जन्म, कपड़े, खान-पान, प्रेम, त्योहार, नौकरी, व्यापार, शिक्षा और अब दुआ में भी साजिश देखना समाज के पतन का संकेत है. इससे भी ज्यादा चिंता की बात यह है कि यह जानबूझकर किया जा रहा है.
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नफरत के इतिहास के इस ताजा अध्याय के केंद्र में न लता मंगेशकर हैं, न उनका निधन. न शाहरुख खान हैं और न उनका फातिहा पढ़ना. इन नामों और इन नामों के पीछे की पहचानों को हटाकर देखेंगे, तो सिर्फ इतना नजर आएगा कि किसी के देहांत पर कोई उसे श्रद्धांजलि दे रहा है.
इस्लाम को मानने वाले किसी की मौत के बाद उसके लिए दुआ मांगकर दुआ को फूंक देते हैं, ताकि वो दुआ जिसके लिए पढ़ी गई, उस तक पहुंच जाए. यह भी एक श्रद्धांजलि है. मुमकिन है कि सबको इस तरीके के बारे में न पता हो, लेकिन इस फूंकने को थूकने का रंग देने की कोशिश यह कोशिश करने वालों के बारे में बहुत कुछ कहती है.
ऐसे लोग लंबे समय से थूकने से जुड़ी कई साजिशें गढ़ते आए हैं. "वो लोग सब्जी पर थूककर उसे बेचते हैं." "वो लोग आपको रोटी भी थूककर परोसेंगे." नफरत की ये किंवदंतियां गढ़ते-गढ़ते ये लोग इतना गिर गए कि इन्होंने जीवन के अंतिम पड़ाव पर की जा रही प्रार्थना में भी थूक देख लिया.
यानी किसी दूसरे का इनसे अलग प्रार्थना पद्धति में महज विश्वास रखना इन्हें इतना अखरता है कि जन्म से लेकर मृत्यु तक उसके हर कार्य में ये षड़यंत्र देखते हैं. इसे पैरानोया या संविभ्रम कहते हैं, जो एक तरह का मानसिक विकार होता है.
जिसे अपने विकार का इल्म हो जाता है, वह इलाज के लिए मानसिक रोग विशेषज्ञों से सलाह लेता है. लेकिन, जिसे यह अहसास ही न हो कि वह मानसिक रूप से विक्षिप्त हो रहा है, उसे उसके करीब के लोग बस एक अंधकार भरे गर्त में एक पीड़ादायी लाचारी से गिरते हुए देख भर ही सकते हैं, कर कुछ नहीं सकते.
यहां फर्क बस इतना है कि यह विकृति, यह विक्षिप्तता, यह रोग और यह पतन किसी एक व्यक्ति का नहीं, बल्कि समाज का हो रहा है. नहीं तो क्यों इस समाज को हिजाब से लेकर दुआ पढ़ने तक, हर चीज में षड़यंत्र नजर आता है?
जन्म, कपड़े, खान-पान, प्रेम, त्योहार, नौकरी, व्यापार, शिक्षा और अब दुआ में भी "जिहाद" देखना, यह पतन नहीं तो क्या है. और उससे भी ज्यादा चिंता की बात यह है कि यह जानबूझ कर किया जा रहा है. राजनीतिक सत्ता हासिल करना और उस पर अपनी पकड़ बनाए रखना इतना जरूरी हो गया है कि उसके लिए समाज के बुनियादी मूल्यों की बलि चढ़ाई जा रही है.
क्या भविष्य है ऐसे समाज का? कुछ लड़कियों के हिजाब पहनने के अधिकार पर अड़े रहने की प्रतिक्रिया में कुछ और लड़कियों का भगवा पहनकर निकल आना यह दिखाता है कि यह नफरत बच्चों में भी भरी जा रही है. कल कैसे रिश्ते होंगे इन बच्चों के? कैसी होगी कल के समाज की सोच?
यह कल पर टालने वाला नहीं, बल्कि आज ही विचार करने वाला सवाल है. आज के कदम कल के समाज की नींव रखते हैं. जरा समझिए कि कैसे नफरत का यह जहर समाज के अंग-अंग में फैलाया जा रहा है.
नेताओं को तो चुनाव में जवाब दिया जा सकता है. आप किस सोच को चुनते हैं, यह महज एक जादुई बटन दबाकर बता सकते हैं. लेकिन यह बटन दबाने का मौका तो आपको पांच सालों में एक बार मिलता है. डिजिटल क्रांति के इस युग में एक शक्तिशाली बटन आपके मोबाइल पर भी है, जिसे आप रोज सैकड़ों बार दबाते हैं.
और कुछ लोग उसे सैकड़ों बार दबाकर रोज नफरत के सैकड़ों बीज बो रहे हैं. यह काम सिर्फ कोई संगठन ही नहीं कर रहा है, बल्कि हम सब के घरों में, परिवारों में और सामाजिक घेरों में हो रहा है. यह नफरत शायद राजनीतिक जीत तो दिला दे, लेकिन जरा सोचिए कि अगर यह नफरत ही जीत गई, तो क्या होगा. क्या होता है उस शरीर का, जिसके हर अंग में जहर फैल जाए?
"लव जिहाद" पर राज्यों में सख्त से सख्त कानून बनाने की होड़!
अंतरधार्मिक शादियों के खिलाफ बीजेपी शासित राज्य सख्त से सख्त कानून बना रही हैं. उनका कहना है कि लड़की पर जबरन दबाव डालकर शादी कर ली जाती है और फिर उसका धर्म परिवर्तन करा दिया जाता है.
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"लव जिहाद" क्या वाकई होता है?
4 फरवरी 2020 को केंद्रीय गृह राज्यमंत्री जी किशन रेड्डी ने लोकसभा को बताया कि "लव जिहाद" शब्द मौजूदा कानूनों के तहत परिभाषित नहीं है. साथ ही उन्होंने संसद को बताया कि इससे जुड़ा कोई भी मामला केंद्रीय एजेंसियों के संज्ञान में नहीं आया. रेड्डी ने कहा था कि संविधान का अनुच्छेद 25 किसी भी धर्म को स्वीकारने, उसका पालन करने और उसका प्रचार-प्रसार करने की आजादी देता है.
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बीजेपी के एजेंडे पर "लव जिहाद"!
भले ही केंद्र सरकार कहे कि "लव जिहाद" कानून में परिभाषित नहीं है लेकिन बीजेपी के नेताओं, मंत्रियों और सरकारों ने अंतरधार्मिक प्रेम और शादियों के खिलाफ पिछले कुछ समय में कड़ा रुख अपनाया है. नेता बयान दे रहे हैं और उन पर समाज में नफरत का माहौल बनाने के आरोप लग रहे हैं. वहीं बीजेपी शासित राज्य सरकारें जबरन धर्म परिवर्तन के खिलाफ सख्त कानून बना रही हैं.
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यूपी में कितना सख्त है कानून?
यूपी में धर्मांतरण रोधी कानून को लागू हुए एक महीना पूरा हो चुका है. 27 नवंबर 2020 को राज्यपाल ने "विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अध्यादेश 2020" को मंजूरी दी थी जिसके बाद यह कानून बन गया. इस कानून में कड़े प्रावधान बनाए गए हैं. धर्म परिवर्तन के साथ अंतरधार्मिक शादी करने वाले को साबित करना होगा कि उसने इस कानून को नहीं तोड़ा है, लड़की का धर्म बदलकर की गई शादी को शादी नहीं माना जाएगा.
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यूपी में एक महीने में क्या हुआ?
यूपी में धर्मांतरण रोधी कानून को लागू होने के एक महीने के भीतर पुलिस ने प्रदेश में इसके तहत 14 मामले दर्ज किए. पुलिस ने 51 लोगों को गिरफ्तार किया जिनमें 49 लोग जेल में बंद किए गए. इन मामलों में 13 मामले कथित तौर पर हिंदू महिलाओं से जुड़े हैं और आरोप लगाया कि उन पर इस्लाम कबूल करने का दबाव बनाया गया. सिर्फ दो ही मामले में महिला खुद शिकायतकर्ता है.
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हाईकोर्ट का सहारा
यूपी में लागू कानून के आलोचकों का कहना है कि यह व्यक्तिगत आजादी, निजता और मानवीय गरिमा जैसे मौलिक अधिकारों का हनन है. इस कानून को चुनौती देने के लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई है. इससे पहले इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अंतरधार्मिक विवाह वाले युवक युवती को साथ रहने की इजाजत दी थी. हाईकोर्ट ने कहा था, "महिला अपने पति के साथ रहना चाहती है और वह किसी भी तीसरे पक्ष के दखल के बिना रहने को आजाद है."
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मध्य प्रदेश में भी "लव जिहाद"?
मध्य प्रदेश की कैबिनेट ने मंगलवार 29 दिसंबर 2020 को "धर्म स्वातंत्र्य अध्यादेश 2020" को मंजूरी दी है. प्रदेश में जो कानून बनने जा रहा है उसके मुताबिक जबरदस्ती धर्म परिवर्तन कर शादी करने वालों को अधिकतम 10 साल की सजा और एक लाख रुपये जुर्माने का प्रावधान किया जाएगा.
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किस राज्य का कानून ज्यादा सख्त?
अध्यादेश के मुताबिक मध्य प्रदेश में प्रलोभन, धमकी, शादी या किसी अन्य कपट पूर्ण तरीके द्वारा धर्म परिवर्तन कराने वाले या फिर उसकी कोशिश या साजिश करने वाले को पांच साल के कारावास के दंड और 25,000 रुपये से कम जुर्माना नहीं होगा. वहीं यूपी ने इसके लिए 15,000 के जुर्माने का प्रावधान रखा है लेकिन वहां भी सजा का प्रावधान अधिकतम पांच साल तक है.
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हिमाचल प्रदेश
प्रदेश में 2007 से ही जबरन या फिर छल-कपट से धर्म परिवर्तन के खिलाफ कानून लागू है. कुछ दिनों पहले धर्मांतरण विरोधी कानून लागू किया गया था. इसके तहत किसी भी शख्स को धर्म परिवर्तन करने से पहले प्रशासन को इसकी सूचना देनी होगी. ऐसा ही कानून जब 2012 में कांग्रेस की सरकार लेकर आई थी तब हाईकोर्ट ने इसे असंवैधानिक और मौलिक अधिकारों के हनन वाला बताया था.
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