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समाजयूरोप

एलजीबीटीक्यू वैज्ञानिक के सामने क्या चुनौतियां होती हैं

कार्ला ब्लाइकर
१ जुलाई २०२२

एलजीबीटीक्यू समुदाय के जो वैज्ञानिक अपनी पहचान जाहिर कर देते हैं, वे अपने काम को काफी ज्यादा भावनात्मक तरीके से करते हैं. इससे उन्हें सफलता भी मिलती है. हालांकि, उन्हें अब भी पूर्वाग्रहों का सामना करना पड़ता है.

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तस्वीर: Thomas Samson/AFP/Getty Images

नई नौकरी की शुरुआत हो या नए समूह के साथ काम शुरू करना हो, आप हमेशा चाहते हैं कि शुरुआत में लोगों को प्रभावित कर सकें. यह नए तरह का वातावरण होता है. हालांकि, इस वजह से कभी-कभी लोग घबरा जाते हैं. लेस्बियन, गे, बाइसेक्शुअल, ट्रांसजेंडर या क्वियर (एलजीबीटीक्यू) के तौर पर पहचान रखने वाले लोगों के बीच यह घबराहट ज्यादा होती है. वे कई सवालों से जूझ रहे होते हैं.

क्या अपने सहकर्मियों, सहपाठियों या प्रोफेसरों को अपनी पहचान के बारे में बताना चाहिए? अगर आप ऐसा तुरंत नहीं करते हैं, तो क्या कभी ऐसा मोड़ नहीं आ जाता, जब बहुत देर हो चुकी होती है.

मिशिगन स्टेट यूनिवर्सिटी में उच्च शिक्षा के प्रोफेसर क्रिस्टन रेन का शोध एलजीबीटीक्यू पर केंद्रित है. वह कहते हैं, "जो लोग बहुसंख्यक समूहों में नहीं होते हैं, उनके लिए अपनी पहचान को लेकर जद्दोजहद लंबे समय तक चलने वाली प्रक्रिया है."

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रेन ने जिस 'बहुसंख्यक' की बात की है, उसमें विपरीत लिंग के प्रति आकर्षित होने वाले लोग शामिल हैं. इनका जन्म जिस लिंग में होता है, वे पूरी जिंदगी उसी लिंग की पहचान वाले व्यक्ति के तौर पर जीते हैं और विपरीत लिंग के लोगों की ओर आकर्षित होते हैं. उन्हें नए लोगों से मिलते हुए अपने यौन रुझानों को लेकर कोई चिंता नहीं होती है.

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लेकिन, जब आप STEM यानी साइंस, टेक्नोलॉजी, इंजीनियरिंग और मैथ के क्षेत्र में काम कर रहे हों या इन्हीं में अपना करियर शुरू करना चाहते हों, तो क्या गे, ट्रांसजेंडर, एसेक्शुअल होने से कोई फर्क पड़ता है? क्या गे, ट्रांसजेंडर, एसेक्शुअल होना किसी तरह मायने रखता है?

आखिर विज्ञान, तकनीक, इंजीनियरिंग और गणित में तो बस तथ्यों और संख्याओं की ही बात होती है? तो इन क्षेत्रों में यौन रुझानों और लैंगिक पहचान को लेकर कोई पूर्वाग्रह नहीं है न?

मैथ्यू चार्ल्स कहते हैं, "एक परफेक्ट दुनिया में ठीक ऐसा ही होगा, लेकिन विज्ञान से जुड़ी खोज करते तो सामान्य लोग ही हैं." चार्ल्स पेरिस की सोरबोन यूनिवर्सिटी में भौतिक विज्ञानी और व्याख्याता हैं. वह स्विटजरलैंड के जिनेवा में स्थित यूरोपियन ऑर्गनाइजेशन फॉर न्यूक्लियर रिसर्च 'सर्न' (CERN) में लार्ज हैड्रॉन कोलाइडर प्रयोग पर काम कर रही टीम का हिस्सा भी हैं और 'एलजीबीटीक्यू सर्न' नेटवर्क के सदस्य हैं.

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चार्ल्स कहते हैं, "पार्टिकल फिजिक्स के हमारे क्षेत्र में अक्सर हजारों लोग साथ मिलकर काम करते हैं. इसलिए यह जरूरी है कि हम रचनात्मक माहौल में काम करें और सभी वैज्ञानिकों को सम्मान मिले." हालांकि, जैसा कि चार्ल्स ने बताया कि विज्ञान से जुड़े काम भी आम इंसान ही करते हैं और कुछ लोग अब भी पूर्वाग्रहों से ग्रसित हैं. ये लोग रचनात्मक सहयोग में बाधा उत्पन्न करते हैं.

बेहतर शिक्षा यानी खुले विचार... हमेशा नहीं

ब्रिटेन स्थित इंस्टीट्यूट ऑफ फिजिक्स, रॉयल एस्ट्रोनॉमिकल सोसायटी और रॉयल सोसाइटी ऑफ केमिस्ट्री के शोधकर्ताओं की एक टीम ने 2019 में यूके और आयरलैंड में एलजीबीटीक्यू प्रकृति वाले वैज्ञानिकों और सहयोगियों के बीच सर्वे किया. 'सहयोगी' उन लोगों के लिए मान्यता प्राप्त शब्द है, जो खुद स्ट्रेट यानी विपरीत लिंग के प्रति आकर्षित होते हैं, लेकिन एलजीबीटीक्यू समुदाय की मदद करते हैं.

उन्होंने 1,025 सर्वेक्षणों का मूल्यांकन किया और पाया कि सर्वे में शामिल 28 फीसदी एलजीबीटीक्यू लोगों ने ऑफिस में नकारात्मक माहौल या भेदभाव के कारण काम या काम की जगह बदलने पर विचार किया था.

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केवल ट्रांसजेंडर प्रतिभागियों को देखें, तो संख्या और ज्यादा थी. करीब आधे ट्रांसजेंडर वैज्ञानिकों ने बताया कि ऑफिस में नकारात्मक माहौल के कारण वह अपनी नौकरी छोड़ने के बारे में सोच रहे थे.

रेन कहते हैं, "पश्चिमी देशों में ऐसा माना जाता है कि ज्यादा शिक्षित होने का मतलब है कि आप खुले विचारों वाले हैं. यह बात शीर्ष स्तर के वैज्ञानिकों को तैयार करने वाले कुछ देशों में सच नहीं भी हो सकती है. आप रूस, चीन या ईरान के बारे में सोचें. यह जरूरी नहीं कि एलजीबीटीक्यू को लेकर सभी समाज खुले विचार वाले हों."

तस्वीर: Johannes Eisele/AFP/Getty Images

जहां अलग-अलग सभ्यता और संस्कृति के वैज्ञानिक काम करते हैं

यूरोपियन ऑर्गनाइजेशन फॉर न्यूक्लियर रिसर्च (CERN) दुनियाभर से अपने क्षेत्रों के सफल वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं को आकर्षित करता है. करीब 10,000 लोग सर्न में शोध पर काम करते हैं. इनमें से कई लोग बाहरी संगठनों, प्रयोगशालाओं या विश्वविद्यालयों से जुड़े हैं. इनमें से सभी लोग हर समय जिनेवा स्थित कार्यालय में मौजूद नहीं होते हैं. कई शोधकर्ता केवल थोड़े समय के लिए जिनेवा आते हैं. वहीं कई लोग यहां कुछ हफ्ते रहते हैं, तो कुछ कई वर्षों तक.

चार्ल्स कहते हैं, "ऐसे माहौल में, जहां हर समय लोग आते-जाते रहते हैं, एलजीबीटीक्यू नेटवर्क के लिए लोगों को अपने कार्यक्रम के बारे में सूचित करने का सबसे कारगर तरीका पुराने जमाने की तरह दिखने वाले कागज के अच्छे पोस्टर लगाना है." हालांकि, 2016 में ऐसी खबर आई थी कि एलजीबीटीक्यू नेटवर्क के पोस्टरों को बार-बार हटा दिया गया था, फाड़ दिया गया था या खराब कर दिया गया था.

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उदाहरण के तौर पर एक घटना को देखें, तो किसी ने पोस्टर पर सुअर के लिए जर्मन शब्द लिखा था. इसी तरह एक अन्य घटना में पोस्टर पर समलैंगिक पुरुषों की हत्या करने की बात कही गई थी. चार्ल्स कहते हैं, "जाहिर है यह बहुत परेशान करने वाला काम था."

वह कहते हैं, "एक दशक पहले उन्हें यह कहने में सहज महसूस नहीं हुआ था कि वह समलैंगिक हैं. हालांकि, अब सर्न में काफी बदलाव हुआ है. जिन लोगों ने 2018 और 2020 के बीच जिनेवा में काम किया और जिन्होंने 2022 में काम किया है, वे यह बदलाव आसानी से देख सकते हैं."

वह आगे कहते हैं, "जब नेतृत्व एलजीबीटीक्यू से जुड़े मुद्दों को गंभीरता से लेता है, तो यह वाकई में मदद करता है. अगर अब कुछ होता है, तो सर्न उस पर तुरंत कार्रवाई करता है. वे स्पष्ट तौर पर स्वीकार करते हैं कि यह आचार संहिता के खिलाफ है और इसे किसी हाल में बर्दाश्त नहीं किया जा सकता."

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खुले माहौल में बेहतर काम

जहां खुला माहौल होता है, वहां काम भी बेहतर और ज्यादा होता है. रेन कहते हैं, "जो लोग अपने काम में खुश हैं, वे बेहतर काम करते हैं. वे नए सहयोगी बना सकते हैं. एसटीईएम के क्षेत्र में साथ मिलकर काम करना काफी जरूरी है."

अमेरिका में एक समीक्षा की गई और इसे मार्च में प्लॉज वन जर्नल में प्रकाशित किया गया. इसमें पाया गया कि एलजीबीक्यू के जिन शोधकर्ताओं ने अपनी पहचान जाहिर कर दी थी, उन्होंने अपने उन सहयोगियों की तुलना में बेहतर काम किया, जिन्होंने अपने यौन रुझान यानी सेक्शुअल ओरिएंटेशन जाहिर नहीं किए थे. विज्ञान से जुड़ी पत्रिकाओं में पहचान जाहिर करने वाले शोधकर्ताओं के ज्यादा लेख छपे.

शोधकर्ताओं ने कुल 1,745 प्रतिभागियों की प्रतिक्रियाओं की समीक्षा की. उन्होंने लिंग की पहचान से जुड़े बाहरी असर का निरीक्षण नहीं किया. यही वजह है कि यहां इस्तेमाल किए गए एलजीबीक्यू में कोई "टी" नहीं है.

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रेन का कहना है कि बेहतर कार्यस्थल की वजह से भी फर्क पड़ सकता है. जिन लोगों ने ऐसी जगहों पर काम किया, जहां उन्हें लगा कि अपना लैंगिक रुझान जाहिर करना सही नहीं रहेगा, वे बेहतर काम नहीं कर सके. हालांकि, दूसरी वजहें भी हो सकती हैं.

रेन कहते हैं, "जो वैज्ञानिक अपने पेशेवर जीवन में अपनी सेक्शुअल ओरिएंटेशन जाहिर कर देते हैं, उनका पूरा ध्यान अपने काम पर रहता है. वे अपनी पहचान छिपाने के लिए अपना वक्त और ऊर्जा बर्बाद नहीं करते हैं."

चार्ल्स भी इसकी पुष्टि करते हैं. वह कहते हैं, "अगर आप लगातार 'मैं क्या कहूं, मैं अपनी बात कैसे कहूं, लोग क्या कहेंगे?' सोचते रहेंगे, तो इससे तनाव बढ़ेगा. मैंने व्यक्तिगत तौर पर पाया है कि इसके बारे में चिंता न करें."

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भेदभाव कम होने से सभी को फायदा

जब विश्वविद्यालय के लैब या शोध संस्थान खुले विचार वाले होते हैं, जहां वैज्ञानिक खुलकर अपनी बात कह पाते हैं और सहज महसूस करते हैं, तो यह एलजीबीटीक्यू के उन शोधकर्ताओं और छात्रों के लिए भी बेहतर संकेत है, जो करियर में आगे बढ़ना चाहते हैं.

रेन कहते हैं, "हर क्षेत्र सभी के लिए खुला होना चाहिए. अमेरिका में हमारे पास पर्याप्त वैज्ञानिक नहीं हैं. हम किसी समूह की पूरी आबादी को बाहर नहीं कर सकते. अलग-अलग लोग अलग-अलग प्रश्न पूछ सकते हैं और उनका काम करने का तरीका अलग हो सकता है."

इसलिए सभी के लिए काम करने का बेहतर माहौल बनाकर एक संगठन न सिर्फ एलजीबीटीक्यू समुदाय के सदस्यों को समान अवसर मुहैया कराते हैं, बल्कि वे अपनी प्रयोगशालाओं और अनुसंधान केंद्रों को व्यापक दृष्टिकोण के लिए भी खोलते हैं.

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