कॉम्पैक्ट समझौताः प्रशांत क्षेत्र में अमेरिका का बड़ा कदम
११ मार्च २०२४
आखिरकार अमेरिका और प्रशांत क्षेत्र के देशों के बीच नए आर्थिक और सुरक्षा समझौते पर दस्तखत हो गए हैं. पांच महीनों से यह समझौता लटका हुआ था, जिसके कारण इस क्षेत्र में अमेरिका के प्रभाव पर भी सवाल उठ रहे थे.
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प्रशांत क्षेत्र के देशों के नेताओं ने अमेरिका के साथ नए आर्थिक व सुरक्षा समझौते पर खुशी जाहिर की है. अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने सप्ताहांत पर कॉम्पैक्ट ऑफ फ्री एसोसिएशन नाम के इस समझौते पर दस्तखत किए. इस दौरान पलाऊ, मार्शल आईलैंड्स और माइक्रोनीजिया के नेता वॉशिंगटन में मौजूद थे.
पांच महीने से लटके इस समझौते पर दस्तखत के बाद अमेरिका के विदेश मंत्री एंथनी ब्लिंकेन ने कहा कि अमेरिका अगले दो दशकों में पैसिफिक में अपने सहयोगियों के साथ मिलकर काम करने को लेकर उत्साहित है.
यह समझौता 20 साल के लिए किया गया है. इसमें तीन पैसिफिक देशों को कुल मिलाकर 7.1 अरब डॉलर की सहयोग राशि मिलेगी. हाल ही में अमेरिकी सेनेट ने 460 अरब डॉलर के खर्च को मंजूरी दी थी, जिसमें से यह 7.1 अरब डॉलर की राशि निकाली जाएगी.
बड़ी आर्थिक सहायता
समझौते के तहत पैसिफिक देशों को सुरक्षा और बजट गारंटी मिलेगी. बदले में अमेरिका को प्रशांत महासागर अपना सैन्य अड्डा बनाने के लिए जगह मिलेगी. समझौते के बाद मार्शल आइलैंड्स की राष्ट्रपति हिल्डा हाइने ने कहा, "यह समझौता कॉम्पैक्ट को सुधारने और मजबूत करने के लिए हमारी साझा कोशिशों के सिलसिले की एक महत्वपूर्ण कड़ी है."
उन्होंने बताया कि समझौते के तहत अगले चार साल में उनके देश को 70 करोड़ डॉलर की मदद मिलेगी. इसमें जलवायु परिवर्तन से निपटने और स्वास्थ्य सुविधाओं को बेहतर करने के लिए सहयोग राशि शामिल है.
कैसे शुरू हुआ ताइवान और चीन के बीच झगड़ा
1969 में साम्यवादी चीन को चीन के रूप में मान्यता मिली. तब से ताइवान को चीन अपनी विद्रोही प्रांत मानता है. एक नजर डालते हैं दोनों देशों के उलझे इतिहास पर.
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जापान से मुक्ति के बाद रक्तपात
1945 में दूसरे विश्वयुद्ध के खत्म होने के साथ ही जापानी सेना चीन से हट गई. चीन की सत्ता के लिए कम्युनिस्ट पार्टी के नेता माओ त्सेतुंग और राष्ट्रवादी नेता चियांग काई-शेक के बीच मतभेद हुए. गृहयुद्ध शुरू हो गया. राष्ट्रवादियों को हारकर पास के द्वीप ताइवान में जाना पड़ा. चियांग ने नारा दिया, हम ताइवान को "आजाद" कर रहे हैं और मुख्य भूमि चीन को भी "आजाद" कराएंगे.
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चीन की मजबूरी
1949 में ताइवान के स्थापना के एलान के बाद भी चीन और ताइवान का संघर्ष जारी रहा. चीन ने ताइवान को चेतावनी दी कि वह "साम्राज्यवादी अमेरिका" से दूर रहे. चीनी नौसेना उस वक्त इतनी ताकतवर नहीं थी कि समंदर पार कर ताइवान पहुंच सके. लेकिन ताइवान और चीन के बीच गोली बारी लगी रहती थी.
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यूएन में ताइपे की जगह बीजिंग
1971 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने चीन के आधिकारिक प्रतिनिधि के रूप में सिर्फ पीपल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना को चुना. इसके साथ ही रिपब्लिक ऑफ चाइना कहे जाने वाले ताइवान को यूएन से विदा होना पड़ा. ताइवान के तत्कालीन विदेश मंत्री और यूएन दूत के चेहरे पर इसकी निराशा साफ झलकी.
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नई ताइवान नीति
एक जनवरी 1979 को चीन ने ताइवान को पांचवा और आखिरी पत्र भेजा. उस पत्र में चीन के सुधारवादी शासक डेंग शिआयोपिंग ने सैन्य गतिविधियां बंद करने और आपसी बातचीत को बढ़ावा देने व शांतिपूर्ण एकीकरण की पेशकश की.
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"वन चाइना पॉलिसी"
एक जनवरी 1979 के दिन एक बड़ा बदलाव हुआ. उस दिन अमेरिका और पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना के बीच आपसी कूटनीतिक रिश्ते शुरू हुए. जिमी कार्टर के नेतृत्व में अमेरिका ने स्वीकार किया कि बीजिंग में ही चीन की वैधानिक सरकार है. ताइवान में मौजूद अमेरिकी दूतावास को कल्चरल इंस्टीट्यूट में तब्दील कर दिया गया.
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"एक चीन, दो सिस्टम"
अमेरिकी राष्ट्रपति कार्टर के साथ बातचीत में डेंग शिआयोपिंग ने "एक देश, दो सिस्टम" का सिद्धांत पेश किया. इसके तहत एकीकरण के दौरान ताइवान के सोशल सिस्टम की रक्षा का वादा किया गया. लेकिन ताइवान के तत्कालीन राष्ट्रपति चियांग चिंग-कुओ ने इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी. 1987 में ताइवानी राष्ट्रपति ने एक नया सिद्धांत पेश किया, जिसमें कहा गया, "बेहतर सिस्टम के लिए एक चीन."
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स्वतंत्रता के लिए आंदोलन
1986 में ताइवान में पहले विपक्षी पार्टी, डेमोक्रैटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (डीपीपी) की स्थापना हुई. 1991 के चुनावों में इस पार्टी ने ताइवान की आजादी को अपने संविधान का हिस्सा बनाया. पार्टी संविधान के मुताबिक, ताइवान संप्रभु है और पीपल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना का हिस्सा नहीं है.
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एक चीन का पेंच
1992 में हॉन्ग कॉन्ग में बीजिंग और ताइपे के प्रतिनिधियों की अनऔपचारिक बैठक हुई. दोनों पक्ष आपसी संबंध बहाल करने और एक चीन पर सहमत हुए. इसे 1992 की सहमति भी कहा जाता है. लेकिन "एक चीन" कैसा हो, इसे लेकर दोनों पक्षों के मतभेद साफ दिखे.
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डीपीपी का सत्ता में आना
सन 2000 में पहली बार विपक्षी पार्टी डीपीपी के नेता चेन शुई-बियान ने राष्ट्रपति चुनाव जीता. मुख्य चीन से कोई संबंध न रखने वाले इस ताइवान नेता ने "एक देश दोनों तरफ" का नारा दिया. कहा कि ताइवान का चीन से कोई लेना देना नहीं है. चीन इससे भड़क उठा.
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"एक चीन के कई अर्थ"
चुनाव में हार के बाद ताइवान की केमटी पार्टी ने अपने संविधान में "1992 की सहमति" के शब्द बदले. पार्टी कहने लगी, "एक चीन, कई अर्थ." अब 1992 के समझौते को ताइवान में आधिकारिक नहीं माना जाता है.
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पहली आधिकारिक मुलाकात
चीन 1992 की सहमति को ताइवान से रिश्तों का आधार मानता है. दूसरे विश्वयुद्ध के बाद 2005 में पहली बार ताइवान की केएमटी पार्टी और चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के शीर्ष नेताओं की मुलाकात हुई. चीनी राष्ट्रपति हू जिन्ताओ (दाएं) और लियान झान ने 1992 की सहमति और एक चीन नीति पर विश्वास जताया.
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"दिशा सही है"
ताइवान में 2008 के चुनावों में मा यिंग-जेऊ के नेतृत्व में केएमटी की जीत हुई. 2009 में डॉयचे वेले को दिए एक इंटरव्यू में मा ने कहा कि ताइवान जलडमरूमध्य" शांति और सुरक्षित इलाका" बना रहना चाहिए. उन्होंने कहा, "हम इस लक्ष्य के काफी करीब हैं. मूलभूत रूप से हमारी दिशा सही है."
तस्वीर: GIO
मा और शी की मुलाकात
नवंबर 2015 में ताइवानी नेता मा और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की मुलाकात हुई. दोनों के कोट पर किसी तरह का राष्ट्रीय प्रतीक नहीं लगा था. आधिकारिक रूप से इसे "ताइवान जलडमरूमध्य के अगल बगल के नेताओं की बातचीत" कहा गया. प्रेस कॉन्फ्रेंस में मा ने "दो चीन" या "एक चीन और एक ताइवान" का जिक्र नहीं किया.
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आजादी की सुगबुगाहट
2016 में डीपीपी ने चुनाव जीता और तसाई इंग-वेन ताइवान की राष्ट्रपति बनीं. उनके सत्ता में आने के बाद आजादी का आंदोलन रफ्तार पकड़ रहा है. तसाई 1992 की सहमति के अस्तित्व को खारिज करती हैं. तसाई के मुताबिक, "ताइवान के राजनीतिक और सामाजिक विकास में दखल देने चीनी की कोशिश" उनके देश के लिए सबसे बड़ी बाधा है. (रिपोर्ट: फान वांग/ओएसजे)
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माइक्रोनीजिया के राष्ट्रपति वेजली सिमीना ने इस समझौते को अमेरिका के साथ सहयोग की दिशा में एक नया अध्याय बताया. उन्होंने कहा कि माइक्रोनीजिया को शिक्षा, स्वास्थ्य, पर्यावरण और ढांचागत सुधार परियोजनाओं के लिए धन मिलेगा.
पलाऊ के राष्ट्रपति सुरेंजल विप्स जूनियर के दफ्तर की ओर से जारी बयान में इसे एक बहुत अच्छी खबर बताया गया. बयान के मुताबिक पलाऊ को 88.9 करोड़ डॉलर की सहयोग राशि मिलेगी.
कई महीने की देरी
यह समझौता बहुत लंबे समय से टलता आ रहा था. पलाऊ और माइक्रोनीजिया ने पिछले साल के मध्य ही समझौते को मंजूरी दे दी थी जबकि मार्शल आइलैंड्स ने अक्टूबर में इस पर मुहर लगा दी थी. लेकिन अमेरिकी संसद में इस समझौते को मंजूरी मिलने में पांच महीने लग गए. हाइने ने कहा कि इस देरी का असर अमेरिका और मार्शल आईलैंड्स के संबंधों पर पड़ रहा था.
अमेरिकी संसद में दोनों दलों के सदस्यों ने कांग्रेस के स्पीकर माइक जॉनसन को चेताया था कि अगर इस समझौते को मंजूरी नहीं मिलती है तो "अमेरिका अपने पांव पर कुल्हाड़ी मारने वाला इससे बड़ा तोहफा चीन को नहीं दे सकता.”
ताइवान में लोग क्यों ले रहे हथियार चलाने की ट्रेनिंग
यूक्रेन पर रूस के हमले से सबक लेते हुए ताइवान के लोग भी बंदूक चलाने की ट्रेनिंग ले रहे हैं. उन्हें डर है कि जिस तरह से रूस ने यूक्रेन के साथ किया है कहीं चीन भी ताइवान के साथ न कर दे.
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ताइवान में भी युद्ध की आशंका
ताइवान के कई लोगों को अब इसमें कोई संदेह नहीं है कि एक बड़ा पड़ोसी अपने छोटे पड़ोसी पर हमला कर सकता है. उनमें से कई लोगों का मानना है कि चीन ताइवान पर कभी भी हमला कर सकता है और ऐसे में चूंकि उसे अपने अस्तित्व के लिए लड़ना है, इसलिए बेहतर होगा कि अभी से तैयारी शुरू कर दी जाए. इसे ध्यान में रखते हुए कई लोगों ने पहले ही बंदूक प्रशिक्षण में दाखिला ले लिया है.
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ताइवान पर बढ़ता दबाव
चीन ताइवान को अपना इलाका मानता है और उसे अपने अधीन लाने का प्रण ले चुका है. रूस ने फरवरी में यूक्रेन पर हमला किया था तब से ताइवानियों के बीच बंदूक प्रशिक्षण में रुचि अभूतपूर्व दर से बढ़ी है. राजधानी ताइपेई के पास पोलर लाइट ट्रेनिंग सेंटर के मुख्य कार्यकारी अधिकारी मैक्स चियांग ने कहा कि बहुत से लोग जिन्होंने अपने जीवन में कभी बंदूक नहीं देखी है, वे इसका इस्तेमाल करना सीख रहे हैं.
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बंदूक के साथ लड़ना सीख रहे
पिछले तीन महीनों में ताइवान में सभी उम्र और व्यवसायों के लोगों में बंदूक प्रशिक्षण में रुचि बढ़ी है. रॉयटर्स की रिपोर्ट के मुताबिक देश के टुअर गाइड से लेकर टैटू आर्टिस्ट तक लगभग हर कोई एक विशेष परिस्थिति के लिए तैयार रहने के लिए शूटिंग में कुशल होना चाहता है.
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नेता भी सहमे
यूक्रेन में जो हालात हैं उनसे ताइवान के नेताओं का एक बड़ा वर्ग भी चिंतित है. उनमें से कुछ ने तो युद्ध की तैयारी भी शुरू कर दी है. सत्तारूढ़ डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी के एक नेता लिन पिंग-यू ने कहा कि अगर युद्ध छिड़ता है तो उसके लिए उन्होंने अपने परिवार के लिए आपातकालीन खाद्य आपूर्ति और बैट्री जमा कर ली है.
तस्वीर: Ann Wang/REUTERS
टैटू कलाकार भी मैदान में
चीन से खतरे के खिलाफ तैयारी करने वालों में 39 साल के टैटू कलाकार सु चुन भी हैं. वे एयर गन चलाने की ट्रेनिंग ले रहे हैं. वे कहते हैं, "मैं युद्ध के कुछ कौशल सीखना चाहता हूं, जिसमें सिर्फ हथियार चलाने की ट्रेनिंग नहीं बल्कि किसी भी तरह की स्थिति पर प्रतिक्रिया देने की ट्रेनिंग शामिल हो."
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अमेरिका के लिए इस समझौते को अहम माना जा रहा है क्योंकि पिछले कुछ महीनों में चीन ने प्रशांत क्षेत्र के देशों पर अपना प्रभाव बढ़ाने के लिए कई कदम उठाए हैं. जिस तरह प्रशांत देशों में चीन को लेकर समर्थन बढ़ा है, उससे अमेरिका और उसके सहयोगी देश काफी चिंतित हैं.
2022 में सोलोमन आईलैंड्स ने चीन के साथ एक सुरक्षा समझौता किया था जिसके बाद इस क्षेत्र में चीन के पहले सैन्य अड्डे की संभावनाओं को लेकर काफी हो-हल्ला मचा. उसके बाद से ही अमेरिका ने इस क्षेत्र में अपनी कूटनीतिक कोशिशें तेज कर दी थीं. पिछले साल जो बाइडेन ने प्रशांत देशों का ऐतिहासिक सम्मेलन वॉशिंगटन में आयोजित किया. कई अमेरिकी नेताओं ने पैसिफिक देशों की यात्राएं कीं जिनमें उपराष्ट्रपति कमला हैरिस का दौरा भी शामिल है. इसके अलावा पिछले साल फरवरी में सोलोमन आईलैंड्स में 30 साल बाद अपना दूतावास भी फिर से शुरू किया.
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अमेरिका के लिए अहम है क्षेत्र
लेकिन इन कोशिशों के नतीजे दिखने अभी बाकी हैं क्योंकि पैसिफिक देशों में चीन समर्थक नेता एक के बाद एक उभर रहे हैं. हाल ही में नाऊरू ने चीन के समर्थन में ताइवान से कूटनीतिक रिश्ते खत्म करने लिए थे. ताइवान में हाल ही में चुनाव हुए जिसमें चीन के विरोधी माने जाने वाले उम्मीदवार की जीत हुई. चुनावी नतीजे आने के एक ही दिन बाद नाउरू ने चीन के पक्ष में ताइवान से रिश्ते तोड़ने का ऐलान कर दिया.
ताइवान को मान्यता देने वाले चंद देश
कुछ देशों ने 1947 में भारत के आजाद होने से पहले ही ताइवान को राष्ट्र का दर्जा दे दिया. चीन की आपत्ति के बावजूद कई छोटे देश आज भी ताइवान को एक संप्रभु राष्ट्र का दर्जा देते हैं.
तस्वीर: Daniel Ceng Shou-Yi/ZUMA Press Wire/picture alliance
ग्वाटेमाला
1933 से अब तक ताइवान को मान्यता.
तस्वीर: Luis Echeverria/Photoshot/picture alliance
बेलीज
1989 से अब तक ताइवान को मान्यता.
तस्वीर: picture-alliance/Sergi Reboredo
हैती
1956 से अब तक ताइवान को मान्यता.
तस्वीर: Valerie Baeriswyl/REUTERS
वेटिकन सिटी
1942 से अब तक ताइवान को मान्यता.
तस्वीर: Chun Ju Wu/Zoonar/picture alliance
होंडुरास
1985 से अब तक ताइवान को मान्यता.
तस्वीर: Orlando Sierra/AFP/Getty Images
पैराग्वे
1957 से अब तक ताइवान तक मान्यता.
तस्वीर: Andre M. Chang/ZUMAPRESS/picture alliance
सेंट लूसिया
1984-1997 और 2007 से अब तक ताइवान का मान्यता.
तस्वीर: Loic Venance/AFP/Getty Images
मार्शल आइलैंड्स
1998 से अब तक ताइवान को मान्यता.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/U.S. Army
पलाऊ
1999 से अब तक ताइवान को मान्यता.
तस्वीर: Britta Pedersen/dpa/picture alliance
सेंट किट्स एंड नेविस
1983 से अब तक ताइवान को मान्यता.
तस्वीर: CC BY-NC 2.0
तवालू
1979 से अब तक ताइवान को मान्यता.
तस्वीर: Tuvalu Foreign Ministry/REUTERS
सेंट विन्सेंट एंड ग्रैनेडंस
1981 से अब तक ताइवान को मान्यता
तस्वीर: Robertson S. Henry/REUTERS
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उसके बाद जनवरी में तुवालू में ताइवान समर्थक माने जाने वाले प्रधानमंत्री कौसिया नातानो अपनी सीट पर चुनाव हार गए और उनके वित्त मंत्री सीव पानियू चुनाव जीते, जिन्होंने अपने प्रचार में तुवालू और ताइवान के बीच रिश्तों पर पुनर्विचार की बात कही थी.
ब्रैडफर्ड यूनिवर्सिटी में अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा और विकास पढ़ाने वाले प्रोफेसर ओवन ग्रीन कहते हैं कि यह चीन के बढ़ते प्रभाव का संकेत है. उन्होंने कहा, "नाऊरू का अपनी नीति बदलना चीन के लिए अहम है क्योंकि वह पैसिफिक आईलैंड्स फोरम का अध्यक्ष है, जो क्षेत्र का प्रमुख राजनीतिक संगठन है.”
अमेरिका इस क्षेत्र पर अपना प्रभाव कम होने का खतरा नहीं उठाना चाहता. हवाई प्रांत समेत उसके कई इलाके प्रशांत क्षेत्र में पड़ते हैं. इसके अलावा इस क्षेत्र में उसके कई महत्वपूर्ण सैन्य अड्डे भी हैं.