म्यांमार में 11 लोगों को जिंदा जला दिए जाने की खबरों पर अमेरिका और संयुक्त राष्ट्र ने म्यांमार की सेना की निंदा की है. सेना ने इन खबरों का खनन किया है लेकिन स्थानीय लोगों ने घटना की पुष्टि की है.
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म्यांमार की स्थानीय मीडिया और आम लोगों ने बताया कि सेना के काफिले पर हमले के एक दिन बाद सेना ने सगैंग प्रांत के डोंटाव गांव के रहने वाले 11 लोगों को बांध कर जिंदा जला दिया. मारे गए लोगों में बच्चे भी शामिल हैं. सेना ने इन दावों से इनकार किया है.
सैन्य सरकार द्वारा समर्थित ग्लोबल लाइट ऑफ म्यांमार अखबार ने इन खबरों को "फेक न्यूज" बताया और "स्थानीय और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों द्वारा षड़यंत्र का सबूत बताया." लेकिन स्थानीय लोगों ने पत्रकारों को बताया कि उन्होंने सैनिकों के चले जाने के बाद "हाथ बंधी हुई धधकती लाशों" को देखा.
सोशल मीडिया पर डाले गए एक वीडियो में भी कई जले हुए शव जमीन पर पड़े हुए नजर आ रहे हैं. वीडियो में एक आवाज कहती है, "इससे हम सब को दुख पहुंचा है...ये इंसानों की लाशें भी नहीं लग रही हैं." डेमोक्रेटिक वॉइस ऑफ बर्मा अखबार ने भी दावा किया कि सेना ने उन गांव वालों को पकड़ लिया था जो भाग नहीं पाए.
इस प्रांत में सेना और नागरिकों के सैन्य समूह पीपल्स डिफेंस फोर्स के सदस्यों के बीच नियमित रूप से लड़ाई होती रही है. स्थानीय मीडिया ने बताया कि सेना का हमला इसी समूह के सदस्यों द्वारा एक दिन पहले सेना की एक टुकड़ी पर किए गए हमले की प्रतिक्रिया में किया गया था.
'शांत हड़ताल'
इन हत्याओं के विरोध में लोगों ने एक "शांत हड़ताल" का आयोजन किया, जिसमें लोगों ने शहरों और कस्बों में सार्वजनिक स्थानों को खाली कर दिया और खुद ही खुद को घरों में बंद कर लिया. यह प्रदर्शन अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस के दिन ही आयोजित किया गया.
देश के सबसे बड़े शहर यांगोन में बाजार और दुकानें बंद रहीं. अमूमन खचाखच भरी रहने वालीं सड़कों पर कोई यातायात भी नहीं था. दूसरे सबसे बड़े शहर मंडाले में भी इसी तरह के दृश्य देखे गए. इस तरह के प्रदर्शन शहरों में लगातार हो रहे हैं लेकिन ग्रामीण इलाकों में काफी गंभीर लड़ाई हो रही है. वहां सेना ने ज्यादा ताकत लगा दी है.
हाल के महीनों में लड़ाई सगैंग और उत्तर पश्चिम के दूसरे इलाकों में सबसे ज्यादा तेज हो गई है. देश में फरवरी में हुए तख्ता पलट के बाद से ही लगातार उथल पुथल है. एक स्थानीय समूह के मुताबिक 1300 से ज्यादा लोग सुरक्षा बलों के हाथों मारे गए हैं और अर्थव्यवस्था का भी बुरा हाल है.
सीके/एए (एपी, एएफपी)
म्यांमार में दमन का कुचक्र
एक फरवरी 2021 को म्यांमार में सेना द्वारा तख्ता पलट देने और सत्ता हथिया लेने के बाद वहां लगातार नागरिकों के अधिकारों का दमन हो रहा है. तीन मार्च को एक ही दिन में सुरक्षाबलों की फायरिंग में 38 प्रदर्शनकारी मारे गए.
तस्वीर: STR/AFP/Getty Images
हिंसा का दौर
तख्तापलट के बाद से ही लोग लोकतंत्र की बहाली की मांग कर रहे हैं और देश के कई हिस्सों में प्रदर्शन आयोजित कर रहे हैं. सेना और पुलिस प्रदर्शनकारियों के खिलाफ सख्ती से पेश आ रहे हैं, जिसकी वजह से देश में हिंसा का दौर थम ही नहीं रहा है. तीन मार्च को सुरक्षाबलों की फायरिंग में 38 लोग मारे गए.
तस्वीर: AP Photo/picture alliance
बढ़ते जनाजे
इन 38 लोगों को मिला कर अभी तक कम से कम 50 प्रदर्शनकारियों की जान जा चुकी है. यह तस्वीर 19 साल की क्याल सिन के शव की अंतिम यात्रा की है. वो तीन मार्च को मैंडले में सेना के खिलाफ प्रदर्शन कर रही थीं जब सुरक्षाबलों ने गोलियां चला दीं. उन्हें सिर में गोली लगी और उनकी मौत हो गई.
तस्वीर: REUTERS
बल का प्रयोग
प्रदर्शनकारियों से निपटने के लिए पुलिस ने पहले आंसू गैस का भी इस्तेमाल किया. सुरक्षाबल लगातार आंसू गैस, रबड़ की गोलियां, ध्वनि बम जैसे हथकंडों का इस्तेमाल कर रही है. प्रदर्शन शांत ना होने पर गोली चला दी जा रही है.
तस्वीर: Aung Kyaw Htet/ZumaWire/Imago Images
बचने के तरीके
प्रदर्शनकारियों को अपनी सुरक्षा का इंतजाम भी करना पड़ रहा है. आंखों को ढकने के लिए बड़े बड़े चश्मे, हेलमेट और ढालों का इस्तेमाल किया जा रहा है.
तस्वीर: STR/AFP/Getty Images
नाकामयाब कोशिशें
प्रदर्शनकारी भी खुद को बचाने के लिए धुंआ छोड़ रहे हैं लेकिन धुंआ और किसी तरह से बनाए हुए बैरिकेड भी उन्हें पुलिस की गोलियों से बचा नहीं पा रहे हैं.
तस्वीर: STR/AFP/Getty Images
मीडिया पर हमले
गिरफ्तारियों का सिलसिला भी लगातार चल रहा है और प्रदर्शनकारियों के अलावा पुलिस पत्रकारों को भी गिरफ्तार कर रही है. प्रदर्शनों पर खबर कर रहे एसोसिएटेड प्रेस के थेइन जौ और पांच और पत्रकारों को गिरफ्तार कर लिया गया है. उन्हें तीन साल तक की जेल हो सकती है.
तस्वीर: Thein Zaw family/AP/picture alliance
सू ची की छाया
प्रदर्शनकारियों में से कई म्यांमार की नेता आंग सान सू ची के समर्थक हैं, जिन्हें सेना ने पहले ही गिरफ्तार कर लिया था. प्रदर्शनों में सू ची की रिहाई और लोकतंत्र की बहाली की मांग उठ रही है.