बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को शरण देना भारत के लिए एक कूटनीतिक संकट बन सकता है. बांग्लादेश के लोग हसीना की वापसी चाहते हैं, लेकिन भारत के लिए उन्हें भेजना आसान नहीं होगा.
विज्ञापन
बांग्लादेश में छात्रों के आंदोलन के बाद पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को अपना देश छोड़े एक महीने से ज्यादा हो गया है. इस्तीफा देने के बाद उन्होंने भारत में शरण ली थी. विशेषज्ञों का कहना है कि उन्हें शरण देना अब भारत के लिए कूटनीतिक सिरदर्द बनता जा रहा है.
शेख हसीना का सख्त शासन पिछले महीने उस समय समाप्त हो गया जब प्रदर्शनकारियों ने ढाका में उनके महल की ओर मार्च किया. 15 साल के उनके शासनकाल के दौरान मानवाधिकारों के उल्लंघन और विपक्ष का दमन करने के कई आरोप लगे थे.
उनकी सरकार के खिलाफ आंदोलन करने वाले छात्र अब हसीना की वापसी की मांग कर रहे हैं, ताकि उन पर आंदोलन के दौरान प्रदर्शनकारियों की हत्या के लिए मुकदमा चलाया जा सके. भारत हसीना के शासनकाल के दौरान उनका सबसे बड़ा समर्थक था. अब उन्हें वापस भेजना भारत के लिए आसान नहीं होगा क्योंकि इससे दक्षिण एशिया में उसके दूसरे पड़ोसियों के साथ संबंध खराब होने का जोखिम है, जहां चीन के साथ प्रभाव के लिए कड़ी प्रतिस्पर्धा चल रही है.
मुश्किल है शेख हसीना की वापसी
इंटरनेशनल क्राइसिस ग्रुप के थॉमस कीन का कहना है, "भारत स्पष्ट रूप से उन्हें बांग्लादेश वापस भेजना नहीं चाहेगा. जो अन्य नेता दिल्ली के करीबी हैं, उनके लिए यह संदेश बहुत सकारात्मक नहीं होगा कि आखिरकार, भारत आपकी रक्षा नहीं करेगा."
पिछले साल मालदीव में भारत के पसंदीदा राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार की हार से भारत को पहले ही एक बड़ा झटका लग चुका है. वहीं शेख हसीना के सत्ता से बाहर होने से भारत का क्षेत्र में निकटतम सहयोगी भी छिन चुका है.
बांग्लादेश: शेख हसीना के हाथ से कैसे फिसल गई सत्ता
बांग्लादेश के इतिहास में सबसे लंबे समय तक प्रधानमंत्री रहीं शेख हसीना को भीषण हिंसा और छात्रों के आंदोलन के कारण इस्तीफा देकर देश छोड़ना पड़ना. आखिर कैसे सत्ता उनके हाथों से फिसल गई. उनके राजनीतिक सफर पर एक नजर.
तस्वीर: Lucivu Marin/AFP/Getty Images
शेख हसीना ने कैसे गंवाई सत्ता
5 अगस्त, 2024 को शेख हसीना ने बांग्लादेश के प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया और सेना के विमान में सवार होकर भारत पहुंच गईं. जुलाई की शुरूआत से ही बांग्लादेश में हजारों छात्र देश के अलग-अलग हिस्सों में मौजूदा कोटा सिस्टम के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर रहे थे.
तस्वीर: Mohammad Ponir Hossain/REUTERS
कोटा सिस्टम का विरोध
साल 2018 तक बांग्लादेश में सरकारी नौकरियों में 56 फीसदी सीटों में कोटा लागू था. इसमें 30 प्रतिशत स्वतंत्रता सेनानियों के बच्चों और उनके बच्चों के लिए, 10 प्रतिशत महिलाओं, 10 फीसदी पिछड़े जिलों के लोगों, पांच फीसदी अल्पसंख्यकों और एक प्रतिशत कोटा विकलांगों के लिए था. इस तरह सभी भर्तियों में केवल 44 फीसदी सीटें ही बाकियों के लिए खाली थीं.
तस्वीर: Munir Uz Zaman/AFP/Getty Images
क्यों सड़कों पर आए छात्र
2018 में सरकार ने एक सर्कुलर जारी कर कोटा सिस्टम को खत्म करने की घोषणा की. इसके अंतर्गत स्वतंत्रता सेनानियों और उनके परिवारजनों के लिए आरक्षित 30 फीसदी कोटा को भी खत्म करने की बात कही गई. इसके खिलाफ 2021 में हाई कोर्ट में एक याचिका दायर की गई. 5 जून, 2024 को हाई कोर्ट ने सरकार को आदेश दिया कि वह संबंधित सर्कुलर को रद्द करे और स्वतंत्रता सेनानियों के लिए चले आ रहे 30 फीसदी कोटा को कायम रखे.
इसके बाद देश के कई हिस्सों में छात्रों ने विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया. इसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट जा पहुंचा. 21 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि 93 फीसदी नौकरियों में भर्तियां योग्यता के आधार पर की जाएं. कोर्ट ने कहा 1971 के आंदोलन में शामिल रहे सेनानियों के परिजनों को सिर्फ पांच फीसदी आरक्षण मिले.
तस्वीर: -/AFP/Getty Images
हिंसा और इस्तीफे की मांग
जुलाई से चल रहा छात्रों का आंदोलन सुप्रीम कोर्ट के फैसले से शांत नहीं हुआ और यूनिवर्सिटी और कॉलेजों में छात्रों का विरोध प्रदर्शन जारी रहा. छात्र संगठनों ने चार अगस्त को पूर्ण असहयोग आंदोलन शुरू करने की घोषणा की थी.
तस्वीर: Peerapon Boonyakiat/SOPA Images/IMAGO
हसीना के इस्तीफे के पहले क्या हुआ
4 अगस्त को हुई हिंसा में 94 लोग मारे गए. जिनमें 13 के करीब पुलिस वाले थे. सरकार ने प्रदर्शनों को रोकने के लिए सड़कों पर सेना को उतार दिया लेकिन छात्र पीछे नहीं हटे और हसीना के इस्तीफे की मांग की. 5 अगस्त को छात्र संगठनों ने ढाका में लॉन्ग मार्च का एलान किया. जब प्रदर्शनकारी पीएम आवास की ओर बढ़ने लगे तो हसीना ने सेना के विमान में सवार होकर देश छोड़ दिया.
तस्वीर: Mohammad Ponir Hossain/REUTERS
बांग्लादेश पर मजबूत पकड़
दक्षिण एशियाई देश बांग्लादेश में 76 साल की शेख हसीना दुनिया की सबसे लंबे समय तक सत्ता में रहने वालीं सरकार प्रमुख थीं. शेख हसीना पहली बार 1996 में प्रधानमंत्री बनी और 2008 में वापस लौटीं और 5 अगस्त, 2024 तक पद पर बनी रहीं.
तस्वीर: Indranil Mukherjee/AFP
हसीना पर आरोप
शेख हसीना पर सत्ता में 15 साल रहने के दौरान विपक्षी नेताओं की गिरफ्तारी, अभिव्यक्ति की आजादी पर दमन और असहमति पर दमन के आरोप लगे. उन पर भ्रष्टाचार के आरोप भी लगे. लेकिन हसीना सरकार इन आरोपों को खारिज करती रही.
तस्वीर: Mohammad Ponir Hossain/REUTERS
विरासत में मिली राजनीति
शेख हसीना को राजनीति विरासत में मिली. उनके पिता शेख मुजीबुर्रहमान ने 1971 में पाकिस्तान से आजादी के लिए बांग्लादेश की लड़ाई का नेतृत्व किया था. 1975 में सैन्य तख्तापलट में उनके परिवार के अधिकांश लोगों के साथ उनकी हत्या कर दी गई थी. हसीना भाग्यशाली थीं कि उस समय वह यूरोप की यात्रा पर थीं. 1947 में दक्षिण-पश्चिमी बांग्लादेश (तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान) में जन्मी हसीना पांच बच्चों में सबसे बड़ी हैं.
तस्वीर: Mohammad Ponir Hossain/REUTERS
भारत में निर्वासित जीवन
शेख हसीना वर्षों तक भारत में निर्वासन में रहीं. फिर बांग्लादेश वापस चली गईं और अवामी लीग की प्रमुख चुनी गईं. उन्होंने 1973 में ढाका विश्वविद्यालय से बंगाली साहित्य में ग्रैजुएशन की और अपने पिता और उनके छात्र समर्थकों के बीच मध्यस्थ के रूप में राजनीतिक अनुभव हासिल किया.
तस्वीर: Saiful Islam Kallal/AP Photo/picture alliance
हसीना और आम चुनाव
शेख हसीना जनवरी, 2024 में लगातार चौथी बार चुनाव जीतीं. इस चुनाव का मुख्य विपक्षी दल और उनकी प्रतिद्वंद्वी बेगम खालिदा जिया की बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) ने बहिष्कार किया था. इस चुनाव में बड़े पैमाने पर धांधली के आरोप लगे.
तस्वीर: AFP
निरंकुश शासन के आरोप
बीएनपी और मानवाधिकार समूहों का कहना है कि हसीना की सरकार ने जनवरी, 2024 में हुए चुनाव से पहले 10,000 विपक्षी पार्टी कार्यकर्ताओं को झूठे आरोपों में गिरफ्तार किया था. इस चुनाव का विपक्ष ने बहिष्कार किया था. जैसे-जैसे समय बीतता गया, वह निरंकुश होती गईं और उनके शासन में राजनीतिक विरोधियों और कार्यकर्ताओं की सामूहिक गिरफ्तारी, जबरन गायब होना और न्यायेतर हत्याओं के आरोप लगे.
तस्वीर: Mohammad Ponir Hossain/REUTERS
शेख हसीना और खालिदा जिया के बीच संघर्ष
हसीना ने अपनी राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी बीएनपी की प्रमुख खालिदा जिया के साथ हाथ मिला लिया और लोकतंत्र के लिए एक विद्रोह का नेतृत्व किया, जिसने 1990 में सैन्य शासक हुसैन मोहम्मद इरशाद को सत्ता से उखाड़ फेंका. लेकिन जिया के साथ गठबंधन लंबे समय तक नहीं चला और दोनों महिलाओं के बीच तीखी प्रतिद्वंद्विता जारी रही.
तस्वीर: Getty Images/AFP/FARJANA K. GODHULY
कमजोर हो चुकीं खालिदा जिया
शेख हसीना और खालिदा जिया के बीच कई सालों से राजनीतिक संघर्ष चला आ रहा है. 78 साल की जिया दो बार प्रधानमंत्री रह चुकी हैं और फरवरी 2018 में भ्रष्टाचार के एक मामले में दोषी ठहराए जाने के बाद से जेल में हैं. उनकी तबीयत बिगड़ती जा रही है और 2019 में उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था. बांग्लादेश के राष्ट्रपति मोहम्मद शहाबुद्दीन ने 5 अगस्त, 2024 को जिया को रिहा करने का आदेश दिया.
तस्वीर: A.M. Ahad/picture alliance/AP Photo
हसीना के भारत के साथ संबंध
भारत और बांग्लादेश के बीच बेहद मजबूत संबंध हैं. जब कभी भी बांग्लादेश को जरूरत पड़ी तो भारत उसके साथ खड़ा नजर आया. दोनों देशों के बीच पिछले 53 सालों से द्विपक्षीय संबंध हैं. 2023 में भारत में हुए जी-20 शिखर सम्मेलन में भारत ने बांग्लादेश को विशेष अतिथि के तौर पर आमंत्रित किया था. हसीना के पीएम रहते हुए दोनों देशों के बीच व्यापार बढ़ा है.
तस्वीर: Manish Swarup/AP/picture alliance
15 तस्वीरें1 | 15
हसीना के शासन में पीड़ित लोगों में भारत के प्रति गुस्सा खुलेआम है. यह गुस्सा भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हिंदू-राष्ट्रवादी सरकार की नीतियों और बांग्लादेश की कार्यवाहक सरकार के खिलाफ जोर-शोर से चलाए गए प्रचार के कारण और भी गहरा हो गया है.
मोदी ने 84 वर्षीय नोबेल शांति पुरस्कार विजेता मुहम्मद यूनुस द्वारा गठित नई सरकार को समर्थन देने का वादा किया है, जो हसीना के बाद सत्ता में आई है. साथ ही उन्होंने बांग्लादेश के हिंदू धार्मिक अल्पसंख्यक की सुरक्षा की भी जोरदार मांग की है.
हिंदू अल्पसंख्यकों पर हमले
बांग्लादेश के अंतरिम सरकार में गृह विभाग के सलाहकार जनरल एम शखावत हुसैन ने माना है कि अल्पसंख्यकों पर हमले हुए हैं और उनकी सुरक्षा में चूक हुई है. उन्होंने हिंदुओं से इसके लिए माफी भी मांगी. हिंदू परिवारों का कहना है कि इस हिंसा ने 1971 के मुक्ति युद्ध के दौरान पाकिस्तानी सेना की ओर से किए गए अत्याचार के जख्मों को ताजा कर दिया है. कुछ इलाकों से हिंदुओं के मोहल्लों और मंदिरों की सुरक्षा में तैनात मुस्लिम युवकों की तस्वीरें और खबरें भी सामने आईं लेकिन इनके मुकाबले हमले की घटनाएं कहीं ज्यादा थीं. ऐसी खबरें हैं कि सांप्रदायिक तनाव और बढ़ सकता है
हसीना की अवामी लीग को बांग्लादेश के हिंदू अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के लिए अधिक समर्थक माना जाता था, जबकि बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) के बारे में ऐसा नहीं कहा जा सकता. मोदी ने अपने स्वतंत्रता दिवस भाषण में बांग्लादेशी हिंदुओं के खतरे में होने की बात कही और बाद में इस मुद्दे को अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के साथ भी उठाया.
हसीना के देश छोड़ने के बाद हुए हमलों में कुछ बांग्लादेशी हिंदुओं और मंदिरों को निशाना बनाया गया था, जिसकी निंदा छात्र नेताओं और अंतरिम सरकार ने की. भारतीय समाचार चैनलों ने इस हिंसा को बढ़ा-चढ़ाकर भी पेश किया, जिसके बाद मोदी की पार्टी से जुड़े हुए हिंदू संगठनों ने विरोध प्रदर्शन किए.
विज्ञापन
भारत की कूटनीतिक उलझन
बीएनपी के एक शीर्ष नेता फखरुल इस्लाम आलमगीर ने कहा, "भारत ने सभी अंडे एक ही टोकरी में रख दिए हैं" और अब वह अपनी नीति को बदलने का रास्ता नहीं खोज पा रहा है. उन्होंने एएफपी से कहा, "बांग्लादेश के लोग भारत के साथ अच्छे संबंध चाहते हैं, लेकिन अपने हितों की कीमत पर नहीं."
बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं में भी दोनों देशों के बीच अविश्वास की भावना स्पष्ट है. अगस्त में बाढ़ के दौरान जब दोनों देशों में मौतें हुईं, तो कुछ बांग्लादेशियों ने इसके लिए भारत को दोषी ठहराया.
मोहम्मद यूनुस: बांग्लादेश के 'गरीबों का बैंकर'
मोहम्मद यूनुस बांग्लादेश में अंतरिम सरकार का नेतृत्व करेंगे. बांग्लादेश के इकलौते नोबेल विजेता यूनुस को देश में हीरो माना जाता है, लेकिन शेख हसीना सरकार के कार्यकाल में उन पर 100 से भी ज्यादा मुकदमे थोपे गए.
तस्वीर: Munis uz Zaman/AFP
अमेरिका में पढ़ाई
मोहम्मद यूनुस को "सबसे गरीब लोगों का बैंकर" के रूप में जाना जाता है. उनका जन्म 1940 में चिट्टागोंग के एक समृद्ध परिवार में हुआ. बड़े होकर उन्हें अमेरिका में पढ़ाई करने के लिए फुलब्राइट स्कॉलरशिप मिली. बांग्लादेश की आजादी के तुरंत बाद ही वो वापस आ गए.
तस्वीर: Munir Uz Zaman/AFP/Getty Images
अकाल से मिली प्रेरणा
वापस आने पर उन्हें चिट्टागोंग विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्र विभाग का अध्यक्ष नियुक्त किया गया लेकिन एक भयानक अकाल से गुजर रहे उनके देश की हालत उनसे देखी नहीं गई. उन्होंने खुद कहा था कि उन हालात में उन्हें अर्थशास्त्र के सिद्धांत पढ़ना बहुत कठिन लग रहा था और वो कुछ ऐसा करना चाहते थे जिससे लोगों की तुरंत मदद हो सके.
तस्वीर: Mohammad Ponir Hossain/REUTERS
एक अनोखे बैंक की स्थापना
उन्होंने गरीबी की वजह से पारंपरिक लोन के लिए अयोग्य पाए जाने वाले लोगों को लोन दिलाने के कई तरीकों पर प्रयोग करने के बाद 1983 में ग्रामीण बैंक की स्थापना की. आज इस बैंक के 90 लाख से ज्यादा ग्राहक हैं, जिनमें से 97 प्रतिशत महिलाएं हैं.
तस्वीर: Abdul Saboor/REUTERS
महिलाओं के जरिए बदलाव
'ग्रामीण बैंक' के जरिए यूनुस ने ग्रामीण महिलाओं को बहुत ही छोटे लोन देने का अभियान शुरू किया. इन महिलाओं को कृषि उपकरण या व्यापार उपकरण खरीदने और अपनी कमाई बढ़ाने के लिए लोन की जरूरत थी.
तस्वीर: Raphael Lafargue/abaca/picture alliance
'गरीबों का बैंकर'
ग्रामीण बैंक की बांग्लादेश में तेजी से हुए आर्थिक विकास को गति देने के लिए दुनियाभर में सराहना की गई. बाद में बैंक के इस काम को बीसियों विकासशील देशों में अपनाया गया. यूनुस और ग्रामीण बैंक को 2006 में गरीबी को कम करने में मदद करने के लिए नोबेल शांति पुरस्कार से नवाजा गया.
तस्वीर: Munir uz Zaman/AFP/Getty Images
समझा गया प्रतिद्वंदी
लेकिन बांग्लादेश में उनकी लोकप्रियता की वजह से वो तत्कालीन प्रधानमंत्री शेख हसीना की आंखों में खटकने लगे. हसीना ने उन पर गरीबों का "खून चूसने" का आरोप लगाया. 2007 में यूनुस ने "नागरिक शक्ति" नाम की अपनी राजनीतिक पार्टी बनाने की योजना की घोषणा की. बाद में उन्होंने कुछ ही महीनों में अपनी इस योजना को वापस भी ले लिया, लेकिन उनकी इस योजना को एक चुनौती की तरह लिया गया.
यूनुस के खिलाफ 100 से भी ज्यादा आपराधिक मामले दर्ज किए गए. सरकार की एक इस्लामिक एजेंसी ने उनपर समलैंगिकता को बढ़ावा देने का आरोप भी लगाया और उन्हें बदनाम करने की पूरी कोशिश की. 2011 में सरकार ने उन्हें जबरन ग्रामीण बैंक से भी निकलवा दिया. यूनुस ने इस फैसले को चुनौती दी लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने फैसले को सही ठहराया.
तस्वीर: Syed Mahamudur Rahman/AFP
जेल की सजा
जनवरी, 2024 में ढाका की एक श्रम अदालत ने उन्हें और उनके तीन साथियों को उनकी एक कंपनी में श्रमिक कल्याण कोष नहीं बनाने का दोषी ठहराया और छह महीने की जेल की सजा सुनाई. हालांकि उन्हें फैसले को चुनौती देने तक जमानत पर बरी भी कर दिया.
तस्वीर: Samir Kumar Dey/DW
सत्य की जीत
इन चारों ने उन पर लगे आरोपों से इनकार किया. उस समय बांग्लादेश की अदालतों पर हसीना सरकार के फैसलों पर मोहर लगाने के आरोप लग रहे थे. इस मामले की भी इसी आधार पर आलोचना की गई. दुनियाभर में कई लोगों और एमनेस्टी इंटरनेशनल जैसे संस्थानों ने भी इस फैसले की आलोचना की. छह अगस्त को ढाका की एक अदालत ने यूनुस को बरी कर दिया. - सीके/एए (एएफपी)
तस्वीर: Mortuza Rashed/DW
9 तस्वीरें1 | 9
बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने सार्वजनिक रूप से भारत में शरण लिए हसीना के मुद्दे को नहीं उठाया है, लेकिन ढाका ने उनका कूटनीतिक पासपोर्ट रद्द कर दिया है, जिससे वह आगे यात्रा नहीं कर सकेंगी. दोनों देशों के बीच 2013 में हस्ताक्षरित एक प्रत्यर्पण संधि है जो हसीना को आपराधिक मुकदमे का सामना करने के लिए वापस भेजने की अनुमति देती है. हालांकि, संधि में एक प्रावधान है जो कहता है कि यदि अपराध "राजनीतिक स्वभाव" का हो, तो प्रत्यर्पण से इनकार किया जा सकता है.
भारत के पूर्व राजदूत पिनाक रंजन चक्रवर्ती ने कहा कि द्विपक्षीय संबंध बहुत महत्वपूर्ण हैं और ढाका इसे बिगाड़ने के लिए हसीना के मुद्दे को तूल नहीं देगा. उन्होंने एएफपी से कहा, "कोई भी परिपक्व सरकार समझेगी कि हसीना के भारत में रहने को मुद्दा बनाना उन्हें कोई लाभ नहीं देगा."