पाकिस्तान में एक और अल्पसंख्यक को ईशनिंदा के दोष में स्थानीय अदालत ने फांसी की सजा सुनाई है. आसिफ परवेज पर अपने सुपरवाइजर पर ईशनिंदा का मैसेज भेजने का आरोप था.
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पाकिस्तान में फैक्ट्री कर्मचारी आसिफ परवेज को स्थानीय अदालत ने ईशनिंदा के दोष में मौत की सजा सुनाई है. परवेज साल 2013 से ही जेल में बंद थे. उनपर अपने सुपरवाइजर को "ईशनिंदा" वाले मैसेज भेजने के आरोप लगे थे. परवेज ईसाई हैं और वे सजा के खिलाफ ऊपरी अदालत में अपील करेंगे. परवेज कपड़ा फैक्ट्री में काम करते थे और उनके सुपरवाइजर ने आरोप लगाया था कि उन्होंने पैगंबर मोहम्मद के खिलाफ अपमानजनक टेक्स्ट मैसेज भेजे थे. मुस्लिम देश पाकिस्तान में पैगंबर मोहम्मद का अपमान करने वालों को मौत की सजा का प्रावधान है. परवेज के वकील सैफ-उल-मलूक ने बताया कि उनको सजा साल 2013 से चली आ रही सुनवाई के बाद दी गई है. मलूक का कहना है कि वे इस सजा के खिलाफ अपील दायर करेंगे.
कोर्ट के फैसले के मुताबिक परवेज को फोन का "गलत" इस्तेमाल कर टेक्स्ट संदेश भेजने के लिए भी तीन साल की सजा सुनाई गई है. लाहौर के सत्र अदालत ने अपने फैसले में कहा कि उसे "फांसी के फंदे पर मौत होने तक लटका दिया जाए." कोर्ट ने परवेज पर 50,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया है. सुनवाई के दौरान परवेज ने कोर्ट से कहा कि उसके सुपरवाइजर ने तभी ईशनिंदा के आरोप लगाए जब उसने इस्लाम धर्म कबूल करने से इनकार कर दिया था. शिकायतकर्ता के वकील मुर्तजा चौधरी ने इस आरोप से इनकार किया है.
पाकिस्तान के मानवाधिकर समूहों का कहना है देश में ईशनिंदा कानून का इस्तेमाल निजी दुश्मनी या फिर अल्पसंख्यकों को प्रताड़ित करने के लिए होता आया है. पाकिस्तान में इस्लामी कट्टरपंथ चरम पर है और इस तरह के आरोपों पर पीट-पीटकर हत्या या सड़क पर कानून को अपने हाथ में लेने वालों की कोई कमी नहीं है.
जुलाई के महीने में ही एक अमेरिकी नागरिक की कोर्ट में सुनवाई के दौरान गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. पेशावर के कोर्ट में ईशनिंदा के आरोपी की सुनवाई भीड़ से भरे कोर्ट में हो रही थी और एक किशोर ने उसकी गोली मारकर हत्या कर दी थी. अहमदिया समुदाय से आने वाले ताहिर अहमद नसीम पर पैगंबर मोहम्मद के अपमान का आरोप था.
नसीम की हत्या का आरोपी तो पकड़ा गया लेकिन उसे एक "पाक हीरो" की तरह पेश किया जा रहा है. हजारों लोगों ने हत्या के आरोपी की रिहाई की मांग रखी है. नसीम के मारे जाने से अमेरिका ने भी नाराजगी जताई है.
1980 से अब तक ईशनिंदा के करीब 75 आरोपियों की कोर्ट में सुनवाई खत्म होने से पहले ही भीड़ द्वारा हत्या की जा चुकी है. पाकिस्तान के मानवाधिकार आयोग का कहना है कि पुलिस ने पिछले महीने 40 लोगों के खिलाफ ईशनिंदा के आरोप में केस दर्ज किए हैं. अधिकतर मामले शिया मुसलमानों के खिलाफ दर्ज कराए गए हैं.
पाकिस्तान के भीतर एक ऐसा अल्पसंख्यक समुदाय है जो स्वयं को मुस्लिम तो कहता है, लेकिन मोहम्मद को आखिरी पैगंबर नहीं मानता. पाकिस्तान इस समुदाय को मुस्लिम नहीं मानता. जानिए कौन हैं ये अहमदी.
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कौन है अहमदी
अहमदी समुदाय स्वयं को मुसलमान कहता है लेकिन मोहम्मद को आखिरी पैगंबर नहीं मानता. आम तौर पर इस्लाम में मोहम्मद को आखिरी पैगंबर माना जाता है.
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किसने की स्थापना
इस समुदाय के संस्थापक थे मिर्जा गुलाम अहमद. इनका जन्म साल 1835 में पंजाब के कादियान में हुआ. इसलिए इन्हें मानने वाले लोगों को अहमदी या कादियानी भी कहा जाता है.
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कहां कितने अहमदी
वेबसाइट वर्ल्डएटलस डॉट कॉम के आंकड़ों मुताबिक अहमदी समुदाय दुनिया के 209 देशों में फैला है. सबसे ज्यादा अहमदी मुसलमान, दक्षिण एशिया, इंडोनेशिया, पूर्वी और पश्चिमी अफ्रीका समेत कैरेबियाई देशों में फैले हैं. अधिकतर देशों में यह एक अल्पसंख्यक समुदाय है.
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मुस्लिम ही नहीं
अधिकतर मुस्लिम समुदाय इन्हें मुस्लिम नहीं मानता. पाकिस्तान में अहमदियों का खुद को मुसलमान कहना गैरकानूनी है. इनकी कुल आबादी का ठोस अनुमान लगाना मुश्किल है. अहमदी मूवमेंट की बेवसाइट का दावा है कि दुनिया में तकरीबन 10 करोड़ अहमदी समुदाय के लोग रहते हैं.
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मुस्लिम सुधार समूह
ब्रिटिश शासन काल के दौरान भारत में पहली बार साल 1889 में आधिकारिक रूप से अहमदिया मुस्लिम जमात (एएमजे) नाम की संस्था की स्थापना की गई. एएमजे का मुख्यालय लंदन में है. इसके मुताबिक जर्मनी में करीब 40 हजार अहमदिया मुसलमान रहते हैं. यह दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ता मुस्लिम सुधार समूह होने का भी दावा करता है.
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पाकिस्तान का मसला
पाकिस्तान में 1974 में बनाए गए एक कानून के तहत इन्हें गैर मुसलमान घोषित किया गया. एक दशक बाद एक और कानून आया, जिसमें अहमदी लोगों के खुद को मुसलमान कहने और मस्जिद बनाने पर रोक लगाई गई. कट्टरपंथियों ने उनके धार्मिक स्थलों को बंद करवा दिया.
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जर्मनी में 40 हजार अहमदिया
20वीं सदी की शुरुआत में अहमदिया जर्मनी आए. साल 1920 से यह समुदाय जर्मनी में अपनी मस्जिदों का संचालन करने लगा. पाकिस्तान में अहमदी समुदाय खुद को मुसलमान नहीं कह सकता. 1970 के दशक में जब पाकिस्तान में अहमदी समुदाय को गैर इस्लामिक मानने का कानून पारित हुआ तो उसके बाद बड़ी संख्या में अहमदी पाकिस्तान छोड़ जर्मनी आ गए.
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अहमदी मुसलमानों के देश
वर्ल्डएटलस डॉट कॉम के मुताबिक सबसे अधिक अहमदी लोग नाइजीरिया में रहते हैं. यहां इनकी संख्या करीब 28 लाख है. इसके बाद तंजानिया में, जहां इनकी संख्या 25 लाख है. भारत में भी करीब 10 लाख अहमदी रहते हैं.
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यहां भी फैले
चौथे और पांचवे नंबर पर नाइजर और घाना का नंबर आता है. नाइजर में करीब 970,000 हजार तो घाना में 635,000 हजार अहमदी मुस्लिम रहते हैं. छठे स्थान पर पाकिस्तान का नंबर आता है जहां इनकी संख्या 600,000 के लगभग है.
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अन्य देश
सातवें नंबर पर कांगो, आठवें पर सिएरा लियोन, नवां नंबर कैमरुन का आता है. दसवें स्थान पर इंडोनेशिया का स्थान आता है. यहां भी तकरीबन 400,000 हजार अहमदी मुसलमान रहते हैं.