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सांसदों के निलंबन पर विपक्ष नाराज

३० नवम्बर २०२१

राज्य सभा से 12 सांसदों को निलंबित कर दिए जाने पर विपक्ष नाराज है और विरोध कर रहा है. विपक्ष के विरोध का असर एक बार फिर दोनों सदनों की कार्यवाही पर पड़ सकता है.

Indien Opposition Protest Mahatma Ghandi Statue Parlament
तस्वीर: AICC

विपक्ष के सांसदों ने मंगलवार 30 नवंबर को संसद की कार्यवाही शुरू होने से पहले निलंबन के मुद्दे पर साझा रणनीति बनाने के लिए नेता प्रतिपक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के नेतृत्व में बैठक की. बैठक में कांग्रेस, डीएमके, आरजेडी, सीपीएम, सीपीआई, शिवसेना, एनसीपी, आम आदमी पार्टी, टीआरएस समेत 16 पार्टियों के सांसदों ने हिस्सा लिया.

उसके बाद ये सांसद राज्य सभा अध्यक्ष वेंकैया नायडू से मिले और उनसे निलंबन वापस लेने की मांग की. उन्होंने नायडू से यह भी कहा कि अगर निलंबन वापस नहीं लिया गया तो वो सदन का बहिष्कार करेंगे.

बढ़ता गतिरोध

नायडू ने यह कह कर निलंबन वापस लेने से इनकार कर दिया कि निलंबित सांसदों ने अपने किए पर कोई पछतावा व्यक्त नहीं किया. उसके बाद दोनों सदनों में विपक्ष के सांसदों ने सदन की कार्यवाही का बहिष्कार किया और सदन के बाहर चले गए.

उन्होंने संसद के ही परिसर में महात्मा गांधी की मूर्ति के सामने प्रदर्शन भी किया. बाद में कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने एक ट्वीट में यह स्पष्ट कर दिया कि निलंबित सांसद माफी नहीं मांगेंगे.

सत्र के पहले दिन ही राज्य सभा से विपक्ष के 12 सांसदों को पूरे सत्र के लिए निलंबित कर दिया गया था. मानसून सत्र के दौरान पेगासस जासूसी विवाद पर सदन में सरकार और विपक्ष के सांसदों के बीच झड़प हो गई थी और इन सांसदों को उसी दौरान किए गए उनके व्यवहार के लिए निलंबित किया गया.

इन 12 सांसदों में कांग्रेस के छह, तृणमूल कांग्रेस के दो, शिवसेना के दो, सीपीआई का एक और सीपीएम का एक सांसद शामिल हैं. निलंबन वापस नहीं लिए जाने के खिलाफ विपक्ष ने धरना देने का फैसला लिया है.

बहुमत पाना उद्देश्य?

तृणमूल कांग्रेस के सांसद डेरेक ओब्रायन ने एक ट्वीट में घोषणा की कि एक दिसंबर से सभी 12 निलंबित सांसद महात्मा गांधी की मूर्ति के सामने धरने पर बैठेंगे.

विपक्ष कई बिंदुओं पर सांसदों के निलंबन का विरोध कर रहा है. सबसे पहले तो विपक्ष का मानना है कि 11 अगस्त को संसद की मर्यादा का उल्लंघन सरकार ने किया था इसलिए विपक्ष की जगह सत्ता पक्ष के सांसदों को निलंबित किया जाना चाहिए.

विपक्ष का दूसरा दावा है कि संसद के नियम एक सत्र में हुई घटनाओं के आधार पर दूसरे सत्र में दंडात्मक निर्णय लेने की इजाजत नहीं देते. तीसरा, विपक्ष का यह आरोप है कि सांसदों के निलंबन के पीछे सरकार का असली उद्देश्य राज्य सभा में बहुमत हासिल करना है ताकि बिलों को आसानी से पारित करवाया जा सके.

विपक्ष के सांसद पूरे सत्र के लिए संसद की कार्रवाई का बहिष्कार करने पर भी विचार कर रहे हैं. कई सांसदों ने दावा किया है कि इतने सारे सांसदों का एक साथ पूरे सत्र के लिए निलंबन संसद के इतिहास में एक अभूतपूर्व घटना है.

इससे पहले 2015 में लोक सभा की तत्कालीन स्पीकर सुमित्रा महाजन ने 25 सांसदों को पांच दिनों के लिए निलंबित किया था. 2010 में राज्य सभा में मंत्री के हाथों से महिला आरक्षण विधेयक छीन लेने के बाद सात सांसदों को निलंबित कर दिया गया था. एक रिपोर्ट के मुताबिक तो 1989 में लोक सभा से 63 सांसदों को निलंबित कर दिया गया था.

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