4 मई को जर्मनी ने अपने भरण-पोषण की क्षमता पूरी खर्च कर दी. इस “अर्थ ओवरशूट” यानी धरती के संसाधनों के अतिशय दोहन की भरपाई गरीब देशों के सीमित संसाधनों और भावी पीढ़ियों के जरिए की जाएगी.
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यूक्रेन पर रूसी हमले की वजह से आर्थिक मंदी के बावजूद, जर्मनी अपने निर्वहन की जीववैज्ञानिक सीमाओं को पार कर चुका है. इस बीच, पिछले साल की तरह इस बार का अर्थ ओवरशूट डे भी, अंदाजा है कि 28 जुलाई के आसपास होगा.
2022 की तारीख अमेरिका स्थित पर्यावरणीय एनजीओ, ग्लोबल फुटप्रिंट नेटवर्क ने सबसे पहले दर्ज की थी. ये संस्था करीब तीन दशकों से वैश्विक और राष्ट्रीय पारिस्थितिकीय दुष्प्रभावों की गणना करती आ रही है. 1970 में, पृथ्वी की बायोकैपिसिटी यानी जैवसामर्थ्य, संसाधनों की सालाना इंसानी मांग से भी कहीं ज्यादा पूरी करने लायक थी.
जैव सामर्थ्य से आशय ईकोप्रणालियों की उस क्षमता या सामर्थ्य से है जो इंसानी उपभोग के लिए जीववैज्ञानिक सामग्रियों के उत्पादन और इंसानों के पैदा किए कचरे को सोखने में खर्च होती है. लेकिन 1970 के बाद से हम लोग धरती को अपने उपभोग के आकार के लिहाज से पीछे छोड़ चुके हैं.
इस जीवनशैली को बनाए रखने के लिए मनुष्यता को करीब 1.7 ग्रहों की जरूरत है. अकेले जर्मनी को तीन ग्रह चाहिए. गरीब और विकासशील देशों पर ज्यादा मार पड़ेगी. यही हाल आने वाली पीढ़ियों का भी होगा जो जलवायु संकट के रूप में तकलीफें झेलेगी जो इधर अतिशय उपभोग की वजह से और तीखी होने लगी हैं.
उदाहरण के लिए, इंडोनेशिया या इक्वाडोर, दिसंबर तक अतिक्रमण नहीं करेंगे. और अपने साधनों के दायरे में ही रहने के करीब हैं. लेकिन जर्मनी जैसे अमीर देश उनके संसाधनों का दोहन करने में लगे हैं.
जर्मन विकास नेटवर्क, इनकोटा में रिसोर्स जस्टिस के लिए वरिष्ठ नीति सलाहकार लारा लुइजा जीवर ने 2022 में बताया कि, "दुनिया में कच्चे माल का पांचवा सबसे बड़ा उपभोक्ता जर्मनी है और वो गरीब देशों से 99 फीसदी खनिज और धातुएं आयात कर रहा है."
2023 में, संसाधनों का अत्यधिक दोहन करने में कतर सबसे आगे रहा. 10 फरवरी तक उसने अपने अक्षय संसाधनों का उपभोग कर डाला था.
अंतहीनवृद्धिकातर्कजर्मनीकोछोड़नाहोगा
लेकिन अधिकांश विकसित देशों की तरह जर्मनी अभी भी सूची में ऊंचे स्थान पर बना हुआ है- फ्रांस को संसाधनों के उपभोग की हद पार करने में जर्मनी से एक दिन ज्यादा लगा. जबकि यूनान (ग्रीस), यूके और जापान इस महीने अपने संसाधन बजट को पार कर चुके हैं.
इंसानों के लिए एक पृथ्वी कम पड़ रही है
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ग्रीनपीस जर्मनी में सर्कुलर इकोनमी और टॉक्सिक्स कैंपेनर वायोला वोह्लगेमुथ ने कहा, "जर्मनी में बड़ी समस्या ये है कि हम अभी तक ये नहीं समझ पाए कि संसाधन सीमित हैं. गरीब देशों में भी आमतौर पर यही समस्या है."
वर्ल्ड रिसोर्सेस इन्स्टीट्यूट के डाटा का हवाला देते हुए वायोला बताती हैं कि जैवविविधता का 90 फीसदी नुकसान "संसाधनों के दोहन और उत्पादों में उनके रूपांतरण" की वजह से होता है. ये उत्पादन वैश्विक स्तर पर 50 फीसदी ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का जिम्मेदार भी है.
वायोला कहती हैं कि इस "भीषण संसाधन संकट" के बावजूद जर्मनी जैसे देशों ने "सबक नहीं सीखा है." बर्लिन स्थित जलवायु एक्टिविस्ट ताद्सियो म्युलर कहते हैं कि अतीत में, जर्मनी को "जलवायु खूबी की मिसाल" माना जाता था.
"विडंबना ये है कि ईको चैंपियन के रूप में जर्मनी का ये मिथ उसकी औद्योगिक नीति या उसकी सरकारी स्तर पर राजनीतिक सामरिकताओं की वजह से नहीं बना है. इसकी वजह हैं शक्तिशाली सामाजिक आंदोलन."
वो 1970 और 80 के दशकों में उभरे परमाणु विरोधी आंदोलनों,का हवाला देते हैं जिनके जरिए एटमी ऊर्जा को हटाने की मांग की जाती रही है, स्थानीय छोटी और मंझौली कंपनियों में जर्मन अक्षय ऊर्जा प्रतिभा या सुघड़ता के उभार का जिक्र करते हैं और हाल मे ही युवा जलवायु प्रदर्शनकारियों की जीवाश्म ईंधन से बाहर निकलने की कामयाब मांगों का उल्लेख भी वो करते हैं.
संसाधनों की होड़ के बीच प्रकृति को बचाने का संघर्ष
अफ्रीका के युगांडा में उप-सहारा अफ्रीका के सबसे बड़े तेल के भंडार को हासिल करने के लिए दो बड़ी ऊर्जा कंपनियां तैयार हैं, लेकिन स्थानीय लोगों को वहां की अद्भुत जैवविविधता पर इसके असर की चिंता सता रही है.
तस्वीर: Jack Losh
जमीन के निगहबान
88 साल के अलोन कीजा यहां के बागुंगु स्थानीय समुदाय के एक बुजुर्ग हैं. वो ग्रामीण बुलीसा जिले में रहते हैं जो इस महाद्वीप के प्राकृतिक संसाधनों को हासिल करने की होड़ के ठीक मध्य में स्थित है. वो कहते हैं, "तेल के लिए ड्रिलिंग करने से इकोसिस्टम अस्त व्यस्त हो जाएगा. इस जगह की आत्मा इन मशीनों को स्वीकार नहीं करती है."
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वन्य जीवों पर खतरा
एक गंभीर समस्या है इस इलाके के वन्य जीवों पर होने वाला असर. ड्रिलिंग का कुछ हिस्सा मर्चिसन फॉल्स राष्ट्रीय उद्यान में भी होगा जहां कई हाथी, तेंदुए, शेर और जिराफ के अलावा 450 नस्लों के पक्षी रहते हैं. पर्यावरणविदों को इन वन्य जीवों पर ड्रिलिंग के संभावित असर की चिंता है.
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शुरुआत हो चुकी है
लेकिन ये विशाल परियोजना शुरू भी हो चुकी है. अप्रैल में युगांडा और तंजानिया ने फ्रांसीसी बहुराष्ट्रीय तेल कंपनी टोटलएनर्जीज और चीन की नेशनल ऑफशोर ऑयल कॉर्पोरेशन के साथ संधियों पर हस्ताक्षर किये. इनके तहत 425 वर्ग मील के ड्रिलिंग क्षेत्र से करीब 1.7 अरब बैरल तेल निकाला जाएगा. इलाका सुदूर है इसलिए एक चीनी निर्माण कंपनी को एक 70 मील लंबी सड़क बनाने का भी ठेका दिया गया है.
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एक अंतर्राष्ट्रीय कोशिश
2025 में जब निकाले हुए तेल की पहली खेप मिलेगी तो उसे पूर्व अफ्रीकी कच्चे तेल की पाइपलाइन के जरिए 900 मील दूर तंजानिया के बंदरगाह वाले शहर तांगा तक पंप किया जाएगा. यह शहर हिन्द महासागर में मैंग्रोव और मूंगे की चट्टानों से घिरा हुआ है. पाइपलाइन ना सिर्फ नाजुक वन्य जीव इलाकों से गुजरेगी बल्कि जानकारों का कहना है कि वो हजारों किसानों को भी विस्थापित करेगी.
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रोशनी की किरण
लेकिन युगांडा सरकार ने अल्बर्ट तालाब के किनारे इस तेल परियोजना को आगे ले जाने के साथ साथ एक अभूतपूर्व पर्यावरण कानून भी पास किया है. इस कानून के तहत मानवाधिकारों की तरह ही प्रकृति के अधिकारों को भी मान्यता दी जाती है. इकोसिस्टमों को जीव जंतुओं की तरह माना जाता है और उन्हें प्रतिनिधियों के जरिए अदालत के दरवाजे खटखटाने की भी इजाजत दी जाती है.
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पुरानी जड़ें
कीजा पर्यावरणविद डेनिस तबारो के बगल में बैठे हुए हैं जो उन स्थानीय पर्यावरण-संबंधी परम्पराओं को फिर से प्रचलित करने की कोशिश कर रहे हैं हो औपनिवेशिक युग में नष्ट हो गई थीं. देश का नया कानून बागुंगु जैसे स्थानीय समुदायों की प्राचीन सोच पर आधारित है. पूरी दुनिया में 37 करोड़ स्थानीय लोगों की आबादी है, लेकिन वो ऐसी जगहों पर रहते हैं जहां धरती की 80 प्रतिशत जैवविविधता पाई जाती है.
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एक पुनर्जागरण
अपने पुनर्जागरण के क्रम में बागुंगु बुजुर्गों ने उनके प्राचीन इलाके के नक्शे बनाए हैं, जिनमें पूर्व-औपनिवेशिक काल के कैलेंडर हैं. इनमें बदलते मौसम, प्रजाजन के चक्र, फसलों की कटाई के समय और रिवाज दिखाए गए हैं. एक नक्शे पर पुराने रीति-रिवाज दिखाए गए हैं, दूसरे पर आज की अव्यवस्था और तीसरे पर भविष्य के लिए एक परिकल्पना. इससे उनकी धरोहर की यादें ताजा हुई हैं.
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काला सोना?
पर्यावरण संबंधी चिंताओं के बावजूद सरकार तेल के इस भंडार को लोगों के जीवन के स्तर को बेहतर बनाने के एक तरीके के रूप में बढ़ावा दे रही है. युगांडा की आधे से ज्यादा आबादी गरीब है. यह बच्चा स्कूल नहीं जा सका क्योंकि इसे फसलों को इकठ्ठा करने में अपने परिवार की मदद करनी थी. टोटलएनर्जीज ने कहा है कि उसकी परियोजना से 6,000 नौकरियों का जन्म होगा, जिनमें से अधिकतर स्थानीय लोगों के लिए होंगी.
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आगे की ओर अग्रसर
इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि नया कानून तेल परियोजना को रोक देगा. इसमें एक प्रावधान है जिसके तहत सरकार यह तय कर सकती है कि इस कानून का संरक्षण किन प्राकृतिक स्थलों को मिलेगा और किन को नहीं. इसी तरह, प्रकृति के अधिकारों की भी गारंटी हमेशा के लिए नहीं होगी.
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अनिश्चित भविष्य
चीनी और युगांडन मजदूर निर्माण के एक गर्मी भरे दिन के बीच आराम कर रहे हैं. वकीलों का मानना है कि नए कानून से परियोजना के असर को सीमित करने का मौका तो मिल जाएगा लेकिन इससे परियोजना रुकेगी नहीं. फ्रैंक तुमुसीमे की संस्था ने इस कानून के लिए लॉबी किया था और अब उसे मजबूत करने वाले नियमों के बनाने में मदद कर रहे हैं. वो कहते हैं, "यह होना ही है. हमें असर को कम करने की योजना पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए."
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प्राकृतिक मंदिर
बागुंगु बुजुर्ग जूलियस बाएंक्या बुलीसा के बाहर सवाना के जंगलों में पवित्र माने जाने वाले पेड़ों के एक झुरमुट की तरफ बढ़ रहे हैं. ये उन कई पवित्र प्राकृतिक स्थलों में से है जिन्हें तालाबों, नदियों या जंगलों के रूप में पूजा जाता है. इनसे वन्य जीवों को शरण भी मिलती है. बाएंक्या कहते हैं, "यह हमारा आध्यात्मिक केंद्र है. हमारी प्रार्थना है कि यह जगह अछूती रहे." (जैक लॉश)
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लेकिन म्युलर कहते हैं, अगर अत्यधिक उपभोग से जुड़ी हुई जलवायु बदलाव और "जैवविविधता क्षति की अतिशय गंभीर समस्या " से निपटना है तो जर्मन आर्थिक नीति को आधार देने वाली निर्बाध वृद्धि के चालक सिद्धांत को बुनियादी रूप से बदलना होगा.
वो कहते हैं कि इसका विस्तार "हरित वृद्धि" के विचार से जुड़ा है या "इलेक्ट्रिक कार पूंजीवाद" से जो कि संसाधन उपभोग के बड़े पैमाने पर विस्तार पर आधारित है- खासतौर पर खनिजों और दुर्लभ धातुओं के लिए.
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#मूवदडेटकेलिएजरूरीहैसर्कुलरइकोनमी
म्युलर ये बताते हैं कि अगर वही ग्रोथ मॉडल भी बनाए रखना पड़े तो भी, संसाधनों के इस्तेमाल में कटौती करने वाली कुशलताएं लागू करने की कोशिश के तहत, जर्मनी की संघीय सरकार एक नयी राष्ट्रीय सर्कुलर इकोनमी रणनीति पर बहस कर रही है.
वायोला वोह्गलेमुथ के मुताबिक अर्थ की ओवरशूट डेट को आगे खिसकाने के लिए एक समग्र चक्रीय अर्थव्यवस्था जरूरी है. वो कहती हैं कि "हमें अपने बिजनेस मॉडलों को बदलना होगा ताकि उत्पाद सच्चे अर्थो में रिसाइकिल हो सके."
इसकी खातिर वो यूरोपियन ग्रीन डील के सर्कुलर इकोनमी कार्ययोजना के केंद्र में मौजूद रिड्यूस, रियूज और रिसाइकिल के सिद्धांत का हवाला भी देती हैं. उन्होंने जर्मनी में संसाधनों के इस्तेमाल की सीमा को सुनिश्चित करने को भी कहा है.
हाइड्रोजन बनाने के लिए जर्मनी का नामीबिया में बड़ा निवेश
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ऐसी सीमाओं में ऊर्जा इस्तेमाल को भी शामिल करने की जरूरत है. ग्रीनपीस कैंपेनर का कहना है कि सिर्फ एक चौथाई जर्मन गैस आपूर्ति हीटिंग या खाना पकाने में इस्तेमाल होती है ज्यादातर उच्च कार्बन फॉसिल ईंधन अनसस्टेनेबल उत्पादन को ऊर्जा देते हैं.
जर्मनीकोद्रुतगतिसेउत्सर्जनकटौतियांकरनीहोंगी
ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन, अति उत्पादन और अति उपभोग का सीधा नतीजा हैं. पर्यावरण संगठन जर्मन वॉच के राजनीतिक निदेशक क्रिस्टॉफ बाल्स के मुताबिक अगर जर्मनी को अपने ओवरशूट में तेजी से कटौती करनी है तो उत्सर्जनों में तेजी से कटौती करना जरूरी है.
उन्होंने कहा, "जर्मनी में सीओटू उत्सर्जन आज की अपेक्षा तीन गुना अधिक तेजी से कम करना होगा."
हाईस्पीड, लो एमीशन वाले रेल परिवहन तक परिष्कृत पहुंच और हवाई सफर में कटौती, इन उत्सर्जनों में कटौती के लिए ग्रीनवॉच के कुछ सुझावों में से हैं.
लेकिन अति उपभोग से पहले निपटे बिना, जर्मनी अपनी जरूरतों के दायरे में रहने में नाकाम रहेगा.
ग्लोबल फुटप्रिंट नेटवर्क के संस्थापक और अध्यक्ष माथिस वाकरनागेल कहते हैं, "हम अलग अलग तरीकों से तमाम समस्याओं पर गौर करते हैं- जलवायु परिवर्तन या जैव-विविधता ह्रास या भोजन की किल्लत- माने ये सभी चीजें अलग अलग घटित हो रही हों."
"लेकिन ये तमाम चीजें एक ही अंतर्निहित मामले के लक्षण हैं- कि हमारा सामूहिक मेटाबॉलिज्म, इंसानी उपभोग की वस्तुओं की मात्रा और आकार उन संसाधनों की तुलना में बहुत बड़ा हो चुका है जिन्हें धरती नवीनीकृत कर पाती है."
प्राकृतिक संसाधनों पर सरकारी कब्जे की होड़
हाल ही में चिली ने दो निजी लीथियम खनन कंपनियों के राष्ट्रीयकरण की घोषणा की है. पिछले तीन सालों में कई अन्य देशों ने अपने खनिज संसाधनों को सरकारी नियंत्रण में लाने का निर्णय लिया है.
तस्वीर: Basri Marzuki/ZUMA Press/imago images
चिली
लीथियम एक मुलायम सफेद धातु है जो इलेक्ट्रिक वाहनों, मोबाइल फोन और कम्प्यूटरों की बैटरियों में इस्तेमाल होता है. कार्बन मुक्त होने की वैश्विक दौड़ में लीथियम की भारी मांग है. दुनिया में सबसे ज्यादा लीथियम चिली में है. हाल ही में वहां की सरकार ने लीथियम एक्सट्रैक्शन में काम करने वाली दो निजी कंपनियों का राष्ट्रीयकरण करने की घोषणा की है.
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इंडोनेशिया
इंडोनेशिया कभी निकल के दुनिया के प्रमुख निर्यातकों में से एक था. हालांकि, जून 2020 में देश ने निकल के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया. इंडोनेशिया निकल के खनन से लेकर बैटरी बनाने के लिए धातुओं के इस्तेमाल पर खुद काम करने की योजना बना रहा है.
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मेक्सिको
इस साल फरवरी में मेक्सिको के राष्ट्रपति आंद्रेज मैनुअल लोपेज ओब्रादोर ने ऊर्जा मंत्रालय को देश के लीथियम भंडार की जिम्मेदारी देते हुए एक फरमान जारी किया था. अप्रैल 2022 में लीथियम भंडार का राष्ट्रीयकरण कर दिया गया था.
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जिम्बाब्वे
पिछले दिसंबर में जिम्बाब्वे ने असंसाधित लीथियम के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया था. सरकार का कहना था लीथियम को खदानों से निकालकर सीमा पार ले जाने से रोकने के लिए यह फैसला लिया गया.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/Z. Moe Htet
म्यांमार
टिन या रांगा इलेक्ट्रॉनिक्स और सेमीकंडक्टर उद्योग में इस्तेमाल होने वाला एक महत्वपूर्ण तत्व है. 2022 में म्यांमार के टिन उत्पादन का 70 प्रतिशत से अधिक वॉ जातीय समूह द्वारा नियंत्रित क्षेत्रों से आया था. अप्रैल में वॉ मिलिशिया ने कहा था कि यह अगस्त से अपने नियंत्रण वाले क्षेत्रों में खानों पर सभी काम को निलंबित कर देगा. इस कदम से टिन की कीमत में वृद्धि हुई.