पाकिस्तान में मांएं अक्सर बच्चों को अपना दूध नहीं पिलातीं. कभी परंपराओं की दुहाई तो कभी गरीबी की खाई बन रही है वजह. इसका नतीजा पाकिस्तान के भविष्य पर पड़ेगा.
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सात बच्चों की मां माह परी पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में रहती हैं. यह जगह खूब हरी भरी और उपजाऊ है. लेकिन परी का दो साल का बेटा गुल मीर भूख से रो रहा है. परी उसे बहला फुसला कर चुप कराने की कोशिश तो कर रही है लेकिन भूख प्यार से तो नहीं मिट सकती ना. परी आह भरकर कहती हैं, "मेरे सारे बच्चे जन्म से ही कमजोर हैं. शायद मेरा दूध अच्छा नहीं है."
पाकिस्तान में अक्सर मांओं को कहा जाता है कि शिशुओं को चाय, जड़ी-बूटियों वाला काढ़ा या फिर फॉर्मूला दूध पिलाया जाए. यह पाकिस्तानी बच्चों में कुपोषण का एक कारण हो सकता है. मुल्क में 44 फीसदी बच्चे कुपोषण का शिकार हैं. आठवें बच्चे को गर्भ में पाल रही परी बताती हैं, "हमारी बालोची परंपरा में हम बत्री देते हैं. यह पीसी हुई जड़ी बूटी होती है. सुबह शाम दो वक्त यही देते हैं. दिन में दो बार मैं उसे अपना दूध भी पिलाती हूं और चाय भी देती हूं. सुबह और शाम चाय भी देती हूं." विश्व स्वास्थ्य संगठनों के मानकों पर तो दिन में दो बार मां का दूध कुछ भी नहीं है. और ऐसा दूसरी जगहों पर भी होता है. कहीं शिशुओं को घी खिलाते हैं तो कहीं शहद या गन्ना.
तस्वीरों में देखिए भारत का हाल
भारत में व्याप्त गंभीर कुपोषण
2014 के वर्ल्ड हंगर इंडेक्स में भारत की स्थिति गंभीर बनी हुई है. देश में पर्याप्त संसाधन होने के बावजूद कुपोषण खत्म नहीं हो रहा. इसमें गरीबी और अशिक्षा एक बड़ी भूमिका निभाते हैं.
आई थोड़ी बेहतरी
अगर पूरी दुनिया की बात करें तो हालात पहले से कुछ अच्छे हुए हैं. 2014 में दुनिया भर में साढ़े अस्सी करोड़ ऐसे लोग हैं जिनके पास पर्याप्त खाना नहीं है. वहीं करीब दो अरब लोग कुपोषित हैं.
तीन बिंदु हैं अहम
पांच साल से कम उम्र में बच्चों की मृत्यु, उनमें कुपोषण और कुल जनसंख्या में कुपोषण की संख्या को आंका जाता है और उसका विश्लेषण किया जाता है. एक महत्वपूर्ण बात यह भी है कि केवल पेट भरना पोषण नहीं है.
तस्वीर: DW/K. Keppner
जागरूकता जरूरी
अक्सर माता पिता को यह पता ही नहीं होता कि उनके बच्चे कुपोषण का शिकार हैं. अंधविश्वास के कारण वह इसे श्राप मानते रहते हैं और डॉक्टर की बजाए नीम हकीम से काम चलाते हैं.
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मध्यप्रदेश की स्थिति
कुपोषण के मामले में देश में मध्यप्रदेश की स्थिति बहुत खराब है. कुपोषित बच्चों के लिए खास केंद्र बनाए गए हैं, जहां मां और बच्चों को समुचित आहार दिया जाता है.
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लापरवाही
खरगोन में जन साहस नाम के गैर सरकारी संगठन के लिए काम करने वाली जासमीन खान बताती हैं कि अक्सर डॉक्टर इलाज के लिए मौजूद नहीं होते और मुश्किल में पड़े लोगों को मदद मिलने में देर हो जाती है.
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परिवार की मनाही
गरीबी के कारण खेतों में दिहाड़ी मजदूरी करने वाली महिलाएं परेशानी में आ जाती हैं. वे जानती हैं कि उनका बच्चा बीमार है लेकिन अक्सर परिजन ही उन्हें सहायता केंद्र जाने से रोक देते हैं.
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मुश्किल में माएं
सोनू की मां रुना (तस्वीर में) अपनी बच्ची के कुपोषण को लेकर असमंजस में हैं. सहायता केंद्र में रहे तो मजदूरी जाती है और मजदूरी करे तो बच्ची बीमार. ऐसे कई परिवार हैं, जिन्हें सही जानकारी दिए जाने की जरूरत है.
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कुछ अच्छा भी
ये सही है कि दुनिया में भुखमरी का आंकड़ा कम हुआ है. मगर इराक जैसे देशों में अस्थिरता और युद्ध के कारण यह बढ़ा भी है. कोमोरोस, बुरुंडी और स्वाजीलैंड में भी भुखमरी बढ़ी है.
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माह परी की मजबूरी दूसरी भी है. वह कहती हैं कि दिनबर काम करती हूं इसलिए दूध पिलाने का वक्त नहीं मिलता. परी को इस बात पर पूरा भरोसा है कि जो पारंपरिक चीजें बच्चों को पिलाई जा रही हैं, वे मां के दूध से बेहतर हैं. लेकिन दो साल के गुल मीर की सेहत कुछ और बयां करती है. वह सिर्फ 5 किलो का है. उसकी आयु के बच्चों का वजन 10 किलो से ज्यादा होना चाहिए. पश्चिम में जन्म के वक्त बच्चे का औसत जन्म 3.5 किलो माना जाता है. और गुल मीर अगर दो साल की आयु में ही 5 किलो का है तो इसका असर उसकी शारीरिक और मानसिक वृद्धि पर स्थायी होगा.
पाकिस्तान के चारों प्रांतों में ऐसे बच्चे देखे जा सकते हैं. मुल्क में यूनिसेफ की प्रमुख ऐंगेला कीएर्नी कहती हैं, "यह एक संकट है. एक भारी आपातकालीन संकट." वह कहती हैं देश में कुपोषित बच्चों की इतनी बड़ी तादाद की एक बड़ी वजह है मां का दूध न मिल पाना. यूनिसेफ का निर्देश है कि पहले छह महीने तक बच्चे को सिर्फ मां का दूध पिलाया जाना चाहिए. लेकिन पाकिस्तान में ऐसे बच्चे सिर्फ 38 फीसदी हैं जो पहले छह महीने सिर्फ मां का दूध पीते हैं. यह आंकड़ा खतरनाक रूप से कम है और इसकी वजह है स्थानीय परंपराएं, मांओं पर काम का बहुत ज्यादा बोझ और दूध उद्योग की आक्रामक मार्केटिंग. डॉक्टर तक लोगों से डेयरी मिल्क पिलाने को कहते हैं.
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50 उंगलियां और एक साथ धड़कते 6 दिल
ऑस्ट्रेलिया की एक महिला ने पांच बच्चों के साथ अपनी बेहद प्यारी तस्वीरें सोशल मीडिया पर पोस्ट कीं और देखते ही देखते ये तस्वीरें वायरल हो गईं. ये पांचों बच्चे इसी महिला के हैं.
तस्वीर: Erin Elizabeth Photography
ऑस्ट्रेलिया की किम टुची ने जनवरी में 5 बच्चों को एक साथ जन्म दिया. अब इनकी बहुत प्यारी तस्वीरें फेसबुक पर पोस्ट हुईं और दुनियाभर में फैल गईं. लेकिन टुसी को आपकी मदद चाहिए.
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पर्थ की रहने वाली किम टुची ने जनवरी में पांच बच्चों को एक साथ जन्म दिया था. चार लड़कियां और एक लड़का. टुची 26 साल की हैं.
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इस डिलीवीरी के लिए 50 डॉक्टरों और नर्सों की टीम ने खूब मेहनत की. साढ़े पांच करोड़ में एक बार ऐसा होता है कि पांच बच्चे एक साथ जन्म लें.
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स्थानीय फोटोग्राफर एरिना एलिजाबेथ ने इन बच्चों को तस्वीरों में उतारा. टुची ने लिखा कि 50 उंगलियां, 6 दिल, धड़कते एक साथ. टुची के तीन बच्चे पहले से हैं. नौ साल का एक बेटा है और दो बेटियां हैं 2 और 4 साल कीं.
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शुरू में टुची को डॉक्टरों ने कहा था कि पांच में से 2 ही बच्चों को बचाना चाहिए और बाकी तीन को टर्मिनेट कर देना चाहिए क्योंकि सेहत को खतरा है. लेकिन टुची राजी नहीं हुईं.
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अब टुची को एक वैन चाहिए जिसमें ये सारे बच्चे एक साथ लाए-ले जाए जा सकें. इसी के लिए वह फंड जुटाने की कोशिश कर रही हैं. आप भी उनके फेसबुक पेज पर जाकर मदद कर सकते हैं.
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रजूल की बहू खेतों में काम करने जाती है तो वह अपने पोते-पोतियों का ख्याल रखती हैं. वह बताती हैं, "डॉक्टर ने कहा कि बच्चे को नंबर वन मिल्क पिलाओ." यह नेस्ले का एक ब्रैंड है. डॉक्टर की यह सलाह रजूल की पोती अकीला के लिए घातक साबित हुई है. स्थानीय स्वास्थ्य अधिकारी इम्तियाज हुसैन के मुताबिक लोग समझते हैं, यह ब्रैंडेड दूध बच्चों को एनर्जी देता है. वह कहते हैं, "डॉक्टर भी इसकी सलाह देते हैं. अक्सर ये झोलाछाप डॉक्टर होते हैं जो बस पैसा कमाने तक ही सोचते हैं."
सरकार कहती है कि उसे समस्या की जानकारी है और कोशिश कर रही है कि 2018 तक कुपोषित बच्चों की संख्य को घटाकर 40 फीसदी किया जाए. लेकिन इस कोशिश के लिए कोई योजना नहीं है. जो योजनाएं चल रही हैं वे विदेशों से आने वाले धन के भरोसे हैं.