बेटों के लिए बड़े बलिदान करती हैं किलर व्हेल मछलियां
१० फ़रवरी २०२३
दशकों तक चले एक अध्ययन से पता चला है कि किलर व्हेल मछलियां बेटे पैदा करने के लिए बहुत बड़ा बलिदान करती हैं. एक बेटा पैदा करने के बाद वे अक्सर और बच्चे पैदा करने लायक नहीं रहतीं.
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उत्तरी प्रशांत महासागर में हुए एक अध्ययन में किलर व्हेल मछलियों की प्रजनन प्रक्रिया के बारे में कई हैरतअंगेज जानकारियां मिली हैं. करीब दस साल तक वैज्ञानिकोंने इन अद्भुत समुद्री जीवों के जीवन का अध्ययन किया और पाया कि उनके लिए नर बच्चे पैदा करना बेहद मुश्किल होता है, जिसके लिए उन्हें आजीवन बलिदान करना पड़ता है.
वैज्ञानिक कहते हैं कि एक नर संतान पैदा करने से किलर व्हेल मछलियों के भविष्य में मां बनने की संभावनाएं बहुत कम हो जाती हैं. इसकी वजह है कि उन्हें नर संतान को पैदा करने और पालने में बहुत ज्यादा ऊर्जा खर्च करनी पड़ती है. शोध से पता चला है कि नर संतानों को दूध पिलाने से उनकी सेहत पर बहुत ज्यादा असर पड़ता है और वे अन्य बच्चों को पैदा करने और पालने लायक नहीं रहतीं.
किलर व्हेल के साथ डांस करने वाला शख्स
आर्थर ग्वेरिन-बोएरी बर्फीले आर्क्टिक महासागर में किलर व्हेलों के साथ तैरते हैं. वो मुक्त गोताखोरी में विश्व चैंपियन हैं और इन व्हेलों को उनके प्राकृतिक परिवेश में देखना उन्हें बेहद पसंद है.
तस्वीर: OLIVIER MORIN/AFP
व्हेलों की तलाश
नॉर्वे में आर्क्टिक सर्किल के द्वीप स्पिल्ड्रा के इर्द गिर्द समुद्र की गहराइयों में से मछली के इस पंख के निकल आने का मतलब है कि एक ओर्का, या किलर व्हेल, सांस लेने सतह पर आई है. ये व्हेलें इस इलाके के बर्फीले पानी में हेरिंग मछलियों का शिकार करने आती हैं.
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शानदार तजुर्बा
फ्रांस के रहने वाले आर्थर ग्वेरिन-बोएरी इसी लम्हे का इंतजार कर रहे थे. वो एक लंबी सांस लेते हैं और महासागर के तीन डिग्री सेल्सियस तापमान के पानी में छलांग लगा देते हैं. कभी कभी आर्क्टिक की हवाएं समुद्र के पानी के तापमान को हिमांक बिंदु से भी नीचे पहुंचा देती हैं. 38 साल के ग्वेरिन-बोएरी कहते हैं, "मैं पानी में ऐसे दो सुपर परभक्षियों के बगल में हूं जिन्होंने मुझे स्वीकार कर लिया है. यह शानदार है."
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आर्क्टिक की बर्फ में विश्व चैंपियन
ग्वेरिन-बोएरी बिना ऑक्सीजन टैंक के बर्फ के नीचे मुक्त गोताखोरी में पांच बार विश्व चैंपियन रह चुके हैं. वो 120 मीटर से भी ज्यादा नीचे गोता लगा सकते हैं और कई मिनटों तक सांस रोके रख सकते हैं. हालांकि नॉर्वे में वो बस 30 सेकंड तक गोता लगाते हैं. वो करीब 15 मीटर नीचे जाते हैं और इन व्हेलों के करीब पहुंच जाते हैं. ये व्हेलें अमूमन इंसानों के लिए खतरनाक नहीं होती हैं.
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पानी के नीचे बैले
सुदूर उत्तर में स्थित इस द्वीप पर सिर्फ मुट्ठी भर लोग रहते हैं. ग्वेरिन-बोएरी ने यहां एक सप्ताह तक गोता लगाया. व्हेलों के बारे में वो कहते हैं, "वो समकालिक तरीके में तैरती हैं, जैसे बैले कर रही हों. मैं उनका पीछा करना चाहूंगा लेकिन यह नामुमकिन है. वो बहुत तेज तैरती हैं और मैं पीछे रह जाता हूं."
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सुंदर नजारा
ग्वेरिन-बोएरी कहते हैं, "इस माहौल मैं आप थकान, ठंड, आशंका, सब भूल जाते हैं." आर्क्टिक सर्किल में अपनी यात्रा में उन्होंने सबसे ज्यादा प्रकृति का आनंद लिया. "मैं जब सांस लेने के लिए फिर से सतह पर पहुंचता हूं, तो मेरे इर्द-गिर्द बर्फ से ढकी चोटियां होती हैं...आप सुंदरता से घिरे होते हैं."
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शरण लेने की जगह
गोते लगाने के बीच ग्वेरिन-बोएरी इस कठोर मौसम से बचने के लिए इस पारंपरिक नार्वेजियन झोपड़ी में शरण लेते हैं. यह देखने में एक छोटे से पहाड़ जैसी लगती है लेकिन यह लकड़ी से बनी है और इसे मिट्टी और घास से ढक दिया गया है. झोपड़ी के अंदर आग उन्हें खुद को गर्म रखने में मदद करती है.
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ध्रुवीय रात में रोशनी
ध्रुवीय रातों के दौरान रोशनी ना के बराबर होती है. यहां ग्वेरिन-बोएरी की मदद करने के लिए उनके साथी एक स्पॉटलाइट से रेशनी दे रहे हैं. तूफान भी आया था जिसकी वजह से व्हेलों को ढूंढने में देर हो गई. लेकिन ग्वेरिन-बोएरी कहते हैं कि इसके बावजूद इतनी मेहनत सफल रही. वो कहते हैं, "मैं मुक्त गोताखोरी के सार तक लौटना चाहता हूं: यानी समुद्र के नीचे की दुनिया की खोज."
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एक्सटर यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर डैरेन क्रॉफ्ट इस अध्ययन में शामिल रहे हैं. उन्होंने बीबीसी को बताया, "मांएं अपना खाना और ऊर्जा खर्च कर देती हैं.”
किलर व्हेल मछलियों के लिए परिवार बहुत अहम होता है. वे ताउम्र परिवार में बंधी रहती हैं. लेकिन युवा मादाएं बड़े होने पर स्वतंत्र हो जाती हैं जबकि नर अपनी मांओं पर निर्भर रहते हैं. यहां तक कि वे अपनी मां द्वारा पकड़े गए शिकार तक में से हिस्सा मांगते हैं.
करंट बायोलॉजी नामक पत्रिका में यह शोध प्रकाशित हुआ है. दशकों से जारी यह शोध सेंटर फॉर व्हेल रिसर्च (CWR) द्वारा किलर व्हेल मछलियों के जीवन पर किये जा रहे एक विस्तृत अध्ययन का हिस्सा है जिसके तहत 40 साल से भी ज्यादा समय से एक समूह की जिंदगियों को देखा-परखा जा रहा है. इस समूह को सदर्न रेजिडेंट्स नाम दिया गया है. प्रोफेसर क्रॉफ्ट कहते हैं कि इस शोध से "इन अद्भुत जानवरों के जटिल सामाजिक और पारिवारिक जीवन के बारे में नई जानकारियां मिली हैं.”
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1976 से जारी अध्ययन
1976 से सीडब्ल्यूआर ने सदर्न रेजिडेंट की पूरी आबादी की गणना की है, जिससे जीवविज्ञानी कई पीढ़ियों का अध्ययन कर पाए हैं. इसी में इन प्राणियों के सामाजिक और पारिवारिक व्यवहार का अध्ययन भी शामिल है, जो इन जीवों के जिंदा रहने में अहम भूमिका निभाता है.
इस शोध के लिए वैज्ञानिकों ने 1982 से 2021 के बीच 40 व्हेल मछलियों का अध्ययन किया. उन्होंने पाया कि हरेक बेटा पैदा करने के बाद मछलियों की अन्य बच्चे पैदा करने की संभावना आधी रह गई थी.
एक्सटर यूनिवर्सिटी के डॉ. माइकल वाइस कहते हैं, "हमारे पुराने शोध में पता चला था कि अगर मां आसपास रहे तो बेटों के जिंदा रहने की संभावना ज्यादा होती है. हम जानना चाहते थे कि क्या मांओं को इसकी कीमत चुकानी पड़ती है, और जवाब है, हां. किलर व्हेल मछलियां भविष्य में मां बनने की संभावनाओं के रूप में भारी कीमत चुकाती हैं.”
किलर व्हेल मछलियां उन प्रजातियों में से एक हैं जिनका वजूद खतरे में हैं. वैंकूवर और सिएटल के तटीय इलाकों में रहने वालीं इन मछलियों पर अध्ययन डॉ. केन बालकोम ने शुरू किया था. तब वह जानना चाहते थे कि इनके वजूद को क्या क्या खतरे हो सकते हैं.
इंसानों जैसा स्वभाव
उसके बाद यह अध्ययन लगातार जारी रहा और किलर व्हेल मछलियों के बारे में अद्भुत जानकारियां सामने आईं. मसलन, दादी के रूप में किलर व्हेल मछलियों की भूमिका बहुत अहम होती है. इंसानों की तरह ही इन जीवों में भी मादाएं एक उम्र के बाद बच्चे पैदा करना बंद कर देती हैं.
जहां एक साथ 55,000 बेलुगा व्हेल पहुंच जाती हैं
उत्तरी कनाडा के हडसन बे में हर साल हजारों बेलुगा व्हेल बच्चों को जन्म देने के लिए पहुंच जाती हैं. लेकिन अब जलवायु परिवर्तन उनके प्राकृतिक वास को प्रभावित कर रहा है.
तस्वीर: imago images/Michael S. Nolan
बर्फ के पिघलते ही
नवंबर से जून के बीच सात महीनों से भी ज्यादा समय के लिए उत्तरी कनाडा के हडसन बे पर बर्फ जमी रहती है. लेकिन हर साल जैसे ही समुद्री बर्फ पिघलती है, करीब 55,000 बेलुगा व्हेल बच्चों को जन्म देने आर्कटिक से वहां चली जाती हैं. कारण है वहां का तुलनात्मक रूप से ज्यादा गर्म तापमान. बे की व्हेल की आबादी दुनिया में सबसे बड़ी आबादी है.
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मिलिए एक बेलुगा व्हेल परिवार से
बेलुगा व्हेलों के बच्चे दो सालों तक अपनी मां पर निर्भर रहते हैं. माएं उन्हें ज्यादातर ग्रीनलैंड, उत्तरी कनाडा, उत्तरी नॉर्वे और उत्तरी रूस के इर्द गिर्द फैले बर्फीले पानी में पालती हैं. बच्चे अमूमन स्लेटी रंग के होते हैं और व्यस्क सफेद. व्यस्क 20 फुट तक लंबे हो सकते हैं और 40 से 60 सालों तक जिंदा रहते हैं.
तस्वीर: imago images/Xinhua
पर्यटकों के लिए आकर्षण
ये खेलना पसंद करती हैं और और इनके चेहरे पर बच्चों के जैसी मुस्कान होती है. पानी से गुजरती हुई यह इंसानों के पास बड़ी जिज्ञासा से आती हैं. आपस में से ध्वनियों की अद्भुत भाषा में बात करती हैं और यह भाषा खास उन्हें देखने के लिए कनाडा आने वाले पर्यटकों के लिए बड़े अचंभे की चीज है.
तस्वीर: Danita Delimont/imago images
समुद्र की कैनरी चिड़िया
बेलुगा व्हेलें 50 तक अलग अलग ध्वनियां निकाल सकती हैं, जिनमें तरह तरह की सीटियां, क्लिक, कलरव और किलकारियां शामिल हैं. इस वजह से इन्हें "समुद्र की कैनरी चिड़िया" भी कहा जाता है. रेनकोस्ट संरक्षण फाउंडेशन की शोधकर्ता वलेरिया वेरगारा ने एएफपी समाचार एजेंसी को बताया, "बेलुगा ध्वनि-केंद्रित जीव हैं और उनके लिए ध्वनि वैसा ही है जैसा हमारे लिए दृष्टि."
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सहजीवी रिश्ता
गर्मियों के वो महीने जिनमें ये व्हेलें आर्कटिक से दक्षिण की तरफ आती हैं उन्हें इनुइट लोग "द ग्रेट माइग्रेशन" कहते हैं. बेलुगा व्हेलें कनाडा के मूल निवासियों के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं, सांस्कृतिक रूप से और भोजन के स्रोत के रूप में भी. चर्चिल शहर का यह म्यूरल इंसानों और वन्य जीवों के बीच के रिश्ते को सम्मान देता है.
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लुप्तप्राय वन्य जीव
हडसन बे में बेलुगा को शिकार करने वाली ओर्का से तो सुरक्षा मिल जाती है, लेकिन वहां दूसरे खतरे हैं, जैसे शिकारी ध्रुवीय भालू. हालांकि पशु शोधकर्ताओं और संरक्षणकर्ताओं को एक ऐसी समस्या में ज्यादा दिलचस्पी है जो इंसानों की बनाई हुई है. वो है जलवायु परिवर्तन की वजह से समुद्री बर्फ का कम होना. इससे स्थानीय वन्य-जीवों को काफी खतरा है.
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चिंताजनक स्थिति
इंसानी गतिविधियों ने इन व्हेलों के लिए दूसरे खतरे भी खड़े कर दिए हैं. 12 लाख किलोमीटर वर्ग से भी ज्यादा इलाके में फैला हडसन बे यूं तो विशालकाय है लेकिन इसका विषैले पदार्थों से दूषण बढ़ता जा रहा है. इसका बेलुगा व्हेलों पर भी असर पड़ रहा है. व्हेलों में कैंसर और चर्म रोगों का होना बढ़ता जा रहा है. (नेले जेंश)
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इन जीवों में बेटे अपनी मांओं के काफी करीब होते हैं और वे उन्हीं के साथ रहना, घूमना-फिरना पसंद करते हैं. प्रोफेसर क्रॉफ्ट समझाते हैं, "यहां तक कि जो मछलियां मांएं पकड़ती हैं, वे भी अपने बेटों को खिला देती हैं.” इसके उलट युवा मादाएं स्वतंत्र रूप से घूमना पसंद करती हैं.
यह बात हैरान करती है कि इतने ताकतवर और समझदार जीव ताउम्र अपनी मांओं पर निर्भर रहते हैं लेकिन शोधकर्ता कहते हैं कि शायद नर मछलियां इसलिए स्वतंत्र नहीं हो पातीं क्योंकि मांएं हर वक्त उनके साथ रहती हैं.
अब दुनिया में ऐसी मात्र 73 व्हेल मछलियां बची हैं. इसलिए वैज्ञानिक इन जीवों के बारे में वैसी तमाम जानकारियां जुटाने की कोशिश कर रहे हैं जो इनकी आबादी को विलुप्त होने से बचा सकें.