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ओजोन परत में अब भी छेद

क्लेयर रोठ
१५ सितम्बर २०२२

पहले के मुकाबले ओजोन परत को नुकसान पहुंचाने वाली चीजों में कुछ कमी आई है. इसके कारण ओजोन छेद छोटा भी हुआ है लेकिन पूरी तरह भरने से अभी काफी दूर है. आखिर क्यों जरूरी है स्वस्थ ओजोन परत.

अंटार्कटिक के ऊपर अब भी है ओजोन परत में छेद
अंटार्कटिक के ऊपर अब भी है ओजोन परत में छेदतस्वीर: Copernicus Atmosphere Monitoring Service/ECMWF/dpa/picture alliance

ओजोन की परत वैसे भी बहुत चौड़ी नहीं है. सूर्य की अल्ट्रावायलेट किरणों और हमारे बीच जो है बस यही है.

ओजोन परत के बारे में संयुक्त राष्ट्र कहता है, "अगर हम पूरी ओजोन लेयर को समुद्र के स्तर पर लाएं तो यह केवल तीन मीलिमीटर चौड़ी परत होगी. यही है जो हम सब को हानिकारक विकिरण से बचाती है."

वाकई यह तो बहुत तगड़ी नहीं लगती. सोचिए केवल तीन मिलीमीटर की सुरक्षा परत कितना बचा सकती है. अपनी आंखों से तो यह हमें दिखाई भी नहीं देती.

ऊपर से हम ये भी जानते हैं कि धरती के वातावरण की स्ट्रैटोस्फीयर नामक परत में मौजूद ये ओजोन कहीं कहीं इतना कम हो गया है कि उन्हें "ओजोन होल" यानि छेद कहा जाता है. कई दशक पहले ही हम इंसानों को पता चल गया था कि खुद ओजोन लेयर पर खतरा मंडरा रहा है और उसे बचाने की जरूरत है.

संयुक्त राष्ट्र ने पिछले तीन दशक में इस परत की मरम्मत के लिए कितनी ही अंतरराष्ट्रीय संधियां करवाईं जिनमें खासतौर पर मॉन्ट्रियाल प्रोटोकॉल का नाम लिया जाना चाहिए. इसका मकसद ओजोन परत को नुकसान पहुंचाने वाले पदार्थों को रोकना था.

अमेरिका के नेशनल ओशेनिक एंड ऐटमॉस्फियरिक एडमिनिस्ट्रेशन के मौसमविज्ञानियों ने बताया कि 2022 की शुरुआत में हमारे स्ट्रेटोस्फियर में ओजोन के लिए बुरी चीजों की मात्रा उस समय से आधी हो गई है जब सबसे पहले ओजोन छेद का पता चला था.

हालांकि यह भी सही है कि छेद बंद होने से हम अभी बहुत दूर हैं. आइए जानते हैं कि आखिर इसका बंद होना हमारी धरती के लिए इतना जरूरी क्यों है और ओजोन है क्या.

ओजोन लेयर क्या है?

ओजोन एक अणु है जो ऑक्सीजन के तीन परमाणुओं (O3) से मिलकर बना होता है. ओजोन अणु धरती के बाहरी वातावरण में प्राकृतिक रूप से पाया जाता है. इसी बाहरी परत को स्ट्रेटोस्फियर कहते हैं जो कि गैसों से बनी परत है. इस परत में मौजूद गैसें धरती पर जीवन को सुरक्षित रखती हैं क्योंकि यह सूर्य के कई तरह के विकिरणों, खासकर पराबैंगनी किरणों को फिल्टर करती है.

धरती के निचले वातावरण में भी कई रासायनिक प्रतिक्रियाओं के चलते ओजोन पैदा होता है.जैसे कि वायु प्रदूषण और दूसरे उत्सर्जनों के चलते यह ट्रोपोस्फियर में भी बनता है. फर्क यह है कि जहां बाहरी वातावरण वाला ओजोन सुरक्षा परत बनाता है वहीं निचले स्तर ट्रोपोस्फियर में पौधों, जीव जन्तुओं और इंसानों के सीधे संपर्क में आने पर यह उनको नुकसान पहुंचाता है.

यूवी किरणों के पहुंचने से होता क्या है?

अगर ओजोन की परत ना हो तो अल्ट्रावायलेट किरणें धरती को बंध्या बना सकती हैं. यह तो जगजाहिर है कि किसी चीज को धूप दिखाने यानि धूप में रखने से वो स्टेरिलाइज हो जाती है. धूप में सुखाए कपड़े भी इसी तरह कीटाणुमुक्त हो जाते हैं. लेकिन इसका मतलब ये भी तो हुआ ना कि यूवी किरणें कीटाणुओं की जान ले लेती हैं.

तीन तरह की होती हैं अल्ट्रावायलेट किरणें

तीन तरह के यूवी विकिरण होते हैं - ए,बी और सी. ओजोन परत और वातावरण सारा यूवीसी सोख लेता है. यह यूवीसी अल्ट्रावायलेट विकिरण का सबसे ज्यादा ऊर्जा वाला रूप है. इसके अलावा कुछ यूवीबी भी सोखता है.लेकिन यूवीए को ओजोन परत नहीं सोख पाती और यह धरती की सतह पर गिरती है.

इंसानों को विटामिन डी बनाने के लिए सूर्य से आने वाली यूवीबी की जरूरत होती है. हालांकि यूवीबी की बहुत ज्यादा मात्रा पहुंचने लगे तो इंसान को बीमार कर सकती है. इसके कारण त्वचा के कैंसर, कैटरैक्ट, इम्यूनिटी घटने और समय से पहले त्वचा पर झुर्रियां आने की समस्या देखी गई है. अल्ट्रावायलेट किरणें बहुत ज्यादा हों तो फसलों की उपज घटा सकती हैं और समुद्री जीवन के चक्र को भी प्रभावित करती हैं.

क्या है ओजोन का दुश्मन

सबसे बड़ी परेशानी तो इंसानी गतिविधियों से ही पैदा होती हैं. हमारी रोजमर्रा की चीजों से क्लोरोफ्लोरोकार्बन, हैलोन, हाइड्रोक्लोरोफ्लोरोकार्बन जैसी कई गैसें निकलती हैं जो ओजोन परत की दुश्मन हैं. यह गैसें निकलती हैं हमारे फ्रिज, एसी, कीटनाशकों और एयरोसॉल जैसी चीजों से. इनसे निकले क्लोरीन और ब्रोमाइन के परमाणु स्ट्रेटोस्फियर में ओजोन के अणुओं को नष्ट करते हैं.

वैज्ञानिक चेता रहे हैं कि "बहुत क्षणिक पदार्थ" (वीएसएलएस) भी ओजोन परत के लिए खतरनाक साबित हो रहे हैं. यह प्राकृतिक रूप से समुद्री वातावरण में मिलता है जहां समुद्री खर पतवार और फाइटोप्लैंकटॉन उगते हैं.

क्या कभी भरेगा छेद?

अगस्त से अक्टूबर के महीनों में धरती के दक्षिणी ध्रुवीय छोर अंटार्कटिक पर ओजोन की परत इतनी पतली हो जाती है कि उसे छेद कहा जाता है. हालांकि उत्तरी ध्रुव पर भी कुछ छोटे छेद हैं.

वैज्ञानिकों का मानना है कि ओजोन परत का भविष्य अच्छा होने वाला है. 1980 के पहले वो जैसी थी अगले 50 सालों में वैसी ही हो सकती है. यानि 2050 से 2065 के बीच इस लक्ष्य को पाया जा सकता है अगर सब अंतरराष्ट्रीय संधियों का पालन करें.

संयुक्त राष्ट्र के इतिहास में आज तक केवल दो ही संधियां हैं जो जिन्हें 16 सितंबर 2009 को यूनिवर्सल रैटिफिकेशन हासिल हुआ - वियना कन्वेंशन और मॉन्ट्रियाल प्रोटोकॉल. तभी से 16 सितंबर को विश्व ओजोन दिवस के रूप में मनाया जाता है. 

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