजाइश होगी कि उनका स्वास्थ्य बीमा होगा. उनकी जीवन प्रत्याशा कम ही रहेगी और जेल जाने की संभावना अधिक होगी, वो भी लंबी सजा के साथ. ये सब इसीलिए होगा, क्योंकि वे गोरे नहीं हैं.
एक टिप्पणीकार के मुताबिक, दोयम दर्जे के नागरिक जैसे व्यवहार से खीझकर, अमेरिका के दर्जन भर शहरों में काले लोग प्रदर्शन नहीं कर रहे हैं. वे प्रदर्शन इसलिए कर रहे हैं क्योंकि वे वाकई में सेकेंड क्लास सिटीजन हैं.
आधिकारिक रूप से, कानून के सामने हर अमेरिकी नागरिक समान है. लेकिन हकीकत में, अमेरिका की पुलिस सड़कों पर लोगों को उनके रंग और लुक के कारण रोकती है. भले ही वे संदिग्ध न भी हों तब भी उन्हें रोका जाता है. गिरफ्तारी के दौरान अगर पुलिस ने अगर कोई बर्बर गलती की, जैसी जॉर्ज फ्लॉएड के मामले में की गई, तो वे इससे इनकार करती है. लोकल डिस्ट्रिक्ट अटॉर्नी ऑफिस में मामला और बदतर हो जाता है, वहां ऐसे मामलों को दबाने की कोशिशें होती हैं.
अमेरिका वैसा नहीं है जैसा हॉलीवुड की ज्यादातर फिल्में दिखाती हैं. अमेरिका अपने ही भीतर त्वचा के रंग को लेकर संघर्ष करने वाला देश भी है. एक नजर बीते 60 साल में अमेरिका में हुए दंगों पर.
तस्वीर: picture-alliance/AA/I. Tayfun Salci
अगस्त 1965
लॉस एजेंलिस शहर में पुलिस ने आईडेंटिटी चेक के लिए दो अश्वेत पुरुषों को रोका और फिर उन्हें पुलिस स्टेशन ले जाया गया. पुलिस पर आरोप लगा कि उसने ऐसा नस्लीय घृणा के चलते किया. इसके बाद 11-17 अगस्त तक शहर के एक हिस्से में भयानक दंगे हुए. 34 लोगों की मौत हुई.
तस्वीर: AFP
जुलाई 1967
दो श्वेत पुलिस अधिकारियों ने एक मामूली ट्रैफिक नियम उल्लंघन के लिए एक अश्वेत टैक्सी ड्राइवर को गिरफ्तार किया और पीटा. इसके बाद नेवार्क में 12-17 जुलाई तक दंगे हुए. 26 लोगों की मौत हुई और 1,500 से ज्यादा लोग जख्मी हुए. इसके हफ्ते भर बाद डेट्रॉएट और मिशीगन में भी दंगे हुए, वहां 43 लोग मारे गए और 2,000 से ज्यादा घायल हुए.
तस्वीर: AFP
अप्रैल 1968
मार्टिन लूथर किंग की हत्या के बाद टेनेसी में हिंसा भड़ गई. 4-11 अप्रैल तक चले इन दंगों में 46 लोग मारे गए और 2,600 से ज्यादा घायल हुए. हिंसा इस कदर भड़की कि तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति लिंडन बी जॉनसन को दंगा रोकने के लिए सेना भेजनी पड़ी.
तस्वीर: AFP
मई 1980
दिसंबर 1979 में चार श्वेत पुलिस अधिकारियों पर एक अश्वेत मोटरसाइकिल सवार को पीट पीटकर मार डालने का आरोप लगा. सुनवाई के बाद मई में पुलिस अधिकारियों को बरी कर दिया गया. इससे नाराज अश्वेत समुदाय ने मियामी लिबर्टी सिटी में भारी हिंसा की. चार दिन के दंगों में 18 लोग मारे गए.
तस्वीर: AFP
अप्रैल 1992
लॉस एंजेलिस के दंगों में 59 लोग मारे गए. अश्वेत कार चालक की पिटाई के वीडियो बनाने वाले श्वेत पुलिस अधिकारियों की रिहाई की वजह से ये दंगे हुए. यह दंगे अटलांटा, कैलिफोर्निया, लॉस वेगस, न्यूयॉर्क, सैन फ्रांसिस्को और सैन जोस में भी फैले.
तस्वीर: picture-alliance/AP/K. Djansezian
अप्रैल 2001
19 साल के अश्वेत युवक टिमोथी थॉमस को एक पुलिस अधिकारी ने मार डाला. इसके बाद सिनसिनैटी शहर में दंगे भड़क उठे. चार रातों तक शहर में कर्फ्यू लगाना पड़ा.
तस्वीर: AFP/D. Maxwell
अगस्त 2014
श्वेत पुलिस अधिकारी के हाथों एक निहत्थे अश्वेत किशोर की मौत के बाद फर्गुसन शहर में दंगे हुए. 9-19 अगस्त तक हुई हिंसा में काफी आर्थिक नुकसान हुआ. नवंबर में आरोपी पुलिस अधिकारी से हत्या की धाराए हटाने के बाद शहर में फिर तनाव लौट आया.
तस्वीर: AFP/S. Olson
अप्रैल 2015
25 साल के अश्वेत युवा फ्रेडी ग्रे को गिरफ्तार करते समय पुलिस ने इतनी ताकत लगाई कि युवक की पुलिस वैन में मौत हो गई. फ्रेडी की गिरफ्तारी का वीडियो भी सामने आया. वीडियो के प्रसारित होने के बाद बाल्टीमोर में भारी हिंसा हुई जिसके इमरजेंसी लगानी पड़ी.
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सितंबर 2016
पुलिस फायरिंग में 43 साल के कीट लैमॉन्ट स्कॉट की मौत के बाद शारलोटे शहर में दंगे हुए. प्रशासन को हिंसा रोकने के लिए कर्फ्यू लगाना पड़ा और सेना बुलानी पड़ी.
तस्वीर: AFP/S. Rayford
मई 2020
मिनियापोलिस शहर में पुलिस अधिकारियों ने जॉर्ज फ्लॉएड नाम के एक अश्वेत शख्स को गिरफ्तार किया. गिरफ्तारी के दौरान फ्लॉएड ने पुलिस को अपनी बीमारी के बारे में बताया. इसके बावजूद पुलिस अधिकारियों ने उन पर ताकत आजमाई. फ्लॉएड की मौके पर ही मौत हो गई. उनकी मौत के एक दिन बाद से ही अमेरिका समेत दुनिया के कई देशों में प्रदर्शन हो रहे हैं. ओएसजे/एके (एएफपी)
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प्रदर्शन काफी नहीं
अमेरिका में स्थानीय प्रशासन की निगरानी करने वाली कोई स्वतंत्र संस्था नहीं है. पुलिस की कारों में तमाम कानून तोड़ने वाले बैठे हुए हैं, जो कानून के रखवाले होने का दिखावा करते हैं. ऐसे कई गोरे लोग हैं जिन्होंने इन अधिकारियों की घिनौनी हरकतों को बर्दाश्त किया है. किंग अपने संबोधन में अमेरिका की ज्यादातर जनता के बारे में बात कर रहे थे, "जो बिना विरोध के दुष्टता को स्वीकार करता है वे असल में उनके साथ सहयोग कर रहा होता है.”
लेकिन दुष्टता के खिलाफ प्रदर्शन करना ही काफी नहीं है, इसे रोकना होगा. अमेरिका के पहले काले राष्ट्रपति बराक ओबामा ने यह करने की कोशिश की, लेकिन आखिकार वे नाकाम हुए. उनके कार्यकाल के दौरान फर्गुसन में 18 साल के निहत्थे काले युवक माइकल ब्राउन को आठ बार गोली मारी गई. उसके बाद देश भर में प्रदर्शन हुए.
ओबामा के राष्ट्रपति कार्यकाल के दौरान एक काले न्यूयॉर्क वासी एरिक गार्नर का पुलिस अधिकारी ने गला दबोचा. गार्नर ने मौत से पहले कहा, "आई कान्ट ब्रीद.” एक हफ्ते पहले जॉर्ज फ्लॉयड के मुंह से भी यही आखिरी शब्द निकले. उनकी गर्दन पर करीब नौ मिनट तक एक पुलिस अधिकारी ने दबाई थी.
रोजमर्रा के नस्लभेद के सामने लाचार
अमेरिकी राष्ट्रपति भले ही दुनिया की सबसे ताकतवर सेना का मुखिया हो, लेकिन अपने ही देशवासियों द्वारा हर दिन किए जाने वाले नस्लभेद के सामने वे लाचार दिखते हैं. निश्चित रूप से उन्हें इस अन्याय की निंदा करनी चाहिए और पुलिस बर्बरता का शिकार बनने वाले परिवार के साथ सहानुभूति व्यक्त करनी चाहिए, लेकिन ऐसा तभी होगा जब वो आक्रोश और भावनाओं को शांत करने की कोशिश करने की सोचेंगे.
लेकिन जैसा लग ही रहा था, वैसा ही हुआ, राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप इस मामले में बुरी तरह नाकाम रहे. उनकी सहानुभूति वैसी ही है जैसे फूलों के बागान में किसी उल्का पिंड का गिरना. ट्रंप की आँखों में अभी सिर्फ दोबारा राष्ट्रपति बनने का सपना है और उन्हें लगता है कि अपने सैन्य रागों से वे गोरे वोटरों को रिझा सकेंगे.
हो सकता है कि नंवबर में होने वाले राष्ट्रपति चुनावों में यह रणनीति काम कर जाए, ये अमेरिका की कमजोरी को ही बयान करेगी.
अमेरिका में अश्वेतों के साथ बर्ताव पर दुनियाभर में प्रदर्शन हो रहे हैं. जॉर्ज फ्लॉयड की मौत पर अमेरिका से लेकर यूरोप तक लोग विरोध में उतर आए हैं. इन प्रदर्शनों में लोग "मैं सांस नहीं ले पा रहा हूं" के नारे लगा रहे हैं.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/M:.Schreiber
अश्वेत की मौत
अमेरिका में अश्वेत जॉर्ज फ्लॉयड की पुलिस हिरासत में मौत के बाद दुनिया के कई शहरों में लोग विरोध जताते हुए सड़कों पर उतर आए हैं. अमेरिका के कई शहरों के अलावा, लंदन, बर्लिन, टोरंटो में विरोध हो रहे हैं. प्रदर्शनकारी तख्तियों पर "ब्लैक लाइव्स मैटर" के नारे लिख कर अमेरिकी पुलिस की क्रूरता का विरोध कर रहे हैं.
तस्वीर: Reuters/L. Bryant
व्हाइट हाउस के बाहर विरोध
फ्लॉयड की हिरासत में मौत के बाद पिछले छह दिनों से अमेरिका में लगातार विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं. मिनेसोटा के मिनेपोलिस में पुलिस द्वारा बल प्रयोग करने के दौरान फ्लॉयड सांस नहीं ले पा रहे थे. हिंसक विरोध प्रदर्शनों के बाद अमेरिका के कम से कम 40 शहरों में कर्फ्यू लगा दिया गया है. 15 राज्यों और वॉशिंगटन में नेशनल गार्ड की तैनाती की गई है. प्रदर्शनकारी व्हाइट हाउस के बाहर तक विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं.
तस्वीर: Getty Images/AFP/M. Ngan
बर्लिन में फ्लॉयड की याद में
जर्मनी की राजधानी बर्लिन में जॉर्ज फ्लॉयड की याद में दीवार पर एक बड़ी सी पेंटिंग बनाई गई है. फ्लॉयड की पुलिस हिरासत में मौत के विरोध में शनिवार को बर्लिन में हजारों लोगों ने अमेरिकी दूतावास के बाहर मार्च निकाला.
तस्वीर: picture-alliance/NurPhoto/O. Messinger
लंदन में विरोध
लंदन में भी रविवार को बड़े पैमाने पर लोग विरोध प्रदर्शनों में शामिल हुए और नस्लवाद के खिलाफ नारेबाजी की. कुछ प्रदर्शनकारी बेहद भावुक दिखे. कुछ लोगों ने हाथों में तख्तियां ले रखी थी जिसपर लिखा था नस्लवाद महामारी है.
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"मैं सांस नहीं ले पा रहा हूं"
कोरोना वायरस महामारी के बीच भी लोग अपना गुस्सा जाहिर करने के लिए सड़कों पर उतर रहे हैं. कुछ लोग वायरस से बचने के लिए लगाए जाने वाले मास्क पहने दिख रहे हैं जिन पर "मैं सांस नहीं ले पा रहा हूं" लिखा हुआ है.
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फ्लॉयड के शहर में हिंसा
जॉर्ज फ्लॉयड मिनेसोटा के मिनेपोलिस में रहते थे, उनकी मौत के बाद से वहां हिंसा का दौर जारी है. स्टोर में लूटपाट और आगजनी की घटनाए दर्ज की जा रही हैं. राज्य के गवर्नर ने लोगों से संयम बरतने को कहा है.
तस्वीर: Reuters/L. Bryant
नेशनल गार्ड तैनात
अमेरिका के कई राज्यों में हिंसा, आगजनी और लूटपाट की घटनाओं के बाद नेशनल गार्ड की तैनाती की गई है. फ्लॉयड की मौत के आरोपी पुलिस अधिकारी पर कोर्ट में सुनवाई शुरू हो रही है.
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कौन थे जॉर्ज फ्लॉयड
46 साल के जॉर्ज फ्लॉयड एक साधारण इंसान थे. वह अफ्रीकी मूल के थे और एक रेस्तरां में गार्ड का काम करते थे. 25 मई की शाम उनकी पुलिस हिरासत में मौत हो गई और उसके बाद दुनिया भर में अश्वेतों के साथ पुलिस बर्ताव को लेकर नई बहस छिड़ गई.
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दुर्भाग्य से जो जॉर्ज फ्लॉयड के साथ हुआ, वो अकेला मामला नहीं है. ऐसे ही हजारों मामले हैं. कालों के प्रति बैर सिर्फ पुलिस अधिकारी या डिस्ट्रिक्ट अटॉर्नी या जज ही नहीं रखते, बल्कि टीचर और नौकरी देने वाले भी ऐसे ही सोचते हैं. यह प्रदर्शन हर दिन होने वाले ऐसे ही नस्लभेद का विरोध हैं.
यह नस्लभेद अमेरिका में रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्सा है, इसीलिए इससे निपटना मुश्किल है. बरसों से मानवाधिकार कार्यकर्ता अमेरिकी पुलिस अधिकारियों के लिए बेहतर ट्रेनिंग की मांग कर रहे हैं. दशकों से पुलिस और डिस्ट्रिक्ट अटॉर्नी के काम काज की निगरानी और सख्त गन लॉ के लिए स्वतंत्र निगरानी तंत्र की मांग हो रही है. लेकिन अब तक इन मामलों में ना के बराबर प्रगति हुई है.
हालांकि प्रदर्शनकारियों की मंशा से लोगों को सहानुभूति हो सकती है. लेकिन यह कहना भी जरूरी है कि हिंसा कोई हल नहीं देती है. यह बचाव नहीं हैं, न ही इसे सही ठहराया जा सकता है. हिंसक कदम, कई गोरे लोगों के पूर्वाग्रह को और चारा देते हैं.
ऐसे में क्या पीछे बचता है? शायद जो मार्टिन लूथर किंग जूनियर ने कहा, "हमें ढेरों लेकिन सीमित निराशाएं स्वीकार करनी चाहिए लेकिन असीमित आशा को नहीं खोना चाहिए.” शायद ये शब्द जॉर्ज फ्लॉयड के परिवार को जरा सी सांत्वना दे सकें.