पाकिस्तान की बाढ़ में बह गए कपास किसानों के सपने
१८ अक्टूबर २०२२पाकिस्तान के युवा किसान मुहम्मद अवैस के लिए पहली बार कपास की खेती में निवेश अच्छा साबित हुआ था, लेकिन तभी बाढ़ आ गई और सब कुछ ध्वस्त हो गया. 26 साल के अवैस कहते हैं, "मैंने महंगे बीज, खाद और कीटनाशक इस्तमाल किए थे, लेकिन बाढ का मतलब है कि मुझे जो फायदा हुआ वह आखिरी था." कपास उगाने वाले इलाके डेरा गाजी खान के हसनाबाद में अपनी छोटी सी जमीन पर औंधी पड़ी कपास की फसल दिखाते हुए अवैस रुआंसे हो जाते हैं.
बाढ़ की विनाशलीला
जलवायु परिवर्तन के कारण ज्यादा विनाशकारी हुई बाढ़ ने जुलाई और अगस्त में पाकिस्तान के एक बहुत बड़े हिस्से को पानी में डुबो दिया. करीब एक तिहाई कपास की फसल बर्बाद हो गई. दसियों लाख किसानों, मजदूरों और दूसरे लोगों का रोजगार छिन गया.
यहां पैदा होने वाला कपास कपड़ा उद्योग को जाता है. पाकिस्तान को निर्यात से होने वाली कमाई में 60 फीसदी हिस्सेदारी कपड़ा उद्योग की है. कपास की सप्लाई में कमी आने से कई मिलें बंद हो गई हैं और लाखों लोगों के नौकरी जाने का खतरा पैदा हो गया है.
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ऑल पाकिस्तान टेक्सटाइल मैन्यूफैक्चरर्स एसोसिएशन के वरिष्ठ अधिकारी कामान अरशद का कहना है, "बहुत सारी मिलें आंशिक क्षमता के साथ चल रही हैं या फिर बंद हो रही हैं क्योंकि अच्छी क्वॉलिटी का कच्चा माल नहीं मिल रहा है. आर्थिक हालात बुरे हो गए हैं. मुझे डर है कि सरकार की तरफ से कोई सामाजिक सुरक्षा या सहायता नहीं मिलने के कारण 20-25 फीसदी कामगारों की नौकरी जाएगी."
मुल्तान के टेक्सटाइल हब में संघ के प्रतिनिधी मुसव्विर हुसैन कुरेशी ने बताया कि करीब 200 मिलें बंद हो गई हैं. अरशद के मुताबिक इतनी ही संख्या में मिलें आंशिक रूप से चल रही हैं या फिर बंद हो गई हैं.
कुरैशी का कहना है, "हमारी मिलें तमाम मुश्किलों के बावजूद किसी तरह चल रही हैं." उन्होंने कपड़ा उद्योग को सरकार की ओर से मदद दिए जाने की जरूरतों पर बल दिया.
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सरकार ने इस महीने की शुरुआत में कपड़ा मिलों को रियायती दर पर बिजली देने की घोषणा की है. हालांकि बड़ी संख्या में मिलों के बंद होने या कपास की कमी से वो इनकार करते हैं. उन्होंने यह जरूर कहा है कि पिछले कुछ सालों में कपास की पैदावार कम हुई है.
पाकिस्तान की संघीय सरकार के आर्थिक सलाहकार मुहम्मद अली तालपुर का कहना है, "पिछले चार या पांच साल से कमी है, जिसे आयात से पूरा किया जाता है. पहले जितना आयात होता था, उतना इस साल भी होगा इसलिए नौकरियां नहीं जाएंगी."
किसानों-कामगारों के टूटे सपने
पाकिस्तान के कपास उगाने वाले इलाकों में किसान पहले ही अपने नुकसान का हिसाब लगा रहे हैं. इसकी वजह से कई तरह के कामगारों पर असर हो रहा है. ट्रक ड्राइवरों के पास बहुत से इलाकों में कुछ ढुलाई करने को नहीं है और कपास छीलने, बीज निकालने और रुई से गंदगी साफ करने में रोजगार पाने वाले लोग भी खाली बैठे हैं.
अवैस की तरह ही किसान ओमर दराज ने भी इस साल बढ़िया फसल की उम्मीद की थी. इस साल से सरकार ने 40 किलो कपास के लिए 10,000 पाकिस्तानी रुपये की कीमत तय की है. 30 साल के दराज कहते हैं, "हम इस साल बढ़िया कमाई की उम्मीद कर रहे थे, लेकिन बारिश और बाढ़ ने सारे सपनों पर पानी फेर दिया." दराज के खेतों में बाढ़ के बाद हर तरफ गड्ढे ही गड्ढे नजर आ रहे हैं.
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बाढ़ से पहले इस साल पाकिस्तान में कपास के 1.05 करोड़ बेल की पैदावार का अनुमान लगाया गया था. पिछले साल यह करीब 83 लाख बेल थी. कपास आयुक्त खालिद अब्दुल्लाह का कहना है कि नुकसान के बावजूद उत्पादन अच्छा रहेगा. अब्दुल्लाह का कहना है, "कपास की फसल पूरी तरह बर्बाद नहीं हुई है और बहुत कुछ हासिल हो सकता है, सितंबर में जो कलियां फूल बनी हैं उनसे रेशे निकलेंगे."
हालांकि सूत कातने वालों को जो कपास मिला है, वह पिछले साल की तुलना में 24 फीसदी कम है. दराज के खेतों में कपास चुनने का काम करने वाली खानम माइ और उनकी साथियों को महीने भर से काम नहीं मिला है. यही हाल पास के शहर में कमीशन एजेंट जरूर अहमद का है, जो किसानों को अपनी उपज का वजन करने, पैक करने और बेचने में मदद करते हैं. अहमद का कहना है, "मैं हर दिन 6-8 हजार किलो कच्चे कपास का कारोबार करता था. अब हर दिन 200-300 किलो कपास का ही काम हो रहा है."
किसानों की मांग
कपास के किसान सरकार से सिंचाई के लिए सौर ऊर्जा से चलने वाले ट्यूबवेल, आसान कर्ज पर ट्रैक्टर और मुफ्त बीज और खाद की मांग कर रहे हैं. दराज का कहना है, "आप हमारे खेतों को दोबारा तैयार करने में हमारी मदद करें और छह महीने में हम आत्मनिर्भर हो जाएंगे." सरकार का कहना है कि वह किसानों को एक बोरी गेहूं के बीज और एक बोरी खाद देने पर विचार कर रही है, ताकि किसान अगली फसल तैयार कर सकें. हालांकि कई किसानों का कहना है कि बाढ़ के कारण उनके खेतों की जो दशा हुई है, उसमें वो खेती नहीं कर पाएंगे. कई किसान ऐसे बीजों की भी मांग कर रहे हैं, जो जलवायु परिवर्तन के खतरों से मुक्त हों.
एनआर/एसएम (रॉयटर्स)